शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

घूसखोर एसआई ने दी नए एसपी को सलामी


एसआई नाथूसिंह
एसआई नाथूसिंह
भ्रष्टाचार के मामले में दो आईपीएस अधिकारियों अजय सिंह व राजेश मीणा की गिरफ्तारी, एक आरपीएस अधिकारी लोकेश सोनवाल की फरारी और 11 थानेदारों के लाइनहाजिर होने के कारण बदनाम हो चुके अजमेर पुलिस महकमे में नए कप्तान गौरव श्रीवास्तव को मोर्चा संभाले अभी जुम्मा जुम्मा आठ दिन भी नहीं हुए हैं कि उन्हीं के मातहत आदर्शनगर थाने के एसआई नाथूसिंह ने उन्हें रिश्वत का नया कारनामा करके सलामी ठोक दी है। दिलचस्प बात ये है कि जब भी कोई नया एसपी आता है तो कोई न कोई आपराधिक वारदात होती है और मीडिया लिखता है यह उनको पहला नजराना है, मगर शायद यह पहला मौका है जब उनके ही मातहत ने उनको ऐसा नजराना पेश किया है। अफसोसनाक बात ये है कि ऐसा तब हुआ है, जबकि श्रीवास्तव ने आते ही ऐलान किया था कि वे भ्रष्टाचार को कत्तई बर्दाश्त नहीं करेंगे और पुलिस कप्तान के रूप में ईमानदारी की मिसाल कायम करेंगे। ताजा कांड से तो ऐसा प्रतीत होता है कि उनके अधीनस्थों ने यह मिसाल न कायम होने देने की कसम सी खा ली है। श्रीवास्तव ने आते जो ऊर्जा व उत्साह दिखाया तो मीडिया ने भी उनसे कुछ ज्यादा उम्मीद पाल ली, इस पर आखिर उन्हें कहना पड़ा कि पुलिस तंत्र को सुधारने के लिए उनके पास कोई जादूई छड़ी नहीं है। अर्थात उन्हें अहसास था कि उनके महकमे में ऐसे अफसर मौजूद हैं, जिनकी आदत सुधरने में वक्त लगेगा।
अपुन ने इस कॉलम में पहले ही लिख दिया था कि श्रीवास्तव को रूटीन के अपराध से निपटने के अलावा कुछ ऐसा कर दिखाना होगा, जिससे यह लगे कि पुलिस फिर से मुस्तैद हो गई है। हालात वैसे ही हैं। उनको अपराधियों पर नकेल कसने से पहले अजमेर चरागाह समझ कर सांड बन कर चर रहे अपने मातहतों की नाक में नकेल डालनी होगी। जनता में पुलिस के प्रति जो विश्वास डगमगाया है, उसे कायम करने के लिए एडी-चोटी का जोर लगाना होगा।
ताजा कांड से ऐसा प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे अजमेर के पूरे पुलिस बेड़े ने भ्रष्टाचार के मामले में दो आईपीएस की गिरफ्तारी, एक आरपीएस के निलंबन और 11 थानेदारों के लाइन हाजिर होने से कोई सबक नहीं लिया है। इससे यह भी साबित होता है कि जिस महकमे पर कानून व्यवस्था कायम करने की जिम्मेदारी है, जिस फौज पर अपराधियों में कानून का डर पैदा करने का जिम्मा है, उसी के अफसरों में कानून का डर समाप्त हो गया है। घूस खाने की आदत इतनी शिद्दत से पड़ गई है कि हम नहीं सुधरेंगे का ठेका ले लिया है। जाहिर सी बात है कि जो अपराधियों को कानून की पतली गलियों से भागने से रोकने की मशक्कत करते हैं, उन्हें पता है कि वे पतली गलियां कौन सी हैं, जिनसे वे खुद आसानी से निकल जाएंगे। जैसा कि एसपी रिश्वत प्रकरण में भी होता नजर आ रहा है। ऐसे में अगर कोई यह ताना मारे कि पुलिस वाले वर्दी गुंडे हैं तो उसमें बुरा नही मानना चाहिए।
बहरहाल, श्रीवास्तव को मिली इस पहली सलामी से संभव है वे और मुस्तैद होंगे, वरना ईमानदारी की मिसाल कायम करना तो दूर बेईमानी से निपटने में नाकामी का तमगा ले कर रुखसत होंगे।
-तेजवानी गिरधर

यानि कि बहुत कठिन है थानेदारों का फंसना


एसीबी की गिरफ्त में निलंबित एसपी राजेश मीणा
एसीबी की गिरफ्त में निलंबित एसपी राजेश मीणा
अजमेर जिले के थानेदारों से मंथली लेने के मामले में भले ही पुलिस कप्तान राजेश मीणा गिरफ्तार व निलंबित हुए हों और फरार एएसपी लोकेश सोनवाल भी नामजद हों, मगर जिन थानेदारों को इसी सिलसिले में लाइन हाजिर किया गया है, उनका शिकंजे में फंसना कुछ कठिन ही प्रतीत होता है।
कहा जा रहा है कि मंथली प्रकरण में चिन्हित थानेदारों के खिलाफ केवल कॉल डिटेल रिकार्ड ही एक मात्र पुख्ता साक्ष्य हो सकता है, इसके अलावा अन्य कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं है। गृह विभाग के सचिव के निर्देश पर एसीबी थानेदारों की कॉल डिटेल का पूरा विवरण तैयार करने के लिए कहा था। उसी की पालना में एसपी ऑफिस में जांच पड़ताल कर थानेदारों की सर्विस बुक, सीयूजी नंबरों और बैंक अकाउंट के बारे में जानकारी जुटा कर एक सूची तैयार की गई है। बैंक खातों से यह पता लगाया जा रहा है कि थानेदारों ने कब कितनी राशि निकाली गई और जमा करवाई गई। अर्थात ये पता लगाया जाएगा कि मंथली का कितना हिस्सा वे अपने पास रखते थे। मगर यह जरूरी तो नहीं कि थानेदारों ने अपना सारा ट्रांजेक्शन बैंक के जरिए ही किया हो।
रहा सवाल कॉल डिटेल रिकार्ड का तो बेशक सीयूजी के नंबरों कॉल डिटेल से जांच कुछ आगे बढ़ेगी, मगर परेशानी ये है कि हर थानेदार के पास सीयूजी के अलावा एक-एक दो-दो निजी सेलफोन नंबर भी रहे होंगे। बताते हैं कि थानेदारों ने अगर दलाल रामदेव ठठेरा से बात की भी होगी तो अपने निजी नंबरों से। ऐसे में एसीबी के लिए थानेदारों व ठठेरा के बीच हुई बात का रिकार्ड हासिल करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। अव्वल तो निजी नंबरों का पता लगाना कठिन है, दूसरा मिल भी गए तो जरूरी नहीं कि उन्होंने अपने नाम से ही लिए हों। ऐसे में अगर कुछ थानेदार दम भर रहे हैं कि उनका कुछ नहीं हो सकता, तो उसमें दम नजर आता है।
-तेजवानी गिरधर