रविवार, 11 फ़रवरी 2018

अनिता भदेल की जगह कौन होंगे दावेदार?

पहले नगर निगम चुनाव में अजमेर दक्षिण क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशियों के बुरी तरह पराजित होने और अब लोकसभा उपचुनाव में भारी अंतर से भाजपा प्रत्याशी रामस्वरूप लांबा के हार जाने के बाद इस इलाके की विधायक और महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की टिकट पर तलवार लटक गई है। ऐसे में उनकी जगह कौन-कौन टिकट के दावेदार होंगे, इसको लेकर कानाफूसी होने लगी है।
अगर भाजपा इस बार भी कोली कार्ड खेलने के मूड में रही तो नगर निगम चुनाव में मेयर का चुनाव हारे डॉ. प्रियशील हाड़ा पर दाव लगाया जा सकता है। हालांकि आरएसएस ने एक बंदा भी तैयार कर लिया है, जो कि गुपचुप तरीके से काम पर लगा हुआ है। संभावना ये बताई जा रही है कि भाजपा किसी कोली को टिकट देने से बच सकती है, क्योंकि कोली वोट बैंक पर कांग्रेस नेता हेमंत भाटी ने कब्जा कर लिया है। ऐसे में अगर भाजपा ने इस बार रेगर कार्ड खेलने की सोची तो मौजूदा जिला प्रमुख वंदना नोगिया की किस्मत चेत सकती है। चूंकि उन पर शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी का वरदहस्त है, इस कारण उनके टिकट की गंभीरता चुनाव के वक्त देवनानी की पावर पर निर्भर करेगी। यूं पूर्व कांग्रेस विधायक बाबूलाल सिंगारियां, जो कि भाजपा में शामिल हो चुके हैं, का भी दावा बताया जा रहा है। उन पर मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे का हाथ है, मगर चूंकि यह सीट आरएसएस कोटे की मानी जाती है, इस कारण सिंगारियां को टिकट मिलने पर थोड़ा संशय है।

शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

अब मान रहे हैं कि लांबा कमजोर प्रत्याशी थे

अजमेर सीट के लिए हुए लोकसभा उपचुनाव में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भले ही भाजपा प्रत्याशी रामस्वरूप लांबा को भोला मगर सच्चा इंसान बता कर तारीफ की हो, मगर हारने के बाद अब भाजपा नेता ही अपने फीड बैक में उन्हें कमजोर प्रत्याशी बता रहे हैं। कानाफूसी है कि हारने के अनेक कारणों में भाजपा विधायक एक कारण ये भी गिना रहे हैं। उनका कहना है कि लांबा भले ही साफ सुथरी छवि के हैं, मगर जातीय समीकरण के लिहाज से वे कमजोर साबित हुए। उनकी बात सही भी है।
यह बात सच है कि लांबा की हार में केन्द्र व राज्य सरकार के प्रति जनता की नाराजगी ने अपना पूरा असर दिखाया, मगर यह भी सच ही है कि जातीय समीकरण लांबा के पक्ष में नहीं बन पाया। एक ओर जहां ब्राह्मण पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. रघु शर्मा के पक्ष में लामबंद हुए, वहीं राजपूत भी आनंदपाल प्रकरण के कारण भाजपा के खिलाफ चले गए। ये दोनों भाजपा के वोट बैंक थे। जब इनमें ही सेंध पड़ गई तो भला लांबा जीत कैसे सकते थे। हालांकि लांबा को प्रत्याशी बनाते वक्त ऐसा समीकरण बनने की आशंका भाजपा हाईकमान को थी, मगर वह जाटों के सबसे बड़े वोट बैंक को खोना नहीं चाहती थी। नतीजा सामने है। असल में भाजपा के लिए लांबा मजबूरी बन गए थे। एक तो किसी जाट को ही टिकट देना जरूरी था, दूसरा उसमें भी लांबा का पलड़ा अन्य जाटों के मुकाबले भारी था। यानि भाजपा ने यह चाल मजबूरी में चली, मगर इसी मात मिलनी थी और मिली भी।

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

क्या भाजपा करेगी अजमेर उत्तर में गैर सिंधी का प्रयोग?

हाल ही हुए लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। हालांकि समझा यही जाता है कि देवनानी इतने चतुर हैं कि आखिर तक अपना कब्जा नहीं छोड़ेंगे, मगर उनका टिकट कटने की उम्मीद में कुछ गैर सिंधी नेता दावा कर सकते हैं। इनमें सबसे पहला नाम है अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा का। उन्होंने काफी समय से इसका ताना बाना बुनना शुरू कर दिया था। अगर सिद्धांतत: भाजपा गैर सिंधी का प्रयोग करती ही तो संभव है आखिर में खुद देवनानी अपने सबसे करीबी अजमेर नगर निगम के मेयर धर्मेन्द्र गहलोत पर हाथ रख दें। यूं मसूदा विधायक श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति युवा नेता भंवर सिंह पलाड़ा भी दमदार दावेदारी ठोक सकते हैं। अगर गैर सिंधी पर विचार की तनिक भी स्थिति बनी तो फेहरिश्त लंबी हो सकती है। अब तक देहात की राजनीति करने वाले प्रो. बी. पी. सारस्वत भी पीछे नहीं रहने वाले। गाहे-बगाहे संघ के महानगर प्रमुख सुनील दत्त जैन का भी नाम उछलता रहा है।
अगर देवनानी का टिकट कटने की नौबत आई और सिंधी को ही टिकट देने का मानस रहा तो सबसे प्रबल दावेदार कंवल प्रकाश किशनानी ही होंगे। यह सीट चूंकि संघ के खाते की है, इस कारण उन्हें वहां से हरी झंडी हासिल करनी होगी। हालांकि संघ की कार्यशैली ऐसी रही है कि वह अचानक ऐसा नाम सामने ले आता है, जिसे कोई जानता तक नहीं, मगर बदले राजनीतिक हालात में चेहरे की लोकप्रियता का भी ध्यान रख सकता है।

बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

भाजपाई दिग्गज धराशायी, उनके भविष्य पर भी सवालिया निशान

अजमेर। केन्द्रीय पंचायत से लेकर स्थानीय ग्रामीण पंचायत तक भाजपा का मजबूत कब्जा होने के बावजूद अजमेर में भाजपा का किला धराशायी हो गया। कांग्रेस ने न केवल आठों विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की, अपितु आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अपने आप को भाजपा के मुकाबले खड़ा कर लिया। भाजपा के लिए अफसोसनाक बात ये रही कि दो राज्य मंत्रियों व दो संसदीय सचिवों को मिला कर सात विधायकों, एक प्राधिकरण अध्यक्ष के अतिरिक्त नगर निगम और पालिकाओं में भाजपा के बोर्ड, अजमेर विकास प्राधिकरण में भाजपा से जुड़े अध्यक्ष, भाजपा की जिला प्रमुख और पंचायतों में प्रतिनिधियों की मजबूत सेना भी नकारा साबित हो गई। इससे यह साफ हो गया कि आम आदमी किस कदर भाजपा के मंत्रियों और जनप्रतिनिधियों से नाराज है। इसके अतिरिक्त जिन लोकलुभावन जुमलों व नारों के दम पर केन्द्र व राज्य में भाजपा काबिज हुई, उस पर खरी नहीं उतरी। महंगाई, बेराजगारी व आर्थिक मंदी से त्रस्त जनता में गुस्से का अंडर करंट कितना तगड़ा था, इसका अनुमान भाजपा हाईकमान नहीं लगा पाया। अगर ये मान भी लिया जाए कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व मंत्रियों ने सरकार की योजनाओं को खूब गिनाया और नाराज लोगों को राजी करने का भरपूर प्रयास किया, मगर वह सब का सब बेकार हो गया। हालांकि भाजपा के पास स्मार्ट सिटी का मजबूत पत्ता था, मगर धरातल पर कोई ठोस कार्य नहीं होने की वजह से वह कारगर नहीं रहा। दूसरी ओर कांग्रेस लोगों को यह समझाने में कामयाब रही कि पूर्व सांसद व केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट ने जिस तरह से विकास कार्य करवाए, उसी प्रकार वे और रघु शर्मा आगे भी करवाने को तत्पर रहेंगे। भाजपा ने पन्ना प्रमुख और विस्तारकों की लंबी चौड़ी फौज तो बनाई, जो कि अपने आप में वाकई एक नया प्रयोग था, मगर पहली बार मेरा बूथ मेरा गौरव का फार्मूला लेकर आई कांग्रेस सफल हो गई।
असल में भाजपा की हार में जातीय समीकरण ने भी अपनी भूमिका निभाई। एक ओर जहां ग्रामीण क्षेत्रों में यह चुनाव जाट बनाम गैर जाट में बंट गया, वहीं ब्राह्मणों के रघु शर्मा के पक्ष में लामबंद होने व राजपूतों की सरकार से नाराजगी ने भाजपा का सारा तानाबाना छिन्न भिन्न कर दिया। सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस ने भी निष्क्रियता बरती। कदाचित इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हाथ रहा हो, क्योंकि वे आरंभ से वसुंधरा को हटा कर अपने हिसाब से जाजम बिछाना चाहते थे।
सभी मौजूदा विधायकों के टिकट खतरे में
ताजा हार के बाद संसदीय क्षेत्र के सभी सात भाजपा विधायकों के टिकट खतरे में पड़ गए हैं। हालांकि पहले ये माना जा रहा था कि आगामी विधानसभा चुनाव में शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी, संसदीय सचिवद्वय शत्रुघ्न गौतम व रावत के टिकट तो पक्के होंगे, मगर अब सभी के टिकट पर तलवार लटक गई है। अगर भाजपा हाईकमान ने एक सौ से अधिक विधायकों के टिकट काटने की रणनीति बनाए तो संभव है सात में से इक्का-दुक्का ही टिकट हासिल कर पाए।
रामस्वरूप लांबा का भविष्य क्या होगा?
अजमेर के भूतपूर्व सांसद व केन्द्रीय राज्य मंत्री रहे स्वर्गीय प्रो. सांवरलाल जाट के उत्तराधिकारी के रूप में लोकसभा उपचुनाव लड़े रामस्वरूप लांबा  के हारने से शुरुआत में ही उनके राजनीतिक भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया है, बावजूद इसके मौजूदा जातीय समीकरण के चलते वे आगामी विधानसभा चुनाव में नसीराबाद सीट के प्रबल दावेदार रहेंगे।
ज्ञातव्य है कि पूर्व में इस सीट से लांबा के पिताश्री विधायक थे, मगर उनसे इस्तीफा दिलवा कर लोकसभा चुनाव लड़वाया गया। वे जीते भी। खाली हुई सीट पर पूर्व जिला प्रमुख सरिता गेना को चुनाव लड़वाया गया, मगर वे हार गईं। इस कारण आगामी विधानसभा चुनाव में उनका दावा कमजोर रहेगा। अब चूंकि लांबा उपचुनाव में हार गए हैं, ऐसे में स्वाभाविक है कि वे अपना भविष्य नसीराबाद में ही देखेंगे। यह सीट जाट व गुर्जर बहुल है। गत लोकसभा के चुनाव में भाजपा को यहां से 10 हजार 992 मतों की बढ़त मिली थी, लेकिन इस उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार ने 1 हजार 530 मतों की बढ़त हासिल की है। हालांकि लंाबा को अपने ही घर में मात मिली है, मगर यह अंतर ज्यादा नहीं है। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में यहां से वे ही भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार होंगे। और निश्चित रूप से स्वर्गीय जाट की लॉबी इसके लिए पूरा दबाव भी बनाएगी।
रघु शर्मा के लिए सुरक्षित हो गई केकड़ी सीट
हालांकि अभी यह भविष्य के गर्भ में छिपा है कि हाल ही सांसद बने डॉ. रघु शर्मा अपने नए प्रोफाइल को बरकरार रखते हुए आगामी लोकसभा चुनाव लड़ते हैं या खुद को राजस्थान की राजनीति के लिए ही सुरक्षित रखते हैं, मगर इतना तय है कि अगर उनकी इच्छा हुई और हाईकमान ने इजाजत दे दी तो वे आगामी विधानसभा चुनाव में केकड़ी सीट से ही चुनाव लड़ सकते हैं।
ज्ञातव्य है कि पिछला चुनाव उन्होंने केकड़ी से लड़ा था, मगर तब वे 8 हजार 863 वोटों से हार गए थे। असल में उन्होंने इससे पूर्व केकड़ी में विधायक रहते हुए कई काम करवाए थे, इस कारण मोदी लहर के बाद भी यही माना जा रहा था कि वे जीत जाएंगे, मगर ऐसा हुआ नहीं। हार के बाद भी वे लगातार केकड़ी में सक्रिय रहे। हाल ही उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़वाया गया और वे इसमें कामयाब रहे। न केवल केकड़ी, अपितु अजमेर संसदीय क्षेत्र की सभी आठों सीटों पर कांग्रेस को बढ़त हासिल हुई। विशेष रूप से केकड़ी में रिकॉर्ड 34 हजार 790 मतों से जीत हासिल की है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि केकड़ी में उन्होंने कितनी मजबूत पकड़ बना रखी है। उन्होंने मजबूत भाजपा विधायक व संसदीय सचिव शत्रुघ्न गौतम की चूलें हिला कर रख दी हैं। ऐसे में यदि रघु की इच्छा हुई कि वे आगे इसी सीट से चुनाव लड़ें तो एक मात्र प्रबल दावेदार होंगे।