शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

रिजू झुंझुनवाला बनाम राजनीति का कुतियापा

एक कहावत है- राजनीति बड़ी कुत्ती चीज है। यह कहावत कब व कहां से चलन में आई, पता नहीं और इसमें कुत्ती शब्द का इस्तेमाल क्यों कर किया गया है, यह भी समझ से परे है। हां, इतना जरूर है कि यह कहावत इस आशय का भाव परिलक्षित करती है, जिससे राजनीति का शातिराना पक्ष उभरता है।
खैर, राजनीति वाकई कुत्ती चीज है। और इस कुत्ती चीज का चतुर लोग बड़ी चतुराई से इस्तेमाल करना जानते हैं। आपको याद होगा कि लोकसभा चुनाव में भीलवाड़ा से अजमेर आ कर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े रिजू झुंझुनवाला के बारे में कहा गया कि वे पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। जब वे हार गए तो ये कहा गया कि अजमेर के कांग्रेसियों ने उन्हें लूट लिया और काम भी नहीं किया। खैर, हारने के बाद भी अजमेर को अपनी कर्मभूमि बनाने के लिए उन्होंने इन्हीं कांग्रेसियों में से कुछ को साथ लेकर पूर्वांचल जन चेतना समिति की इकाई बनाई। यह वाकई एक सराहनीय व स्वागतयोग्य कदम था, मगर इसकी आलोचना इस रूप में हुई कि वे हारने के बाद भी यहां दुकान चलाना चाहते हैं। यानि कि वे भी हार कर गायब हो चुके प्रत्याशियों की तरह से अजमेर छोड़ कर चले जाते तो ठीक रहता। चलो माना कि उन्होंने दुकान लगा दी, मगर किसी को लूट थोड़े ही रहे हैं, गांठ का ही तो पूरा कर रहे हैं। इसीलिए कहते हैं कि राजनीति बड़ी कुत्ती चीज है। आप हार कर भाग जाएं तो भी आलोचना और हार कर भी डटे रहें तो भी परेशानी। चंदा दें तो ऐतराज, न दें तो भी चर्चा। सीधी सी बात है कि उन्हें अगर अगले चुनाव की अभी से तैयारी करनी है तो किसी न किसी मंच के जरिए ही काम करेंगे। काम भी जनहित का ही कर रहे हैं। इसमें बुराई है? उनके प्रतिनिधि रजनीश वर्मा, जो कि समिति के ट्रस्टी हैं, और अध्यक्ष राजेन्द्र गोयल व महासचिव शिव कुमार बंसल ने पर्यावरण संतुलन के लिए वृक्षारोपण का डट कर काम किया तो जिला प्रशासन ने भी उसे रियलाइज किया। 15 अगस्त के समारोह में सम्मानित भी किया। संभव है कुछ पहले से स्थापित संस्थाओं या व्यक्तियों को यह रास न भी आया हो।
कुल मिला कर हारने के बाद भी रिजू झुंझुनवाला अजमेर में सक्रिय हैं और चर्चा में भी हैं। वे अजमेर आएं या नहीं, उनका झुंझुना तो बज ही रहा है। इसी चर्चा के तालाब में शहर के जाने-माने वकील राजेश टंडन ने ब्लॉग लिख कर कंकड़ फैंक मारा। स्वाभाविक रूप से तरंगे उठनी ही थीं। ब्लॉग का कंटेंट ही ऐसा था। उन्होंने लिखा कि छात्र संघ चुनाव में कई कफनखसोट रिजू के पास गए चंदा लेने तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया। उन्होंने जो लिखा, उसका कुल जमा मायने ये है कि उनकी समिति अनापशनाप खर्चे कर रही है, जिससे रिजू तंग आ चुके हैं। एक चर्चित अधिकारी भी लपेटे में लिए गए।
अब जब शहर के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी ने यह बात लिखी है तो जरूर उनके पास पुख्ता जानकारी होगी। यह बात दीगर है कि उन्होंने सारी बात इशारों ही इशारों में कही है। समिति के जिम्मेदार पदाधिकारी भौंचक्क हैं, मगर लगता है कि उन्हें प्रतिक्रिया जाहिर करने में रुचि नहीं है। वे किसी पचड़े में नहीं पडऩा चाहते। इसी बीच राष्ट्रीय स्तर पर जाने-माने गजलकार सुरेन्द्र चतुर्वेदी, जो कि आजकल नियमित ब्लॉग लेखन कर रहे हैं, को लिखने का प्लॉट मिल गया। अपने पुराने मित्र की बात पर मित्रतापूर्वक प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए उन्होंने दुख जताया कि किसी संस्था के बारे में पूरी जानकारी के बिना ऐसा नहीं लिखना चाहिए। उन्होंने अपेक्षा की है कि टंडन की बात में अगर अक्षरश: सच्चाई है तो उसे सिद्ध करने की जिम्मेदारी भी लें। खैर, बात छिड़ी है तो शायद दूर तक जाएगी। कदाचित रिजू चंदे से तंग न भी आए हों, मगर कहीं राजनीति के कुतियापे से तंग न आ जाएं।
चूंकि मामला पब्लिक डोमेन में आ गया है, लिहाजा अपुन भी फोकट रायचंद बन गए। रिजू झुंझुनवाला तो बड़े आदमी हैं ही, टंडन व चतुर्वेदी भी कम बड़े नहीं हैं। बड़े लोगों की बड़ी बातें। अपुन ठहरे छोटे से पत्रकार। अपुन तो इतना ही कह सकते हैं कि थे जाणो रघुनाथ, कान्हों भोलो है। आपणे तो इत्ती सी बात पल्ले पड़ी के बडो आदमी छींके तो बा भी खबर बण जावे। बे अठै आवे तो चोखो, न आवे फेर भी बां को झुंझुनो तो बाज ही रियो है। अर म्हारा जान का भी तो बां को झुंझुनो ही बजा रिया हां। सॉरी, फिसल गया। हिंदी लिखते लिखते मारवाड़ी पर आ गया। निष्पत्ति यही कि राजनीति में जिंदा रहने की पहली शर्त है चर्चा में रहना, भले ही चर्चा अनुकूल हो या प्रतिकूल। अभी तो पूरे साढ़े चार साल बाकी पड़े हैं, न जाने कितने मोड़ों से उन्हें गुजरना होगा। हां, अपुन टंडन साहब के एक पैट वर्ड खफनखसोट को सुसंस्कृत तरीके से इस्तेमाल करते हुए कहते हैं कि कपड़ा फाडऩे में हम बडे माहिर हैं। बडे बडे लोग पनाह मांगते हैं। चुनाव से पहले जयपुर में मुख्यमंत्री निवास पर एक बैठक में खुद अशोक गहलोत ने अजमर वालों से तौबा मांग ली थी। मगर ख्याल रहे, अजमेर में बाहर का जाया ही पनपता है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

मंगलवार, 27 अगस्त 2019

टंडन के अनशन पर बैठने के बाद जारी किया लैटर, ये नौटंकी क्यों?

ट्रांसपोर्ट कारोबार को केसरगंज से ब्यावर रोड पर बनाए गए नए ट्रांसपोर्ट नगर में शिफ्ट करने की मांग को लेकर जिला बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राजेश टंडन की ओर से बाकायदा पर्याप्त समय पहले चेतावनी दिए जाने के बाद जिला कलेक्टर ने एसपी को इस मामले में लैटर तब जारी किया, जब टंडन भूखहड़ताल पर बैठ ही गए। वे चाहते तो अनशन पर बैठने से पहले ही लैटर जारी करते और टंडन को बुलवा कर कहते कि आप अनशन पर न बैठें। साफ है कि जिला कलेक्टर ने टंडन को जानबूझकर अनशन पर बैठने दिया, ताकि उनकी कॉल पूरा हो जाए। साथ ही ये भी जाहिर कर दिया कि देखो प्रशासन कितना गंभीर है कि टंडन के अनशन पर बैठने पर लैटर जारी कर दिया। क्या इसमें फिक्सिंग और नौटंकी की बू नहीं आती?
हकीकत तो ये है कि जिला यातायात प्रबंधन समिति की बैठक में ही इस बाबत निर्देश जारी किए जा चुके थे, मगर पुलिस प्रशासन उसे इम्प्लीमेंट करने में नाकाम रहा। इस बात को जिला कलेक्टर की ओर से जारी ताजा पत्र में भी स्वीकार किया गया है। कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा ने पुलिस अधीक्षक कुंवर राष्ट्रदीप को पत्र भेजकर यातायात प्रबंधन समिति में लिए गए निर्णय का हवाला देते हुए निर्देश कहा कि 15 अगस्त तक शिफ्टिंग की जानी थी, लेकिन यह अब तक पूरी नहीं हुई है और इससे शहर की यातायात व्यवस्था बिगड़ रही है।
कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा की ओर से जारी आदेश की प्रति लेकर एडीएम सिटी अरविंद सेंगवा शाम करीब सात बजे धरना स्थल पर पहुंचे। उन्होंने टंडन को आदेश की प्रति प्रदान करते हुए कहा कि जिला प्रशासन ट्रांसपोर्ट कारोबार को नए ट्रांसपोर्ट नगर शिफ्ट करने के लिए कटिबद्ध है और इसके लिए जो भी जरूरी कदम होंगे वह सभी उठाए जाएंगे। प्रशासन की ओर से सकारात्मक कार्रवाई के बाद टंडन ने भूख हड़ताल खत्म कर दी।
असल में ऐसा नहीं है कि पुलिस अधीक्षक ने कोशिश नहीं की, मगर कामयाबी हासिल न हो पाई। यही वजह रही कि टंडन को अपनी चेतावनी के आधार पर अनशन पर बैठना पड़ा। सवाल ये उठता है कि क्या अब जो नया आदेश जिला कलेक्टर ने पुलिस अधीक्षक को दिया है, उस पर सख्ती से अमल हो पाएगा? और अगर नहीं हुआ तो? फिर क्या होगा? अचरज की बात है कि तेज तर्रार टंडन महज एक लैटर पर यकीन करके अनशन समाप्त करने को राजी हो गए।
क्या वे इस लैटर का ही इंतजार कर रहे थे कि वह जारी हो और वे अनशन से उठ जाएं। उन्होंने यह तकाजा तक नहीं किया कि आखिर कब तक शिफ्टिंग का काम पूरा करवाओगे? होना तो ये चाहिए था कि वे एक रात काट लेते, मगर यह आश्वासन ले कर उठते कि किस तारीख तक शिफ्टिंग होगी।
खैर, देखते हैं कि प्रशासन, पुलिस को लैटर जारी कर इतिश्री कर लेता है, या वाकई इसका फॉलोअप कर शिफ्टिंग करवा पाता है। बेशक प्रशासन की अपनी दिक्कतें हैं, मगर बीस साल हो गए ट्रांसपोर्ट नगर बने हुए, फिर भी शिफ्टिंग नहीं हो पाई तो यह वाकई शर्मनाक है। रहा सवाल टंडन का तो वे वाकई साधुवाद के पात्र हैं, जिन्होंने जनहित के मुद्दे पर प्रशासन पर दबाव बनाया। अफसोस सिर्फ इतना है कि उन्होंने फेसबुक पर साथ देने वालों के साथ जिला कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक का भी आभार व्यक्त कर दिया, जिन्होंने, बकौल टंडन, जनहितकारी कदम त्वरित उठाया और उनके निवेदन को स्वीकार किया। क्या एक पत्र जारी करना मात्र जनहितकारी कदम है? अपुन तो उनके कदम को तभी सलाम करेंगे, जब वे वाकई कामयाब हो जाएंगे। रहा सवाल जनता का तो वह वैसे भी जिला प्रशासन के नहीं, बल्कि भगवान भरोसे है।
-तेजवानी गिरधर
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गुरुवार, 15 अगस्त 2019

नरेश बागानी ने दी अजमेर को अनूठी सौगात

अजमेर के सुपरिचित व्यवसायी व सिंधी सोशल ग्रुप अजमेराइट्स के अध्यक्ष नरेश बागानी का सपना आखिर साकार हो गया। उनके प्रयासों से रीजनल कॉलेज के सामने आनासागर चौपाटी पर बने आई लव अजमेर के नाम से सैल्फी पॉइंट का स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर लोकार्पण हो गया। वे इस ईवेंट को राजनीतिक रंग नहीं देना चाहते थे, इस कारण जिला कलेक्टर विश्वमोहन शर्मा व अजमेर विकास प्राधिकरण के आयुक्त निशांत जैन के हाथों ही लोकार्पण करवाने का निश्चय किया।
नरेश बागानी
संयोग से चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा अजमेर में ही थे और उन्होंने अचानक एक कार्यक्रम में उन्हें बुलवा लिया, इस कारण वे नहीं आ पाए। मगर अपने प्रतिनिधि के रूप में प्रशिक्षु आईएएस व उपखंड अधिकारी डॉ. अर्पिता शुक्ला को भिजवा दिया। निशांत जैन व डॉ. अर्पिता ने मिल कर इसका औपचारिक लोकार्पण किया। कासलीवाल अस्वस्थता के करण नहीं आ पाए।
तकरीबन तीन साल पहले एक बार नरेश बागानी ने मुझे बताया था कि वे अजमेर को कोई अनूठी सौगात देना चाहते हैं। वे इस दिशा में लगे रहे। अजमेर विकास प्राधिकरण व अजमेर नगर निगम के चक्कर लगाते थे, मगर कभी कानूनी पेचीदगियों और कभी आचार संहिता के कारण मामला लंबित बना रहा। कोई दो माह पहले वे मिले और जानकारी दी कि अभी तक स्वीकृति नहीं मिली है।
इस पर मैं और पत्रकार व महिल समाजसेवी राशिका महर्षि उन्हें अजयमेरू प्रेस क्लब के अध्यक्ष सुरेश कासलीवाल के पास ले गये और स्मार्ट सिटी होने जा रहे अजमेर में इस सैल्फी पॉइंट की चर्चा की। कासलीवाल को प्रस्ताव पसंद आया और उन्होंने जिला कलेक्टर विश्वमोहन शर्मा से बात की। शर्मा को भी बात जंची और उन्होंने प्रस्ताव बना कर भेजने को कहा। बागानी ने अपनी संस्था सिंधी सोशल ग्रुप अजमेराइट्स के बैनर पर आवेदन किया, जिसे शर्मा ने जरूरी औपचाकिताओं के बाद मंजूरी दी, जिसमें प्राधिकरण के आयुक्त जैन का भी सहयोग रहा। औपचारिकताओं को पूरा करवाने में कासलीवाल ने अहम भूमिका निभाई। इस सिलसिले में मैने भी कासलीवाल, बागानी व राशिका के साथ दो-तीन बार प्राधिकरण के अधिकारियों के साथ मौके का दौरा किया। सभी के सुझावों का समाहित करते हुए सैल्फी पॉइंट की तैयारियां अंतिम चरण में थी कि बागानी की मुलाकात हरीश गिदवानी से हुई और उन्होंने अपनी ओर से भी आर्थिक सहयोग का प्रस्ताव रखा। बागानी तुरंत राजी हो गए। दोनों ने दिन रात एक कर यह सौगात तैयार करवाई, जो अब आनासागर चौपाटी पर शोभा बढ़ा रही है।
सुरेश कासलीवाल
बागानी ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने इस प्रकार का सैल्फी पॉइंट अमेरिका में देखा था। वहीं से उन्हें प्रेरणा मिली। उसके बाद दुबई, मुंबई व मद्रास में भी ऐसे सेल्फी पॉइंट देखे। अब अपना सपना पूरा होने पर वे बेहद खुश हैं। बेशक यह निर्जीव पत्थर से बना है, मगर लोकार्पण के दौरान उमड़ी भीड़ ने इसे सजीव बना दिया है।
बागानी ने बताया कि उनकी संस्था अजमेर के हित में कार्यक्रम आयोजित करती रहेगी। गिदवानी ने घोषणा की कि अगली 15 अगस्त के आसपास एक और सौगात दी जाएगी। बागानी ने बताया कि संस्था के संरक्षक छांगोमल जेठानी, उपाध्यक्ष प्रदीप जेठानी, सचिव दीपक साधवानी, कोषाध्यक्ष कमल मूलचंदानी,, गिरीश लालवानी, सुरेश प्रियानी, राम असवानी, मोती जेठानी, विजय साधवानी, राजा जेठानी, राजेश लुधानी, मनोज मधुरम, अशोक दासानी, शेवक पंजवानी, ललित नागरानी, रामेश शिवनानी, सुलिल लालवानी आदि का उन्हें भरपूर सहयोग मिला है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रविवार, 11 अगस्त 2019

क्या राजेश टंडन का अल्टीमेटम काम कर गया?

हाल ही एक सुखद खबर आई कि अजमेर शहर की यातायात व्यवस्था, नागरिकों की सुरक्षा और शहर को व्यवस्थित करने के लिए जिला प्रशासन ने कमर कस ली है। कई सालों से समझाइश का रास्ता अपनाता आ रहा जिला प्रशासन अब ट्रांसपोर्ट नगर में शिफ्टिंग को लेकर सख्त रवैया अपनाएगा। जिला कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा ने शहर में ट्रांसपोर्ट व्यवसाय चला रहे ट्रांसपोर्टरों को 15 अगस्त तक ब्यावर रोड स्थित ट्रांसपोर्ट नगर में शिफ्ट करने की मोहलत दी है। जिला प्रशासन और पुलिस 16 अगस्त से अजमेर शहर में 24 घण्टे छोटे बड़े ट्रांसपोर्ट वाहनों के प्रवेश पर पाबंदी लागू कर देगा। अतिरिक्त जिला कलक्टर शहर अरविंद सेंगवा ने कहा कि अजमेर विकास प्राधिकरण द्वारा भी आवटंन के बावजूद निर्माण नहीं कराने तथा शिफ्टिंग नहीं करने वाले ट्रांसपोर्टर के खिलाफ कार्यवाही अमल में लायी जाएगी। जिला कलक्टर ने पुलिस एवं प्रशासन के अधिकारियों को निर्देश दिए कि ट्रांसपोर्ट नगर की शिफ्टिंग के लिए पूरी गम्भीरता से कार्यवाही तुरन्त शुरू करें।
आपको याद होगा कि पिछले दिनों शहर के जाने-माने वकील राजेश टंडन ने बाकायदा दी कि अगर 25 अगस्त तक ट्रांसपोर्टर्स शिफ्ट नहीं करवाए गए तो वे अनिश्चिचित कालीन भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे। टंडन की यह चेतावनी तब आई, जब इस विषय पर कोई चर्चा ही नहीं थी। अचानक यह मुद्दा उन्हें सूझा तो तनिक संदेह भी हुआ था कि कहीं उन्हें प्रशासन की ओर से इस बारे में उठाए जाने वाले कदम की जानकारी तो नहीं मिल गई और क्रेडिट लेने के लिए चेतावनी दे दी। मगर चूंकि इस मसले का समाधान पिछले बीस साल से नहीं निकला, तो संदेह हुआ कि मौजूदा कलेक्टर भी क्या कर पाएंगे, तो टंडन का कदम एक दुस्साहस ही माना गया। मगर जैसे ही कलेक्टर ने सख्ती बरतने की बात कह दी, उससे लगता है कि कहीं न कहीं टंडन को जानकारी पहले से थी। वैसे इस बात की संभावना अधिक है कि खुद टंडन ने ही कलेक्टर को इस मसले पर कदम उठाने का सुझाव दिया हो, जो कि उन्हें पसंद आ गया हो। शहर के मसलों पर संबंधित अधिकारियों से गाहे बगाहे चर्चा करना उनकी रुचि में रहा है।
बहरहाल, ताजा स्थिति ये है कि प्रशासन सख्ती बरतने के मूड में हैं और टंडन ने भी रिपीट किया है कि अगर 25 अगस्त तक ट्रांसपोर्ट नगर शिफ्ट नहीं करवाया गया तो वे अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल शुरू कर देंगे। उनकी चेतावनी इस अर्थ में सराहनीय है कि यदि प्रशासन कहीं शिथिल पड़ा तो टंडन का दबाव काम करेगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

बुधवार, 7 अगस्त 2019

हार-जीत पार्टियों की नहीं, बल्कि प्रत्याशियों की हुई

अजमेर नगर निगम के वार्ड 22 व 52 के लिए हुए उपचुनाव के जो भी राजनीतिक अर्थ निकाले जाएं, मगर सच्चाई ये है कि दोनों ही वार्डों में हार-जीत पार्टियों की नहीं, बल्कि प्रत्याशियों की हुई है।
राजनीतिक लिहाज से वार्ड 52 में भाजपा ने कांग्रेस की सीट छीन ली, जबकि वार्ड 22 में कांग्रेस ने भाजपा की सीट छीनी। हिसाब बराबर। वार्ड 52 की जीत का श्रेय स्वाभाविक रूप से अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल लेंगी, जबकि वार्ड 22 में भाजपा की हार अजमेर उत्तर के विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी के रुतबे पर चस्पा हो गई है।
गायत्री सोनी
इस चुनाव की दिलचस्प बात ये है कि दोनों दलों ने उन्हीं को प्रत्याशी बनाया, जो कि 2015 के मुख्य चुनाव में हार गए थे। इस बार दोनों ने ही अपनी हार का बदला ले लिया।
वार्ड 22 की बात करें तो यहां अब तक कांग्रेस का कब्जा रहा, मगर उसमें अहम भूमिका थी बलविंदर सिंह की। जनता पर उनकी गहरी पकड़ थी। सदैव सेवा को तत्पर रहते आए। पहली बार वे 2000 में पार्षद बने। दूसरा चुनाव भी उन्होंने ही जीता। उसके बाद 2010 में बलविंदर की बहन कुलविंदर जीतीं। 2015 में बलविंदर व कुलविंदर की मां अमरजीत कौर ने जीत हासिल की। इससे स्पष्ट है कि सारा कमाल बलविंदर का था। इस बार उन्हें मजबूरी में सावित्री गुर्जर पर सहमति देनी पड़ी। बलविंदर परिवार का कोई सदस्य सामने नहीं था, इस कारण जनता ने कांग्रेस का साथ नहीं दिया। और गायत्री सोनी जीत गईं. वैसे कहा ये भी जा रहा है कि बलविंदर ने पूरी रुचि नहीं ली, क्योंकि अगर सावित्री जीत जातीं तो इस इलाके में उनके लिए आगे दिक्कत हो सकती थी। वैसे असल बात ये मानी जाती है कि प्रत्याशी का चयन सही नहीं था।
दीनदयाल शर्मा
बात करें वार्ड 52 की। यह भाजपा का गढ़ कहा जाता है। मगर सच्चाई ये है कि यहां स्वर्गीय पार्षद भागीरथ जोशी का राज था। वे 1990 से लगातार यहां पार्षद रहे। एक बार टिकट न मिलने पर निर्दलीय रूप से जीत गए। उनकी खासियत ये थी वे बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के लोगों के काम करवाते थे। उसमें भी विशेषता ये कि उन्होंने यदि हाथ रख दिया तो मानो काम शर्तिया होगा ही। वजह थी नगर निगम तंत्र पर गहरी पकड़। 
यहां कांग्रेस के पंडित दीनदयाल शर्मा की जीत में अहम भूमिका रही, उनका स्वभाव। वे हारने के बाद भी वार्ड वासियों के संपर्क में रहे। इसमें उनकी पत्नी का भी पूरा सहयोग रहा। उधर भाजपा ने जोशी के स्थान पर किसी ब्राह्मण को टिकट नहीं दिया तो भाजपा मानसिकता के ब्राह्मण मतदाता शर्मा के साथ हो लिए। देवनानी ने लाख कोशिश की, मगर हथेली नहीं लगा पाए। असल में भाजपा प्रत्याशी संजय गर्ग हैं तो काफी सक्रिय व चलते पुर्जे, बड़े-बड़े लोगों से उनके संपर्क हैं, मगर आम जनता में पकड़ कमजोर थी।
कुल मिला कर कहा जा सकता है कि दोनों वार्डों में व्यक्तियों का वर्चस्व रहा और दोनों के ही परिवार से किसी को टिकट नहीं मिला तो दोनों ही गढ़ ढह गए। निष्कर्ष ये कि निकाय चुनाव में पार्टी से कहीं अधिक प्रत्याशी की अहमियत होती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

धर्मेन्द्र गहलोत इतने चुप भी नहीं बैठे हैं, जितने माने जा रहे हैं

राज्य में सरकार बदलने के बाद पिछले कुछ दिनों से जिस प्रकार अजमेर नगर निगम में आयुक्त चिन्मयी गोपाल सक्रिय व चर्चा में हैं, ऐसा माना जा रहा है कि मेयर धर्मेन्द्र गहलोत मौके नजाकत को देखते हुए चुप हैं। ऐसा स्वाभाविक भी है, क्योंकि जितनी स्वतंत्रता गहलोत को भाजपा सरकार के दौरान मिली हुई थी, उस पर अब कांग्रेस सरकार में अंकुश लगा है। स्वयं गहलोत भी जानते हैं कि सरकार से टकराव लेने में कोई फायदा नहीं है, लिहाजा बेहतर ये है कि बाकी के कार्यकाल में अपनी चिर परिचित आक्रामकता छोड़ी जाए। ऐसा दिखाई भी दे रहा है कि वे अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए टकराव को टालते हैं। बावजूद इसके अपने स्वभाव को काबू में नहीं कर पा रहे हैं। किसी न किसी मुद्दे पर आयुक्त चिन्मयी गोपाल से मतभिन्नता हो ही जाती है। ऐसे कई प्रसंग चल रहे हैं, जिनमें आयुक्त कुछ सख्ती से पेश आ रही हैं। यह उनके स्वभाव की परिणति है। वैसे भी यह तथ्यात्मक सच्चाई है कि नया आईएएस अफसर आम तौर पर सजग व सक्रिय होता है। कहावत भी है कि नया नया मुसलमान अल्ला-अल्ला ज्यादा करता है। चिन्मयी भी कुछ इसी अंदाज में अपने आईएएस होने का गुमान होने की वजह से ज्यादा मुखर नजर आ रही हैं।
खैर, बात चल रही थी गहलोत के स्वभाव में आए परिवर्तन की। जहां तक संभव है, अपनी ओर से टकराव मोल नहीं ले रहे। मगर चूंकि दूसरी बार मेयर बने हैं और पेशे से वकील हैं, इस कारण नगर निगम के कायदे-कानून की पूरी जानकारी रखते हैं। इस कारण घबरा कर दुबक नहीं गए हैं। जब भी मौका लगता है कि कानून की बारीक समझ का इस्तेमाल करते हैं। हाल ही  नगर निगम द्वारा लव कुश गार्डन में आम आदमी के लिए छोड़ी गई जगह पर रातों-रात ठेकेदार ने अपनी सुविधा के लिए केबिनों का निर्माण किया तो गहलोत ने आयुक्त को ठेकेदार पर कार्रवाई किए जाने के आदेश दे दिए। आयुक्त को इस मामले में बाकयदा यूओ नोट जारी किया गया है। ज्ञातव्य है कि निगम ने लव कुश गार्डन पर बनाए गए फूड कोर्ट का ठेका केवल ऊपर वाले हिस्से के लिए दिया है। गार्डन के नीचे का हिस्सा आमजन के बैठने के लिए छोड़ा गया है। ठेकेदार ने इसे भी कवर करते हुए वहां पर फूड कोर्ट में आने वाले ग्राहकों के लिए छोटी केबिन का निर्माण करवा लिया है, जबकि ठेका 38 लाख रुपए का केवल ऊपर वाले हिस्से के लिए दिया गया है। निविदा की शर्तों में साफ उल्लेख था कि गार्डन का उपयोग आमजन के लिए ही होगा। इसके बावजूद शर्तों का उल्लंघन किया गया है। गहलोत जानते हैं इस मामले में आयुक्त को कार्यवाही करनी ही होगी। इसी कारण यूओ नोट जारी किया है। इस बहाने उन्होंने यह भी जाहिर कर दिया है कि अगर चिन्मयी आयुक्त हैं तो वे भी मेयर हैं। गहलोत की यही खुद्दारी उनकी पहचान है। वैसे समझा यही जाता है कि गहलोत ज्यादा बखेड़ा नहीं करने वाले। जानते हैं कि आईएएस जब अपनी पर आते हैं तो एकजुट हो जाते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000