बुधवार, 23 जनवरी 2013

रुतबा और बढ़ेगा भंवर सिंह पलाड़ा का


भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर राजनाथ सिंह के काबिज होने के साथ ही उसका अजमेर की राजनीति पर भी असर पड़ता साफ दिखाई दे रहा है। अब प्रदेश के साथ शहर का सांगठनिक ढ़ाचा बदलने पर स्थानीय अध्यक्ष पद पर चाहे जो काबिज हो, मगर सबसे ज्यादा अहमियत युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा की होने वाली है। और इसकी वजह है उनकी सिंह से करीबी।
असल में राजनीति के गिने-चुने जानकारों का ही पता है कि पिछली बार विधानसभा चुनाव में पुष्कर सीट का टिकट वे राजनाथ सिंह के सीधे हस्तक्षेप से ही लेकर आए थे। उस वक्त स्थानीय व राज्य स्तर के नेता कत्तई नहीं चाहते थे कि उन्हें टिकट मिल जाए। वजह थी थोड़े से ही समय में उनका राजनीति में दबदबा कायम कर लेना। मगर राजनाथ सिंह से सीधे व करीबी रिश्तों के दम पर वे टिकट ले कर आए। उन्होंने राजनाथ सिंह की एक जनसभा भी करवाई। यह बात दीगर है कि भाजपा के बागी श्रवण सिंह रावत ने समीकरण बिगाड़ दिया, प्रदेश हाईकमान भी कुछ नहीं कर पाया और वे पराजित हो गए। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पंचायत चुनाव में अपनी धर्म पत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा को उतारा व जितवाने के बाद उन्हें जिला प्रमुख की कुर्सी पर काबिज करवाने में भी सफल रहे।
अपनी धर्मपत्नी, जिलाप्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाडा के साथ
ताजा राजनीतिक हालात में चर्चा यही है कि वे पुन: विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने से पहले ही यह माना जाता रहा है कि टिकट लाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी। मगर अब जब कि सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं तो यूं समझिये कि उनका टिकट तो पक्का ही है। पत्नी के जिला प्रमुख होने के कारण अब उनकी पूरे जिले पर भी पकड़ कायम हो चुकी है। संभव है वे लोकसभा चुनाव लडऩे का मानस बनाएं। ऐसे में समझा जा सकता है कि उनको टिकट लेने में अड़चन नहीं आएगी।
-तेजवानी गिरधर

बहुत याद आते हैं ऊर्जा से लबरेज वीर कुमार

अजमेर नगर परिषद के सभापति रहे स्वर्गीय वीर कुमार की पुण्यतिथी पर पूरा अजमेर शहर उन्हें तहेदिल से याद कर रहा है। उनका जांबाजी से चमकता चेहरा और बिंदास व्यक्तित्व आज भी यहां के नागरिकों के जेहन में मौजूद है। पुण्यतिथी के इस मौके पर आइये कुछ जानते हैं उनके बारे में:-
नगर परिषद के सभापति रहे स्वर्गीय श्री वीरकुमार पाल का जन्म 2 अगस्त 1956 को श्री खुशीराम पाल के घर हुआ। उनके पिता रेलवे में नौकरी करते थे। उन्होंने बी.ए. व एल.एल.बी. की डिग्रियां हासिल कीं और पेशे के रूप में वकालत को ही अपनाया। वे छात्र जीवन से ही काफी ऊर्जावान थे और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ कर सक्रिय राजनीति में आ गए। वे भाजपा युवा मोर्चा की जिला इकाई के महामंत्री और बाद में प्रदेश इकाई के भी महामंत्री रहे। वे अजमेर शहर जिला भाजपा के महामंत्री और देहात जिला भाजपा के उपाध्यक्ष भी रहे। उन्होंने कांग्रेसराज में अनेक उग्र आंदोलनों का नेतृत्व किया। अजमेर में वे अपने किस्म के अकेले नेता थे। ओजस्वी और जुझारु व्यक्तित्व के कारण युवा वर्ग उनका दीवाना था। वे 1995 में नगर परिषद के सभापति चुने गए। अजमेर नगर परिषद की ओर से ब्यावर की तरह होली पर बादशाह की सवारी निकालने की परंपरा उन्हीं की देन थी। इसके अतिरिक्त रामलीला, गरबा इत्यादि अनेक सांस्कृतिक आयोजन भी उन्होंने अपने कार्यकाल में शुरू किए। अपने विशिष्ट व्यक्तित्व की बदोलत उन्होंने पूरे राजस्थान में नाम कमाया। उनका निधन 23 जनवरी 2000 को कोटा में हृदयाघात से हुआ। उनकी शवयात्रा में पूरा शहर ही उमड़ पड़ा।
बुजुर्गों का कहना था कि उन्होंने अपने जीवन में इतनी विशाल शवयात्रा कभी नहीं देखी। उनके निधन के साथ ही अजमेर ने एक ऐसा नेता खो दिया, जिससे पूरे शहर को अनेक आशाएं थीं। उनके बिंदास व्यक्तित्व की न केवल भाजपाई बल्कि कांग्रेसी भी तहेदिल से तारीफ किया करते हैं। नगर के विकास में उन्होंने बिना किसी भेदभाव के कांग्रेसी पार्षदों को भी साथ लेकर काम किया। उनके निधन के बाद उन्हीं की परंपरा के सुरेन्द्र सिंह शेखावत ने कुछ समय तक नगर परिषद सभापति का पद संभाला और धर्मेन्द्र गहलोत ने नगर निगम के महापौर के रूप में काम करते हुए उनकी याद को जिंदा बनाए रखा। संयोग से मौजूदा महापौर कमल बाकोलिया भी उनके बेहद करीबियों में रहे हैं। वे उनके कितने करीब रहे, इसका अंदाजा इसी बात से हो सकता है कि उनका मोबाइल नंबर 9829070670 आज भी उनके पास है। मीडिया कर्मियों से भी उनके घनिष्ठ संबंध रहे।
स्वर्गीय वीर कुमार की पुण्यतिथी के मौके पर असली श्रद्धांजलि यही होगी कि हम भी उनकी ही तरह अजमेर की बहबूदी के लिए पूरी ऊर्जा के साथ काम करने को तत्पर रहें।
-तेजवानी गिरधर

दुबारा जांच के लिए क्यों आए पूर्व आईएएस खन्ना?


राज्य सरकार अपना रही है दोहरे मापदंड
खन्ना से मिलते माधवनगर के नागरिक, फोटो भास्कर से साभार
राज्य सरकार किस प्रकार अपनी सुविधा के लिए मनमानी करते हुए दोहरे मापदंड अपनाती है, इसका एक ताजा उदाहरण हाल ही सामने आया है। दीपदर्शन गृह निर्माण सहकारी समिति लिमिटेड का बहुचर्चित प्रकरण तो आपको याद होगा ही। समिति को नगर सुधार न्यास एवं तत्कालीन नगर परिषद व हालिया नगर निगम द्वारा आवासीय कॉलोनी के लिए दो जगह भूमि का आबंटन किया गया था। कतिपय तकनीकी व राजनीतिक विवादों के चलते सरकार ने उसे एक झटके में निरस्त कर दिया। अब मामला न्यायालयों में लम्बित होने है, उसके बावजूद उसकी जांच कराई जा रही है। इसका क्या अर्थ निकाला जाए? क्या राज्य सरकार जांच अधिकारी को न्यायालय से भी बड़ा मान कर चल रही है?
हाल ही 17 जनवरी 2013 को जांच समिति के जाच अधिकारी सेवानिवृत्त आई.ए.एस. एम.के. खन्ना अजमेर आए। उनके आने का अजमेर नगर में ऐसा खौफ रचित किया गया था, जैसे न जाने वे अजमेर में क्या कहर ढ़ाएंगे। सरकार किस प्रकार विरोधाभासी कार्यशैलियां अपनाती है, यह इसी से स्पष्ट हो जाता है कि एक तरफ तो राज्य सरकार प्रशासन शहरों की ओर अभियान चलाकर उन सभी जमीनों का मय सरकारी भूमि के नियम कर रही है, जिन पर व्यक्ति अवैध रूप से काबिज हैं। इसके ठीक विपरीत पराकाष्ठा यह है कि ऐसी भूमियों, जिनका आबंटन नगर सुधार न्यास एवं तत्कालीन नगर परिषद व वर्तमान नगर निगम ने समिति से करोड़ों रुपए की राशि जमा करके भू-उपविभाजन मानचित्र स्वीकृत कर आवंटन किया, उसे निरस्त कर दिया गया। सरकार अपने ही निर्णय को लेकर कितनी सशंकित है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है सरकार ने समिति को लोहागल में आबंटित भूमि 21.01.2011 को ही निरस्त कर कब्जा न्यास हक में ले लिया गया, दूसरी ओर इसकी जांच को जारी रखे हुए है। सवाल ये उठता है कि निरस्तगी के बाद जांच का औचित्य क्या रह गया है? इसी प्रकार सरकार के आदेश पर तत्कालीन नगर परिषद द्वारा वर्ष 2000 में आनासागर सरक्यूलर रोड योजना में समिति को आबंटित भूमि को 17 जून 2011 को निरस्त कर दिया, जबकि उसके जांच अधिकारी अब भी अपनी कार्यवाही जारी रखते हुए अजमेर आकर भय उत्पन्न कर रहे हैं।
प्रशासनिक जांचों की कड़ी में संभवतया यह पहला मौका है, जबकि जिस अधिकारी द्वारा प्रकरण की पूर्व में जांच की गई, उसके फॉलो अप के लिए भी उसी अधिकारी को भेजा जा रहा है। इसके प्रथम दृष्टया दो ही कारण समझ में आ रहे हैं। उसमें एक तो यह कि जिन विभागों को जांच निष्कर्षों की पालना करने हेतु निर्देशित किया गया है, उनसे क्रियान्वित करवाने में राज्य सरकार सक्षम नहीं है। और दूसरा ये कि चूंकि जांच अधिकारी एम.के. खन्ना उप मुख्य सचिव जी.एस संधू के खासमखास हैं, इसलिए उन्हें लाभ पहुंचाने का उदद्ेश्य हो। प्रसंगवश बता दें कि खन्ना द्वारा वर्ष 2011 में भी जब जांच पूर्ण कर ली गई, तब उनको जो देय राशि भेजनी थी, उसके भुगतान का चैक डाक द्वारा नहीं भेजा गया, बल्कि आर.टी.जी.एस के माध्यम से 5 मिनट में खन्ना के खाते में हस्तान्तरित कर दिया गया। जाहिर सी बात है कि आर.टी.जी.एस. के द्वारा राशि खन्ना को दिए जाने के निर्देश संधू द्वारा ही दिए गए थे। साफ झलकता है कि ऐसा खन्ना को उपकृत करने के लिए किया गया। दूसरा उदाहरण सामने है कि 17 जनवरी 2013 को भी फॉलो अप के लिए उन्हें ही भेजकर भत्तों आदि का लाभ पहुंचाया जा रहा है।
अब जरा देखिए सेवानिवृत्त आई.ए.एस. खन्ना द्वारा की गई जांच का नमूना। उन्होंने जांच का आधार नगरीय विकास विभाग के परिपत्र क्रमांक प. 3(15) ना. वि. वि. / ग्रुप-111/83 दिनांक 2.8.1983 को मानते हुए उक्त परिपत्र में उल्लेखित शर्त कि समिति अपने सदस्यों के लिए गृहों का निर्माण करवा कर आबंटित करेगी, जो कि समिति द्वारा नहीं किया गया, ऐसा उल्लेख कर आबंटन निरस्तगी की सिफारिश कर दी। एक आईएएस द्वारा की गई इस प्रकार की सिफारिश से उनकी योग्यता पर ही सवालिया निशान लग जाता है। साथ ही इस बात का इशारा भी मिलता है कि ऐसा राजनीतिक दबाव की वजह से किया गया। सिफारिश में जिस परिपत्र का उल्लेख किया गया, उसकी अवधि 31 दिसम्बर 1984 को ही समाप्त हो गई थी। उक्त परिपत्र में स्पष्ट उल्लेखित है कि उन्हीं बोनाफाइड गृह निर्माण सहकारी समितियों को ही आरक्षित मूल्य पर भूमि आबंटित की जाए, जो कि भवनों का निर्माण 31 दिसम्बर 1984 तक पूर्ण कर लेंगी, जबकि दीप दर्शन गृह निर्माण सहकारी समिति को भूमि का आबंटन ही वर्ष 2000 में नगर परिषद द्वारा किया गया है। इसके आबंटन पत्र की शर्तों में यह स्पष्ट अंकित है कि समिति अपने सदस्यों को भूखंडों का आबंटन अपने नियमानुसार करेगी। जब भूखंडों का आबंटन किया जाना है, तो बने बनाए मकानों का आबंटन समिति कहां से करेगी? साफ है कि जिस परिपत्र की अवधि ही 31 दिसम्बर 1984 को समाप्त हो गई, उसे आधार मानकर अवधि समाप्ति के बाद भी उसे ही लागू कर पक्षपात एवं द्वेषतापूर्ण कार्यवाही कर आबंटन निरस्त कर दिया गया। कोई निष्पक्ष व्यक्ति आसानी से समझ सकता है कि आबंटन के निरस्तीकरण की कार्यवाही ही अवैध है।
समिति की माधव नगर योजना की जिस 100 फीट चौड़ी सड़क को 40 फीट किए जाने का जहां तक प्रश्न है, तत्कालीन अधिशासी अभियन्ता स्वर्गीय जीत सिंह द्वारा नोटशीट पर नियमों का स्पष्ट उल्लेख करते हुए यह अंकित किया गया है कि यदि बाहरी सड़कें (माकड़वाली रोड एवं चौरसियावास रोड) यदि क्रमश: 60 फीट और 40 फीट हों तो आंतरिक सड़क नियमानुसार 30 फीट होनी चाहिए न कि 100 फीट, जबकि नगर परिषद द्वारा 40 फीट की सड़क छोड़ी गई है। नगर परिषद द्वारा भूमि के भू-उपविभाजन का मानचित्र समिति को देकर स्वयं नगर परिषद द्वारा आबंटित सदस्यों के भूखंडों के भवन मानचित्र स्वीकृत किए जाकर कई बार भूखंड हस्तान्तरण हेतु अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं। साथ ही सक्षम न्यायालय द्वारा यह आदेश देकर किसी भी प्रकार की कार्यवाही किए जाने पर स्टे दे रखा है कि प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि भूखंडों का भू-उपविभाजन मानचित्र नगर परिषद द्वारा ही समिति को जारी किया गया है। ऐसे में जांच अधिकारी अजमेर आ कर क्या कर रहे हैं? क्या वे किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत आबंटियों में भय उत्पन्न करना चाहते हैं? या फिर जांच के नाम पर अपने भत्ते पका रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर