शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

न्यास चेयरमेन के पैनल में है के. सी. चौधरी व भाटी का नाम



हालांकि अजमेर नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी करने वाले नेता अब थक गए हैं और उन्हें उम्मीद कम ही है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार के बाकी बचे कार्यकाल के लिए न्यास अध्यक्ष की नियुक्ति करेंगे, मगर राजनीतिक गलियारों में यकायक दो नए नाम चर्चा में आ गए हैं। ये नाम हैं पूर्व विधायक डॉ. के. सी. चौधरी व पूर्व उपमंत्री ललित भाटी के। बताया जा रहा है कि सरकार ने काफी जद्दोजहद के बाद इन दो नाम का पैनल बनाया है और उस पर विचार कर अपनी राय देने के लिए अजमेर के सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट को भेज दिया है। सरकार चाहती है कि पायलट की सहमति से ही अध्यक्ष बनाया जाए, ताकि कोई विवाद हो तो वे ही उससे निपटें। वैसे भी पायलट का हाईकमान में इतना दखल है कि उनको नजरअंदाज कर किसी को अध्यक्ष नहीं बनाया जा सकता।
जैसे ये दोनों नाम सामने आए हैं, राजनीतिक विश्लेषक माथपच्ची करने में जुट गए हैं कि आखिर इन दोनों के नाम कैसे उभरे और इन दोनों में से कौन नंबर वन हो सकता है। विश्लेषकों का मानना है कि कभी कांग्रेस के लिए पक्की रही सीट अजमेर दक्षिण (जो पहले अजमेर पूर्व थी) को फिर कब्जे में लेने के लिए वह उस कोली बहुल इलाके के प्रमुख व सर्वसम्मत नेता पूर्व उप मंत्री ललित भाटी को मजबूत करना चाहती है। वह जानती है कि जब तक भाटी को मजबूत नहीं किया जाता, वहां के कोली वोटों पर फिर कब्जा नहीं किया जा सकता। वर्तमान में भाजपा विधायक श्रीमती अनीता भदेल की वजह से कोली वोटों पर कांग्रेस की पहले जैसी पकड़ नहीं रही है। और जब श्रीमती भदेल के सामने कोई कोली नेता खड़ा नहीं किया जाता, उसका अधिकांश हिस्सा भाजपा की ओर झुक जाता है। यह एक सच्चाई है कि कोली वोटों की अहमियत को समझते हुए ही भाजपा ने मेयर पद के लिए कोली नेता डॉ. प्रियशील हाड़ा पर दाव खेला था, मगर वह कामयाब इस कारण नहीं हो पाया क्योंकि अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल अन्य जातियां लामबंद हो गईं थीं। दूसरा बताया ये जाता है कि श्रीमती भदेल नहीं चाहती थीं कि उनके रहते कोई दूसरा भाजपा नेता उनके समाज में खड़ा हो। मेयर का चुनाव तो पूरे शहर का था, मगर यदि अजमेर दक्षिण की बात करें तो वहां कोली वोटों का ही वर्चस्व है। इस लिहाज से कांग्रेस की सोच ठीक ही प्रतीत होती है, मगर भाटी के खिलाफ सबसे बड़ा रोड़ा ये आ रहा है कि अन्य जाति वर्ग उनकी नियुक्ति को उचित नहीं मानते। उनका तर्क ये है कि पहले से अजमेर शहर की एक सीट विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इसके अतिरिक्त मेयर भी अनुसूचित जाति से है। ऐसे में शहर की एक और महत्वपूर्ण सीट भी अनुसूचित जाति के नेता को देना अन्य जातियों के साथ अन्याय होगा।
जहां तक ब्यावर के पूर्व विधायक डॉ. चौधरी के नाम का सवाल है, यह वैश्य समुदाय को खुश करने के लिए सामने आया है। असल में माना ये जा रहा था कि महेन्द्र सिंह रलावता को शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के बाद पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट से वंचित रहे सिंधी समाज के नेता नरेन शहाणी भगत ही प्रबल दावेदार रह गए हैं। मगर इसमें वैश्य समुदाय ने लंगी मारने की कोशिश शुरू कर दी। उनका तर्क ये है कि अभी सिंधी समुदाय को खुश करने के लिए भले ही किसी सिंधी नेता को अध्यक्ष बना दिया जाए, मगर विधानसभा चुनाव में फिर किसी सिंधी को ही टिकट दिए जाने की बात सामने आएगी। वैश्य वर्ग समझ रहा है कि पिछले चुनाव में वैश्य समुदाय के एकजुट होने और भाजपा के परंपरागत वोटों में सेंध मारने के बाद भी उनके प्रत्याशी डॉ. श्रीगोपाल बाहेती हार गए, इस कारण अगली बार कांग्रेस सिंधी समाज की दावेदारी को काटने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी। इसी कारण उसने दबाव बनाया कि न्यास अध्यक्ष व विधायक की टिकट, दोनों में एक उसके लिए सुनिश्चित की जाए। अगर अभी किसी सिंधी को अध्यक्ष बनाया जाता है तो विधानसभा की टिकट उनके लिए तय कर दी जाए। और अगर अभी वैश्य को मौका दिया जाता है तो वह विधानसभा चुनाव की दावेदारी छोड़ देगा। कांग्रेस हाईकमान भी समझ रहा है कि विधानसभा चुनाव में दुबारा सिंधी समाज को नाराज नहीं किया जा सकता, इस कारण न्यास अध्यक्ष की कुर्सी किसी वैश्य नेता को देने का मानस बना रही है। वैश्य वर्ग से डॉ. श्रीगोपाल बाहेती प्रबल दावेदार हैं, मगर पायलट से नाइत्तफाकी की वजह से उनका नंबर आता दिखाई नहीं देता। पूर्व में मुकेश पोखरणा का नाम भी सामने आया था, लेकिन साथ ही कालीचरण खंडेलवाल की पायलट से नजदीकी के कारण उनका नाम भी लिया जाने लगा। इसी प्रकार किन्हीं गोपी चंद लढ़ा का नाम भी चर्चा में आया बताया। इन सबके साथ दिक्कत ये है कि ये सभी राजनीति में शून्य हैं। इन सबमें पूर्व विधायक डॉ. चौधरी को ही ज्यादा उपयुक्त माना जा रहा है। वे प्रदेश कांगेस के कोषाध्यक्ष भी रह चुके हैं। अर्थात मनी मैनेजमेंट में माहिर हैं। हालांकि उनके खिलाफ एक सबसे बड़ा तर्क ये दिया जा सकता है कि वे मूलत: किशनगढ़ और बाद में ब्यावर के रहे हैं। मगर साथ ही दूसरा पहलु ये है कि कांग्रेस ने नानकराम जगतराय के चुनाव के अतिरिक्त सचिन पायलट के चुनाव में उनका उपयोग अजमेर में करके सफलता हासिल की है, अत: उन्हें अजमेर से बाहर का नहीं माना जा सकता।
जहां तक डॉ. चौधरी व भाटी में से किसी एक के नाम पर सहमति बनाने का सवाल है, जाहिर तौर पर वैश्य वर्ग के नाते उनका नाम ही तय हो सकता है। वे पायलट के काफी करीब भी हैं। भाटी के मुकाबले तो निश्चित रूप से नजदीक हैं ही। देखते हैं दोनों में से किस पर पायलट हाथ रखते हैं। यूं दावेदारों में नरेन शहानी के अतिरिक्त पिछले दिनों पूर्व सूचना आयुक्त एम. डी. कोरानी के पुत्र शशांक कोरानी का नाम भी है। वैश्य वर्ग से वरिष्ठ कांग्रेसी प्रकाश गदिया और डॉ. सुरेश गर्ग भी पूरी ताकत लगाए हुए हैं। देखते हैं क्या होता है?