गुरुवार, 2 जनवरी 2014

भगत के खिलाफ मामला बेहद कमजोर?

भूमि के बदले भूमि आवंटन के लिए रिश्वत के तौर पर प्लॉट और रुपए की डिमांड करने के मामले में एक सवाल हर एक के जेहन में है कि आखिर इस मामले में न्यास के पूर्व सदर नरेन शहाणी भगत का क्या होगा? विशेष रूप से सरकार अब भाजपा की है तो क्या उनके प्रति कड़ा रुख अपनाया जाएगा? विधानसभा चुनाव में महज इसी वजह से टिकट से हाथ धो बैठे, मगर अब क्या उनका राजनीतिक कैरियर भी चौपट हो जाएगा? असल में यह चर्चा इस कारण उठी है क्योंकि हाल ही मीडिया में यह खबर सुर्खियों में थी कि एक ओर जहां रिटायर्ड आईएएस अधिकारी खन्ना की ओर से की गई जांच में पूर्व अध्यक्ष नरेन शाहनी पर जहां कोई आरोप नहीं बन रहा, वहीं एंटी करप्शन ब्यूरो ने उन्हें रिश्वत मांगने का दोषी ठहराया है।
इस सिलसिले में जानकारी ये भी आ रही है कि भगत के खिलाफ बना मामला बेहद कमजोर है। इसकी वजह ये बताई जा रही है कि जिस दिन की वॉइस रिकॉर्डिंग एसीबी के पास है, उस दिन भगत जयपुर में कांग्रेस स्थापना दिवस के कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे। अजमेर से जयपुर जाते वक्त उनके साथ शहर कांग्रेस के दो बड़े दिग्गज भी थे। अगर यह वाकई सच है तो भगत के खिलाफ बनाया गया मामला या तो जयपुर मुख्यालय में ही दफ्तर दाखिल हो जाएगा, या फिर कोर्ट में पहुंचा तो पहली सुनवाई में ही फुस्स हो जाएगा। इसके अतिरिक्त बताया ये भी जा रहा है कि सबूत के तौर रखी गई ऑडियो रिकार्डिंग में भगत की आवाज साफ नहीं है, यानि कि फोरेंसिक लैब में वह रिजेक्ट भी हो सकती है।
सच क्या है ये तो वक्त ही बताएगा, मगर फिलवक्त खबर यही है कि भगत इस मामले में ज्यादा लपेटे में नहीं आएंगे। उन्हें जो नुकसान होना था, वह तो हो ही चुका, विधानसभा टिकट कटने की वजह से। बताया जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी असलियत जानते थे, मगर एक तो चुनाव के दौरान भगत को क्लीन चिट देने पर किसी भी प्रकार का आरोप झेलने को तैयार नहीं थे, दूसरा ये कि अगर भगत को पाक साफ घोषित कर दिया जाता तो वे टिकट के प्रबलतम दावेदार हो जाते, जबकि वे अपने चहेते डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को टिकट देने का मानस बना चुके थे। उन्होंने मेहरबानी सिर्फ इतनी ही कि उनके खिलाफ सख्त रुख नहीं अपनाया। बताते तो ये तक हैं कि उनको साफ इशारा था कि उनके लिए बेहतर यही रहेगा कि डॉ. बाहेती के साथ ईमानदारी से काम करें, वरना डॉ. बाहेती के हारने पर और साथ ही सरकार रिपीट होने पर उनका हश्र कुछ अच्छा नहीं होगा। लिहाजा भगत ने पूरी ईमानदारी के साथ काम किया। अब स्थिति ये है कि भगत के साथ लगने पर भी बाहेती हार गए और वह भी बुरी तरह। यानि की लहर इतनी तेज थी कि भगत भी हथेली नहीं लगा पाए। उधर सरकार भी नहीं आई। रहा संगठन का सवाल तो हालत ये है कि कांग्रेस की बुरी तरह से हार के लिए किसी को भी सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं माना जा रहा है। ऐसे में जाहिर है भगत को कम से कम शक की नजर से तो नहीं देखा जाएगा।