मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

एडीए अध्यक्ष का पद अब सामान्य को मिलेगा?

हालांकि राजनीति में कुछ भी संभव है, मगर अब जब कि अजमेर नगर निगम के मेयर का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित हो गया है, मोटे तौर पर माना जा रहा है कि अब अजमेर विकास प्राधिकरण  के अध्यक्ष का पद सामान्य वर्ग के किसी नेता को मिलेगा। पक्के तौर पर इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि इससे पहले सामान्य की सीट पर ओबीसी के धर्मेन्द्र गहलोत को मेयर बना दिया गया, जिसका भारी विरोध भी हुआ, मगर उसके तुरंत बाद डिप्टी मेयर का पद भी ओबीसी के संपत सांखला को दे दिया गया।
अगर ये माना जाता है कि एडीए अध्यक्ष पद किसी सामान्य वर्ग के नेता की नियुक्ति होगी तो उसमें सबसे पहले नंबर पर पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का नाम आता है। असल में वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी माने जाते हैं। यद्यपि वे लगातार दो बार अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र से हारे और तीसरी बार उन्हें टिकट नहीं दिया गया, मगर गहलोत से नजदीकी उनके दावे को मजबूत बनाए हुए है। दूसरा दावा है प्रदेश कांग्रेस के सचिव व अजमेर शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके महेन्द्र सिंह रलावता का, जो पिछले विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से हार गए। अजमेर में वे काफी सीनियर नेता हैं, इस कारण हाईकमान तक पकड़ है। उनकी पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब यह लगभग तय था कि इस बार कांग्रेस किसी सिंधी को टिकट देगी, फिर भी वे टिकट ले कर आ गए। ज्ञातव्य है कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का उन पर वरद हस्त है।
शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष विजय जैन का भी दावा बनता है। उन्होंने विपरीत हालात में भी संगठन को मजबूत किया। अपने खास सिपहसालार मुजफ्फर भारती व बिपिन बेसिल के सहयोग से वार्ड व बूथ स्तर पर संगठनात्मक ढ़ांचा खड़ा किया। कामयाब धरने-प्रदर्शन किए। संगठन का वजूद तो रलावता के समय भी था, लेकिन इस बार चूंकि कांग्रेस की सरकार बनने की पूरी उम्मीद थी, उसी के चलते उनकी टीम ने अपेक्षाकृत बेतहर काम किया। टीम में कई नए कार्यकर्ता भी जुड़े। यह बात दीगर है कि मोदी लहर के चलते अजमेर की दोनों सीटें कांग्रेस हार गई। वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की पसंद हैं। देहात जिला कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह राठौड़ भी प्रमुख दावेदार हैं, वे भी पायलट की पसंद से देहात अध्यक्ष बने थे।
सामान्य वर्ग से अन्य कई और भी दावा कर सकते हैं, जिनमें राजू गुप्ता का नाम लिया जाता है। सचिन पायलट के करीबी किशनगढ़ निवासी राजू गुप्ता किशनगढ़ विधानसभा सीट के प्रबल दावेदार थे, मगर उन्हें टिकट नहीं मिली। हो सकता है, उनकी लॉटरी लग जाए। यहां उल्लेखनीय है कि अजमेर विकास प्राधिकरण के कार्य क्षेत्र में किशनगढ़ भी है, इस कारण उन पर बाहरी होने का ठप्पा नहीं लगेगा।
अपुन ने शुरू में ही लिखा कि राजनीति में कोई फाइनल फार्मूला नहीं होता, इस कारण अनुसूचित जाति के नेता यथा अजमेर दक्षिण से हारे हेमंत भाटी, उनके बड़े भाई पूर्व उप मंत्री ललित भाटी, पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल, पूर्व मेयर कमल बाकोलिया, शहर जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष प्रताप यादव भी नाउम्मीद नहीं हैं। वैसे जातीय संतुलन बनाने के लिए सामान्य वर्ग के किसी नेता को एडीए का अध्यक्ष बनाने का कयास लगाया जा रहा है। 
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रविवार, 20 अक्तूबर 2019

मेयर पद के लिए अनुसूचित जाति महिला वर्ग में दावेदारों को लेकर कयासबाजी शुरू

संशोधित एवं परिवद्र्धित
सामान्य व ओबीसी दावेदारों की उम्मीदों पर फिरा पानी
अजमेर। आगामी नगर निकाय चुनाव में अजमेर नगर निगम का मेयर पद अनुसूचित जाति की महिला के आरक्षित होने के साथ एक ओर जहां सामान्य व ओबीसी के दावेदारों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है, वहीं अनुसूचित जाति महिला वर्ग में दावेदारों को लेकर कयासबाजी शुरू हो गई है। जैसा कि हाल ही राज्य सरकार ने नई व्यवस्था लागू करते हुए आम मतदाता के लिए भी मेयर का चुनाव लडऩे का रास्ता खोल दिया है, इस कारण उन संभावित दावेदारों पर नजर है, जो कि पार्षद का चुनाव न लड़ कर सीधे मेयर पद का टिकट हासिल करने की कोशिश करेंगी। उनमें वे प्रमुख रूप से उभर कर आएंगी, जो कि पहले से शहर स्तर पर स्थापित नेताओं की पत्नियां हैं। मेयर पद नजर रखने वाली महिलाओं में से जिनको टिकट मिलने की कोई खास उम्मीद नहीं है, वे पार्षद का चुनाव जरूर लडऩा चाहेंगी। उनके लिए भी मेयर पद की दावेदारी का विकल्प तो खुला हुआ रहेगा ही।
कांग्रेस में अजमेर दक्षिण से विधानसभा चुनाव हारे प्रमुख उद्योगपति व समाजसेवी हेमंत भाटी की पत्नी की दावेदारी सबसे प्रबल हो सकती थी, लेकिन चूंकि वे क्रिश्चियन परिवार से हैं, इस कारण उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकेगा। उनकी भाभी भी सामान्य वर्ग से हैं, इस कारण उनको भी मौका नहीं मिलेगा। पूर्व उप मंत्री ललित भाटी अपनी पत्नी को राजनीति में लाना चाहेंगे या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। राजनीति व नगर निगम में कामकाज के अनुभव के लिहाज से सबसे तगड़ी दावेदारी शहर जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष व पूर्व पार्षद प्रताप यादव की पत्नी श्रीमती तारा देवी यादव, जो कि स्वयं भी पार्षद भी रह चुकी हैं, की बनती दिख रही है। मौजूदा पार्षदों में चंचल बेरवाल, द्रोपदी कोली, उर्मिला नायक व रेखा पिंगोलिया भी दावा ठोकने की पात्रता रखती हैं। पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल की पत्नी श्रीमती रंजू जयपाल, पूर्व मेयर कमल बाकोलिया की पत्नी श्रीमती लीला बाकोलिया, पार्षद सुनील केन की पत्नी श्रीमती नीता केन के भी खुल कर सामने आने की पूरी उम्मीद है। डॉ. जयपाल की बहिन, राजस्थान लोक सेवा आयोग, अजमेर की सचिव आईएएस अधिकारी रेणु जयपाल ने यूं तो कभी राजनीति में रुचि नहीं दिखाई, मगर चूंकि लंबे समय से अजमेर में ही विभिन्न पदों पर रही हैं, इस कारण सुपरिचित चेहरा हैं। ज्ञातव्य है कि उनके पिता जसराज जयपाल शहर कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं और माताजी स्वर्गीय श्रीमती भगवती देवी मंत्री रही हैं।
इसी प्रकार पूर्व पार्षद विजय नागौरा अपनी पत्नी का नाम चला सकते हैं। इसी कड़ी में प्रदेश महिला कांग्रेस में सक्रिय मंजू बलाई व रेणु मेघवंशी भी भाग्य आजमाने का आग्रह कर सकती हैं। ज्ञातव्य है कि मंजू बलाई के पिताश्री जोधपुर जिले से विधायक थे। हाल के चुनाव में वे हार गए थे। उन पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का हाथ था।
भाजपा में जिला प्रमुख वंदना नोगिया प्रबल दावेदार हो सकती हैं।  जिला प्रमुख का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राजनीतिक कैरियर बरबरार  रखने के लिए आगे आने की कोशिश करेंगी। वे हाल के विधानसभा चुनाव में भी अजमेर दक्षिण से प्रबल दावेदार थीं। संभावना ये भी है कि मौजूदा विधायक व नगर परिषद के पूर्व सभापति श्रीमती अनिता भदेल के नाम पर भी विचार हो। हालांकि उनका विधायक पद का कार्यकाल चार साल से भी ज्यादा बाकी पड़ा है, मगर विपक्ष में होने के कारण उसका कोई आकर्षण नहीं। दूसरा ये कि कार्यक्षेत्र के लिहाज से मेयर का पद विधायक से कहीं अधिक बड़ा है। कहने की जरूरत नहीं कि अजमेर में स्मार्ट सिटी के तहत अभी बहुत कुछ काम होना बाकी है। हालांकि वे आनाकानी कर रही बताईं, मगर हो सकता है कि यह उनकी एक चाल हो। अभी दावेदारी में नहीं आना, और बाद में ऐन वक्त पर दावा ठोकना। पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा की बहू यानि विकास सोनगरा की पत्नी श्रीमती इंदु सोनगरा के लिए भी प्रयास हो सकते हैं। श्रीकिशन सोनगरा की पुत्री का नाम भी चर्चा में है। नगर परिषद की पूर्व सभापति श्रीमती सरोज जाटव तो निश्चित रूप से दावेदारी करेंगी, चूंकि वे नगर परिषद का स्वाद चख चुकी हैं। वे वर्तमान पार्षद धर्मपाल जाटव की पत्नी हैं। इसी प्रकार पार्षद वंदना नरवाल, बीना सिंगारिया, भाजपा नेता हीरालाल जीनगर की पत्नी के दावे सामने आने की उम्मीद है। अजमेर नगर सुधार न्यास की पूर्व ट्रस्टी भगवती रूपाणी भी प्रयास कर सकती हैं।
मेयर के चुनाव की उल्लेखनीय बात ये है कि साधन संपन्न व्यक्ति ही दमदार दावेदारी कर सकेगा, क्योंकि पार्षद प्रत्याशियों को उससे सहयोग की उम्मीद होगी। वही मैदान में डट सकेगा, जिसने पार्षद प्रत्याशियों को चुनाव लडऩे में मदद की होगी। इस चुनाव की अहम बात यही है। इक्का-दुक्का को छोड़ कर अधिसंख्य उतनी साधन संपन्न नहीं, जितने की जरूरत है। ऐसे में हो सकता है कि वे अपना-अपना आका तलाशें, जो कि उन पर इन्वेस्ट कर सके। चंचल बेरवाल, द्रोपदी कोली व रेखा पिंगोलिया प्रमुख उद्योगपति व अजमेर दक्षिण से हारे हेमंत भाटी का वरदहस्त पाना चाहेंगी। यह तो भाटी पर निर्भर करता है कि वे इसमें रुचि ले या नहीं और लें भी तो किस में। लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी समाजसेवा में सक्रिय रिजु झुंझुंनवाला सक्रिय हो सकते हैं और किसी पर हाथ रख कर जितवाने की गारंटी ले सकते हैं।
ज्ञातव्य है कि सामान्य व ओबीसी वर्ग के अनेक दावेदार चांस मिलने की सोच रहे थे, उनके मंसूबों पर पूरी तरह से पानी फिर गया है। इनमें कांग्रेसी दावेदारों में गत विधानसभा चुनाव में उत्तर क्षेत्र के प्रत्याशी रहे महेन्द्र सिंह रलावता व दक्षिण क्षेत्र के प्रत्याशी रहे हेमंत भाटी, शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय जैन, कांग्रेस के प्रदेश महासचिव ललित भाटी, पूर्व विधायक और नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रह चुके डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, नौरत गुर्जर, प्रताप यादव, समीर शर्मा, श्रवण टोनी, सुरेश गर्ग के नाम थे। इसी प्रकार भाजपा में मौजूदा मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, शहर भाजपा अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा, युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा, नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रहे धर्मेश जैन, पूर्व शहर जिलाध्यक्ष अरविंद यादव, मेयर का चुनाव हार चुके डॉ. प्रियशील हाड़ा, आनंद सिंह रजावत, सुभाष काबरा, एडवोकेट गजवीर सिंह चूंडावत, सुरेन्द्र सिंह शेखावत, सोमरत्न आर्य, पार्षद जे के शर्मा, रमेश सोनी, नीरज जैन आदि की चर्चा थी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग अठारह
श्री ओम माथुर
अजमेर के प्रतिष्ठित व स्थापित पत्रकारों में शुमार श्री ओम माथुर यहां के पत्रकार जगत में अपनी किस्म के अनूठे पत्रकार हैं। अन्य पत्रकारों की तरह उन्हें भी अच्छे ऑफर मिले, लेकिन उन्होंने अपनी उस जमीन को नहीं छोड़ा, जिसने उन्हें स्थापित किया और आज पत्रकारों की शीर्ष पंक्ति में हैं।  पत्रकारिता का आरंभ उन्होंने दैनिक रोजमेल से किया। कुछ समय दैनिक न्याय में भी रहे, मगर बाद में दैनिक नवज्योति से जुड़े तो वहीं के हो कर रह गए। आज वे नवज्योति के स्थानीय संपादक हैं। उन्होंने काफी समय तक रिपोर्टिंग की है। अब तक अनगिनत एक्सक्लूसिव स्टोरीज कर चुके हैं। काफी समय से संपादन का काम भी बखूबी कर रहे हैं। वे लंबे समय तक आकाशवाणी के संवाददाता भी रहे हैं। वर्तमान में सोशल मीडिया पर स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के ज्वलंत विषयों पर बेबाकी से लिख रहे हैं।
उनकी छवि एक सख्त पत्रकार के रूप में है। केवल काम से काम। हालांकि हैं सुमधुर व व्यवहार कुशल, मगर खबर के मामले में कोई समझौता नहीं। न किसी अधिकारी के दबाव में आते हैं और न ही किसी राजनेता के। इसे यूं भी कह सकते हैं कि मानसिक रूप से पूरे पत्रकार हैं। कोई कितना भी बड़ा लाट साब हो, उनकी कलम जब चलती है तो नश्तर ही भांति पूरा पोस्टमार्टम करके ही चैन लेती है। यही वजह है कि कई बार सार्वजनिक जीवन से वास्ता रखने वाले उनसे नाराज हो जाते हैं, लेकिन बाद में अहसास करते हैं कि उन्होंने तो अपने धर्म का पालन किया है, प्रयोजन विशेष से उनके खिलाफ नहीं लिखा है। पत्रकारिता को धर्म की भांति धारण किए हुए श्री माथुर अमूमन जनसामान्य में मिक्सअप नहीं होते। मगर इसका अर्थ ये भी नहीं कि उनके मित्र नहीं हैं। बहुतेरे मित्र हैं, और मित्रता के नाते दुनियादारी वाला सारा व्यवहार भी पूरा निभाते हैं, यानि कि सभी की गमी-खुशी में आते-जाते हैं, लेकिन खबर लिखते समय संबंधों को ताक पर रख देते हैं। और यही खासियत उन्हें खांटी पत्रकार की श्रेणी में खड़ा करती है। उनके एक राजनीतिक मित्र ने एक बार मुझे बताया कि श्री माथुर हैं तो बहुत अच्छे मित्र, मार्गदर्शन भी अच्छा करते हैं, सही सलाह देते हैं, लेकिन बात ही बात में दी गई जानकारी को मौका लगने पर पत्रकारिता में उपयोग करने से नहीं चूकते। लेकिन साथ ही ये भी बताया कि श्री माथुर ने गोपनीय जानकारियों का कभी दुरुपयोग नहीं किया।
जहां तक नवज्योति संस्थान का सवाल है, एक इंचार्ज के रूप में वे सहयोगियों को पूरे अनुशासन में रखते हैं, लेकिन बाद में सभी से छोटे भाई सा व्यवहार करते हैं।
यह भी एक संयोग की बात है कि जिस मिजाज के पत्रकार वे हैं, उन्हें उसी के अनुरूप दैनिक नवज्योति का मंच मिला। दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के जीवन पर प्रकाशित गौरव ग्रंथ में अपने मन्तव्य में वे स्वयं लिखते हैं कि लगातार एक ही संस्थान में तीस साल तक काम करना कोई मामूली बात नहीं है। दैनिक नवज्योति, अजमेर में करीब तीस साल तक काम करने के बाद जब मैं पुनरावलोकन करता हूं, तो अहसास होता है कि अपनी बात कहने और लिखने की जो आजादी मुझे नवज्योति में मिली, शायद कहीं और होता, तो नहीं मिलती। वे लिखते हैं कि जब मैंने नवज्योति में प्रवेश किया था, तब वहां अजमेर की पत्रकारिता के दिग्गज काम कर रहे थे। उस समय ऐसा लगता था कि उनके बीच काम करते हुए शायद अपनी पहचान बनाना ही मुश्किल होगा। लेकिन खुद पर यकीन और दीनूजी के विश्वास के चलते न सिर्फ पत्रकारिता में पहचान बनाई, बल्कि पहली बार जिसे नवज्योति का स्थानीय संपादक बनाया गया, वह मैं ही था।
वे लिखते हैं कि जहां दूसरे अखबारों में खबर लिखने की कई पाबंदियां हैं, वहीं नवज्योति में दीनूजी ने कभी किसी के हाथ नहीं बांधे। मैंने नवज्योति में सालों तक इधर-उधर कॉलम लिखा है, जिसमें राजनीतिज्ञों व अफसरशाही से लेकर समाज के हर वर्ग से जुड़े लोगों पर कड़ी टिप्पणियां कीं। इसमें कई लोग ऐसे भी थे, जिनके दीनूजी से अच्छे रिश्ते थे। लेकिन उन्होंने कभी मुझे ये नहीं कहा कि मैंने फलां व्यक्ति के लिए क्यों लिख दिया। इसके उलट ऐसा कई बार हुआ है कि जब किसी ने उन्हें इस बात का उलाहना दिया कि वे मालिक के दोस्त हैं, फिर उनके अखबार में उनके खिलाफ लिखा जा रहा है। तो दीनूजी ने उन्हें ही उलाहना देते हुए कहा कि, अगर ओम ने गलत लिखा है, तो बताओ और अगर सही है, तो उसका काम ही ये है।
एक किस्सा बताना चाहूंगा। अजमेर से सांसद रहे एक राजनीतिज्ञ को इधर-उधर में उनके बारे में लिखने पर बहुत तकलीफ होती थी। उन्होंने पांच साल तो जैसे-तैसे मेरे लेखन की बर्दाश्त किया, लेकिन जब अगला चुनाव भी अजमेर से ही लडऩा पड़ा, तो दीनूजी से मिलने गए और उनसे आग्रह किया कि वे मुझे ये निर्देश दें कि मैं चुनाव तक उनके बारे में कुछ नहीं लिखूं। इस पर दीनूजी का जवाब था, मैं तो उससे नहीं कहूंगा। अगर आप कह सकते हो, तो कह दो। जाहिर है दीनूजी का रूख देख कर वे नेता खामोश लौट गए। इसी तरह एक बार मेरे लेखन से पीडि़त एक व्यक्ति ने दीनूजी को चि_ी भेजकर मुझ पर भ्रष्टाचार और दूसरे आरोप लगाए। तो उन्होंने चि_ी को मेरे समक्ष इस टिप्पणी के साथ भेजा, कि जब हाथी निकलता है, कुत्ते ऐसे ही भौंकते हैं। तुम अपना लेखन और धारदार करो। आज के दौर में शायद ही कोई अखबार मालिक इस तरह अपने स्टाफ के लिए खड़ा होता होगा।
श्री माथुर के शब्दों से ही उनके व्यक्तित्व व कृतित्व का शब्द चित्र खड़ा हो रहा है। पत्रकार जगत में नव प्रवेशियों को श्री माथुर से प्रेरणा लेनी चाहिए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

पुष्कर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव सीधे लडऩे वालों के मनसूबों पर फिरा पानी

राजस्थान में स्थानीय निकाय चुनाव में नगरपालिकाओं, निगमों के प्रमुखों का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से ही करवाए जाने के निर्णय के साथ पुष्कर नगर पालिका में सीधे चुनाव के जरिए पालिका अध्यक्ष बनने के सपने देख रहे दावेदारों के मनसूबों पर पानी फिर गया है।
असल में सरकार ने पहले ये घोषणा की थी कि निकाय प्रमुख का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली से होगा। हालांकि पुष्कर नगर पालिका के अध्यक्ष पद के लिए लॉटरी नहीं निकलने के कारण ये भी पता नहीं था कि अध्यक्ष किस कैटेगिरी का होगा, बावजूद इसके संभावनाओं के इस दंगल में शिरकत करने के लिए तकरीबन सात दावेदारों ने तो खुल्लम खुल्ला दावेदारी जताने का मानस बना लिया, वहीं तकरीबन नौ ने सपने संजो रखे थे कि लॉटरी निकलेगी, उसी के अनुरूप निर्णय लेंगे। दिलचस्प बात ये है कि कई नेताओं ने तो गुट बना कर हर विकल्प खुला छोड़ रखा था। जैसे ही लॉटरी खुलती, वे अपना पत्ता खोलते।
ज्ञातव्य है कि यदि लॉटरी सामान्य पुरुष के लिए निकलने की स्थिति में सबसे पहले व प्रबल दावेदार स्वाभाविक रूप से मौजूदा अध्यक्ष कमल पाठक होते। मगर वे अपना मन नहीं बना पा रहे थे। उसकी वजह कदाचित ये रही होगी कि पिछली बार तो पार्टी हाईकमान की सरपरस्ती में पार्षदों के बहुमत के आधार पर अध्यक्ष बन गए, लेकिन सीधे चुनाव में जीत का गणित क्या होगा, उसको ले कर संशय था। खैर, अब ये देखना होगा कि अध्यक्ष पद सामान्य पुरुष के लिए आरक्षित होता है तो उस स्थिति में वे दुबारा अध्यक्ष बनने के लिए पार्षद पद के लिए दावेदारी करते हैं या नहीं।
अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार भी वार्ड का चुनाव लडऩे का मानस तभी बनाएंगे, जबकि अध्यक्ष पद सामान्य पुरुष के लिए आरक्षित होगा। इसी प्रकार अरुण वैष्णव अध्यक्ष बनने को बेहद आतुर हैं, इस कारण वे भी किसी न किसी वार्ड से तैयारी करेंगे। वार्ड नंबर 2 की पार्षद रही मंजू डोलिया यूं तो नवनिर्मित वार्ड 17 या 15 से पार्षद का चुनाव लडऩे का मन बना चुकी हैं। बाबूलाल दगदी व जयनारायण को भी अपने लिए वार्ड तलाशने होंगे।
नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके शिवस्वरूप महर्षि 5-6 पार्षदों का जाल बिछा कर अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर चुके थे। बदली परिस्थिति में दुबारा वार्ड चुनाव लडऩे की तैयारी करेंगे।
सीधे चुनाव में अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल पुष्कर नारायण भाटी व वार्ड नंबर 15 के पार्षद कमल रामावत भी सारा ध्यान वार्ड चुनाव पर देंगे। इसी सिलसिले में रामजतन चौधरी, जगदीश कुर्डिया, गोपाल तिलोनिया, राजेंद्र महावर आदि भी लॉटरी निकलने का इंतजार कर रहे हैं, तभी आगे की रणनीति बनाएंगे।

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग सत्रह
स्वर्गीय श्री नवलराय बच्चानी
सिंधी भाषा व साहित्य की सुरक्षा व विकास के लिए अजमेर के पूर्व विधायक स्वर्गीय श्री नवलराय बच्चानी ताजिंदगी काम किया। नब्बे से भी अधिक उम्र तक उन्होंने सिंधी भाषी बच्चों को सिंधी लिपी की शिक्षा देने के लिए विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से कक्षाएं आयोजित कीं। वे सन् 1979 में राजस्थान सिंधी अकादमी की प्रथम सामान्य सभा के सदस्य रहे। सन् 1994 से 97 तक अकादमी के अध्यक्ष रहे। अकादमी ने उन्हें सन् 2005 में टी. एल. वासवाणी पुरस्कार से नवाजा। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें झूलेलाल संक्षिप्त जीवन परिचय, सिंधुपति महाराजा दाहरसेन का जीवन चरित्र, डॉ. हेडगेवार का जीवन परिचय, वृहद सिंधु ज्ञान सागर ग्रंथ, गुरुजी गोलवलकर, सिंध, वृहद झूलेलाल पुस्तक आदि प्रमुख हैं। उन्होंने श्रीमती कमला गोकलानी के सहयोग से के. आर. मलकानी की अंग्रेजी पुस्तक सिंध स्टोरी का सिंधी अनुवाद किया। उन्होंने भारतीय सिंधु महासभा की अनेक स्मारिकाओं का संपादन किया। अनगिनत साहित्यिक गोष्ठियों में शिरकत की और आकाशवाणी से उनकी अनेक वार्ताएं प्रसारित हुईं। 7 मार्च 2010 को भारतीय सिंधु सभा व श्री झमटमल तोलाराम वाधवानी चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से मुंबई में अच्छे समाज सेवक के रूप में उन्हें सम्मानित किया गया। इसी प्रकार 10 अप्रैल 2010 को सिंधी शिक्षा विकास समिति की ओर से भी सम्मानित किया गया।

स्वर्गीय श्री नरेन्द्र राजगुरू
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक रहे स्वर्गीय श्री नरेन्द्र राजगुरू का नाम हालांकि आम जन मानस में अंकित नहीं है, मगर अपने जमाने में पत्रकारिता जगत में जाने-माने हस्ताक्षर थे। उन्होंने देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में अपनी सेवाएं दी हैं और तकरीबन अस्सी वर्ष की उम्र में भी सतत लेखन कार्य जारी रखे हुए थे। उन्होंने जोधपुर में बीए ऑनर्स व मुंबई में पत्रकारिता का डिप्लोमा किया। उन्होंने डॉ. सत्यकामत विद्यालंकार के अभियान सप्ताहिक से लेखन कार्य शुरू किया। खादी ग्रामोद्योग मुम्बई व जयपुर में प्रचार सहायक व प्रचार अधिकारी रहे। इसके बाद डीसीएम की गृह पत्रिका से संपादन का कार्य शुरू किया। हिंद सायंकाल लि., मुम्बई में प्रचार अधिकारी के रूप में काम किया। हिंदी डायजेस्ट नवनीत, मुंबई में उपसंपादक के रूप में काम किया। मुम्बई में ही अनुजा मासिक पत्रिका आरंभ कर उसका संपादन किया। मुम्बई में ही दैनिक सांध्यकालीन समाचार पत्र सायंदीप का संपादन किया। वे टाइम्स ऑफ इंडिया पत्र समूह, मुंबई में प्रशासनिक विभाग सहायक व अधिकारी के रूप में काम किया, लेकिन साथ ही लेखन कार्य भी जारी रखा। उन्हें लेखन की प्रेरणा डॉ. सत्येन्द्र जी व डॉ. धर्मवीर भारती से मिली। देश ही नहीं विदेश में ओमान के एक छोटे पत्र समूह और विश्व प्रसिद्ध संस्था नाफेन में भी काम किया। इस दौरान उन्हें लंदन व रूस जाने का मौका मिला। सन् 1949 से उनकी कहानियां देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। उनकी प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार हैं:- उपन्यास एक और नीलम, उपन्यास गुलनार, कहानी संग्रह विश्वकर्मा के आंसू, कहानी संग्रह उगते सूरज की लाली, संस्मरण वृतांत दर्द की खुली किताब(मीना कुमारी), दिल तो पागल है, गजल संग्रह (अंग्रेजी में), उपन्यास बीहड़ों की रानी। उन्होंने पत्रकार निदेशिका का भी किया। वे अजयमेरू प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी रहे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग सोलह
श्री एस. पी. मित्तल
अजमेर की पत्रकारिता में श्री एस. पी. मित्तल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। यदि यह कहा जाए कि वे एक ब्रांड हो गए हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस शख्स में गजब की ऊर्जा है। संघर्ष के मुकाबले कभी न थकने वाले इस इंसान ने पत्रकारिता में कई नए आयाम स्थापित किए हैं। अजमेर में पहली बार व्यवस्थित तरीके से केबल नेटवर्क पर लोकल न्यूज चैनल चलाने का श्रेय श्री मित्तल के खाते में ही दर्ज है। यूं अजमेर में सर्वप्रथम 1997 में यूनाइटेड वीडियो चैनल के लाइसेंस पर अजमेर चैनल के नाम से न्यूज चैनल शुरू हुआ था, जिसका संचालन श्री नानक भाटिया ने किया। सांपद्रायिक उपद्रव के दौरान उत्पात को दिखाए जाने पर जिला प्रशासन इसे रुकवा दिया। हालांकि बाद में यह चैनल फिर शुरू हुआ, मगर केबर वार के चलते फिर बंद हो गया। बाद में सन् 2000 में श्री मित्तल ने अजमेर अब तक के नाम से व्यवस्थित न्यूज चैनल आरंभ किया। इसका प्रसारण ब्यावर, किशनगढ़, नसीराबाद आदि उप खण्डों पर भी किया जाता था। सीमित साधनों में केबल पर न्यूज चलाना चुनौतीपूर्ण कार्य था, लेकिन इस काम को उन्होंने अपने अंजाम तक पहुंचाया। अजमेर वासियों के लिए यह पहला अनुभव था, इस कारण लोग बहुत दिलचस्पी के साथ इसे देखते थे। बाद में केबल वार के चलते उन्हें प्रसारण बंद करना पड़ा। दिलचस्प बात ये है कि श्री मित्तल ने दैनिक भास्कर के मुख्य संवाददाता की अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर अजमेर वासियों लोकल न्यूज चैनल से साक्षात्कार करवाया। यह अपने आप में एक बड़ी दुस्साहसपूर्ण उपलब्धि थी।
श्री मित्तल को पत्रकारिता विरासत में मिली। पिता स्वर्गीय श्री कृष्ण गोपाल गुप्ता ने पत्रकारिता की जो सीख दी, उसी के अनुरूप वे आज भी पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। श्री गुप्ता भभक नामक पाक्षिक का संचालन करते थे। यथा नाम तथा गुण की उक्ति को चरितार्थ करते हुए यह समाचार पत्र वाकई भभकता था। उनके निधन के बाद श्री मित्तल ने उसे उसी तीखे तेवर के साथ जारी रखा, जिसका प्रकाशन आज भी जारी है। श्री मित्तल ने लंबे समय तक राष्ट्रदूत व पंजाब केसरी के लिए बतौर ब्यूरो प्रमुख कार्य किया। जब राष्ट्रदूत का प्रकाशन अजमेर से आरंभ हुआ तो वे उसके पहले स्थानीय संपादक थे। पत्रकारिता में उनके लिए यह एक बड़ी उपलब्धि थी, मगर प्रबंधन से मतभेद के चलते उन्होंने एक झटके में इसे तिलांजलि दे दी।  बाद में जब दैनिक भास्कर अजमेर आया तो उन्होंने ही उसकी जाजम बिछाई। सरकूलेशन बढ़ाने के लिए जनता से सीधे जुड़े अनेक कार्यक्रम संचालित किए। इनमें वार्ड वार रूबरू कार्यक्रम काफी लोकप्रिय हुआ। उन्होंने यह साबित कर दिखाया कि उनमें केवल पत्रकारिता के ही नहीं, अपितु प्रबंधन के भी गुण हैं। तकरीबन आठ साल तक भास्कर में डट काम किया और मुख्य संवाददाता के रूप में अनेक शानदार स्टोरीज की। विशेष रूप से प्रशासन व राजनीति पर उनकी गहरी पकड़ रही है। उन्होंने दैनिक नवज्योति के प्रथम पृष्ठ का भी संपादन किया। उसके बाद दैनिक पंजाब केसरी के अजमेर संस्करण के प्रभारी रहे। वहां भी तनिक विवाद के चलते नौकरी छोडऩे में देर नहीं लगाई। जीवन के इस मोड़ पर आ कर उन्होंने नियमित रूप से ब्लॉग लिखने का अनूठा प्रयोग किया। हालांकि यह काम अनार्थिक होने के साथ-साथ श्रमसाध्य है, मगर पता नहीं किस चक्की का आटा खाते हैं कि नियमित रूप से तीन-चार ब्लॉक लिख देते हैं। अनेक वाट्स ऐप ग्रुप्स में उसका प्रसार है और पाठकों को इंतजार रहता है कि आज उन्होंने क्या लिखा है। हालांकि उनसे भी पहले मैंने अजमेरनामा नाम से ब्लॉग लेखन तब आरंभ किया, जब अधिसंख्य पत्रकार इंटरनेट पर हिंदी फोंट यूनिकोड के बारे में जानते तक नहीं थे, मगर नियमित ब्लॉग लेखन का श्रेय श्री मित्तल को ही जाता है। अब तो अनेक ब्लॉगर हाथ आजमा रहे हैं। श्री मित्तल अब यू ट्यूब पर टॉक शो भी कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त राज्य स्तरीय चैनल्स पर डिबेट में हिस्सा लेते हैं।
पत्रकारिता के साथ पत्रकारों के हितों के लिए भी उन्होंने कई काम किए हैं। वे जिला पत्रकार संघ के महासचिव रहे हैं और उनके कार्यकाल में ही जिले के पत्रकारों का पहला सफल सम्मेलन हुआ था। वे अजयमेरू प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी रहे हैं। हर साल आयोजित होने वाले फागुन महोत्सव में उनकी अहम भूमिका होती है। वे विश्व संवाद केन्द्र अजयमेरू के अध्यक्ष हैं और हर साल उल्लेखनीय कार्य करने वाले पत्रकारों को सम्मानित करते हैं।
जहां तक लेखनी का सवाल है, उनकी भाषा सीधी सपाट होती है, उसमें अलंकारों का बहुत अधिक उपयोग नहीं होता, मगर सूचना के लिहाज से वह अपडेट होती है। तेवर तो उनके मिजाज में है ही। उनकी लेखनी की प्रशंसा भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने भी की। 17 नवम्बर, 2005 को राष्ट्रपति के रूप में अजमेर आए कलाम ने तब श्री मित्तल और उनके परिवार के सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए सर्किट हाउस आमंत्रित किया। इस मुलाकात की रिपोर्ट जब कलाम ने भभक समाचार पत्र में पढ़ी तो राष्ट्रपति ने शुभकामनाएं भिजवायीं।
पत्रकारिता में अनेक उतार-चढ़ाव आने के बावजूद विविधता व नवाचार में अपनी प्रतिभा झोंकने वाले वे इकलौते धुन के पक्के पत्रकार हैं। चंद शब्दों में कहा जाए तो वे डंके की चोट पर लिखने वाले निडर व जीवट वाले और कभी न थकने वाले पत्रकार हैं। नवोदित पत्रकारों को उनसे सीख लेनी चाहिए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

बुधवार, 9 अक्तूबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग पंद्रह
श्री सुरेश कासलीवाल
ग्रामीण पृष्ठभूमि के वरिष्ठ पत्रकार श्री सुरेश कासलीवाल ने जब पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया तो उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि यही उनका केरियर हो जाएगा। असल में वे निकटवर्ती मांगलियावास गांव के सरपंच थे। सन् 1989 में पहली बार उपसरपंच चुने गए। उसके बाद सन् 1995 से 2000 तक व सन् 2005 से 2010 तक सरपंच रहे। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरी पंचायत में जैन समाज का मात्र एक ही परिवार है, अर्थात जनता ने उनका व्यवहार देख कर बिना किसी जात-पांत के वोट दिए। सरपंच रहते बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए जलग्रहण के क्षेत्र में राजस्थान में अव्वल दर्ज का काम किया। इसके उपलक्ष में उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया। मुंबई के पांच सितारा ग्रांड हयात होटल में आयोजित समारोह में न्यायाधिपति ए. एम. अहमदी से पुरस्कार लेते हुए उन्होंने राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया। दिल्ली दूसरे स्थान पर रहा।
वे पीसांगन पंचायत समिति की 45 ग्राम पंचायतों के सरपंच संघ के अध्यक्ष भी रहे। हालांकि वे किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नहीं थे और न ही किसी पार्टी के सदस्य रहे, लेकिन तत्कालीन पुष्कर विधायक स्वर्गीय श्री रमजान खान से गहरी दोस्ती थी। तब नसीराबाद विधानसभा सीट के लिए भाजपा में दो दावेदारों के बीच टिकट को लेकर घमासान चल रहा था। स्वर्गीय श्री रमजान खान को लगा कि दोनों को छोड़ किसी तीसरे बेदाग व दबंग युवा पर दांव खेला जाए। उन्होंने ही तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री भैरोंसिंह शेखावत से यह कह कर नसीराबाद से विधानसभा चुनाव का टिकट देने की सिफारिश की कि ये बंदा तेज-तर्रार व जनता को समर्पित होने के कारण लोकप्रिय है और जीत जाएगा। उनसे चुनाव की तैयारी करने को भी कह दिया गया, लेकिन भाजपा ने ऐन वक्त पर समझौते के तहत नसीराबाद सीट जनता दल को दे दी और स्वर्गीय श्रीकरण चौधरी ने चुनाव लड़ा। वे हार गए।
जहां तक पत्रकारिता का सवाल है, यह उन्होंने महज शौक के लिए शुरू की। सबसे पहले मांगलियावास टाइम्स के नाम से पाक्षिक समाचार पत्र आरंभ किया। समाचार पत्र को छपवाने और ग्राम पंचायत के कामों के सिलसिले में अजमेर आना-जाना होता था। जनप्रतिनिधि की भूमिका निभाते-निभाते यकायक दैनिक न्याय से जुड़े और एक रिपोर्टर के रूप में बैटिंग शुरू की। आरंभ से आक्रामक तेवर था। संयोग से दैनिक न्याय जैसे दबंग अखबार का प्लेटफार्म मिला। उन्होंने वहां वर्ष 1994 में लगातार 15 दिन तक भीलों के चंगुल में अजमेर वाले ख्वाजा के नाम से एक सीरीज दी, जिससे रातों-रात निडर पत्रकार के रूप में लोकप्रिय हो गए। पूरा खादिम समुदाय नाराज हो गया। तब आगे खबर नहीं लिखने पर उन्हें एक लाख की रिश्वत पेश की, नहीं माने तो सीरीज रोकने के लिए उनके खिलाफ कलेक्ट्रेट तक जुलूस भी निकाला गया। बहुत रिस्क थी, मगर वे बेधड़क लिखते गए। न्याय ही वह मंच था, जहां उन्होंने हर दिशा, अर्थात हर फील्ड में चौके-छक्के लगाने की योग्यता को साबित किया। उसके बाद कुछ समय तक दैनिक आधुनिक राजस्थान के संपादकीय प्रभारी रहे और समाचार जगत के लिए भी काम किया। सन् 1997 में दैनिक भास्कर से जुड़े। राजनीति व प्रशासन की बीट के साथ-साथ शायद ही ऐसा कोई महकमा हो, जिसकी उन्होंने रिपोर्टिंग नहीं की हो। दरगाह क्षेत्र की रिपोर्टिंग के तो मास्टर रहे। ग्रामीण पृष्ठभूमि से होने के कारण जिला परिषद व ग्राम पंचायतों पर जबरदस्त पकड़ रही है। क्या मजाल कि कोई खबर छूट जाए। खबर छूटना तो दूर, सदैव लीड रोल में रहे हैं। उनकी पत्रकारिता की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि रूटीन की खबर के अतिरिक्त सदैव इस पर नजर रखते हैं कि स्पेशल रिपोर्ट तलाश की लाई जाए। उन्होंने अनेक ऐसी स्टोरीज की हैं, जिस पर आम तौर पर अन्य पत्रकारों की नजर तक नहीं जा पाती। उनकी उस स्टोरी को बड़ी तारीफ मिली, जिसमें उन्होंने बताया कि बाल विवाह रोकने के लिए बने शारदा एक्ट को बनाने वाले हरविलास शारदा ने खुद बाल विवाह किया था। वे अजमेर के ही रहने वाले थे। महिला सरपंचों पर केन्द्रित एक एक्सक्लूसिव स्टोरी, जिसका शीर्षक था- महिला सरपंच नहीं जानतीं कि मुख्यमंत्री का नाम क्या है?, पर उन्हें भास्कर के अजमेर संस्करण में पहला पुरस्कार मिला। उनकी कई स्टोरीज दैनिक भास्कर में ऑल एडीशन छप चुकी हैं। यह उनकी योग्यता का ही प्रतिफल है कि भास्कर जैसे अखबार में चीफ रिपोर्टर जैसे महत्वपूर्ण पद पर पहुंचे हैं। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव उनका विश्लेषण बिल्कुल सटीक गया है। मतगणना के 3 दिन पहले ही किसके खाते में सीट जाएगी, इसका खुलासा कर देना, उनके राजनीतिक पंडित होने को साबित करता है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री सचिन पायलट भी जब अजमेर से चुनाव हारे तब उन्होंने पहले ही व्यक्तिगत चर्चा में बता दिया कि वे चुनाव बड़े अंतर से हारेंगे। हाल ही में रिजु झुनझुनवाला के चुनाव में भी खुलकर बताया कि वे हार में सचिन पायलट का रिकॉर्ड तोड़ेंगे यानी 1 लाख 71 हजार से अधिक मतों से हारेंगे। उन्हें उत्कृष्ठ पत्रकारिता के लिए जिला स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है। अंदर की बात ये है कि इसके लिए उन्होंने आवेदन नहीं किया था, जिला कलेक्टर आरुषि मलिक की अध्यक्षता वाली कमेटी ने अपने स्तर पर ही उनका नाम पुरस्कार के लिए चयनित किया।
एक पत्रकार के लिए सामाजिक सरोकारों से जुडऩे और निष्पक्ष पत्रकारिता भी करने के बीच सामंजस्य बैठाना बेहद कठिन होता है। श्री कासलीवाल की कई कलेक्टरों व अन्य अधिकारियों से दोस्ती रही, लेकिन प्रशासन की खामी संबंधित खबरें लिखने को लेकर कभी समझौता नहीं किया।
श्री कासलीवाल वर्तमान में अजयमेरू प्रेस क्लब के अध्यक्ष हैं और क्लब भवन के लिए जनप्रतिनिधियों के कोष से धन जुटाने में कसर नहीं छोड़ी। हाल ही में काफी समय से लंबित तकरीबन 45 लाख रुपए की स्वीकृति राज्य सरकार से खुद लेकर आये, जिससे दूसरी मंजिल पर कमरों का निर्माण होगा। वैशाली नगर स्थित नए भवन में साधन सुविधाएं जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। राजनीतिज्ञों व प्रशासनिक अधिकारियों से काम कैसे करवाया जाता है, यह बखूबी जानते हैं। अपनी इसी कलाकारी के दम पर कोटड़ा स्थित पत्रकार कॉलोनी विकास समिति के अध्यक्ष के नाते जम कर विकास कार्य करवा रहे हैं। अजमेर की शायद ये इकलौती कॉलोनी होगी, जिसमें सड़क के दोनों और कलर ब्लॉक तक लगे हुए हैं। पत्रकारिता के अलावा सामाजिक सरोकार में भी वे काफी सक्रिय है। लॉयन्स क्लब समेत अन्य संस्थाओं के जरिये अलग-अलग गांवों में हर साल जरूरतमंदों को 300 कंबल, स्वेटर, कपड़े और अब तक कई जरूरतमंद कन्याओं के विवाह में घर गृहस्थी के सामान दिलवा चुके हैं। क्लब अध्यक्ष रहते हुए क्लब के जरिये दो कन्याओं के विवाह में सहयोग कर नई शुरुआत कर चुके हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

अजमेर के पत्रकारों-साहित्यकारों की लेखन विधाएं

भाग चौदह
श्री आर. डी. कुवेरा
श्री आर. डी. कुवेरा अजमेर के वरिष्ठतम पत्रकार हैं। उनका जन्म 19 सितम्बर 1933 को किशनगढ़ में स्वगीय श्री रतनलाल कुवेरा के घर हुआ।  सन् 1974 में उन्होंने साप्ताहिक लगन एक्सप्रेस व जिला कांग्रेस कमेटी के मुखपत्र कांग्रेस समाचार का संपादन किया। सन् 1975 से 81 तक दैनिक नवज्योति के लिए पूरे राजस्थान का भ्रमण कर अनेक स्थानों पर संवाददाता व एजेंट नियुक्त किए। अजमेर नगर सुधार न्यास के भूतपूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय श्री माणकचंद सोगानी के साथ न्यास के लिए जनसंपर्क प्रभारी का कार्य किया। उन्होंने जयपुर में कांग्रेस शताब्दी समारोह के अवसर पर स्वर्गीय श्री मथुरादास माथुर के साथ विशाल प्रदर्शनी का संयोजन किया और एक्जीबीशन एट ए ग्लांस का संपादन किया।
सन् 1985 से 2009 तक दैनिक आधुनिक राजस्थान के बीकानेर व जयपुर ब्यूरो प्रमुख रहे। वे संत श्री रामचंद्र डोंगरे, श्री रामसुखदास महाराज व श्री मुरारी बापू के अजमेर व सलेमाबाद में आयोजित प्रवचन कार्यक्रमों के मीडिया प्रभारी भी रहे हैं। इसी प्रकार सामाजिक क्षेत्र में मग ब्राह्मण समाज के वैवाहिक परिचय सम्मेलनों के मीडिया प्रभारी और अखिल भारतीय सर्वोदय सम्मेलन में मीडिया व वालेंटियर सेवा के संयुक्त संयोजक रहे हैं।  वर्तमान वे राज्य सरकार के अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार हैं और राजस्थान पत्रकार निदेशिका, मासिक पत्रिका स्वतंत्र जैन चिंतन व अजयमेरु टाइम्स पाक्षिक के संपादकीय सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं। वे जयपुर में पिंक सिटी प्रेस क्लब के संस्थापक सदस्य हैं और राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ में अनेक पदों रहे हैं। हाल ही दैनिक नवज्योति के प्रधान संपादक श्री दीनबंधु चौधरी के जीवन पर आधारित गौरव ग्रंथ के लिए तथ्य संकलन, प्रबंधन, संपादन व प्रकाशन में अहम भूमिका निभाई है। पुस्तक के जयपुर में हुए विमोचन समारोह में आपको मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने सम्मानित किया। आज तकरीबन 87 साल की उम्र में भी लेखन कार्य जारी रखे हुए हैं। विभिन्न विषयों पर लिखित पुस्तकों व डायरेक्ट्रीज का संकलन करने का पुराना शौक है, इस कारण उनके पास पुस्तकों का भंडार है। 
उनके जीवन की सफलता का दूसरा पहलु ये है कि उनके प्रयासों से ही आज उनके दोनों सुपुत्र प्रतिष्ठित फर्म कुवेरा काड्र्स एंड गिफ्ट व न्यू कुवेरा गिफ्ट आइटम्स का संचालन कर रहे हैं।
एक सफल पत्रकार के साथ कुशल व्यवसायी के जीवन में कितने दिलचस्प रंग रहे हैं, जरा उन पर भी नजर डाल लेते हैं:-
सन् 1953 में मैट्रिक पास करने के तुरंत बाद उन्होंने इंडियन इंश्योरेंस कंपनी में एजेंट का कार्य शुरू किया। इसके बाद किशनगढ़ में न्यू सुमेर टॉकीज के मैनेजर रहे। बाद में जोधपुर के जॉर्ज टॉकीज सर्किट की ओर से फिल्म प्रतिनिधि के रूप में काम किया। इसी प्रकार मैसर्स हुकमचंद संचेती एंड संस के विक्रय प्रतिनिधि के रूप में भी काम किया। सन् 1958 में टेरिटोरियल आर्मी के प्रशिक्षण शिविर में सर्वश्रेष्ठ केडेट का पुरस्कार प्राप्त किया। उन्होंने सेना प्रमुख की ओर से सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट भी हासिल है। उन्होंने 1959 में 105 इन्फेंट्री बटालियन में रह कर नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लिया। इसके बाद किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयनारायण व्यास के संपर्क में आए। उन्हीं के आदेश पर उन्हें शिक्षा विभाग में क्लर्क की नौकरी करने का मौका मिला। बाद में ग्रेड बदलवा कर ब्यावर के सनातन धर्म हायर सेकंडरी स्कूल और पटेल हायर सेकंडरी स्कूल में शिक्षण कार्य किया। तकरीबन 12 वर्ष तक सरकारी नौकरी करने के बाद उन्होंने निजी व्यवसाय शुरू कर दिया और अजमेर में बुक सेंटर के नाम से दुकान खोली एवं लाइब्रेरी सप्लाई व प्रकाशन का कार्य शुरू किया। वे अजमेर गांधी शांति प्रतिष्ठान के कार्यालय प्रभारी और श्री गोकुलभाई भट्ट के शराबबंदी आंदोलन के कार्यालय प्रभारी भी रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने ब्यावर में स्वर्गीय श्री घनश्याम जी से कत्थक का विधिवत दो साल प्रशिक्षण लिया है और प्रदेश के अनेक स्थानों पर लोकनृत्य सहित कई सांस्कृतिक प्रदर्शन किए हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000