मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

समीकरण गड़बड़ाने को किया यूसुफ गड़बड़ ने दावा

मुस्लिम वक्फ बोर्ड के सदर के लिए आगामी 28 दिसम्बर को होने जा रहे चुनाव की रंगत परवान पर है। यूं तो इस पद के लिए सेवानिवृत्त आईजीपी लियाकत अली ने खम ठोक रखा है और विधायक जाकिर हुसैन भी एडी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, मगर यूसुफ गड़बड़ ने भी दावा करके चुनावी समीकरणों को गड़बड़ा दिया है। असल में गड़बड़ उनका सरनेम नहीं है, बल्कि लोगों ने जबरन उनके नाम के साथ यह तखल्लुस जोड़ दिया है। दरगाह इलाके में इस प्रकार के तखल्लुस जोडऩा आम बात है। किसी को कबूतर तो किसी को टेण्या, किसी को डंठल तो किसी को टकला के नाम से जाना जाता है।
खैर, बात चल रही थी, यूसुफ गड़बड़ की। यूं वे पेशे से हैं तो महज रोडवेज के पंप ऑपरेटर, मगर सरवाड़ में स्थित दरगाह ख्वाजा फकरुद्दीन चिश्ती के आरजी मुतवल्ली होने के कारण उनकी माली हालत खासी तगड़ी है। इसको लोग उन पर दरगाह में वित्तीय गड़बड़ के आरोपों से जोड़ कर देखते हैं। यानि चुनाव जीतने के लिए पैसा पानी की तरह बहाने का माद्दा रखते हैं। जहां तक रसूखात का सवाल है, इन दिनों उन्होंने केकड़ी विधायक डॉ. रघु शर्मा व पुष्कर विधायक पति हाजी इंसाफ अली का पल्लू थाम रखा है। कुछ छुटभैये भी उनके साथ हैं। किसी जमाने में जरूर मसूदा के पूर्व विधायक हाजी कयूम खान के खेमे में थे। असल बात तो यह है कि हाजी कयूम खान की बदौलत ही मुतवल्ली और वक्फ बोर्ड सदस्य भी बने, लेकिन आजकल वे अपने आपको कयूम खान से भी बड़ा नेता मानते हैं। विधायक स्तर के नेता को सीढ़ी बना कर इस्तेमाल करने वाला कितना शातिर हो सकता है, इसका आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है। बहरहाल, कयूम खान से नाइत्तफाकी के बाद उन्होंने इंसाफ अली का सहारा ले लिया है।
हालांकि इस पद के दमदार दावेदार लियाकत अली ही माने जा रहे हैं, क्योंकि उन पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का आशीर्वाद है। चुनाव भले ही लोकतांत्रिक प्रणाली से वोटों के जरिए होंगे, मगर माना जाता है कि जिसे गहलोत चाहेंगे, वही काबिज होगा। इसकी वजह ये है कि जिनको भी गहलोत ने वक्फ बोर्ड सदस्य बनाया है, वे भला गहलोत से बाहर कैसे जा सकते हैं। गहलोत जिसे चाहेंगे, उसे ही वोट देने का इशारा कर देंगे। बावजूद इसके यूसुफ गड़बड़ के मैदान में उतर जाने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। देखते हैं वे गड़बड़ करने में कामयाब हो पाते हंै या नहीं?

हॉट सीट है सीएमएचओ की कुर्सी

अजमेर में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी यानि सीएमएचओ की कुर्सी हॉट सीट है। इसकी गर्मी बर्दाश्त करना बेहद कठिन है। तभी तो अब मौजूदा सीएमएचओ डॉ. जवाहर लाल गार्गिया इस कुर्सी को छोडऩा चाहते हैं। जब से इस कुर्सी पर बैठे हैं उनका ब्लड पे्रशर बढ़ गया है। हर वक्त हाईपर टैंशन में रहते हैं। यह सीट कितना करंट मारती है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिलेभर के लोगों के स्वास्थ्य का जिस पर जिम्मा हो, उसी का स्वास्थ्य काबू में नहीं रहता। किसी को हाइपर टैंशन हो जाता है तो किसी का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। तभी तो दो साल में चार सीएमएचओ बदले जा चुके हैं। सबसे ज्यादा तकलीफ पाई डॉ. बी.एल. फानन ने। पहले पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के दौरे में लापरवाही के आरोप में उन्हें एपीओ किया गया। दुबारा फिर लगाए गए तो कांग्रेसियों ने उनका जीना हराम कर दिया। आए दिन उनके चैंबर में हंगामा होता रहा। हॉट सीट की वजह से उनका मिजाज भी इतना हॉट हो गया कि हर किसी को काटने को दौड़ते थे। आखिर उन्हें रुखसत करना पड़ा। पूर्व मंत्री लक्ष्मण सिंह रावत के करीबी डॉ. गार्गिया ने यह सीट हासिल तो कर ली, लेकिन स्वास्थ्य महकमा जिला परिषद के अधीन किए जाने के बाद यह सीट ज्यादा हॉट हो गई, इस कारण उसका करंट झेल नहीं पा रहे।
यूं तो इस सीट का स्वाद चखने को कोई चार डॉक्टर आतुर हैं, मगर मौजूदा डिप्टी सीएमएचओ डॉ. लाल थदानी उसी वक्त दावेदार थे। पूरी सैटिंग हो चुकी थी, मगर उनके आदेश जारी होते-होते रह गए और डॉ. गार्गिया ने बाजी मार ली। इस सीट को लेकर होने वाली राजनीतिक दखलंदाजी से परेशान हो कर उन्होंने अब सीट छोडऩे का मंशा जाहिर कर दी है।
बताते हैं कि यूं तो आरसीएएचओ डॉ. मधु विजयवर्गीय व नागौर सीएमएचओ डॉ. अखिलेश कुमार माथुर भी इस सीट के दावेदार हैं, मगर डॉ. लाल थदानी का पाया सबसे भारी है। यह सर्वविदित ही है कि वे पॉलिटिकल मैनेजमेंट में कितने सिद्धहस्त हैं। तभी तो पिछले कांग्रेस राज में राजस्थान सिंधी अकादमी के अध्यक्ष का पद हासिल करने में कामयाब हो गए। मौजूदा राज में भी उनके मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से तार जुड़े हुए हैं। इसके अतिरिक्त कांग्रेसी नेताओं से अच्छे संबंधों के कारण उन्हें पता है कि सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोगों को कैसे संतुष्ट किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मीडिया फ्रंैडली होने के कारण मीडिया वालों को मैनेज करना भी उन्हें आता है। आज भी हालत ये है कि हैं वे डिप्टी सीएमएचओ, मगर सीएमएचओ से ज्यादा अखबारों में छाये रहते हैं। सोशल एक्टीविस्ट रह चुके हैं, इस कारण महज नौकरी करके संतुष्ट नहीं होते। कुछ न कुछ एडीशनल करते रहते हैं। उनकी मौजूदगी का ही परिणाम है कि आज स्वास्थ्य विभाग की गतिविधियां अखबारों में सुर्खियां पाती हैं। वस्तुत: कुछ न कुछ कर गुजरने की इच्छा के कारण हमेशा छाये रहते हैं। देखना ये है कि कांग्रेस सरकार उन्हें मौका देती है या नहीं।