सोमवार, 17 दिसंबर 2012

बारूद के ढ़ेर पर बैठा है अजमेर शरीफ


समझौता एक्सप्रेस में ब्लास्ट के आरोपी दशरथ चौहान की एनआईए दिल्ली की टीम की ओर से की गई गिरफ्तारी के बाद उसका यह खुलासा अजमेर सहित पूरे देशवासियों के लिए सनसनीखेज और चिंताजनक है कि उसका और उसके साथियों का इरादा इसी साल अजमेर में बड़ा बम ब्लास्ट करने का था, लेकिन किसी कारण षड्यंत्र सफल नहीं हो पाया। इस साल उसकी जयपुर में दीपावली मनाने की योजना बनाई थी। वह कितना खूंखार है, इसका अनुमान इसी बात ये लगाया जा सकता है कि पूछताछ के दौरान एनआईए की टीम के समक्ष दिए गए बयान में दशरथ को अपराध का कोई मलाल नहीं था। उसने कहा कि पाकिस्तान के आतंकवादी जब चाहें भारत में हत्या कर चले जाते हैं। हमने जो किया उसका कोई मलाल नहीं। मैंने अपना फर्ज निभाया, पुलिस अपना फर्ज निभाए। ज्ञातव्य है कि नागदा से गिरफ्तार दशरथ पर 5 लाख रु. का इनाम था। दशरथ पर मई 2007 में हैदराबाद की मक्का-मदीना मस्जिद में विस्फोट का भी आरोप है।
दशरथ सिंह के खुलासे के बाद यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भले ही अपने आंचल में दरगाह ख्वाजा गरीब नवाज और तीर्थराज पुष्कर को समेटे अजमेर को सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता हो, मगर हकीकत ये है कि यह आज बारूद के ढ़ेर पर बैठा है। इतना ही नहीं दशरथ सिंह की गिरफ्तारी के बाद जिस प्रकार दरगाह शरीफ के मेन गेट पर खादिमों की संस्था अंजुमन के पूर्व सदर सैयद किबरिया चिश्ती व पूर्व सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने जिस तल्ख अंदाज में प्रतिक्रिया दी, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह शहर किसी भी वक्त अशांति के आगोश में समा सकता है।
असल में अजमेर पिछले लंबे अरसे से आपराधिक गतिविधियों का केन्द्र बनता जा रहा है। प्रसंगवश बताना लाजिमी है कि पिछले दिनों अजमेर पुलिस को उदयपुर पुलिस के माध्यम से यह जानकारी मिली थी कि मुम्बई के तीन शार्प शूटर मोहम्मद आजम, तानिश शाह और अयूब एक इंडिगो कार में सवार हो कर नाथद्वारा से अजमेर दरगाह जियारत करने आए हुए हैं। वे किसी गम्भीर वारदात को भी अंजाम दे सकते हैं। पुलिस रात भर उनकी तलाश करती रही पर कुछ हाथ नहीं आया। दूसरे दिन सूचना मिली कि शार्प शूटर इंडिगो कार में सवार होकर रेलवे स्टेशन की और जा रहे हैं। पुलिस ने स्टेशन पर नाकाबंदी की, मगर शार्प शूटर सचेत हो गए और कार छोड़ कर भाग गए। पुलिस ने लाख कोशिश की मगर वे हाथ नहीं आए। केवल कार का ड्राइवर श्यामलाल ही पकड़ में आ पाया।
इससे ठीक एक दिन पहले आनासागर झील की चौपाटी के नजदीक एस्केप चैनल की सफाई के दौरान बरामद हुए बम, एक खुखरी और चाकू ने भी शांत नजर आने वाले अजमेर को यकायक किसी बड़ी आशंका से भयभीत कर दिया था। आयुध विशेषज्ञों का मानना है कि ये हथगोले 300 मीटर तक मार कर सकते थे और 150 मीटर के दायरे में भारी तबाही मचा सकते थे। चौंकाने वाला तथ्य ये है कि इन बमों को एक सप्ताह के भीतर ही रखा गया था।
उल्लेखनीय है कि शहर में जिंदा हथगोला मिलने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पूर्व वर्ष 2009 में सितंबर के अंतिम सप्ताह में हाथीखेड़ा गांव के पहाड़ी क्षेत्र में भी 4 जिंदा हैंड ग्रेनेड मिले थे। लोहाखान क्षेत्र में एक खंडहर से मशीनगन की बुलेट भी बरामद हो चुकी हैं।
असल में पिछले कुछ समय से हो रही इस प्रकार की आपराधिक घटनाओं से अजमेर यकायक अति संवेदनशील शहरों की गिनती में आ गया है। यूं तो मादक पदार्थों का ट्रांजिट सेंटर बने दरगाह इलाके व पुष्कर में अंडरवल्र्ड के लोगों की आवाजाही की वजह से इस सरजमीं के नीचे सुलग रही आग का इशारा समय-समय पर मिलता रहा है, मगर दरगाह में बम फटने के बाद तो यह साबित ही हो गया कि आतंकवाद के राक्षस ने यहां भी दस्तक दे दी है।
जहां तक अंडरवल्र्ड की गतिविधियों का सवाल है, अनेक बार यह प्रमाणित हो चुका है कि अजमेर मादक पदार्थों की तस्करी कर ट्रांजिट सेंटर बन चुका है। जोधपुर के सरदारपुरा इलाके में एक साइबर कैफे से पकड़ा गया आईएसआई एजेंट ऋषि महेन्द्र बिना पासपोर्ट व वीजा के बांग्लादेश सीमा से भारत में घुसा और अजमेर के दरगाह इलाके में रहने लगा। बाद में पता लगा कि उसे आईएसआई ने भारतीय सेना के पूना से लेकर पश्चिमी सीमा पर स्थित ठिकानों का पता लगाने के लिए भेजा था। वह यहां लंगरखाना गली में होटलों में नौकरी करता रहा। वह कुछ वक्त जयपुर के रामगंज इलाके में रह चुका था।
इसी प्रकार निकटवर्ती किशनगढ़ की मार्बलमंडी में हिजबुल मुजाहिद्दीन का खुंखार आतंकवादी शब्बीर हथियारों सहित पकड़ा गया तो पुलिस और खुफिया तंत्र सकते में आ गया था। तब जा कर इस बात का खुलासा हुआ कि दरगाह इलाके की ही तरह किशनगढ़ की मार्बलमंडी में भी देशभर से लोगों की आवाजाही के कारण संदिग्ध लोग आसानी से घुसपैठ कर जाते हैं। इसी प्रकार दरगाह इलाके में पाक जासूस मुनीर अहमद और सलीम काफी दिन तक रह कर अपनी गतिविधियां संचालित कीं, लेकिन खुफिया तंत्र तो भनक तक नहीं लगी। शब्बीर की निशानदेही पर हैदराबाद में पकड़े गए मुजीब अहमद के तार आईएसआई से जुड़े होने के पुख्ता प्रमाण मिले।
अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे जेल से ही आपनी गेंगों का संचालन कर रहे हैं। इस सिलसिले में अनेक बार मोबाइल सहित अन्य आपत्तिजनक चीजें भी बरामद हो चुकी हैं।
खुफिया पुलिस बीच-बीच में आसानी से आ-जा रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ कर भले ही अपनी पीठ थपथपाती रही है, मगर वह इसके लायक नहीं, यह तब साबित हो गया, जब मुंबई बम ब्लास्ट का मास्टर माइंड हेडली पुष्कर हो कर चला गया। तब ही इशारा हो गया था कि पुष्कर में स्थित इजरायलियों का धर्म स्थल बेद खबाद आतंकियों के निशाने पर है। इसी प्रकार ब्रह्मा मंदिर को खतरे की सूचनाएं भी समय समय पर मिलती रही हैं। हाल ही दो पाकिस्तानियों के पुष्कर में आ कर लौट जाने व पुलिस तंत्र को इसकी जानकारी बाद में मिलने से अंदाजा लगाया जा सकता है, यह अति संवेदनशील शहर आज बारूद के ढ़ेर पर बैठा है और पुलिस तंत्र नीरो की तरह चैन की बंसी बजा रहा है।
-तेजवानी गिरधर

अब जा कर चेते, की बैलों की सार-संभाल

देर आयद, दुरुस्त आयद। देर से ही सही अजमेर की सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं ने रेलवे स्टेशन से पिछले दिनों झारखंड के लिए ले जाते छुड़ाए गए 64 बैलों को ऋषि उद्यान गोशाला में चारे-पानी और अन्य भोजन की व्यवस्था के लिए हाथ आगे बढ़ाए हैं। बेशक यह मीडिया का ही प्रयास है कि सामाजिक संगठनों के साथ बैलों को छुड़ाने वाले हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं को भी लगा कि केवल पशुओं को कत्लखाने जाने से रोकने अथवा छुड़वाना ही पर्याप्त नहीं है। उनकी सार संभाल भी की जानी चाहिए। सरकार की तो जिम्मेदारी है ही, मगर ऐसे काम में जनसहभागिता भी होनी ही चाहिए।
यहां ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों झारखंड के लिए ले जाते छुड़ाए गए 64 बैल ऋषि उद्यान गोशाला के लिए बोझ बन गए तो गोशाला संचालक यतीन्द्र शास्त्री ने मुंह खोला। उधर जीआरपी सुपुर्दगीनामे पर बैलों को सुपुर्द करने के बाद उनकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी। यह खबर जब दैनिक भास्कर व राजस्थान पत्रिका में छपी तो हलचल हुई। प्रशासन भी जागा तो सामाजिक संगठनों को भी ख्याल आया। अपुन ने भी इस कॉलम में सवाल उठाया कि क्या पशुओं को छुड़वा देने से ही कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है? जिन्होंने धर्म के नाम पर बैलों को कत्लखाने जाने से रोक कर वाहवाही ली, उन्होंने पलट कर यह भी नहीं देखा कि उन बैलों का क्या हुआ और बैल शास्त्री के गले पड़ गए। यदि ऐसा होता रहा तो भविष्य में कोई काहे को इस प्रकार सुपुर्दगी लेगा? गाय-बैलों को मुक्त करवाने वाले धर्म और नैतिकता के नाते उनके चारे-पानी की जिम्मेदारी क्यों नहीं लेते? जब धर्म के नाम पर अन्य कार्यों पर लाखों-करोड़ों रुपए खर्च होते हैं तो जानवरों की परवरिश क्यों नहीं की जाती? इस खबर पर एक फेसबुक मित्र को बहुत बुरा लगा कि हम तो रातें जाग कर पशुओं को बचाते हैं और आप घर बैठ कर रजाई में घुसे हुए सवाल उठा देते हैं। उन्हें अपुन ने यही जवाब दिया कि महाशय जिस प्रकार हिंदूवादी संगठन पशुओं को बचाने का काम करते हैं, ठीक इसी तरह मीडिया भी उनकी सार संभाल के लिए जनता व सरकार को जगाने का काम करती है। खैर, अब मीडिया की मुहिम रंग लाई है। जैन मिलन, अजमेर माहेश्वरी प्रगति संस्था और पार्षद ज्ञान सारस्वत के प्रयासों से चारे और गुड़ की व्यवस्था की गई है। बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और शिवसेना के कार्यकर्ता भी बैलों की मदद के लिए पहुंचे। कुल मिला कर यह सुखद बात है कि अजमेर की संस्थाओं में सेवा का भाव है, बशर्ते कि उन्हें पता लगे कि कहां सेवा करने की जरूरत है। अंत भला, सो भला।
-तेजवानी गिरधर