मंगलवार, 17 जनवरी 2012

जेल में कायम है अपराधियों का राज?


हाल ही अजमेर सेंट्रल जेल में कैदियों ने जब मोबाइल के जरिए फेसबुक पर फोटो लगाए तो एक बार फिर यह स्थापित हो गया कि लाख दावों के बाद भी जेल में अपराधियों के मोबाइल का उपयोग करने पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकी है। इससे पूर्व भी यह तथ्य खुल कर सामने आया था कि जेल में कैद अनेक अपराधी वहीं से अपनी गेंग का संचालन करते हुए प्रदेशभर में अपराध कारित करवा रहे हैं। इसके लिए बाकायदा जेल से ही मोबाइल का उपयोग करते हैं। स्वयं जेल राज्य मंत्री रामकिशोर सैनी ने भी स्वीकार किया कि जेल में कैदी मोबाइल का उपयोग कर रहे हैं और उस पर अंकुश के लिए प्रदेश की प्रमुख जेलों में जैमर लगाए जाएंगे, मगर आज तक कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हो पाई है।
अहम सवाल ये है कि आखिर जेलों में कैदियों के पास मोबाइल आ कैसे जाते हैं? क्या जब भी जांच के दौरान किसी कैदी के पास मोबाइल मिला है तो उस मामले में इस बात की जांच की गई है कि आखिर किसी जेल कर्मचारी की लापरवाही या मिलीभगत से मोबाइल कैदी तक पहुंचा है? क्या ऐसे कर्मचारियों को कभी दंडित किया गया है? कदाचित इसका जवाब फौरी विभागीय कार्यवाही करने के रूप में हो सकता है, मगर उसके बाद भी यदि यह गोरखधंधा जारी है तो इसका सीधा सा जवाब ये है कि जेल के कर्मचारियों की मिलीभगत से ही ऐसा हो रहा है। मोबाइल क्या, छोटे मोटे हथियार और मादक पदार्थ तक औचक निरीक्षणों में पाए जा चुके हैं। इससे यह साफ है कि सरकार इस मामले में गंभीर नहीं है। जेल के कर्मचारी अपराधियों से मिलीभगत करते हैं, मगर सरकार उनके खिलाफ कभी प्रभावी कार्यवाही नहीं कर पाई, इसी का परिणाम है कि जेल कर्मचारियों के हौसले इतने बुलंद हैं।
कितना अफसोस की बात है जब पुलिस अधिकारी किसी अपराधी गेंग का कारनामा उजागर करती है तो खुद यह स्वीकार करती है कि जेल में बंद अमुक माफिया के इशारे पर उसकी गेंग ने अपराध कारित किया है। यानि जेल में बंद बड़े अपराधी अपनी गेंग से सीधे संपर्क में हैं और इसके लिए मोबाइल को उपयोग किया जा रहा है। क्या यह कम अफसोसनाक बात नहीं है कि जेल मंत्री यह कहते हैं कि मोबाइल के उपयोग पर अंकुश लगाने के लिए प्रमुख जेलों में जैमर लगाए जा रहे हैं, यानि अपराधियों के पास मोबाइल पहुंचने को रोकने में नाकाम रहने को वे स्वयं स्वीकार कर रहे हैं। उन्हें अपने जेल कर्मचारियों पर भरोसा ही नहीं है। एक अर्थ में तो वे यह स्वीकार कर ही रहे हैं कि जेल कर्मचारी अपराधियों से मिलीभगत करने से बाज नहीं आएंगे। सवाल ये है कि यदि जेल कर्मचारी इतने ही बेखौफ हैं तो सरकार यदि जैमर लगा भी देगी तो क्या वे जरूरत पडऩे पर जैमर निष्क्रिय नहीं कर देंगे। तब जेल मंत्री क्या करेंगे?
जाहिर तौर पर यह अत्यंत शर्मनाक बात है। मोबाइल क्या, अंदर मादक पदार्थ, बीड़ी-सिगरेट और गुटखा इत्यादि तक आसानी से उपलब्ध रहता है। कई बार यह शिकायत तक सामने आई है कि कैदी को जरूरी सामान अंदर तभी पहुंचाया जाता है, जबकि नकद रिश्वत दी जाती है। जेल कर्मचारी रिश्वत के रूप में सिगरेट-गुटखे इत्यादि तक ले लेते हैं।
आइये सिक्के के एक अन्य पहलु पर नजर डालें। सरकारी तंत्र मोबाइलों के जेल में कैदियों तक पहुंचने को तो रोक नहीं पाई, जबकि चुनाव की मतगणना के वक्त चुनाव आयोग के निर्देश पर पत्रकारों को मोबाइल मतगणना स्थल पर नहीं ले जाने देने के लिए सख्ती बरतती है, जबकि उनके पास मोबाइल होने से किसी भी प्रकार का कोई नुकसान होने की आशंका नहीं है। रहा सवाल उनके मोबाइल से चुनाव परिणाम की ताजा सूचना देने का तो जाहिर सी बात ये है कि पत्रकारों को भीतर प्रवेश ही इसलिए दिया जाता है कि वे अपने अखबार के दफ्तर अथवा न्यूज चैनल को तुरंत ताजा जानकारी दे सकें। कितनी हास्यास्पद बात है कि मतगणना स्थल पर तो मोबाइल के प्रवेश पर रोक को कड़ाई से लागू किया जाता है, लेकिन जहां निश्चित रूप से मोबाइल का दुरुपयोग होने का खतरा है, जहां से आपराधिक जगत की गतिविधियों में और इजाफा हो सकता है, जेल के अंदर बैठे-बैठे अपराध कारित किए जा सकते हैं, वहां पर उसके प्रवेश पर रोक के बावजूद नहीं रोक पा रही।
फाइल फोटो:-
अजमेर सेंट्रल जेल में कैदियों से बरामद मोबाइल के साथ पूर्व जेल अधीक्षक श्रीमती प्रीता भार्गव
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