रविवार, 27 अप्रैल 2014

ऐन उर्स के मौके पर तोगडिय़ा ने उगली आग

विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रवीण भाई तोगडिय़ा ने एक बार फिर हंगामा खड़ा करने के लिए सांप्रदायिक सौहार्द्र की नगरी अजमेर को चुना है। इससे पहले कांग्रेस शासन काल में भी उन्होंने त्रिशूल दीक्षा  के जरिए पूरे राजस्थान में भगवाकरण का बिगुल बजाने की कोशिश की थी, मगर तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें गिरफ्तार करवा कर उस पर अंकुश लगा दिया था। बाद में कम से कम इस किस्म की मुहिम के लिए तो तोगडिय़ा ने अजमेर का रुख नहीं किया।
ताजा मामले में उन्होंने सीधे-सीधे ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के सालाना उर्स को निशाने पर लेते हुए कहा है कि पिछले दिनों में जो गोवंश पकड़ा गया, वह उर्स में कटने के लिए लाया जा रहा था। चूंकि गो हत्या निषेध कानून देश में लागू है, अत: उस स्थान पर रिलीजियस गेदरिंग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जहां गोवंश की हत्या हो रही हो। सरकार को चाहिए कि वह उर्स की परमिशन देने वालों व व्यवस्था में जुटे लोगों पर गोहत्या कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार करे। अर्थात उन्होंने साफ तौर पर जिला कलेक्टर व जिला पुलिस अधीक्षक कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है। प्रशासन ही क्यों, एक तरह से उन्होंने प्रदेश की भाजपा सरकार को भी अप्रत्यक्ष रूप से घेरा है। अगर गोवंश की हत्या उर्स मेले में आने वाले जायरीन के लिए की जा रही है तो इसके लिए मुसलमानों की बजाय सरकारी मशीनरी ही जिम्मेदार है। ऐन उर्स के मौके पर उनके इस बयान का मकसद समझा जा सकता है। ये तो गनीमत है कि अजमेर की आबोहवा ही ऐसी है कि यहां इस प्रकार की सांप्रदायिक गंध यकायक कुछ खास असर नहीं करती, वरना कोशिश तो यही प्रतीत होती है कि हंगामा खड़ा हो जाए। इस बार चूंकि प्रदेश में भाजपा सरकार है, अत: इस बात की कोई भी संभावना नहीं है कि वह तोगडिय़ा के इस बयान को कार्यवाही के लिहाज से गंभीरता से लेगी। कार्यवाही करती है तो भी दिक्कत होगी। अलबत्ता पुलिस ने जरूर त्वरित प्रतिक्रिया देते ठंडे छींटे डालने की कोशिश की है। अजमेर के जिला पुलिस अधीक्षक महेन्द्र सिंह चौधरी ने साफ तौर पर कहा है कि डॉ. तोगडिय़ा ने जो बयान दिया है, वह बेबुनियाद है। अजमेर में कभी भी, किसी भी अनुसंधान में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसी कोई बात या किसी मुल्जिम का ऐसा कोई बयान नहीं आया कि अजमेर में या उर्स के दौरान कटने के लिए गोवंश लाया जा रहा था। स्पष्ट है कि तोगडिय़ा का बयान हवा में तीर छोडऩे जैसा है, जो तथ्य की कसौटी पर खरा नहीं ठहरता। रहा सवाल पुलिस की प्रतिक्रिया का तो स्वाभाविक सी बात है कि चौधरी पर उर्स शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न करवाने की जिम्मेदारी है, इस कारण उन्हें तो आगे आना ही था। अगर खुदानखास्ता तोगडिय़ा के बयान से विवाद पैदा होता है तो सरकार उनका ही गला पकड़ेगी।
वैसे तोगडिय़ा का ताजा बयान लोकसभा चुनाव के दौरान सांप्रदायिक धु्रवीकरण पैदा करने की मुहिम का एक हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि अब राजस्थान की सभी पच्चीस सीटों के चुनाव हो चुके हैं, इस कारण यहां तो इसका असर चुनावी लिहाज से कुछ नहीं पडऩा, मगर उन राज्यों में तो बयान की तपिश पहुंचाई ही जा सकती है, जहां अभी मतदान होना बाकी है। ज्ञातव्य है कि उर्स मेले में गुजरात, आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल से बड़ी संख्या में मुस्लिम आते हैं और इन राज्यों में 30 अप्रैल, 7 मई और 12 मई को मतदान होना है।
बात अगर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की बनाई गई लहर के संदर्भ में करें तो इस बयान से मोदी को दिक्कत आ सकती है, क्योंकि वे यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी सरकार आई तो मुसलमानों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। ऐसे में तोगडिय़ा के बयान से विरोधी दलों को यह कहने का मौका मिल जाएगा कि मोदी का मुखौटा भले ही एक विकास पुरुष के रूप में प्रोजेक्ट किया गया है, मगर भाजपा के हार्डलाइनर तो मुसलमानों के खिलाफ ही हैं। ज्ञातव्य है कि हाल ही मोदी ने एक और भड़काऊ बयान दिया था, जिसे मोदी ने गलत ठहराया था। यहां यह अंडरस्टुड है कि तोगडिय़ा को मोदी विरोधी माना जाता है।
बहरहाल, उम्मीद यही की जानी चाहिए कि तोगडिय़ा के ताजा बयान पर कम से कम अजमेर में तो कोई खास प्रतिक्रिया नहीं होगी।
-तेजवानी गिरधर

बारहदरी का ताला तोड़ा गया, जिम्मेदार कौन?

युवक कांग्रेस के पदाधिकारियों ने आखिरकार दौलतबाग और बारहदरी को जोडने वाले रास्ते पर लगे गेट का ताला तोड़ दिया। बेशक इसे कानून हाथ में लेना ही कहा जाएगा, जो कि गलत कृत्य है, मगर सवाल ये उठता है कि आखिर यह नौबत क्यों आई? और इसके लिए वास्तविक जिम्मेदार कौन है?
ज्ञातव्य है कि ताला लगा देने के कारण जायरीन व मॉर्निंग वॉक करने वालों को परेशानी हो रही थी। इस ओर समाचार पत्रों ने नगर निगम व पुरातत्व विभाग का ध्यान आकर्षित भी किया, मगर एक भी अधिकारी के कान पर जूं नहीं रेंगी। दोनों एक-दूसरे पर टालते रहे। अगर दोनों महकमों के अधिकारियों में तालमेल का अभाव तो इसकी जिम्मेदारी जिला कलेक्टर की थी कि वे हस्तक्षेप करते, मगर उन्होंने भी कोई ध्यान नहीं दिया।
उल्लेखनीय है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 802 वां सालाना उर्स शुरू होने वाला है और जाहिर तौर पर बाहर से आने वाले जायरीन बारहदरी देखना चाहेंगे, मगर ताला जड़ा होने के कारण उन्हें परेशानी होती। यह भी अखबारों के माध्यम से जिला प्रशासन के संज्ञान में थी। जिला कलेक्टर भवानी सिंह देथा ने उर्स की व्यवस्थाओं के लिए मेराथन बैठक ली और विश्राम स्थली व दरगाह का दौरा भी किया, मगर इस ओर ध्यान नहीं दिया। वे चाहते तो दोनों महकमों के अधिकारियों को साथ बैठा कर उचित रास्ता निकाल सकते थे।
अब जबकि युवक कांग्रेस के पदाधिकारियों ने ताला तोड़ कर कानून का उल्लंघन किया है, उन्हें दोषी ठहराया जा सकता है, मगर प्रश्न सिर्फ ये है कि प्रशासन ने खुद क्यों नहीं इस जनसमस्या पर ध्यान दिया? अगर हम ये कहते हैं कि आज की पीढ़ी अराजक होने लगी है तो साथ ही यह भी विचार करना होगा कि इसके लिए जिम्मेदार भी तो हम ही हैं।

ज्योतिर्विद कैलाश दाधीच को है मोदी की चिंता

तीर्थराज पुष्कर के जाने-माने ज्योतिर्विद पंडित कैलाश दाधीच को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की बड़ी चिंता है। उनका मानना है कि गुरुवार को भद्रा नक्षत्र में वाराणसी में नामांकन पत्र भरना अशुभ है। पंडित दाधीच ने ज्योतिष शास्त्र का हवाला देते हुए समाचार पत्रों में यह खबर छपवायी है कि मोदी की राशि वृश्चिक है। गुरुवार को चौथा चंद्रमा अशांति का सूचक है तथा साथ में भद्रा का भी योग है। यही नहीं, पंचक का भी प्रभाव बन रहा है। गुरू आठवां होना एवं गुरुवार को ही नामांकन भरना मोदी के लिए नामांकन भरना अशुभ सूचक का संकेत दे रहा है। अपनी ओर से किसी बड़ी हस्ती के शुभाशुभ का फलित निकालना तो फिर भी सामान्य बात है, मगर मोदी की ओर से उसका उपाय पूछे बिना दाधीच ने तोड़ भी बताया है। दाधीच ने मोदी को नामांकन पत्र दाखिल करने से पहले रुद्राभिषेक, महामृत्यंजय का जाप, गुरु ग्रह के लिए दान-पुण्य करने की सलाह दी है। ऐसा करने से सभी दोष से मुक्ति मिलने के साथ-साथ मोदी को अक्षय फल की प्राप्ति हो सकती है।
सवाल ये उठता है कि क्या मोदी को बिना पूछे सलाह दे कर पंडित दाधीच ने खुद को भाजपाई साबित नहीं कर दिया है? वरना उन्हें मोदी की इतनी चिंता क्यों है? मोदी जी जानें, उनका कर्म जानें, पंडित दाधीच का क्या लेना-देना? सच तो ये है कि अशुभ भद्रा योग की जानकारी देने वाले पंडित दाधीच पहले ज्योतिषी नहीं हैं। तीन दिन पहले ही यह जानकारी अखबारों में छप चुकी है। सवाल ये कि अगर उन्हें मोदी की इतनी ही चिंता थी तो क्या उन्हें तिथी तय होने से पहले मोदी को सलाह नहीं देनी चाहिए थी, ताकि वे कोई और तिथी तय करते। तिथी घोषित हुए भी कुछ दिन बीत गए हैं, अब जा कर गुरुवार को नामांकन भरने वाले दिन सलाह देने से क्या फायदा? यह खबर कौन सी मोदी के पास पहुंच ही जाएगी? हां, अलबत्ता अजमेर के लोगों को जरूर पता लग गया है कि पंडित दाधीच को मोदी की बड़ी चिंता है। साफ नजर आता है कि हमारे ज्योतिषी भी वीआईपी-वीवीआईपी के बारे में भविष्यवाणी करते चर्चित होना चाहते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने ज्योतिषीय ज्ञान से पंडित दाधीच को पता लग गया है कि मोदी प्रधानमंत्री बनने वाले हैं, इस कारण उनके बारे में फलित निकाला व उपाय सुझाया है, ताकि बाद में मोदी की कुछ अनुकंपा हासिल कर सकें?

रविवार, 20 अप्रैल 2014

कुछ जाट समर्थक भी नहीं चाहते उनकी जीत?

कैसी विडंबना है। समर्थक ही नहीं चाहते कि उनका नेता जीत जाए? जैसे कुछ कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ता जाती नाइत्तफाकी के चलते अजमेर संसदीय क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के हारने की दुआ मांग रहे हैं, वैसे ही सुना है भाजपा प्रत्याशी व राज्य के जलदाय मंत्री प्रो. सांवर लाल जाट के कुछ समर्थक भी चाहते हैं कि वे नहीं जीतें। बताया जाता है कि ये वे शुभचिंतक हैं, जिन्हें प्रो. जाट से कहीं अधिक अपने हित की चिंता है। असल में जिन समर्थकों ने इस उम्मीद में कि जाट के मंत्री बनने के बाद अपना हित साधेंगे, विधानसभा चुनाव में भरपूर सेवा की थी। उन्होंने अपना हित साधा ही नहीं कि इतने में लोकसभा चुनाव आ गए। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने जाट की अनिच्छा के बावजूद उन्हें लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी बना दिया। जाट ने भी पूरी ताकत लगाई, हालांकि कुछ लोगों की मान्यता इससे इतर है। अब हितचिंतक चाहते हैं कि जाट हार जाएं ताकि वे राज्य में ही मंत्री बने रहें और उनके हित सधते रहें। माना कि जीतने के बाद भी वे प्रभावी रहेंगे, मगर एक तो मंत्रालय ही खुद के पास हो तो उपकृत करना आसान होता है, जब कि सांसद बनने के बाद सिफारिश करनी होगी। सिफारिश मानी ही जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में बेहतर यही है कि जाट मंत्री बने रहें। और उसके लिए उनका हारना लाजिमी है।

कुछ कांग्रेसी कर रहे हैं सचिन की हार की दुआ

हालांकि यह शीर्षक पढ़ कर आप चौंक गए होंगे कि भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई कांग्रेसी अपने ही प्रदेश अध्यक्ष की हार की दुआ कैसे कर सकता है, मगर सच्चाई यही है। ऐसे अनेक कांग्रेसी हैं, जो कि चुनाव के दौरान तो प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के बुरे न बनने के लिए मुख्य धारा में आने का नाटक कर रहे थे। कई रूठों को सचिन ने राजी भी कर लिया।  बावजूद इसके कई कांग्रेसी ऐसे हैं, जिन्होंने दिखाने के लिए तो पार्टी का काम किया, मगर मन ही मन दुआ कर रहे हैं कि सचिन हार जाएं तो अच्छा रहे। उन्हें चौराहों पर हार का गणित फलाते हुए देखा जा सकता है।
असल में ये कांग्रेसी जानते हैं कि उनकी करतूतों के चलते आगे उनको संगठन में कोई स्थान मिलने वाला नहीं है, क्योंकि वे सचिन की निगाह में आ चुके हैं और प्रदेश अध्यक्ष के नाते सारे अधिकार उनके पास सुरक्षित हैं। वे दुआ कर रहे हैं कि सचिन हार जाएं ताकि प्रदेश में सचिन विरोधी लॉबी उन्हें खराब परफोरमेंस, विशेष रूप से खुद ही चुनाव हार जाने के नाम पर पद से हटाने के लिए हाईकमान पर दबाव बना सके। वे उम्मीद कर रहे हैं कि जब सचिन को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया जाएगा तो दूसरे किसी अध्यक्ष से लिंक बैठा कर फिर पद हासिल कर लेंगे।
वस्तुत: कांग्रेस में यह विसंगति इसलिए आई है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में जिले की आठों सीटें हार जाने के बाद संगठन को दुरुस्त करने का वक्त ही नहीं मिला। कुछ वक्त मिला तो उन्होंने पूरे ढ़ांचे को छेडऩे की बजाय उसी से काम लेने की कोशिश की। उन्हें डर था कि अगर संगठन में भारी फेरबदल किया तो लोकसभा चुनाव में हार की एक प्रमुख वजह यही मानी जा सकती है। इसी कारण पुराने सेटअप से ही काम लिया। जाहिर सी बात है कि पुराने सेटअप में प्रदेश के अनेक दिग्गजों के शागिर्द जमे बैठे थे, जिनकी रुचि नहीं थी कि सचिन को कामयाबी हासिल हो।
बहरहाल, सचिन से नाइत्तफाकी रखने वाले भले ही चुप बैठे हैं, मगर वे चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहे हैं। वे इस पर भी निगाह रखे हैं कि हार के बाद सचिन कितने कमजोर होते हैं, ताकि उन्हें घुसपैठ करने का मौका मिल जाए। दूसरी ओर सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार इस बात की संभावना कम ही है कि हाईकमान कमजोर परफोरमेंस के नाम पर उन्हें पद से हटाएगा। हाईकमान खुद भी जानता है कि जर्जर हो चुके संगठन से यकायक अच्छे परिणाम नहीं लाए जा सकते। कदाचित उन्हें जयपुर भेजा ही इस शर्त पर गया था कि वे जितनी सीटें ला सकते हैं, लाएं, बाद में संगठन को दुरुस्त करें और आगामी विधानसभा चुनाव के लिए ग्राउंड तैयार करें।

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

मतदान प्रतिशत 5.66 गिरने के क्या मायने हैं?

हालांकि यह बात सही है कि इस बार लोकसभा चुनाव में अजमेर संसदीय क्षेत्र में मतदान 15.57 प्रतिशत बढ़ा है, जो कि एक रिकार्ड है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के लिए इसका महत्व तो है ही, उससे कहीं अधिक महत्व तीन-चार माह पहले दिसम्बर 2013 में हुए विधानसभा चुनाव के मतदान प्रतिशत का भी काउंट किया जा रहा है। विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड 74.10 प्रतिशत मतदान हुआ था। उसकी तुलना में 5.66 मतदान प्रतिशत गिरना विशेष अर्थ रखता है। मोटे तौर पर इसका ज्यादा नुकसान भाजपा को माना जाता है। इसकी वजह ये है कि जब भी मतदान प्रतिशत बढ़ता है तो वह सत्ता के खिलाफ माना जाता है। यदि इसमें गिरावट आई तो इसका मतलब ये माना जाता है कि सत्ता विरोधी लहर में कुछ कमी आई होगी। ज्ञातव्य है कि विधानसभा चुनाव में रिकार्ड मतदान की वजह से भाजपा ने कांग्रेस पर एक लाख 91 हजार 963 मतों की बढ़त हासिल की थी। मतदान प्रतिशत 5.66 प्रतिशत गिरने का मोटे तौर आंकडों की भाषा में यह अर्थ निकाला जा रहा है कि भाजपा व कांग्रेस के बीच का मंतातर कम होगा, हालांकि दोनों चुनाव को प्रभावित करने वाले कारक और भी हैं। अगर वे अधिक प्रभावी होते हैं तो अनुमान गलत भी निकल सकता है। वैसे भाजपा नेताओं का मानना है कि भले ही मतदान प्रतिशत गिरा है, मगर मोदी लहर के चलते यह मतांतर और भी बढ़ेगा।
बात अगर पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना करते हुए करें तो एक ओर जहां मतदान प्रतिशत में 15.57 इजाफा हुआ है, वहीं मतदाता भी थोक में बढ़े हैं। पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में 2 लाख 27 हजार 867 मतदाता बढ़े हैं। दोनों तरह का इजाफा सत्ता विरोधी माना जाता है। एक और फैक्टर भी आसन्न चुनाव को प्रभाविक करता नजर आता है। वो ये है कि पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में 79 हजार 10 वोट बढ़ गए हैं, जो अधिसंख्य नई पीढ़ी के हैं। स्वाभाविक रूप से वे परिवर्तन की ओर उन्मुख हैं, जिसका सीधा-सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा।
उल्लेखनीय है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र के आठों विधानसभा क्षेत्रों में कुल 68.64 प्रतिशत मतदान हुआ है। जिला निर्वाचन विभाग के अनुसार किशनगढ़ में 72.63, पुष्कर में 72.07, नसीराबाद में 72.34, दूदू में 66.37   तथा केकड़ी 63.95  में प्रतिशत मतदान हुआ है। इसी तरह मसूदा में  67.97,  अजमेर उत्तर  65.46 में एवं अजमेर दक्षिण में  68.11 प्रतिशत मतदान हुआ है। बात अगर हाल ही संपन्न हुए विधानसभा चुनाव की करें तो उसके आंकड़े इस प्रकार हैं:-अजमेर जिले में 11 लाख 85 हजार 667 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। जिले में 16 लाख 26 मतदाता थे, जिनमें से 8 लाख 24 हजार 920 पुरुष व 7 लाख 75 हजार 106 महिला मतदाता थे। इनमें से 6 लाख 15 हजार 576 पुरुष व 5 लाख 70 हजार 91 महिला मतदाताओं ने मतदान किया। इस प्रकार जिले में रिकॉर्ड 74.10 प्रतिशत मतदान हुआ।
बात अगर हाल ही संपन्न हुए विधानसभा चुनाव की करें तो उसके आंकड़े इस प्रकार हैं:- अजमेर जिले में 11 लाख 85 हजार 667 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। जिले में 16 लाख 26 मतदाता थे, जिनमें से 8 लाख 24 हजार 920 पुरूष व 7 लाख 75 हजार 106 महिला मतदाता थे। इनमें से 6 लाख 15 हजार 576 पुरूष व 5 लाख 70 हजार 91 महिला मतदाताओं ने मतदान किया। इस प्रकार जिले में रिकॉर्ड 74.10 प्रतिशत मतदान हुआ।
किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 23 हजार 420 में से 1 लाख 71 हजार 360 मतदाताओं यानि 76.70 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया।
पुष्क$र विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 94 हजार 398 में से 1 लाख 49 हजार 778 मतदाताओं यानि 77.05 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया। अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 78 हजार 427 में से 1 लाख 20 हजार 186 मतदाताओं यानि 67.36 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया। अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 79 हजार 234 में से 1 लाख 21 हजार 911 मतदाताओं यानि 68.02 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया। नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 85 हजार 343 में से 1 लाख 52 हजार 640 मतदाताओं यानि 82.36 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया। दूदू विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 99 हजार 70 में से 1 लाख 49 हजार 627 मतदाताओं यानि 75.16 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया। मसूदा विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 21 हजार 896 में से 1 लाख 67 हजार 103 मतदाताओं यानि 75.31 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया। केकड़ी विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 9 हजार 615 में से 1 लाख 58 हजार 453 मतदाताओं यानि 75.59 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया। विधानसभा वार मतदान प्रतिशत के अंतर की बात करें तो किशनगढ़ में मतदान प्रतिशत 4.07 गिरा है। पुष्कर में 4.98 प्रतिशत गिरा है। अजमेर उत्तर में 1.90 प्रतिशत गिरा है। अजमेर दक्षिण में .09 प्रतिशत बढ़ा है। नसीराबाद में 10.02 प्रतिशत गिरा है। दूदू में 8.79 प्रतिशत गिरा है। केकड़ी में 11.64 प्रतिशत गिरा है। मसूदा में 7.34 प्रतिशत गिरा है। अर्थात अजमेर शहर में मतदान प्रतिशत में बहुत ज्यादा विचलन नहीं हुआ है। इसका ये अर्थ निकाला जा सकता है कि कांग्रेस व भाजपा में मतांतर में ज्यादा फर्क नहीं आएगा। उधर केकड़ी में यह गिरावट उल्लेखनीय है।
-तेजवानी गिरधर

अजमेर संसदीय क्षेत्र में विधानसभा चुनाव के मुकाबले 5.66 प्रतिशत मतदान गिरा

अजमेर। अजमेर संसदीय क्षेत्र के आठों विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं ने जमकर मतदान किया है। जिले में   68.64 प्रतिशत मतदान हुआ है। जिला निर्वाचन विभाग के अनुसार किशनगढ़ में 72.63, पुष्कर में 72.07,   नसीराबाद में   72.34,   दूदू में 66.37   तथा केकड़ी   63.95  में प्रतिशत मतदान हुआ है। इसी तरह मसूदा में  67.97,  अजमेर उत्तर  65.46 में एवं अजमेर दक्षिण में  68.11 प्रतिशत मतदान हुआ है।
जिले में पिछले लोकसभा चुनाव में 53.07 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार मतदान के प्रतिशत में 15.57 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यह उल्लेखनीय वृद्धि है, लेकिन जहां तक पिछले साल दिसम्बर में हुए विधानसभा चुनाव का सवाल है, उसकी तुलना में मतदान प्रतिशत 5.66 प्रतिशत कम हुआ है। विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड 74.10 प्रतिशत मतदान हुआ था।
आइये, जरा पिछले लोकसभा चुनाव में हुए मतदान के आंकड़े देखें:-
लोकसभा चुनाव 2009 में अजमेर संसदीय क्षेत्र में 7 लाख 70 हजार 875 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया, जिसमें 4 लाख 12 हजार 873 पुरूष व 3 लाख 58 हजार 2 महिलाएं थीं। मतदान का प्रतिशत 53.07 रहा, जिसमें पुरूषों का प्रतिशत 54.99 व महिलाओं का प्रतिशत 51.02 रहा। तब इस संसदीय क्षेत्र में 14 लाख 52 हजार 490 मतदाता थे, जिनमें 7 लाख 50 हजार 811 पुरूष व 7 लाख एक हजार 679 महिला मतदाता थे।
जिला निर्वाचन अधिकारी श्री राजेश यादव ने यह जानकारी देते हुए बताया कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में सर्वाधिक 59.25 प्रतिशत मतदान नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र में हुआ, जहां 97 हजार 507 मतदाताओं ने मतदान किया । यहां कुल मतदाता एक लाख 64 हजार 545 हैं।
अजमेर संसदीय क्षेत्र में सबसे कम 48.44 प्रतिशत मतदान अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में हुआ, जहां एक लाख 62 हजार 948 मतदाताओं में से 78 हजार 941 मतदाताओं ने मतदान किया।
दूदू विधानसभा क्षेत्र में 54.94 प्रतिशत मतदान हुआ। यहां एक लाख 84 हजार 239 मतदाताओं में से एक लाख एक हजार 231 मतदाताओं ने मतदान किया।
किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में 50.13 प्रतिशत मतदान हुआ। यहां दो लाख 11 हजार 211 मतदाताओं में से एक लाख 5 हजार 897 मतदाताओं ने मतदान किया।
पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में 56.03 प्रतिशत मतदान हुआ। यहां एक लाख 69 हजार 168 मतदाताओं में से 94 हजार 792 मतदाताओं ने मतदान किया।
अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में 50.41 प्रतिशत मतदान हुआ। यहां एक लाख 65 हजार 433 मतदाताओं में से 83 हजार 403 मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया।
मसूदा विधानसभा क्षेत्र के 2 लाख 933 मतदाताओं में से एक लाख 10 हजार 630 मतदाताओं ने मतदान किया, जो 55.05 प्रतिशत रहा ।
केकड़ी विधानसभा क्षेत्र में 50.75 प्रतिशत मतदान हुआ। यहां एक लाख 94 हजार 13 मतदाताओं में से 98 हजार 474 मतदाताओं ने मतदान किया।
बात अगर हाल ही संपन्न हुए विधानसभा चुनाव की करें तो उसके आंकड़े इस प्रकार हैं:-
अजमेर जिले में 11 लाख 85 हजार 667 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। जिले में 16 लाख 26 मतदाता थे, जिनमें से 8 लाख 24 हजार 920 पुरूष व 7 लाख 75 हजार 106 महिला मतदाता थे। इनमें से 6 लाख 15 हजार 576 पुरूष व 5 लाख 70 हजार 91 महिला मतदाताओं ने मतदान किया। जिले में रिकॉर्ड 74.10 प्रतिशत मतदान हुआ है।
किशनगढ़
किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 23 हजार 420 में से 1 लाख 71 हजार 360 मतदाताओं यानि 76.70 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया।
पुष्कर
पुष्क$र विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 94 हजार 398 में से 1 लाख 49 हजार 778 मतदाताओं यानि 77.05 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया।
अजमेर उत्तर
अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 78 हजार 427 में से 1 लाख 20 हजार 186 मतदाताओं यानि 67.36 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया।
अजमेर दक्षिण
अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 79 हजार 234 में से 1 लाख 21 हजार 911 मतदाताओं यानि 68.02 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया।
नसीराबाद
नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 85 हजार 343 में से 1 लाख 52 हजार 640 मतदाताओं यानि 82.36 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया।
दूदू
विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 99 हजार 70 में से 1 लाख 49 हजार 627 मतदाताओं यानि 75.16 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया।
मसूदा
मसूदा विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 21 हजार 896 में से 1 लाख 67 हजार 103 मतदाताओं यानि 75.31 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया।
केकड़ी
केकड़ी विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 9 हजार 615 में से 1 लाख 58 हजार 453 मतदाताओं यानि 75.59 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया।

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

सचिन विकास, तो जाट मोदी के नाम पर मांग रहे हैं वोट

राज्य की पच्चीस में चंद प्रतिष्ठापूर्ण सीटों में से एक अजमेर संसदीय क्षेत्र का चुनावी रण बहुत ही दिलचस्प हो गया है। एक ओर जहां कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट, जो कि यहां के सांसद होने के साथ-साथ केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं,  खुद के प्रयासों से कराए गए विकास कार्यों के नाम पर वोट मांग रहे हैं तो भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवर लाल जाट, जो कि जिले के नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र के विधायक व राजस्थान सरकार में जलदाय मंत्री हैं, कांग्रेस सरकार को कोसते हुए मोदी लहर पर सवार हो कर जीत की उम्मीद पाले हुए हैं। मोदी लहर के चलते मोटे तौर पर यही मान कर चला जा रहा है कि जाट का पलड़ा भारी है, लेकिन सचिन इस दावे को कि उन्होंने अजमेर के विकास के लिए हरसंभव प्रयास किया, उस लहर को थामने की कोशिश के रूप में देख जा रहा है। उन्हें कामयाबी मिलती है या नहीं ये तो चुनाव परिणाम सामने आने पर पता लग पाएगा।
असल में विधानसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र की आठों सीटों पर जीत और भाजपा की कांग्रेस पर तकरीबन एक लाख नब्बे हजार से अधिक वोटों की बढ़त के कारण भाजपा का उत्साहित होना लाजिमी है। इसके अतिरिक्त राज्य में भाजपा की सरकार का भी उसे लाभ मिलेगा। संगठन तो मजबूत है ही, इस बार संघ की ओर से मोदी को प्रोजेक्ट किए जाने के कारण संघ के स्वयंसेवक भी कमर कस कर मैदान में डटे हुए हैं। भाजपा का इस सीट पर ज्यादा जोर देने की वजह ये है कि अगर उसे सफलता मिलती है तो उसे यह कहने का मौका मिल जाएगा कि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष तक उनके सामने नहीं टिक पाए। कदाचित इसी वजह से मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे तीन सभाएं कर चुकी हैं। सच तो यह है कि प्रो. जाट चुनाव लडऩा ही नहीं चाहते थे, चूंकि वे राज्य में मंत्री रहते हुए खुश हैं, मगर वसुंधरा के दबाव ने उन्हें चुनाव मैदान में उतरने को मजबूर कर दिया। इसी वजह से चुनावी जुगाली में यह सुनने में आता है कि जाट के प्रमुख सिपहसालार चाहते हैं कि वे मंत्री ही बने रहें, ताकि उनका कल्याण होता रहे।
उधर कांग्रेस को उम्मीद है कि भाजपा के पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत के पांच बार के कार्यकाल के उपलब्धि शून्य होने की तुलना में सचिन की उल्लेखनीय उपलब्धियों को जनता तवज्जो देगी। वे हवाई अड्डे के निर्माण का रास्ता साफ कर उसका शिलान्यास करवाने, केन्द्रीय विश्वविद्याल की स्थापना, कई नई ट्रेनें शुरू करवाने, दो सौ करोड़ की पेयजल परियोजनाएं शुरू करवाने,  देश के पहले स्मल फ्री सिटी के रूप में अजमेर का चयन करवा कर तीन हजार करोड़ की योजना शुरू करवाने, ढ़ाई सौ से ज्यादा स्कूलों में कंप्यूटर लैब शुरू करवाने, साठ करोड़ की लागत से राज्य का पहला ई-लर्निंग संस्थान स्थापित करवाने, मेगा हैल्थ कैंप के जरिए सत्तर हजार लोगों को लाभान्वित करवाने सहित विभिन्न समाजों के देवी-देवताओं के डाक टिकट जारी करवाने आदि को गिनवा रहे हैं। यहां यह बताना प्रासंगिक ही होगा कि आजादी के बाद सचिन के रूप में अजमेर को पहली बार केन्द्रीय मंत्रीमंडल में प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला था।
सचिन के सेलिब्रिटी होने की वजह से आम जनता के बीच सहज सुलभता न होना उनका नकारात्मक पहलू माना जाता है तो कांग्रेस विरोधी लहर में भी सचिन की उपलब्धियां उन्हें मैदान में मजबूती प्रदान कर रही है। बात अगर संगठन की करें तो हालत कुछ अच्छी नहीं है, मगर चूंकि सचिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं, इस कारण दूसरे दर्जे के नेता एकजुट हो गए हैं। इसके अतिरिक्त आगामी नगर निगम चुनाव के मद्देनजर भी छोटे नेता अपनी परफोरमेंस दिखाने को मजबूर हैं। हां, अलबत्ता कांग्रेस में अपना भविष्य नहीं देख कर अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी व पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां ने जरूर किनारा कर जाट का साथ दे दिया है। इसी प्रकार नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन शहाणी ने लैंड फोर लैंड मामले में उलझने की वजह से सरकार की तलवार लटकती देख कांग्रेस को तिलांजली दे दी है। बात अगर साधन संपन्नता की करें तो दोनों प्रत्याशी काफी तगड़े हैं। धरातल पर हो रही चुनाव प्रचार की गतिविधियां भी इसका साफ इशारा कर रही हैं।
जातीय समीकरण
जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है कांग्रेस को सबसे बड़ा संबल है साढ़े तीन-चार लाख अनुसूचित जाति वोटों का। दूसरा बड़ा वोट बैंक है मुसलमानों का, जो कि करीब डेढ़ लाख हैं। इसके अतिरिक्त सचिन के स्वजातीय गुर्जर वोट करीब डेढ़-पौने दो लाख हैं। दूसरी ओर भाजपा की सबसे बड़ी ताकत हैं प्रो. जाट के स्वजातीय दो-ढ़ाई लाख वोट। इसके अतिरिक्त तकरीबन दो लाख वैश्य व एक लाख सिंधी परंपरागत रूप से भाजपा के साथ माने जाते हैं। बात अगर एक लाख राजपूत व सवा लाख रावतों की करें तो हैं तो वे परंपरागत रूप से भाजपा के साथ, मगर इस बार समीकरण कुछ गड़बड़ा सकता है। इसकी एक वजह है जैसलमेर-बाड़मेर में दिग्गज राजपूत नेता पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की बगावत और दूसरा  स्वयं भाजपा प्रत्याशी का जाट होना। केकड़ी इलाके के राजपूत नेता भूपेन्द्र सिंह शक्तावत के कांग्रेस में आ जाने का भी भाजपा को कुछ तो नुकसान होगा ही। इसी प्रकार सचिन ने अपने कुछ प्रयासों से रावतों में भी सेंध मारी है। कयास है कि पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत को टिकट न दिए जाने से रावतों का उत्साह कुछ कम हुआ है। सचिन कुछ सिंधी वोट इस बिना पर हासिल करने की कोशिश में हैं कि उन्होंने विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर में किसी सिंधी को टिकट देने की पैरवी की थी।
जातीय लिहाज से इस चुनाव पर पूर्व कांग्रेस विधायक बाबूलाल सिंगारियां के भाजपा में चले जाने का असर रहेगा। उनकी केकड़ी विधानसभा क्षेत्र के सजातीय व मुसलमानों पर पकड़ है, जिनके दम पर विधानसभा चुनाव में उन्होंने लगभग 17 हजार वोट हासिल किए थे। इसी प्रकार अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी का जाट को समर्थन हासिल होने का भाजपा को फायदा होगा। डेयरी अध्यक्ष होने के कारण उनकी कुछ गुर्जर मतों पर भी पकड़ है, मगर देखना ये होगा कि क्या वे सचिन के मैदान में होते हुए सेंध मार पाते हैं या नहीं। तकरीबन तेईस हजार वोटों से अजमेर दक्षिण की सुरक्षित सीट पर कब्जा बरकरार रखने वाली श्रीमती अनिता भदेल कांग्रेस के वोट बैंक पर सेंध मारने की स्थिति में हैं। मगर सिक्के का दूसरा पहलू ये है कि उनकी जीत में अनुसूचित जातियों से कहीं अधिक सिंधियों की अहम भूमिका रही है। उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी हेमंत भाटी को स्थापित होने से रोकने वाले कांग्रेस के अनुसूचित जाति के कुछ नेताओं का भी साथ मिला था, मगर अब चूंकि सचिन मैदान में हैं, इस कारण उनका भितरघात करना कुछ मुश्किल हो गया है।
मानसिक स्थिति
सचिन भारी मानसिक दबाव में हैं, क्योंकि उन पर प्रदेश कांग्रेस का भार है। जीतने पर प्रदेश कांग्रेस पर पकड़ मजबूत होगी व राहुल गांधी का और विश्वास हासिल होगा। और हारने पर पूरी कांग्रेस हारी हुई मानी जाएगी। हांलाकि बावजूद इसके वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने रहेंगे, क्योंकि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने उन्हें जर्जर हो चुकी कांग्रेस का जीर्णोद्धार करने ही भेजा है। बात अगर प्रो. जाट की करें तो उन पर कोई खास मानसिक दबाव नहीं दिखता, क्योंकि हार जाने पर भी मंत्री पद तो कायम रहेगा ही। इसी वजह से कुछ लोग यह कहने से नहीं चूकते कि जाट की जीतने में रुचि ही नहीं है।  हालांकि इसका दूसरा पहलू ये है कि जीतने पर राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़े जाट नेता के रूप में कदम बढ़ा सकते हैं। इसके अतिरिक्त भाजपा की अकेले अपने दम पर सरकार बनी तो कदाचित मंत्री बनने का भी मौका मिल सकता है।
साइड इफैक्ट
इस चुनाव के परिणाम के अपने साइड इफैक्ट भी होंगे। जाट के जीतने पर मंत्री पद खाली होगा और उस पर अजमेर उत्तर के प्रो. वासुदेव देवनानी को बैठाया जा सकता है। मगर इसके लिए उन पर अन्य विधायकों की तुलना में मतांतर अधिक रखने का दबाव बना हुआ है। अन्य भाजपा विधायकों पर भी इसी प्रकार का दबाव है, जो कि राज्य मंत्री बनने का रास्ता प्रशस्त करेगा।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

खुद के बचाव के लिए लिया देथा ने लिया गूगरवाल का पक्ष?

शहर कांग्रेस कमेटी ने भाजपा प्रत्याशी सांवर लाल जाट के स्वजातीय अधिकारी जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी लालाराम गूगरवाल पर दरगाह इलाके में आरएसएस मानसिकता के कर्मचारी लगाने का आरोप लगा कर उन्हें चुनाव कार्य से मुक्त करने की कांग्रेस की मांग को जिला निर्वाचन अधिकारी भवानी सिंह देथा ने भले ही दमदार तर्क दे कर खारिज कर दिया, लेकिन चुनाव आयोग ने किसी भी संभावित विवाद से बचने के लिए गूगरवाल को हटाना ही बेहतर समझा।
बेशक देथा के तर्क में दम था कि रेंडम सिस्टम के जरिए यह पता ही नहीं लग पाता कि कौन से कर्मचारी की ड्यूटी कहां पर लगी है। कर्मचारी को खुद भी मतदान दल की रवानगी वाले दिन पता चलता है, उसे कौन से स्थान पर जाना है, मगर अजमेर लोकसभा क्षेत्र की केंद्रीय चुनाव पर्यवेक्षक बसु इंगति को कहीं न कहीं गड़बड़ लगी, जिसकी उन्होंने आयोग को रिपोर्ट भेज दी, भले ही मीडिया को शेयर नहीं किया। ऐसा प्रतीत होता है कि देथा ने गूगरवाल के विरुद्ध की गई शिकायत को यह मान कर अपने ऊपर ले लिया कि भला उनकी देखरेख में नीचे गड़बड़ कैसे चल रही है। इस चक्कर में वे गूगरवाल का पक्ष ले बैठे। ऐसे में चुनाव पर्यवेक्षक बसु इंगति ने उनसे सीधा टकराव लेने की बजाय आयोग से दिशा-निर्देश मांग लिए। और आयोग ने सख्ती दिखाते हुए देथा के तर्क को दरकिनार करते हुए राज्य निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव अधिकारी अशोक जैन को निर्देश दे दिए, जिसकी पालना में देथा को गूगरवाल को हटाना पड़ गया। इस पूरे घटनाक्रम में यह स्पष्ट है कि चुनाव पर्यवेक्षक बसु इंगति ने आगे चल कर कोई बड़ा विवाद होने से बचने के लिए रिपोर्ट भेजी होगी। आखिर उन्हें भी तो अपनी खाल बचानी थी। उनकी रिपोर्ट पर हुई कार्यवाही से जहां देथा की किरकिरी हुई है, वहीं एक नजर में इससे कांग्रेस के आरोप की कहीं न कहीं पुष्टि होती है। संभव है उनके पास आरोप संबंधी तथ्य रहे होंगे।

चुनाव आयोग के निर्देश अव्यावहारिक व अस्पष्ट

चुनाव आयोग के निर्देश पर जिला निर्वाचन अधिकारी भवानी सिंह देथा ने यह तो व्यवस्था दे दी कि चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद मतदाता या अभ्यर्थी के अलावा कोई भी राजनीतिक व्यक्ति निर्वाचन क्षेत्र में नहीं रह सकता, मगर यह अस्पष्ट ही है। निर्देश में कहीं भी ये स्पष्ट नहीं है कि राजनीतिक व्यक्ति माने कौन? आयोग किसे राजनीतिक व्यक्ति मान रहा है, राजनीतिक दल के पदाधिकारी सहित सभी जनप्रतिनिधियों को अथवा केवल जनप्रतिनिधि यथा निगम मेयर, नगर परिषद सभापति, जिला प्रमुख, प्रधान, सरपंच, विधायक व सांसद आदि को?
असल में आयोग का यह निर्देश पालना के लिहाज से भी अव्यावहारिक है। एक ओर जहां चुनाव कार्य के लिए बड़े पैमाने पर विभिन्न विभागों के अधिकारियों व कर्मचारियों को लगाया जा चुका है, ऐसे में भला जिले के सभी सामुदायिक केन्द्र, धर्मशाला, गेस्ट हाउस, लॉज, होटल आदि में ठहरने वाले व्यक्तियों की जानकारी तथा बाहर से आने वाले वाहनों पर निगरानी की व्यवस्था करना कैसे संभव हो पााएगा? माना कि जिला निर्वाचन अधिकारी ने निर्देश की पालना करने की बात कही है, मगर प्रतीत यही होता है कि किसी बाहरी राजनीतिक व्यक्ति के यहां होने की जानकारी शिकायत होने पर ही मिल पाएगी। यदि कोई नेता किसी के घर पर है तो उसका पता सरकारी मशीनरी को कैसे मिल पाएगा? निर्देश की अव्यवहारिकता का एक पहलु ये भी है कि क्या कोई राजनेता अपने निर्वाचन क्षेत्र से बाहर अपने निजी काम से भी नहीं रुक पाएगा क्या? और यह भी कैसे सत्यापित हो पाएगा कि वह निजी काम से आया है या फिर कोई राजनीतिक गतिविधि कर रहा है?
निर्देश में यह भी लिखा है कि मतदान से 48 घंटे पूर्व की अवधि में अनेक गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगाया गया है, जिनका उल्लंघन करना दण्डनीय अपराध होगा, मगर यह स्पष्ट नहीं है कि दंड किस प्रकार का होगा।
निर्देश में यह भी लिखा है कि चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद टेलिविजन, रेडियो, ऐसे ही अन्य किसी उपकरण या इलेक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से चुनाव प्रचार करने, एस.एम.एस. या मोबाइल फोन के जरिये चुनाव प्रचार-प्रसार करने पर पाबन्दी रहेगी, मगर यह वाकई संभव हो पाएगा, इसमें संशय ही है। सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक दलों की ओर से टीवी पर जारी हो रहे वोट अपील के विज्ञापन रोके जा सकेंगे, जबकि चुनाव के एकाधिक चरण अभी बाकी हैं? निर्देश में यह स्पष्ट नहीं है कि क्या चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद 16 व 17 तरीख को छपने वाले अखबारों में विज्ञापन प्रतिबंधित रहेंगे?
-तेजवानी गिरधर

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

प्रो. जाट के समधी हैं कांग्रेस से निकाले गए चौधरी

केकड़ी ब्लॉक के पूर्व अध्यक्ष मदनगोपाल चौधरी को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित किए जाने के साथ ही यकायक उनके भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल जाट के समधी बनने की घटना जेहन में उभर आई। तब इस संबंध की चर्चा अखबारों में सुर्खियां पा गई थी। अजमेरनामा में भी खबर भारती न्यूज चैनल के अजमेर ब्यूरो प्रमुख सुरेन्द्र जोशी ने भी इस बाबत लिखा था।
पेश है हूबहू वह रिपोर्ट:-
सियासत में रिश्तों की काफी अहमियत होती है। और यही रिश्ते जब दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं से जुड़ी राजनीतिक पार्टियों के रसूखदार लागों के बीच कायम हों तो न केवल सियासत में हलचल ही मचती है, वरन सियासी हलको में जोड़-बाकी का हिसाब भी लगना शुरू हो जाता है। बुधवार को शहर में दो अलग-अलग धुरियों पर घूमने वाले राजनीति के धुरन्धर जब रिश्तों के बंधन में बंधे तो इलाके के सियासतदानों की धड़कनें तेज हो गईं। मौका था प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेता एवं भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष प्रो. सांवर लाल जाट और इलाके के रसूखदार कांग्रेसी नेता मदन गोपाल चौधरी के बीच परस्पर कायम हुए रिश्ते का। दरअसल प्रोफेसर जाट ने अपनी डाक्टर पुत्री सुमन का रिश्ता मदनगोपाल चौधरी के पुत्र गोविन्द के साथ तय किया है और इसी रिश्ते की पहली रस्म अदा करने के लिये जब वे अपने दोनों भाईयों व अपने रिश्तेदारों के साथ यहां पहुंचे तो इलाके के विधायक डॉ. रघु शर्मा सहित भाजपा व कांग्रेस के सभी स्थानीय नेतागण दलगत राजनीति का भेद भुला कर कार्यक्रम में शरीक हुए। हांलाकि सामाजिक परिवेश में यही वे मौके होते हैं, जिसमे न तो कोई बीजेपी का होता है और न ही कांग्रेस का। न कोई छोटा होता है और न ही कोई बड़ा। मगर बात जब सियासत की हो तो हलचल मचना लाजिमी ही है क्यों कि भले ही प्रो. जाट ने मदन गोपाल चौधरी के साथ बेटी व्यवहार करके अपने रिश्तों की डोर बांध ली हो, मगर बात जब राजनीति की होगी राजनीतिक विचारधारा अपनी परम्परागत धारा में ही बहती नजर आयेगी। हांलाकि ये सब सामाजिक रिश्ते का एक व्यावहारिक पहलू भी है, मगर सियासी हलकों में इसकी फलावट ने सियासतदानों की बैचेनी बढ़ा दी है और वे अपने अपने हिसाब से जोड़-बाकी गुणा-भाग में लग गये हैं। ऐसे में अब ये देखना दिलचस्प होगा कि दो बड़े रसूखदार राजनीतिज्ञों के बीच बंधी रिश्तों की यह डोर भविष्य में किसके लिये फायदेमंद साबित होगी।
जोशी का यह न्यूज आइटम आज यकायक प्रासंगिक हो गया है। प्रो. जाट चुनाव मैदान में हैं और चौधरी कांग्रेस से निष्कासित किए गए हैं। समझा जा सकता है कि दो बड़े रसूखदार राजनीतिज्ञों के बीच बंधी रिश्तों की यह डोर आज प्रो. जाट के लिए फायदेमंद हो गई है। इसी से जुड़ा रोचक तथ्य ये भी है कि पुराने कांग्रेसी दिग्गज अजमेर डेयरी के सदर रामचंद्र चौधरी प्रो. जाट के समर्थन में खड़े हैं और मदन गोपाल चौधरी उनके खासमखास हैं।

सांवरलाल बन सकते हैं प्रो. सांवरलाल जाट की परेशानी

अजमेर संसदीय क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल जाट के लिए नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी सांवरलाल के लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं। असल में ईवीएम मशीन पर प्रो. सांवरलाल जाट का नाम तीसरे स्थान पर है, जबकि ठीक उनके ही नीचे एनसीपी के सांवरलाल का नाम है। ऐसे में यदि मतदाता को कन्फ्यूजन हुआ तो वह गलत जगह बटन दबा सकता है। स्वाभाविक रूप से प्रो. सांवरलाल को भाजपा के नाते वोट देने वाले मतदाताओं की संख्या अधिक होगी और उनमें कुछ ने उनके चक्कर में नीचे लिखे सांवरलाल को वोट डाल दिए तो प्रो. जाट को उतने ही वोटों का नुकसान हो जाएगा।
ज्ञातव्य है ईवीएम मशीन पर अल्फाबेट के आधार पर प्रत्याशियों के नाम लिखे जा रहे हैं। रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों की अल्फाबेट के आधार पर अलग सूूची है, जबकि निर्दलीय प्रत्याशियों की सूची अलग है। यही वजह है कि निर्दलीय अनिता जैन का नाम सातवें नंबर पर है। देखिए ईवीएम मशीन पर इस क्रम में नाम लिखे होंगे:-
Office of The Chief Electoral Officer, Rajasthan
Copy of Expenditure Registers
Parliamentary Constituency : Ajmer (13)
OSN Candidate Name Party
1. Jagdish BSP
2. Sachin Pilot INC
3. Sanwar Lal Jat BJP
4. Sanwar Lal NCP
5. Mukul Mishra ABHM
6. Ramlal AKBAP
7. Anita Jain IND
8. Krishna Kumar Dadhich IND
9. Jagdish Singh Rawat IND
10. Narain Das Sindhi IND
11. Bhanwar Lal Soni IND
12. Surendra Kumar Jain IND

वसुंधरा के झूठे आरोपों से खफा हैं सचिन पायलट

अजमेर संसदीय क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट प्रदेश की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की ओर उन पर गत दिवस अजमेर प्रवास के दौरान लगाए गए आरोपों से खफा हैं। अपनी छोटी-छोटी सभाओं में इसका जिक्र भी कर रहे हैं।
सचिन का कहना है कि वसुंधरा ने न जाने किसी की गलत फीडिंग पर बेबुनियाद आरोप लगाए हैं। वसुंधरा कहती हैं कि वे सेंट्रल यूनिवर्सिटी आरंभ नहीं करवा पाए, जबकि हकीकत ये है कि इस यूनिवर्सिटी को शुरू हुए तीन सेशन हो चुके हैं। देशभर से यहां आ कर पढ़े विद्यार्थी नौकरी भी करने लगे हैं। वसुंधरा को आरोप लगाने से पहले उसकी तथ्यात्मक जांच तो कर लेनी चाहिए थी। इसी प्रकार हवाई अड्डे के बारे में वसुंधरा की ओर से लगाया गया आरोप भी बेबुनियाद है। सचिन कहते हैं कि उन्होंने हवाई अड्डे के निर्माण में आ रही कानूनी व तकनीकी बाधाओं को दूर करवाने के लिए बहुत मशक्कत की है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसका शिलान्यास भी कर चुके हैं। अब जल्द ही यह बन कर तैयार हो जाएगा।
सचिन ने अफसोस जताया कि इस प्रकार के झूठे आरोपों से कोफ्त होती है। अगर अजमेर संसदीय क्षेत्र का मतदाता विकास कार्यों को भूल कर केवल लहर में आ कर वोट डालता है तो भविष्य में कोई भी जनप्रतिनिधि विकास कार्यों में क्यों रुचि लेगा? 

सोमवार, 7 अप्रैल 2014

शाहणी के पास कांग्रेस छोडऩे के अलावा कोई चारा भी न था

नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन शाहनी भगत ने जिन हालात में कांग्रेस पार्टी छोड़ी है, उनमें उनके पास इसके अलावा कोई चारा भी नहीं था। लैंड फॉर लैंड मामले में रिश्वत मांगने के आरोप संबंधी प्रकरण में भाजपा सरकार आने के बाद उन पर शिकंजा कसता जा रहा था। चुनावी माहौल में भाजपा सरकार की उन पर कड़ी नजर थी। अगर वे कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट के लिए काम करते तो गिरफ्तारी तक की नौबत आने वाली थी। बेशक रिश्वत प्रकरण में फंसने के बाद उन्हें न केवल न्यास सदर का पद छोडऩा पड़ा, विधानसभा चुनाव में टिकट से भी वंचित होना पड़ा और संगठन में कोई पद न होने के कारण वे कांग्रेस में उपेक्षित जीवन जी रहे थे, मगर उनके इस्तीफे की असल वजह भाजपा सरकार की पैनी नजर ही थी, जिससे बचना उनकी पहली प्राथमिकता रही। वे पूरी तरह से बच जाएंगे या नहीं, इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, मगर संभव है अब सरकार कुछ नरम पड़ जाए।
बात अगर दूरदृष्टि की करें तो यह ठीक है कि कांग्रेस में उनके लिए अब कुछ शेष रह भी नहीं गया था। रिश्वत प्रकरण में फंसने सहित सचिन पायलट से कतिपय कारणों के चलते हुई नाइत्तफाकी ने उनका विधानसभा टिकट लटका दिया था। यही वजह रही कि सचिन किसी ओर सिंधी को टिकट दिलवाना चाहते थे। यह बात अलग है कि वह तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जिद के चलते पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती टिकट हासिल करने में कामयाब हो गए। ऐसा नहीं है कि सचिन की ओर से उन्हें इस चुनाव में पूछा नहीं गया, मगर खुद उनके साथ दिक्कत ये थी कि अगर वे सचिन के लिए काम करते तो भाजपा सरकार के कोप का भाजन बनना पड़ता। हां, इतना जरूर है कि कांग्रेस में जितने नंबर उनके कम हो चुके थे, उन्हें कम से कम रिश्वत प्रकरण से बरी होने तक फिर हासिल करना संभव नहीं था। ऐसे में बेहतर रास्ता यही बचा कि कांग्रेस से किनारा कर लें, ताकि भाजपा सरकार में फिलहाल कुछ राहत मिल जाए।
भाजपा सरकार ही क्यों, कांग्रेस सरकार के रहते भी उन पर भारी दबाव था। टिकट न मिलने के कारण नाराज थे, मगर गहलोत के दबाव में उन्हें सिंधियों के विपरीत जा कर डॉ. बाहेती के लिए काम करना पड़ा। सच तो ये है कि सिंधी समाज में उनके मुकाबले का एक भी कांग्रेस नेता नहीं था और टिकट की पक्की दावेदारी ही उनके लिए दिक्कत का सबब बन गई। डॉ. बाहेती को टिकट देने के लिए गहलोत ने उन्हें आखिर तक लटकाए रखा।
अब सवाल ये कि वे आगे क्या कर सकते हैं? या तो भाजपा में शामिल हुए बिना डेयरी सदर रामचंद्र चौधरी की तरह भाजपा प्रत्याशी को समर्थन का ऐलान करें या फिर भाजपा में शामिल हो जाएं। भाजपा में शामिल होने पर भी एक पेच है। अगर एक धड़ा उन्हें भाजपा में शामिल करवाता है तो दूसरा यह कर विरोध कर सकता है कि रिश्वत के आरोपी को चुनाव के वक्त कैसे शामिल किया जा सकता है। भाजपा की मतभिन्नता तो फिर भी दूर हो सकती है, मगर कांग्रेस को जरूर भाजपा पर हमला करने का मौका मिल जाएगा। वह यह कह सकती है कि जिस नेता को आरोपी होने के कारण टिकट से वंचित कर दिया गया, उसे ही अपने फायदे के लिए भाजपा शामिल कर रही है।
राजनीतिक लिहाज से भगत से एक बड़ी गलती ये हो गई कि उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पर हमला बोलते हुए इस्तीफा दिया है। वे हृदय परिवर्तन, कांग्रेस से मन भरने अथवा कोई और कारण बता कर भी पार्टी छोड़ सकते थे, मगर उन्होंने तो सीधे सचिन पर ही आरोपों की झड़ी लगा दी। ऐसे में उन्होंने आगे के लिए कांग्रेस में अपने रास्ते बंद कर लिए हैं। इतना ही नहीं सचिन से खुली दुश्मनी भी मोल ले ली है। वह क्या रूप लेगी, यह तो पता नहीं, मगर कांग्रेस प्रवक्ता भूपेन्द्र सिंह राठौड़ के बयान से यह साफ है कि पार्टी का उनके प्रति रवैया क्या रहने वाला है। राठौड़ ने कहा है कि कांग्रेस ने उन्हें नाम व पहचान दी है। विधानसभा का टिकट दिया, नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनाया, मगर न्यास में पहुंचने के बाद वे भ्रष्टाचार में आकंठ डूब गए। भ्रष्टाचार में डूबे लोगों का कांग्रेस पार्टी कभी पक्ष नहीं लेती।
जहां तक भगत के सचिन पर आरोपों का सवाल है, सवाल ये भी उठने लगे हैं कि क्या उन्हें अब जा कर पता लगा है कि सचिन ने जनता की सुनवाई के लिए स्थाई कार्यालय व निवास नहीं बनाया? क्या अब जा कर समझ आई है कि सचिन के कम्पनी मामलात राज्य मंत्री होने के बावजूद अजमेर को एक भी नया उद्योग नहीं मिला है और न ही अजमेर रेलवे स्टेशन का स्तर घोषणा के मुताबिक वल्र्ड क्लास हो पाया है?
अब बात ये कि भगत के इस्तीफे का राजनीति पर असर क्या होगा? बेशक चुनावी माहौल में एक कांग्रेस नेता का प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पर हमला माहौल को कुछ गरम जरूर करेगा, मगर चूंकि सिंधी समाज का एक बड़ा वर्ग पहले ही भाजपा से जुड़ा हुआ है, इस कारण भाजपा को बहुत बड़ा लाभ मिलेगा, इसकी संभावना कम नजर आती है। हां, इतना जरूर है कि उनके पीछे हाथ धो कर पड़े युवा नेता नरेश राघानी, डॉ. लाल थदानी व एडवोकेट अशोक मटाई सरीखों की बाछें जरूर खिल गई होंगी कि उनके रास्ते का एक बड़ा कांटा साफ हो गया।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 5 अप्रैल 2014

चौधरी ने भाजपा ज्वाइन क्यों नहीं की?

अजमेर डेयरी के सदर रामचंद्र चौधरी ने अजमेर संसदीय क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी प्रो. सांवरलाल जाट को खुला समर्थन तो दे दिया, मगर भाजपा में शामिल नहीं हुए। पुराने कांग्रेसी होते हुए भी मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के मंच पर उनके साथ खड़े हो कर फोटो खिंचवाई, मगर अपनी विचारधारा को नहीं त्यागा। सवाल ये उठ रहा है कि आखिर क्या वजह रही कि उन्होंने भाजपा ज्वाइन करना मुनासिब नहीं समझा?
असल में उनकी नाराजगी कांग्रेस से उतनी नहीं, जितनी कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट से है। यही वजह रही कि सचिन का नाम घोषित होने से पहले ही उनके खिलाफ ताल ठोकने का ऐलान करते रहे। मगर जैसे ही भाजपा ने प्रो. जाट को मैदान में उतारा तो यह सोच कर कि उनके भी खड़े होने पर जाटों के वोटों का बंटवारा होगा व प्रो. जाट को नुकसान होगा, जिसका अप्रत्यक्ष रूप से सचिन को लाभ होगा, प्रो. जाट को ही समर्थन देने की घोषणा कर दी। इससे सजातीय को समर्थन देने की मंशा भी पूरी हो गई। इस बात पर जरा यकीन कम होता है कि भाजपा को उनका समर्थन तो मंजूर था, मगर उन्हें पार्टी में शामिल करना नहीं। हालांकि किशनगढ़ के पूर्व विधायक नाथूराम सिनोदिया ने चुटकी ली कि भाजपा ने चतुराई करके उनका साथ तो ले लिया, मगर अपने यहां भर्ती नहीं किया, मगर अनेक अन्य कट्टर कांग्रेसी नेताओं को स्वीकार करने को देखते हुए इसमें तनिक संदेह होता है कि उसने चौधरी से परहेज किया होगा। ऐसा लगता है कि चौधरी को सिर्फ अपनी निजी दुश्मनी से मतलब था और जीवनभर जिस भाजपा को गालियां दीं, उसको आत्मसात करना मंजूर नहीं।  तभी तो श्रीमती वसुंधरा का सान्निध्य मिलने पर भी भाजपा ज्वाइन नहीं की। इतना बड़ा व माकूल मौका उन्होंने यूं ही नहीं गंवाया होगा। हालांकि ऐसा करके उन्होंने वैचारिक रूप से अपने आपको बचा लिया है, मगर यह जरा मुश्किल ही लगता है कि जब तक सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं, उन्हें कांग्रेस में शामिल कर लिया जाएगा।

क्या गुल खिलाएंगे नए जुड़े 79010 मतदाता?

पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में बढ़े 2 लाख 27 हजार 867 मतदाता
अजमेर संसदीय क्षेत्र में आगामी 17 अप्रैल को होने जा रहे मतदान में कुल 16 लाख 83 हजार 260 मतदाता वोट डाल सकेंगे। पिछली बार इनकी संख्या 14 लाख 55 हजार 339 थी। यानि कि इस बार 2 लाख 27 हजार 867 मतदाता बढ़ गए हैं। सनद रहे कि विधानसभा चुनाव-2013 में अजमेर जिले के आठों विधानसभा क्षेत्रों में कुल मतदाताओं की संख्या 16 लाख 4 हजार 196 थी। उस हिसाब से मात्र तीन माह में 79010 मतदाता बढ़े हैं।
इन आंकड़ों को विस्तार से देखें:- 
जिला निर्वाचन विभाग के अनुसार अजमेर संसदीय क्षेत्र के दूदू विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 7 हजार 144, किशनगढ़ में 2 लाख 39 हजार 933, पुष्कर में 2 लाख 3 हजार 626, अजमेर उत्तर में 1 लाख 93 हजार 578 एवं अजमेर दक्षिण में 1 लाख 91 हजार 678 मतदाता अपने मत का प्रयोग करेंगे। इसी तरह नसीराबाद में 1 लाख 95 हजार 289, मसूदा में 2 लाख 32 हजार 95 एवं केकड़ी में 2 लाख 19 हजार 917 मतदाता अपने मत का प्रयोग करेंगे। सर्वाधिक मतदाता किशनगढ़ व सबसे कम मतदाता अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में अजमेर संसदीय क्षेत्र में 14 लाख 55 हजार 339 मतदाता थे। कुल 7 लाख 52 हजार 594 पुरुष व 7 लाख 2 हजार 745 महिला मतदाता थे, इनमें से 2849 मतदाता सर्विस वोटर्स थे। दूदू विधानसभा क्षेत्र में एक लाख 84 हजार 379 मतदाताओं में 96 हजार 193 पुरुष व 88 हजार 186 महिला मतदाता, किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 11 हजार 617  मतदाताओं में से एक लाख 10 हजार 48 पुरुष व एक लाख एक हजार 569 महिला मतदाता, पुष्कर विधानसभा क्षेत्र के एक लाख 69 हजार 831 मतदाताओं में 87 हजार 948 पुरुष व 81 हजार 883 महिला मतदाता, अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र के एक लाख 65 हजार 695 मतदाताओं में 85 हजार 820 पुरुष व 79 हजार 875 महिला मतदाता, अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के एक लाख 63 हजार 116 मतदाताओं में 85 हजार 584 पुरुष व 77 हजार 532 महिला मतदाता, नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र के एक लाख 65 हजार 86 मतदाताओं में 84 हजार 877 पुरुष व 80 हजार 209 महिला मतदाता, मसूदा विधानसभा क्षेत्र के 2 लाख एक हजार 425 मतदाताओं में एक लाख 2 हजार 781 पुरुष व 98 हजार 644 महिला मतदाता हैं और केकड़ी विधानसभा क्षेत्र के एक लाख 94 हजार 190 मतदाताओं में 99 हजार 343 पुरुष व 94 हजार 847 महिला मतदाता थे। यानि कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में सर्वाधिक मतदाता किशनगढ़ व सबसे कम मतदाता अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में थे।
बहरहाल, अब अहम सवाल ये है कि विधानसभा चुनाव के बाद बढ़े मतदाता क्या गुल खिलाएंगेï? विशेष रूप से इस वजह से कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विरोधी लहर के चलते जिले की आठों सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया और भाजपा ने कांग्रेस पर करीब दो लाख वोटों की बढ़त हासिल की थी। हालांकि विधानसभा चुनाव व लोकसभा चुनाव के फैक्टर अलग-अलग होते हैं, लेकिन परिणाम को लहर भी प्रभावित करेगी। अंतर ये रहेगा कि या तो लहर और बढ़ जाएगी या यथावत रहेगी अथवा कुछ कम हो जाएगी। जो भी हो, ये बढ़े हुए मतदाता कांग्रेस के लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं। स्वाभाविक रूप से इसमें अधिसंख्य युवा हैं, जिन पर अन्ना आंदोलन और मोदी लहर का असर होगा।
कांग्रेस को तभी राहत मिल सकती है, जबकि मतदान प्रतिशत गिरे, मगर इसकी संभावना उतनी नहीं है, क्योंकि चुनाव आयोग के निर्देश पर जिला प्रशासन मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए पूरा जोर लगा रहा है। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि जब-जब मतदान प्रतिशत गिरता है, उसका लाभ कांग्रेस को होता है। उसकी वजह यह है कि निचले तबके के लोग तो फिर भी मतदान में रुचि लेते हैं, जबकि उच्च मध्यम वर्ग के मतदाता घरों से निकलते ही नहीं। उन पर गरमी का भी असर पड़ सकता है। मगर चूंकि मोदी लहर चल रही है, इस कारण उच्च मध्यम वर्ग खुल कर भी मतदान कर सकता है। एक अनुमान ये है कि इस बार मोदी लहर कुछ कम हो सकती है। वजह ये बताई जाती है कि कांग्रेस के खिलाफ जो जबरदस्त गुबार था, वह विधानसभा चुनाव में निकल चुका है। हालांकि आरएसएस अब भी उस जोश बनाए रखने में एडी चोटी की जोर लगा रहा है। ज्ञातव्य है कि मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए आरएसएस ने जबरदस्त मुहिम छेड़ रखी है।
-तेजवानी गिरधर

मार्जिन बरकरार रखने की प्रतिस्पद्र्धा रहेगी देवनानी व अनिता में

कथित मोदी लहर के चलते अजमेर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार राज्य के जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट जीतेंगे या नहीं, यह तो बाद में पता लगेगा, मगर अजमेर शहर की दो विधानसभा सीटों अजमेर उत्तर व अजमेर दक्षिण के भाजपा विधायक क्रमश: प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल के बीच इस बात की जरूर प्रतिस्पद्र्धा देखने को मिल रही है कि उन्हें विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मिली बढ़त बरकरार रखा जाए। कहने की जरूरत नहीं है कि ये दोनों विधायक लगातार तीन बार जीते हुए हैं और राज्य मंत्रीमंडल में स्थान पाने को आतुर हैं। स्वाभाविक है कि मंत्री बनने के लिए अन्य पैरामीटर तो काम करेंगे ही, उनके अपने-अपने क्षेत्र में भाजपा की परफोरमेंस भी काउंट की जाएगी।
ज्ञातव्य है कि हाल ही संपन्न विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर में भाजपा के देवनानी ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को 20 हजार 479 मतों से हराया। देवनानी को 68 हजार 461 मत मिले, जबकि डॉ. बाहेती को 47 हजार 982 मत। उधर अजमेर दक्षिण में भाजपा की श्रीमती अनिता भदेल ने इंडियन नेशनल कांग्रेस के हेमन्त भाटी को 23 हजार 158 मतों से हराया। अनिता भदेल को 70 हजार 509 मत मिले, जबकि हेमन्त भाटी को 47 हजार 351 मत। यानि की श्रीमती भदेल का मार्जिन देवनानी से तकरीबन तीन हजार अधिक है।
भजपाई मानते हैं कि कथित मोदी लहर अब भी मौजूद है, मगर राजनीति के जानकार मानते हैं कि विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में प्रभावित करने वाले कारक भिन्न-भिन्न होते हैं, इस कारण यह जरूरी नहीं कि भाजपा की बढ़त इतनी ही कायम रह जाए। उदाहरण के बतौर पिछली बार के विधानसभा चुनाव और बाद में हुए लोकसभा चुनाव को सामने रख कर देखते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर में भाजपा के देवनानी ने कांग्रेस डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को 688 मतों से पराजित किया। देवनानी को 41 हजार 9 सौ 7 व बाहेती को 41 हजार 219 मत मिले। चंद माह बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में यह अंतर बदल गया। सचिन पायलट को 39 हजार 241 और किरण माहेश्वरी को 42 हजार 189 मत मिले। यानि कि भाजपा की बढ़त 2 हजार 948 हो गई। इसी प्रकार अजमेर दक्षिण में भाजपा की श्रीमती अनिता भदेल ने कांग्रेस के डॉ. राजकुमार जयपाल को 19 हजार 306 मतों से पराजित किया। अनिता को 44 हजार 9्र2 व जयपाल को 25 हजार 596 मत मिले। चंद माह बाद ही लोकसभा चुनाव में सचिन को 39 हजार 656 व किरण माहेश्वरी को 37 हजार 499 मत मिले। यानि कि भाजपा भाजपा की 19 हजार 306 मतों की बढ़त तो सिमटी ही, उलटा 2 हजार 157 मतों से मात खानी पड़ी।
इस सिलसिले में एक अहम पहलु पर गौर करें। हाल ही हुए विधानसभा चुनाव में सिंधी-गैर सिंधीवाद चरम पर था क्योंकि कांग्रेस ने अजमेर उत्तर में सिंधी को टिकट नहीं दिया। इस वजह से दोनों सीटों पर अधिसंख्य सिंधी मतदाता भाजपा की झोली में गिर गया। आसन्न लोकसभा चुनाव में यह वाद कितना असर करेगा कुछ नहीं कह सकते, मगर कांग्रेसी सचिन के पक्ष में एक तर्क ये देते हैं कि उन्होंने तो किसी सिंधी को टिकट दिलवाने की भरपूर कोशिश की, इस कारण सिंधियों की नाराजगी कुछ कम हो सकती है। दूसरी ओर भाजपाई कहते हैं कि सिंधियों की नाराजगी कम होने का सवाल ही नहीं  उठता। एक फैक्टर काम कर सकता है। वो यह कि अजमेर दक्षिण में अनुसूचित जाति के जिन नेताओं व पार्षदों ने कांग्रेस के हेमंत भाटी को स्थापित न होने देने के लिए भीतरघात की या सक्रियता नहीं दिखाई, अब वे सीधे सचिन से टकराव मोल नहीं लेना चाहेंगे। इसकी वजह ये है कि सचिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं। वे स्वयं ही निष्क्रिय नेताओं को सबक सिखाने की स्थिति में है। इसके अतिरिक्त जिन पार्षदों को दुबारा टिकट चाहिये या जो नए दावेदार बनने जा रहे हैं, वे पूरी मेहनत करेंगे।
बहरहाल, अब देखना ये होगा कि इन हालात में दोनों भाजपा विधायक मार्जिन बरबरार रखने के लिए क्या करते हैं।
-तेजवानी गिरधर 

गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

सचिन की अजमेर शहर में सक्रियता से भाजपा हैरान

अजमेर संसदीय क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी मौजूदा सांसद, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट की अजमेर शहर में सक्रियता से भाजपा हैरान है। असल में भाजपा यह माने बैठी थी कि स्थानीय स्तर पर कांग्रेसी नेताओं की सचिन के प्रति तनिक नाराजगी का सीधा फायदा उसे मिलेगा, मगर सचिन ने उनकी आशाओं पर पानी फेर दिया है। ज्ञातव्य है कि सचिन ने पिछले दिनों पूर्व उप मंत्री ललित भाटी, पार्षद मोहनलाल शर्मा, पूर्व पार्षद शिवरतन वैष्णव, पूर्व शहर कांग्रेस उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग आदि को मना लिया है। पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल तो पहले ही साथ हो लिए थे। इसके अतिरिक्त सचिन ने अनेक स्थानीय कार्यकर्ताओं से भी सीधा संपर्क साधा है। इससे यह संदेश गया है कि वे अजमेर शहर में विशेष सक्रिय हैं। हालांकि भाजपाई सचिन की इस सक्रियता को इस रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं कि वे तनाव में हैं, इस कारण ग्राउंड लेवल पर जाने को मजबूर हैं, मगर सच्चाई ये है कि इससे कांग्रेसियों में उत्साह है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि सचिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं, इस कारण नाराज नेताओं व कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करने के लिए उन्हें किसी ने पूछने की जरूरत नहीं है। जो कुछ भी हो, सचिन की सक्रियता ने भाजपा को चौकन्ना कर दिया है और वह उसी के अनुरूप रणनीति परिवर्तित कर रही है।
-तेजवानी गिरधर

सिंगारियां के चक्कर में भाजपा के ब्राह्मण वोट न छिटक जाएं

केकड़ी क्षेत्र में भाजपा के कद्दावर राजपूत नेता पूर्व प्रधान भूपेंद्रसिंह शक्तावत के कांग्रेस में शामिल होने के बाद भाजपा ने पलटवार करते हुए पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां को शामिल तो कर लिया है, मगर सवाल ये उठ रहा है कि उनके भाजपा में आने से अनुसूचित जाति के जितने वोटों का भाजपा को फायदा होगा, कहीं उससे अधिक ब्राह्मण वोटों का नुकसान न हो जाए? ज्ञातव्य है कि बाबू लाल सिंगारिया ने कांग्रेस विधायक रहते हुए अजमेर के तत्कालीन एसपी आलोक त्रिपाठी को कलैक्ट्रेट में भरी बैठक के दौरान थप्पड़ मारा था, जिससे पूरे प्रदेश के ब्राह्मण उनसे नाराज हो गए थे। यह नाराजगी इतनी थी कि जब भी वे चुनाव में टिकट के लिए सक्रिय होते थे, ब्राह्मण समुदाय उनका विरोध करने लगता था। एक मात्र यही वजह रही कि 2003 में वे भाजपा प्रत्याशी गोपाल लाल धोबी से चुनाव हार गए। दिलचस्प बात ये है कि ब्राह्मण एसपी को थप्पड़ मारने वाले इस पूर्व विधायक को एक ब्राह्मण विधायक केकड़ी के ही शत्रुघ्न गौतम ने अहम भूमिका निभाई है। ऐसे में गौतम अपने समाज को क्या जवाब देंगेïïï?
आपको जानकारी होगी कि 1998 की कांग्रेस लहर में सिंगारिया ने केकड़ी सुरक्षित सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। इसके बाद 2003 में वे भाजपा प्रत्याशी गोपाल लाल धोबी से चुनाव हारे। जब 2008 में केकड़ी सीट सामान्य हो गई तो कांग्रेस ने रघु शर्मा को टिकट दे दिया। इस पर सिंगारिया बागी बन कर खड़े हो गए, मगर शर्मा फिर भी जीत गए। उस चुनाव में सिंगारियां ने 22 हजार 123 वोट हासिल कर यह जता दिया कि उनकी इलाके में व्यक्तिगत पकड़ है। हाल ही संपन्न विधानसभा चुनाव में रघु शर्मा फिर से मैदान में आए तो सिंगारिया एनसीपी के टिकट पर खड़े हो गए और 17 हजार 500 मत हासिल शर्मा की हार का कारण प्रमुख कारण बने। विश्लेषण से पता लगता है कि उनकी न केवल सजातीय वोटों पर पकड़ है, अपितु सरवाड़ व केकड़ी में हुए सांप्रदायिक तनाव के कारण नाराज अल्पसंख्यकों में भी उन्होंने सेंध मार दी थी। हाल ही जब कांग्रेस ने भाजपा के भूपेन्द्र सिंह शक्तावत को तोड़ा और इससे भाजपा को राजपूत वोटों का नुकसान होता दिखाई दिया तो उसने सिंगारियां को अपने पक्ष में करके कांग्रेस को झटका दिया है।
सिंगारियां को पिछली बार लोकसभा चुनाव में तो बागी होने के बाद भी सचिन अपने लिए पार्टी में वापस ले आए, हालांकि पूर्व विधायक रघु शर्मा इससे सहमत नहीं थे। इस बार उनको कांग्रेस में वापस लिए जाने की संभावना नहीं थी, समझा जाता है कि इसी कारण उन्होंने भाजपा में जाना बेहतर समझा। कुछ लोग ये कयास लगा रहे हैं कि वे अशोक गहलोत के करीब हैं और कदाचित गहलोत की सचिन से नाइत्तफाकी के चलते उनके ही इशारे पर भाजपा में चले गए हैं। अब देखना ये भी होगा कि क्या उनके कहने पर उनके समर्थक भाजपा का उतना ही साथ देते हैं, जितना कि उनके स्वयं खड़े होने पर देते हैं। आशंका ये भी है कि कहीं सिंगारियां से नाराज ब्राह्मण भाजपा को नुकसान न पहुंचा दें।
-तेजवानी गिरधर