गुरुवार, 24 मई 2012

केजरीवाल से भी एक कदम आगे निकल गई कीर्ति पाठक

ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की चादर के दौरान प्रशासन व पुलिस की लापवाही से हुई स्थानीय जनप्रतिधियों के साथ हुई बदसलूकी के बाद उनके गुस्सा होने पर भले ही जिला कलेक्टर मंजू राजपाल को बुरा न लगा हो, मगर टीम अन्ना की अजमेर की नेता कीर्ति पाठक को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी सारी भड़ास फेसबुक पर ही निकाल दी। फेसबुक से उनके कमेंट को हूबहू कापी कर यहां प्रस्तुत है। जरा देखिए उनका मिजाज सातवें आसमान पर कैसे पहुंच गया? साफ नजर आ जाएगा कि या तो उनके अंदर टीम अन्ना के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल की आत्मा आ गई है या फिर वे उनसे भी एक कदम आगे निकल रही हैं:-
ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स का समय आता है तो प्रशासन के सर मानो आफत आ जाती है......
जायरीन को सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ साथ उन्हें स्थानीय नेताओं की केन्द्रीय नेताओं की जी हुजूरी को भी भुगतना पड़ता है। जनता के नुमाइंदे जनता को हो रही परेशानी की ओर ध्यान न देते हुए अपनी अपनी रोटियां सेकने में लग जाते हैं.....
अब प्रोटोकोल ने 6 वाहनों की इजाजत दी थी, आप यदि सातवें में थे, तो प्रशासन इस गलती के लिए जिम्मेदार कैसे???
भाई उस गलत वाहन का पता लगाइए और उस में सवार व्यक्तियों पर अपना गुस्सा निकालिए, उन्होंने आप की जगह हड़पी है और आगे भी ऐसा कर सकते हैं.......अभी से सावधान हो जाइए .......अपनी ड्यूटी कर रहे अधिकारियों पे हावी क्यों होते हैं???
समाचार पत्र की एक लाइन है-जिला प्रशासन को जनप्रतिनिधियों का कोप भजन बनना पड़ा........
भाई जनप्रतिनिधियों की बात तो समझ में आती है, परन्तु आपे से बाहर तो राज्यसभा मेम्बर हुईं ......वे कौन सी जनप्रतिनिधि हैं????
हम जनता ने तो उन्हें निर्वाचित नहीं किया ओर न ही उन्होंने कहीं भी ऐसा काम किया है कि वे जनप्रतिनिधि होने का दावा कर सकें।
आज स्थानीय नेताओं ने एएसपी राम मूर्ति जोशी और एसएचओ के खिलाफ कार्यवाही करने कि मांग की है.....
जनता पूछती है कि किस आधार पर???
क्या अपनी ड्यूटी को निष्पक्ष रूप से सम्पादित करना गलत है???
क्या जनसेवकों का काम सिर्फ नेताओं को सुरक्षा प्रदान करना और उन की जीहुजूरी करना रह गया है???
राज्य सभा मेम्बर कलेक्टर साहिबा से बेहद गलत ढंग से पेश आयीं, जो की एक जनसेवक का अपमान है.....अगर वे सोचती हैं की किसी का अपमान कर के वे ऊंची सिद्ध हो जायेंगी तो उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि जनता अब सब नेताओं की हरकतों पर गौर कर रही है.....जनप्रतिनिधि तो वे हैं नहीं....अपने आप को इस प्रकार से पेश करना अब नजरों में आ चुका है...... प्रभा जी किस प्रकार कि कार्यवाही की मांग कर रही हैं???
स्थानान्तरण????
बस इस से ज्यादा बस कहां है नेताओं का......पैसा ले कर स्थानान्तरण करवाते हैं, नाजायज मांगें पूरी न होने पर स्थानान्तरण करवाते हैं......बस एक ही हथियार का डर दिखाते हैं.....इस से ज्यादा कुछ कर पाने दम नहीं है नेताओं में.......जब अजमेर की शक्ल बदलने का काम हो तो गलत, स्वार्थी लोगों की तरफदारी कर अजमेर का चेहरा बिगाडऩे में जरूर आगे रहते हैं स्थानीय नेता परन्तु अजमेर की शक्ल संवारने का बीड़ा उठाने से कतराते हैं.........इच्छाशक्ति ही नहीं है सार्थक कार्य करने की.......
नसीम अख्तर जी ने कहा है कि 27 तारीख को प्रधान मंत्री की चादर प्रशासन अपने स्तर पर चढ़ा ले ......स्थानीय प्रशासन से अपील है कि वे जनता के कुछ लोगों को आगे आने को कहें और उनके द्वारा चादर चढ़वा दें...... जनता अपने प्रधानमंत्री की चादर, बिना प्रशासन और जनता को कष्ट दिए, ये रस्म भी पूरी कर देगी........ अब जिला प्रशासन से उम्मीद भी की जाती है कि वे एक रिपोर्ट तैयार कर के अपने आप को वीआईपी लोग समझने वाले लोगों को, उर्स में अतिरिक्त बोझ कह कर, जनता की ओर से न आने देने की अनुशंसा करे ........
यदि प्रशासन चाहेगा तो इंडिया अगेंस्ट करप्शन एक हस्ताक्षर अभियान चला कर इस की पुष्टि करा कर आप के हाथ में यह सौंप सकता है........जनसेवक जनता की सुविधा का ध्यान रहेंगे या अपने आप को तुर्रम खान समझने वाले नेताओं की सेवा करेंगे......अब समय आ गया है जन सेवकों को भी अपनी श्चह्म्द्बशह्म्द्बह्लद्बद्गह्य ह्यद्गह्ल करने का........
वे जनता का काम करना चाहते हैं या नेताओं का......अब स्थानांतरण के खौफ से निकलिए और जनता का काम कीजिये...........जनता हर अनुचित दबाव पर आप के साथ खड़ी होगी........
बोलिए, अब क्या कहते हैं?
लगता है कि न कि कीर्ति पाठक में भी अरविंद केजरीवाल की छाया आ गई है। वे सांसदों को चोर-हत्यारा कहते हैं तो कीर्ति प्रभा ठाकुर के बारे में कह रही हैं कि वे कौन सी जनप्रतिनिधि हैं???? हम जनता ने तो उन्हें निर्वाचित नहीं किया और न ही उन्होंने कहीं भी ऐसा काम किया है कि वे जनप्रतिनिधि होने का दावा कर सकें।
केजरीवाल भले ही सांसदों को कुछ भी कह रहे हों, मगर कम से कम उनके सांसद होने अथवा उनके जनप्रतिनिधि होने से तो इंकार नहीं करते, मगर कीर्ति पाठक तो उनसे भी एक कदम आगे निकल गईं। वे तो प्रभा ठाकुर को जनप्रतिनिधि होने से ही इंकार कर रही हैं। कैसी विडंबना है?
कीर्ति पाठक ने सवाल किया है कि अब प्रोटोकोल ने 6 वाहनों की इजाजत दी थी, आप यदि सातवें में थे, तो प्रशासन इस गलती के लिए जिम्मेदार कैसे??? भाई उस गलत वाहन का पता लगाइए और उस में सवार व्यक्तियों पर अपना गुस्सा निकालिए, उन्होंने आप की जगह हड़पी है और आगे भी ऐसा कर सकते हैं.......अभी से सावधान हो जाइए .......अपनी ड्यूटी कर रहे अधिकारियों पे हावी क्यों होते हैं???
है न बिलकुल बेहूदा तर्क। सातवां वाहन किस का घुस गया, ये पता करना अजमेर के जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी थी या फिर इसके लिए पुलिस दोषी थी, जिसे पता ही नहीं लगा कि सातवां वाहन कारकेड में किसका और कैसे घुस गया? अर्थात वह तो केवल गाडियों की ही गिनती कर रही थी। उसे इस बात से कोई लेना-देना नहीं था कि छह वाहनों में किन-किन का वाहन होना चाहिए? साफ है कि यह सुरक्षा की एक बड़ी चूक थी, न कि ड्यूटी की मुस्तैदी। यह कैसी मुस्तैदी कि उन्हें पता ही नहीं कि सातवां वाहन पहले छह वाहनों में कैसे शामिल हो गया?
केजरीवाल की तरह अराजकतापूर्ण रवैया देखिए कि कीर्ति पाठक किस हद तक चली गई हैं, यह कहते हुए कि जनता अपने प्रधानमंत्री की चादर, बिना प्रशासन और जनता को कष्ट दिए, ये रस्म भी पूरी कर देगी........।
भई वाह, यानि कि टीम अन्ना सिस्टम को दुरुस्त करने के नाम पर सिस्टम को ही अपने हाथ में लेना चाहती है। यदि यह ठीक है और देश इससे सुरक्षित और विकसित होता है, जरूर सौंप दीजिए इन लोगों के हाथ में देश की लगाम।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com