रविवार, 20 अप्रैल 2014

कुछ जाट समर्थक भी नहीं चाहते उनकी जीत?

कैसी विडंबना है। समर्थक ही नहीं चाहते कि उनका नेता जीत जाए? जैसे कुछ कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ता जाती नाइत्तफाकी के चलते अजमेर संसदीय क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के हारने की दुआ मांग रहे हैं, वैसे ही सुना है भाजपा प्रत्याशी व राज्य के जलदाय मंत्री प्रो. सांवर लाल जाट के कुछ समर्थक भी चाहते हैं कि वे नहीं जीतें। बताया जाता है कि ये वे शुभचिंतक हैं, जिन्हें प्रो. जाट से कहीं अधिक अपने हित की चिंता है। असल में जिन समर्थकों ने इस उम्मीद में कि जाट के मंत्री बनने के बाद अपना हित साधेंगे, विधानसभा चुनाव में भरपूर सेवा की थी। उन्होंने अपना हित साधा ही नहीं कि इतने में लोकसभा चुनाव आ गए। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने जाट की अनिच्छा के बावजूद उन्हें लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी बना दिया। जाट ने भी पूरी ताकत लगाई, हालांकि कुछ लोगों की मान्यता इससे इतर है। अब हितचिंतक चाहते हैं कि जाट हार जाएं ताकि वे राज्य में ही मंत्री बने रहें और उनके हित सधते रहें। माना कि जीतने के बाद भी वे प्रभावी रहेंगे, मगर एक तो मंत्रालय ही खुद के पास हो तो उपकृत करना आसान होता है, जब कि सांसद बनने के बाद सिफारिश करनी होगी। सिफारिश मानी ही जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में बेहतर यही है कि जाट मंत्री बने रहें। और उसके लिए उनका हारना लाजिमी है।

कुछ कांग्रेसी कर रहे हैं सचिन की हार की दुआ

हालांकि यह शीर्षक पढ़ कर आप चौंक गए होंगे कि भला ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई कांग्रेसी अपने ही प्रदेश अध्यक्ष की हार की दुआ कैसे कर सकता है, मगर सच्चाई यही है। ऐसे अनेक कांग्रेसी हैं, जो कि चुनाव के दौरान तो प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के बुरे न बनने के लिए मुख्य धारा में आने का नाटक कर रहे थे। कई रूठों को सचिन ने राजी भी कर लिया।  बावजूद इसके कई कांग्रेसी ऐसे हैं, जिन्होंने दिखाने के लिए तो पार्टी का काम किया, मगर मन ही मन दुआ कर रहे हैं कि सचिन हार जाएं तो अच्छा रहे। उन्हें चौराहों पर हार का गणित फलाते हुए देखा जा सकता है।
असल में ये कांग्रेसी जानते हैं कि उनकी करतूतों के चलते आगे उनको संगठन में कोई स्थान मिलने वाला नहीं है, क्योंकि वे सचिन की निगाह में आ चुके हैं और प्रदेश अध्यक्ष के नाते सारे अधिकार उनके पास सुरक्षित हैं। वे दुआ कर रहे हैं कि सचिन हार जाएं ताकि प्रदेश में सचिन विरोधी लॉबी उन्हें खराब परफोरमेंस, विशेष रूप से खुद ही चुनाव हार जाने के नाम पर पद से हटाने के लिए हाईकमान पर दबाव बना सके। वे उम्मीद कर रहे हैं कि जब सचिन को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया जाएगा तो दूसरे किसी अध्यक्ष से लिंक बैठा कर फिर पद हासिल कर लेंगे।
वस्तुत: कांग्रेस में यह विसंगति इसलिए आई है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में जिले की आठों सीटें हार जाने के बाद संगठन को दुरुस्त करने का वक्त ही नहीं मिला। कुछ वक्त मिला तो उन्होंने पूरे ढ़ांचे को छेडऩे की बजाय उसी से काम लेने की कोशिश की। उन्हें डर था कि अगर संगठन में भारी फेरबदल किया तो लोकसभा चुनाव में हार की एक प्रमुख वजह यही मानी जा सकती है। इसी कारण पुराने सेटअप से ही काम लिया। जाहिर सी बात है कि पुराने सेटअप में प्रदेश के अनेक दिग्गजों के शागिर्द जमे बैठे थे, जिनकी रुचि नहीं थी कि सचिन को कामयाबी हासिल हो।
बहरहाल, सचिन से नाइत्तफाकी रखने वाले भले ही चुप बैठे हैं, मगर वे चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहे हैं। वे इस पर भी निगाह रखे हैं कि हार के बाद सचिन कितने कमजोर होते हैं, ताकि उन्हें घुसपैठ करने का मौका मिल जाए। दूसरी ओर सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार इस बात की संभावना कम ही है कि हाईकमान कमजोर परफोरमेंस के नाम पर उन्हें पद से हटाएगा। हाईकमान खुद भी जानता है कि जर्जर हो चुके संगठन से यकायक अच्छे परिणाम नहीं लाए जा सकते। कदाचित उन्हें जयपुर भेजा ही इस शर्त पर गया था कि वे जितनी सीटें ला सकते हैं, लाएं, बाद में संगठन को दुरुस्त करें और आगामी विधानसभा चुनाव के लिए ग्राउंड तैयार करें।