गुरुवार, 31 मार्च 2016

अजमेर दक्षिण से अब वंदना नोगिया लड़ेंगी

जानकारी मिली है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा मौजूदा महिला व बाल कल्याण राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की बजाय वर्तमान जिला प्रमुख वंदना नोगिया को चुनाव लड़वाएगी। इसकी नींव उन्हें जिला प्रमुख बनाने के साथ ही पड़ गई थी। असल में अनिता के धुर विरोधी शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने विरोध के बाद भी वंदना को जिला प्रमुख इसीलिए बनवाया, ताकि उन्हें विधानसभा चुनाव के लिए तैयार किया जा सके। वे अनुसूचित जाति के साथ साथ महिला कोटे को भी पूरा करती हैं। बाद में जब नगर निगम चुनाव के दौरान श्रीमती भदेल अच्छा परफोरमेंस नहीं दे पाईं, तो यह मान लिया गया कि अगले चुनाव में वे कारगर प्रत्याशी साबित नहीं हो पाएंगी। यह माना जा रहा है कि
इसी के साथ टिकट निर्धारण में अहम भूमिका निभाने वाले भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने वंदना पर दाव खेलने का मानस बनाया है।
अप्रैल फूल

लाला बन्ना कांग्रेस में शामिल

अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत काफी दिन भाजपा से बाहर रहने के बाद आखिरकार कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। समझा जाता है कि उनकी नजर अजमेर उत्तर विधानसभा सीट पर है और चुनाव नजदीक आने पर दमदार दावेदारी करेंगे। उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार थे, मगर भारी विरोध के बाद भी प्रो. वासुदेव देवनानी टिकट ले आए थे। बाद में नगर निगम चुनाव के दौरान शेखावत ने कांग्र्रेस के सहयोग से मेयर पद का चुनाव लड़ा, मगर विवादास्पद मात्र एक वोट से पराजित हो गए। नतीजतन उन्हें भाजपा से बाहर होना पड़ा। तभी ये लगने लगा था कि उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया जाएगा, मगर कयास धरातल पर नहीं उतरे। इस बीच काफी समय तक विचार करने के बाद भाजपा में कोई भविष्य नहीं देखते हुए वे कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। बताया जाता है कि उन्होंने अजमेर उत्तर से टिकट की शर्त रखी है।
अप्रैल फूल

भगत बरी, फिर से कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं

अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत को भ्रष्टाचार के मामले में बरी कर दिया गया है। इसी के साथ उनके फिर से कांग्रेस में शामिल होने की संभावना बताई जा रही है। असल में पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी प्रबल दावेदारी के बावजूद कांग्रेस का टिकट इसलिए नहीं मिला, क्योंकि उन पर भ्रष्टाचार का मामला चल रहा था। बाद में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। हालांकि भाजपा में शामिल नहीं हुए, कदाचित यह सोच कर कि मामले से बाहर निकलने के बाद फिर से कांग्रेस टिकट की दावेदारी करेंगे। बताया जा रहा है कि बरी होने के बाद फिर से कांग्रेस में शामिल होने की जुगत बैठा रहे हैं। जाहिर तौर पर वे आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से कांग्रेस के बैनर तले चुनाव लडऩे का मानस रखते हैं।
अप्रैल फूल

रविवार, 27 मार्च 2016

यातायात सुधारने के लिए क्या हो सकते हैं वैकल्पिक उपाय?

अजमेर में एलिवेटेड रोड बनाने के लिए राज्य सरकार की ओर से पैसा देने से इंकार किए जाने और अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा द्वारा भी ठंडे छींटे दिए जाने के बाद यह साफ हो गया है कि अब यातायात के दबाव को कम करने के लिए वैकल्पिक उपाय ही करने होंगे। इसका इशारा स्वयं हेड़ा भी दे रहे हैं कि आगरा गेट से सूचना केंद्र चौराहा तक के मार्ग को फोरलेन करने पर विचार कर रहे हैं, साथ ही पालबीछला से वैकल्पिक मार्ग निकल सकता है या नहीं, इस पर भी विचार किया जा रहा है।
आपको बता दें कि इस सिलसिले में अजमेर फोरम भी एक वृहद प्रस्ताव सरकार को भेजा था, जिसमें वैकल्पिक मार्ग एवं रिंग रोड बनाने का सुझाव दिया गया था।
आइये देखें, उसमें क्या लिखा था:-
पहला वैकल्पिक मार्ग आदर्श नगर रेलवे अंडर ब्रिज के पास से धोलाभाटा होते हुए मदार को जोडऩे वाले प्रस्तावित मार्ग को तैयार करने के साथ इसे गढी मालियान, खानपुरा होते हुए ब्यावर रोड से जोड़कर इस मार्ग को बनाया जाना चाहिए।
दूसरा वैकल्पिक मार्ग नौ नंबर पेट्रोल पंप पर बिहारीगंज से आ रहे आनासागर एस्केप चैनल को कवर कर उस पर ओवरब्रिज की तर्ज पर एक मार्ग बनाया जा सकता है। आनासागर एस्केप चैनल को पूरी तरह नहीं ढका जाए बल्कि वर्तमान भूतल से चार-पांच फीट उंचे पिलर तैयार कर उन पर यह मार्ग बनाया जाए। इससे चैनल की सफाई में भी कोई बाधा नहीं आएगी तथा मार्ग के दोनों ओर दीवार बनाने से वह सुंदर और सुरक्षित भी रहेगी। इस मार्ग के बनने से कितनी सुविधा होने वाली है, यह कचहरी रोड पर बिसिट के   निकट कवर किए गए छोटे से हिस्से से लगाया जा सकता है। यह मार्ग सुभााष उद्यान के सामने सुंदर विलास से प्रारंभ होगा और सुंदर विलास, मेडिकल कॉलेज, ब्रह्मपुरी, बिसिट, तोपदड़ा, पालबीचला, श्रीनगर रोड़, अलवर गेट, नगरा होते हुए नौ नंबर तक जाएगा। इस मार्ग निर्माण में ना किसी तरह का कोई अतिक्रमण हटाने की समस्या आएगी और ना ही भूमि अवाप्ति या मुआवजे की समस्या का सामना करना पड़ेगा। यह मार्ग अजमेर में एकतरफा यातायात व्यवस्था लागू करने में भी मददगार होगा। इसमें आदर्श नगर और रामगंज से आने वाला यातायात मार्टिंडल ब्रिज से होकर शहर में आएगा और इस मार्ग से सीधे आदर्श नगर और श्रीनगर रोड, मार्टिन्डल ब्रिज होते हुए रामगंज चला जाएगा। यहां एक हमें स्वत: ही पालबीसला और फ्रेजर रोड के वैकल्पिक मार्ग की सुविधा भी मिल रही है। यह प्रस्तावित एस्केप चैनल मार्ग मोनो रेल के लिए भी विकसित किया जा सकता है।
तीसरा वैकल्पिक मार्ग जयपुर रोड पर जिला अदालत के पीछे से कुंदन नगर वाले मार्ग को जोड़कर बनाया जा सकता है। जयपुर रोड से कुंदन नगर की ओर आने वाला यातायात और रोडवेज बसें भी इस मार्ग से सीधे बस स्टेशन में पीछे की ओर से प्रविष्ट हो सकेंगी।
चौथा वैकल्पिक मार्ग नाका मदार से मदार गांव, लाडपुरा, भूणाबाय होते हुए जयपुर रोड पर आरपीएससी के सामने जोड़ा जा सकता है।
पांचवां वैकल्पिक मार्ग चंदबरदाई नगर से होकर गुजर रही तारागढ़ संपर्क सड़क मार्ग को हैप्पीवैली होते हुए पहाड़ी काटकर सीधे अढ़ाई दिन के झौंपड़े पर आ रहे नागफणी वाले नए मार्ग को जोड़ा जाए।
छठा वैकल्पिक मार्ग तारागढ़ संपर्क सड़क से अजयनगर, पहाडग़ंज, आशागंज, नवाब का बेड़ा के उपरी भाग पर तारागढ़ की तलहटी में एक नया मार्ग विकसित करते हुए इसे डिग्गी के उपर होते हुए सीधे झालरे तक पहुंचाया जाए ताकि दरगाह के लिए रामगंज, स्टेशन रोड़, पृथ्वीराज मार्ग, गंज, दरगाह बाजार से आने वाली भीड़ कम हो सके।
सातवां वैकल्पिक मार्ग शास्त्री नगर से एलआईसी कॉलोनी को जोडऩे के लिए शास्त्री नगर की पहाडिय़ों से एक मार्ग निकाला जाना चाहिए। यह मार्ग पुलिस लाइन, जयपुर रोड से आने वाले यातायात, शास्त्री नगर, को सीधे आनासागर लिंक रोड, वैशाली नगर से जोड़ेगा और पुष्कर जाने के लिए भी कलेक्ट्रेट क्षेत्र पर यातायात का दबाव कम होगा।
आठवां वैकल्पिक मार्ग कुंदनगर से जेपी नगर, गांधीनगर को जोडऩे के लिए मदार की पहाड़ी को काटकर एक वैकल्पिक मार्ग बनाया जा सकता है।
अलग-अलग टुकड़ों में बनने वाले इन मार्गों को समग्र रूप में देखें तो यह अजमेर के लिए रिंग रोड साबित होगा।

एलिवेटेड रोड बनाने की भाजपाइयों की मांग भी नहीं मानी सरकार

अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने की दिशा में स्थानीय मंत्रियों व भाजपा नेताओं ने कोई कोशिश की या नहीं, पता नहीं, इस कारण यह कहना उचित नहीं कि उन्होंने कोशिश की, मगर कामयाब नहीं हुए, मगर एलिवेटेड रोड के मामले में पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि उन्होंने इसके प्रस्ताव भेजे थे, मगर अफसोस कि उनके इस आग्रह को सरकार मानने से इंकार कर दिया है। आपको याद होगा कि भाजपा ने जब अपना घोषणा पत्र बनाया था तो बाकायदा जिले वार भी प्रस्ताव मांगे गए थे, उनमें एलिवेटेड रोड का प्रस्ताव शामिल था, मगर न तो सरकार ने उसको घोषणा पत्र में शामिल किया और न ही अब तक पेश किए गए बजटों में। इससे साफ है कि सरकार में शामिल स्थानीय मंत्री अजमेर में चाहे जितनी शेखी बघारें, मगर जयपुर में उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती के समान ही है।
आपको बता दें कि एलिवेटेड रोड का प्रस्ताव 2013 में कांग्रेस सरकार के दौरान तैयार हुआ था। एलिवेटेड रोड के प्रस्ताव के अनुसार यह स्टेशन रोड पर मार्टिंडल ब्रिज से लेकर क्लॉक टावर थाना, गांधी भवन, कचहरी रोड, इंडिया मोटर्स चौराहा होते हुए राजस्थान लोक सेवा आयोग के पुराने दफ्तर के सामने तक जाना था। ऐसे में गांधी भवन से एलिवेटेड रोड दो हिस्सों में बंट जाता। इसका दूसरा हिस्सा जीपीओ, नगर निगम के सामने से होते हुए आगरा गेट तक जाता। तब एक कंसलटेंट से डीपीआर भी तैयार करवाई गई, जिस पर करीब 20 लाख रुपए खर्च हुए थे। इस प्रस्तावित रोड पर 200 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया था। यहां यह भी समझना होगा कि तब की डीपीआर में 2013 की बीएसआर के आधार पर लागत तय की गई थी, जिसके तहत करीब 200 करोड़ रुपए लागत आ रही थी। यदि वर्ष 2016 की बीएसआर के मुताबिक यह लागत आंकी जाए तो करीब दोगुना हो जाती है। अर्थात करीब 400 करोड़ रुपए चाहिए। बहरहाल भाजपा सरकार के दौरान इस डीपीआर पर धूल पड़ी रही। अब जा कर खुलासा हुआ है कि सरकार ने इतनी बड़ी राशि देने से इंकार कर दिया है। उधर अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा कह रहे हैं कि स्टेशन रोड पर एलिवेटेड रोड की फिजिबिलिटी भी नहीं है। दुकानदारों का भी भारी विरोध था। इस रोड पर पर्याप्त स्थान भी नहीं है। एडीए किसी एक ही प्रोजेक्ट पर इतनी बड़ी रकम खर्च करने की स्थिति में भी नहीं है। यानि कि साफ तौर पर मान लिया जाए कि एलिवेटेड रोड का सपना चकनाचूर हो गया है।
स्मार्ट सिटी के मामले में भद पिटने के बाद एक बार फिर यहां के मंत्रियों व भाजपा नेताओं की छीछालेदर होने जा रही है।
तेजवानी गिरधर
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8094767000

गुरुवार, 24 मार्च 2016

अनिता जी भले ही श्रद्धासुमन अर्पित न करें, मगर अंत्येष्टि तो हो ही चुकी

पिछले दिनों जवाहर रंगमंच पर फागुन महोत्सव में हास्य-व्यंग्य के दौरान एक दिलचस्प और काबिल ए गौर वारदात हुई। एक ओर जहां भाजपा व कांग्रेस के सभी नेताओं ने स्मार्ट सिटी के पुतलाकार शव पर पुष्पांजलि अर्पित की, वहीं महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल ने रूखे स्वर में साफ इंकार कर दिया। उनका कहना था कि स्मार्ट सिटी का सपना खत्म नहीं हुआ है और आगे चल कर यह जरूर पूरा होगा, इस कारण वे पुष्पांजलि अर्पित नहीं करेंगी। यकायक उनके इस रवैये से मंच संचालक सकपका गए। यह कह कर कि अच्छा जवाब, उन्होंने माहौल को गंभीर होने से बचा लिया, मगर यह वारदात वहां मौजूद दर्शकों में गहरे तक प्रवेश कर गई।
सब जानते हैं कि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा व भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाए जाने की जो घोषणा हुई, उसे जमीन निगल गई या आसमान खा गया, अब तक कुछ अता-पता नहीं। वह अब भी कहीं मौजूद है तो पता नहीं, मगर कम से कम इस बारे में अधिकृत तौर पर जिन मंत्रियों व अफसरों को जानकारी होनी चाहिए, वे चुप भी हैं। बाद में शुरू हुई देशभर के एक सौ शहरों को स्मार्ट बनाने की कवायद में पहले दौर के बीस शहरों में भी अजमेर का नाम नहीं आ पाया। कुल मिला कर फिलवक्त सच यही है कि अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने का जो ऐलान हुआ था, उसकी अंत्येष्टि हो चुकी है।
हुआ यूं कि फागुन समारोह समिति ने इस बार स्मार्ट सिटी बनने की कवायद की विफलता को ही केन्द्र में रखा। जाहिर तौर यह हंसी-ठिठाली के साथ व्यंग्य का भी कार्यक्रम था। इसे हल्के में ही लिया गया, लिया ही जाना चाहिए, मगर श्रीमती भदेल इस कार्यक्रम में अपना पद साथ ही लेकर आईं। इस कारण उन्हें बहुत बुरा लगा कि उनकी सरकार की विफलता को इस प्रकार व्यंग्यात्मक तरीके से प्रदर्शित किया गया। वे अड़ गईं कि वे तो पुष्पांजलि अर्पित नहीं करेंगी। बेशक पार्टी और सरकारी लाइन पर पूरी तरह से खरी मानी जाएंगी, मगर इस कड़वी सच्चाई को कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता कि फिलवक्त अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने के सपने की भ्रूण हत्या हो चुकी है। इसे कोई स्वीकार करे या नहीं। अगर ये सच नहीं है तो क्या वजह है कि स्मार्ट सिटी को लेकर मीडिया में भाजपा सरकार और उसके नेताओं की इतनी छीछालेदर के बाद भी वे चुप क्यों हैं? उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं कि जिस स्मार्ट सिटी के सपने को दिखा कर उन्होंने नगर निगम चुनाव में वोट बटोरे, उसका आखिर हुआ क्या?
बहरहाल, इस मामले में राजस्थान पुरा धरोहर संरक्षण प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत ने पूरी संजीदगी के साथ कहीं न कहीं तालमेल के अभाव को स्वीकार किया और विश्वास जताया कि सभी नेता मिल कर अजमेर के स्मार्ट सिटी के सपने को साकार करेंगे।
-तेजवानी गिरधर
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यानि कि लाला बन्ना अगला विधानसभा चुनाव लड़ेंगे ही

अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत उर्फ लाला बन्ना आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे ही। इसकी घोषणा स्वयं उन्होंने की है। हालांकि यह घोषणा जवाहर रंगमंच पर हुए फागुन समारोह में हास्य-व्यंग्य के दौरान की, जिसे कायदे से बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए, मगर जिस शिद्दत के साथ उन्होंने एक सवाल में आगामी 2018 के विधानसभा चुनाव में डंका बजाने का ऐलान किया, उस पर यकीन करना ही होगा। उनकी शब्दावली और बॉडी लैंग्वेज साफ तौर पर यह जाहिर कर रही थी कि नगर निगम चुनाव के दौरान मेयर पद का चुनाव उन्होंने जिस तरह से हारा, उसकी आग उनमें अब भी कायम है। उन्हें सिर्फ वक्त का इंतजार है, अभी भले ही चुप बैठे हों।
असल में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भी गंभीर दावेदार थे। इस वजह से हर अजमेर वासी के मन में यह सवाल है कि मेयर पद का चुनाव हारने और भाजपा से बाहर हो जाने के बाद वे क्या करने वाले हैं? इसी से जुड़े सवाल ये भी हैं कि क्या वे फिर से भाजपा में आएंगे या फिर कांग्रेस टिकट लेने की कोशिश करेंगे? क्या इन दोनों का टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय मैदान में उतरेंगे? जाहिर तौर पर ये सवाल भविष्य के गर्भ में छिपे हुए हैं, मगर इतना तय माना जा रहा है कि वे यूं ही चुप बैठ जाने वाले नहीं हैं। गैर सिंधीवाद की मुहिम से जुड़े लोग भी उन्हें चुप नहीं बैठने देने वाले। इसी कड़ी में भाजपा पार्षद ज्ञानचंद सारस्वत का नाम भी चर्चा में रहा है, मगर लाला बन्ना एक आइकन के रूप में उभर चुके हैं। उनकी अच्छी फेन फॉलोइंग भी है। फागुन समारोह में उन्होंने जब घोषणा कर ही दी है तो जाहिर तौर पर उनके पास इसका रोड मैप भी तैयार होगा ही। देखते हैं 2018 में क्या होता है? क्या अजमेर का यह उभरता हुआ सितारा उस चुनाव में अजमेर के राजनीतिक आसमान में चमकता है या फिर उनकी गणित मेयर चुनाव की तरह गड़बड़ा जाती है?
-तेजवानी गिरधर
7742067000
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शनिवार, 19 मार्च 2016

अजमेरनामा की आशंका सही निकली, पाक जायरीन के आने का विरोध शुरू

महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के आगामी सालाना उर्स में पाकिस्तानी जायरीन के आगमन को लेकर भले ही सत्तारूढ़ दल भाजपा ने मौन धारण कर रखा है, मगर विश्व हिंदू परिषद सहित अन्य हिंदूवादी संगठनों ने उनके आने का विरोध शुरू कर दिया है। ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारत विरोधी और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जाने का विवाद चरम पर होने के चलते जैसे ही अजमेर लिटरेरी सोसायटी के बेनर तले लाहौर-पाकिस्तान के शायर प्रो. अब्बास ताबिश के कार्यक्रम शायरी सरहद से परे को भाजपा सहित अन्य हिंदूवादी संगठनों के विरोध की वजह से रद्द करना पड़ा, तब अजमेरनामा ने यह सवाल उठाया था कि कहीं इसी प्रकार का विरोध ख्वाजा साहब के आगामी सालाना उर्स के दौरान पाक जायरीन के आगमन को लेकर न खड़ा हो जाए। इस पर शहर भाजपा अध्यक्ष अरविंद यादव ने बाकायदा बयान जारी कर कहा था कि उर्स के दौरान पाकिस्तान से जायरीन आयेंगे या नहीं, ये तो उन्होंने भी अभी तय नहीं किया होगा, लेकिन इस पर अनावश्यक चर्चा की जा रही है और यदि आते भी हैं तो इसको जवाहर रंगमंच में फर्जी तरीके से होने जा रहे पाकिस्तानी शायर के कार्यक्रम से जोड़ कर देखा जाना अनुचित है। अजमेर पुष्कर ब्रह्माजी व ख्वाजा साहब की सौहार्द, श्रद्धा व आस्था की नगरी है, जहां समन्वित भाव से सभी जगहों से आने वालों के सम्मान की परिपाटी चलती रही है।
उनके इस बयान से यह स्पष्ट हो गया था कि भाजपा पाक जायरीन के मुद्दे पर फिलहाल कोई स्टैंड नहीं ले रही है। उलटा उनकी इन पंक्तियों - अजमेर पुष्कर ब्रह्माजी व ख्वाजा साहब की सौहार्द, श्रद्धा व आस्था की नगरी है, जहां समन्वित भाव से सभी जगहों से आने वालों के सम्मान की परिपाटी चलती रही है, से तो यह लग रहा था कि भाजपा को पाक जायरीन के आने पर ऐतराज नहीं है।
बहरहाल, अब हिंदूवादी संगठनों ने अजमेरनामा की आशंका की पुष्टि करते हुए जिला कलेक्टर को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृहमंत्री, मुख्यमंत्री और गृह राज्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंप कर पाक जत्थे की अजमेर यात्रा रद्द करने की मांग कर दी है। विहिप ने तो यहां तक चेतावनी दी है कि आगामी उर्स में पाक जत्थे को अजमेर में घुसने नहीं दिया जाएगा। विहिप के महामंत्री शशिप्रकाश इंदौरिया ने कहा कि यदि पाक जत्थे को भारत आने से रोका नहीं गया और पाक से संबंध विच्छेद नहीं किए गए तो देशभर में आंदोलन होगा।
वस्तुत: अजमेरनामा को आशंका इस कारण थी कि इससे पहले भी भारत-पाक संबंधों में तनाव के चलते लगातार दो साल तक पाकिस्तानी जायरीन उर्स मेले में नहीं आए थे। ज्ञातव्य है कि पाक जेल में वर्ष 2013 में सरबजीत की हत्या के बाद भारत-पाक के संबंधों में तनाव हो गया था। देशभर में पाक का विरोध हुआ। उर्स मेले में पाक जत्थे के आने की सूचना जैसे ही सार्वजनिक हुई, यह विरोध चरम पर पहुंच गया। इसी विरोध के चलते पाक जत्था भारत नहीं आ सका। वर्ष 2014 में भी कई अन्य कारणों से भारत-पाक संबंधों में तनाव बरकरार था, इस वजह से पाक जत्था नहीं आया। विरोध का मसला केवल स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि सरकार के स्तर तक जा पहुंचा था। भारत सरकार की ओर से कहा गया था कि द्विपक्षीय घटनाओं के मद्देनजर भारत में जो सुरक्षा माहौल बना है, उसकी वजह से सरकार पाकिस्तानी जायरीनों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने की स्थिति में नहीं होगी। सरकार ने पाकिस्तान सरकार से बाकायदा सिफारिश भी की कि जायरीनों के अजमेर दौरे को रद्द किया जाए।
यहां बता दें कि अमूमन हर उर्स में पाकिस्तान से जायरीन भारत सरकार के खास मेहमान बन कर जियारत के लिए अजमेर आते हैं। अटारी से उनके लिए स्पेशल ट्रेन चलती है, जो आईबी और विशेष सुरक्षा बलों की निगरानी में दिल्ली होते हुए अजमेर आती है। यहां अमूमन वे तीन-चार दिन ठहरते हैं तब तक ट्रेन विशेष सुरक्षा निगरानी में रहती है। उन्हें स्थानीय सेंट्रल गल्र्स स्कूल में ठहराया जाता है। कलेक्टर समेत राज्य के कई अफसर उनकी तीमारदारी में रहते हैं।
खैर, अजमेरनामा ने लिखा था कि उर्स मेले में ज्यादा दिन शेष नहीं हैं। आगामी अप्रैल माह के पहले सप्ताह में ही मेला शुरू होने वाला है। इसकी प्रशासनिक तैयारी बैठक भी हो चुकी है। यह कहना अभी मुश्किल है कि उर्स मेला शुरू होने तक माहौल में कुछ सुधार आ ही जाएगा। मगर यदि भाजपा अथवा सहयोगी संगठनों से अभी से इस मुद्दे को उठाया तो संभव है कि प्रशासन व सरकार को इस पर विचार करना पड़ जाए। अब जब कि विरोध के स्वर उठने लगे हैं, सवाल ये उठ खड़ा हुआ है कि प्रशासन अब क्या कदम उठाता है?
-तेजवानी गिरधर
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चंद व्यापारियों को रास नहीं आ रही मदारगेट की सुधरी यातायात व्यवस्था

मदारगेट बाजार में चौपहिया वाहनों पर रोक के बाद सुधरी यातायात व्यवस्था चंद व्यापारियों को रास नहीं आ रही। उन्हें सिर्फ और सिर्फ अपना व्यापार ही सूझ रहा है, पूरे शहर के नागरिक भले ही तकलीफ पाएं।....
व्यापारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने पिछले दिनों जिला कलेक्टर आरुषि मलिक को ज्ञापन देकर नई व्यवस्था पर ऐतराज जताया है। असल में ऐतराज चंद व्यापारियों को ही है, जिनके बड़े शो रूम हैं, जहां खरीददारी को आने वाले चौपहिया वाहनों पर आते हैं। बाकी के छोटे दुकानदारों को तो उलटा सुविधा है, क्योंकि पैदल व मोटरबाइक-स्कूटर आदि पर आने वाले अब सुगमता से आ-जा रहे हैं। आम जनता को तो बहुत ही सुविधा है। देखिए, व्यापारियों का तर्क- पूरे शहर में से सिर्फ मदार गेट बाजार में ही चौपहिया वाहनों के प्रवेश पर रोक क्यों लगाई गई है? क्या प्रशासन का कोई अधिकारी मदारगेट के व्यापारियों से द्वेषता रखता है? सवाल ये उठता है कि क्या वाकई इतनी अंधेरगर्दी है कि कोई अधिकारी मदारगेट के व्यापारियों से द्वेष रखे और द्वेषता रखते हुए चौपाहिया वाहनों पर रोक लगा दे? क्या ये इतना आसान है? व्यापारियों की तकलीफ देखिए, वे कहते हैं कि केवल मदारगेट बाजार में ही चौपहिया वाहनों पर रोक क्यों लगाई गई है, अर्थात अगर अन्य बाजारों में भी चौपहिया वाहनों पर रोक लगा दी जाए तो वे शांत हो जाएंगे। बेशक अन्य बाजार भी भीड़ भरे हैं, उनमें भी जरूरत के मुताबिक चौपहिया वाहनों के प्रवेश पर रोक लगाई जा सकती है, लगाई जानी चाहिए, कुछ में है भी, मगर सोचने वाली बात ये है कि क्या मदारगेट सर्वाधिक भीड़ भरा नहीं है, जिसमें चौपहिया वाहन प्रवेश करने पर बार-बार जाम लग जाता है। मदारगेट बाजार की तुलना अन्य बाजारों से कैसे की जा सकती है?
व्यापारियों का कहना है कि तीन माह पहले जब चौपहिया वाहनों पर रोक लगाई गई थी, तब प्रशासन की ओर से कहा गया था कि यह प्रयोग के तौर पर है, यदि आम सहमति बनी तो फिर शहर के सभी भीड़ वाले बाजारों में चौपहिया वाहनों के आवागमन पर रोक लगाई जाएगी। सवाल ये उठता है कि यदि प्रयोग सफल हो गया है तो उसे जारी क्यों नहीं किया जाना चाहिए? बेशक यह प्रयोग अन्य जरूरत वाले बाजारों में भी किया जाना चाहिए। व्यापारियों की तकलीफ ये है कि नई व्यवस्था लागू करने से पहले उनसे सहमति क्यों नहीं ली गई, तो सवाल ये उठता है कि इसमें उनकी सहमति की जरूरत क्या है? उनका तर्क तो ऐसा है कि अगर वे सहमत नहीं हैं तो प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहेगा। यातायात व्यवस्था को सुधारने की कोई कोशिश नहीं करेगा। हद हो गई। क्या इसका भी जवाब किसी के पास है कि जब कुछ व्यापारी अपनी दुकानों के आगे अस्थाई अतिक्रमण करते हैं तो क्या प्रशासन से मंजूरी लेते हैं?
हां, दुकानदारों की इस बात में जरूर दम है कि वायदे के मुताबिक मदारगेट बाजार के आसपास वाहन पार्किंग की सुविधा भी उपलब्ध नहीं करवाई गई है। प्रशासन को इस बारे में जल्द से जल्द ही फैसला लेना चाहिए।
बहरहाल कलेक्टर के कहने पर व्यापरियों की बात अतिरिक्त कलेक्टर (प्रशासन) किशोर कुमार ने भी सुनी और उन्होंने कहा है कि अब जब भी जिला यातायात सलाहकार समिति की बैठक हो तो मदारगेट के व्यापारी भी बैठक में आ जाएं, ताकिनगर निगम, पुलिस आदि सभी विभागों के अधिकारियों की मौजूदगी में व्यापारियों को सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे।

रविवार, 13 मार्च 2016

विजय जैन का अंदाज-ए-आगाज तो बेहतर है

शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष पद से नवाजे गए विजय जैन का अंदाज-ए-आगाज तो बेहतर है। हालांकि वे कितने सफल होंगे, ये तो वक्त की मांद में छिपा हुआ है, मगर जैसी शुरुआत है, उससे लगता है कि वे सब को साथ लेकर चलने कामयाब हो सकते हैं। चाहे नई कार्यकारिणी में स्थान पाने के लिए या फिर प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के प्रभाव की वजह से अधिसंख्य बड़े व छोटे नेता एक मंच पर दिखाई देने लगे हैं। इसका श्रेय जैन को भी दिया जा सकता है, जो कि कूल मांइडेड हैं और सब पुराने नेताओं का पूरा सम्मान कर रहे हैं। ये कम बात नहीं है कि एक ओर जहां मीडिया अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट को विवाद बना कर तूल दे रहा है, वहीं सचिन की पसंद से बनाए गए जैन की ओर से आहूत बैठकों व कार्यक्रमों में गहलोत गुट के माने जाने वाले भी खुल कर शिरकत कर रहे हैं। कुल मिला कर मृतप्राय: सी कांग्रेस में जान आई है। कार्यकर्ताओं को लगता है कि अब नई टीम संगठन को सक्रिय करके अपना जनाधार बढ़ाएगी। हर परिवर्तन के साथ नई ऊर्जा का संचार होता है, मगर सच ये है कि जिस उम्मीद में जैन को अध्यक्ष बनाया गया है, वह बेहद चुनौतीपूर्ण है।
जाहिर तौर पर जैन के ऊपर सबसे बड़ा दायित्व निष्क्रिय हो चुकी कांग्रेस में जान फूंकने के साथ आगामी विधानसभा चुनाव में अच्छा परफोरमेंस दिखाना है। वह भी तब जब कि लगातार तीन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस शहर की दोनों सीटें भाजपा से हारी है। हालांकि कुछ कारणों के चलते पिछले नगर निगम चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा है, जिससे पता लगा कि धरातल पर कांग्रेस जिंदा है, मगर अगर आज भी संगठन तो छिन्न-भिन्न सा ही है। बेशक मौजूदा सरकार का परफोरमेंस कुछ खास न होने के कारण कांग्रेस को उम्मीद है कि अगली सरकार उसी की होगी, मगर अकेले इसी उम्मीद के चलते कोई लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकेगा।
सबको याद है कि मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट ने स्थानीय सांसद होने के नाते खूब काम करवाए, मगर परिणाम सिफर ही रहा। हालांकि इसकी वजह मोदी लहर को माना जा सकता है, मगर सच्चाई ये है कि अनेक गुटों में बंटे कांग्रेसी अपनी ही पार्टी की जड़ें खोद रहे थे। नतीजतन पायलट की ओर से कराए गए काम अस्तित्व में होते हुए भी जनता को नजर नहीं आए।
आज भी कमोबेश कांग्रेस संगठन के वही हालात हैं। वो के वो ही नेता और वो के वो ही कार्यकर्ता। गुटों में बंटे हुए कार्यकर्ताओं को एकजुट करना जैन के लिए एक बड़ी समस्या है। बेशक उनके इर्दगिर्द इस वक्त कार्यकर्ताओं का हुजूम नजर आता है, मगर सच ये है कि उनमें से अधिसंख्य वे हैं, जो संगठन में पद पाना चाहते हैं। एक बार कार्यकारिणी घोषित हो जाने के बाद कई छिटक सकते हैं। ऐसे में जैन को ऐसी कार्यकारिणी बनानी होगी, जिसके जरिए सभी गुटों को उनके वजूद के मुताबिक प्रतिनिधित्व मिले। इसके अतिरिक्त बूथ और वार्ड स्तर पर निष्क्रिय पदाधिकारियों को हटा कर नए ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी देनी होगी। यही सही है कि चुनाव के वक्त कई फैक्टर काम करते हैं, राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय मुद्दे प्रभावी होते हैं, मगर जब तक स्थानीय स्तर पर चुनाव लडऩे वाली कार्यकर्ताओं की सेना सुव्यवस्थित नहीं होती, मुकाबला करना बेहद कठिन होता है। अब देखना ये है कि कार्यकारिणी बनाते वक्त जैन कितनी सूझबूझ और चतुराई दिखाते हुए सभी को जोड़ कर रख पाते हैं।
रहा सवाल स्वयं जैन का तो उन्हें भी स्थापित होना होगा। अब तक वे ब्लॉक अध्यक्ष रहे और उन पर शहर स्तर की सोच का कोई दायित्व नहीं रहा। सीधे ब्लॉक से शहर स्तर पर देश की सबसे बड़ी पार्टी की शहर जिला इकाई का दायित्व आया है। उसी के अनुरूप सोच, उसी अंदाज की बॉडी लैंग्वेज और उसी के अनुसार गंभीरता दिखानी होगी। हाशिये पर जा चुके पुराने नेताओं का मार्गदर्शन लेना होगा। जैन के पक्ष में एक पहलु ये भी है कि उनसे व्यक्तिगत रूप से जुड़े कार्यकर्ता ऊर्जावान हैं, साथ ही पूर्व शहर जिला युवक कांग्रेस के अध्यक्ष गुलाम मुस्तफा व भूपेन्द्र सिंह राठौड़ सरीखे नेता भी लंबे अरसे बाद यकायक सक्रिय हुए हैं और सुकेश कांकरिया, बिपिन बेसिल, मुजफ्फर भारती सरीखे कंधे से कंधा लगा कर खड़े हैं, मगर इतने मात्र से कुछ नहीं होगा, इस फौज को बढ़ाना होगा। खैर, देखते हैं क्या होता है।
-तेजवानी गिरधर
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