शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

क्या नई संभागीय आयुक्त इस ओर ध्यान देंगी?


अजमेर निवासी अतुल शर्मा के सेवानिवृत्त होने के बाद संभागीय आयुक्त के पद पर 1985 बैच की आईएएस किरण सोनी गुप्ता ने कार्यभार संभाल लिया है। अपनी पहली ही बैठक में उन्होंने कलेक्टर वैभव गालरिया से अजमेर में चल रही विभिन्न विकास योजनाओं की जानकारी ली। ट्रैफिक, पानी, पार्किंग, सीवरेज व अन्य समस्याओं के बारे मेंं भी जाना। जैसा कि उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अजमेर संभाग में टूरिज्म और औद्योगिक क्षेत्र में विकास की बड़ी संभावनाएं हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि जरूर यहां के विकास में रुचि लेंगी।
कदाचित उन्हें पता न लगा हो कि शर्मा अजमेर के लिए क्या-क्या करना चाहते थे और क्या-क्या कर गए, साथ ही कौन से काम राजनीतिक दखंलदाजी के कारण बाकी रह गए, लिहाजा उन्हें बताना हमारा फर्ज है।
असल में शर्मा अजमेर को उसके ऐतिहासिक गौरव के अनुरूप अन्य बड़े शहरों की तरह खूबसूरत और सुव्यवस्थित करना चाहते थे, मगर ऐसा हो नहीं पाया।
विकास के मामले में अन्य शहरों से पिछडऩे के अतिरिक्त यह शहर वर्षों से अतिक्रमण और यातायात अव्यवस्था से बेहद पीडि़त है। पिछले पच्चीस साल के कालखंड में अकेले पूर्व कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता को ही यह श्रेय जाता है कि उन्होंने मजबूत इरादे के साथ अतिक्रमण हटा कर शहर का कायाकल्प कर दिया था। संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा भी बहुत कुछ करना चाहते थे, मगर राजनीति आड़े आ गई। शर्मा के विशेष प्रयासों से शहर को आवारा जानवरों से मुक्त करने का अभियान शुरू हुआ, मगर चूंकि राजनीति में असर रखने वालों ने केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट का दबाव डलवा दिया, इस कारण वह अभियान टांय टांय फिस्स हो गया। इसी प्रकार शहर को अतिक्रमण से मुक्त करने पर भी शर्मा ने पूरा जोर लगाया, मगर जब भी इस दिशा में कुछ करते, कोई न कोई राजनीतिक रोड़ा सामने आ जाता। एक बार शर्मा ने तत्कालीन जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल के प्रयासों से टे्रफिक मैनेजमेंट कमेटी की अनुशंसा पर यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए जवाहर रंगमंच के बाहर बनी गुमटियों को दस साल ही लीज समाप्त होने के बाद हटाया तो बड़ा हंगामा हुआ। कांग्रेसी पार्षदों ने जेसीबी मशीन के आगे तांडव नृत्य किया।नेताओं ने यह साबित करने की कोशिश की कि प्रशासन तो जन-विरोधी है, जबकि वे स्वयं गरीबों के सच्चे हितैषी। बहरहाल, विरोध का परिणाम ये रहा कि प्रशासन को न केवल गुमटी धारकों को अन्यत्र गुमटियां देनी पड़ीं, अपितु यातायात में बाधा बनी अन्य गुमटियों को हटाने का निर्णय भी लटक गया।
इसी प्रकार शहर की यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए शर्मा की अध्यक्षता में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय तो हुए, पर उन पर कितना अमल हो नहीं पाया। जिस कचहरी रोड और नेहरू अस्पताल के बाहर उन्होंने सख्ती दिखाते हुए ठेले और केबिने हटाई थीं, वहां फिर पहले जैसे हालात हो गए। शर्मा ने पशु पालन की डेयरियों को अजमेर से बाहर ले जाने की कार्यवाही शुरू करने का ऐलान किया, मगर आज भी स्थिति जस की तस है। बड़े-बड़े गोदाम शहर से बाहर निर्धारित स्थल पर स्थानांतरित करने की व्यवस्था करने का निर्णय किया गया, मगर आज तक कुछ नहीं हुआ। शहर के प्रमुख चौराहों को चौड़ा करने का निर्णय भी धरा रह गया। खाईलैंड में नगर निगम की खाली पड़ी जमीन पर बहुमंजिला पार्किंग स्थल बनाने की योजना अब तक खटाई में पड़ी हुई है। कुल मिला कर शर्मा जैसा चाहते थे, वैसा हो नहीं पाया। अब देखते हैं कि अजमेर विकास की संभावनाएं बताने और उस पर अमल करने को जोर देने वाली किरण सोनी गुप्ता कितना जज्बा दिखाती हैं।
जानकारी है कि वे न केवल कुशल प्रशासक हैं, बल्कि साहित्य और कला में भी उनकी गहरी रुचि है। महाराणा प्रताप, ए ग्रेट सन ऑफ मेवाड़ के अलावा उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं और विभिन्न विषयों पर उनके लिखे आर्टिकल समय-समय पर पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। चित्रकारी के प्रति उनका लगाव है और वे अच्छी चित्रकार भी हैं। उनकी बनाई पेंटिंग्स राष्ट्रीय स्तर पर सराही गई और उन्हें कई अवार्ड भी मिले हैं। सामाजिक क्षेत्र में भी गुप्ता कई संस्थाओं से जुड़ी रही हैं। एक बड़े अधिकारी का यह पहलु अजमेर के कला प्रेमियों के लिए सुखद है। कला प्रेमी अजमेर फोरम के माध्यम से एक बड़ा कला केन्द्र बनवाने के लिए प्रशासन व सरकार पर दबाव बनाए हुए हैं। सूचना केन्द्र में पूरी सुविधाएं नहीं हैं और जवाहर रंगमंच छोटा पड़ता है। ऐसे में भोपाल के भारत भवन जैसे कला केन्द्र की सख्त जरूरत है। उम्मीद है वे इस ओर तो जरूर ध्यान देंगी।
-तेजवानी गिरधर