शनिवार, 13 जनवरी 2018

मुद्दों के लिहाज से भाजपा के लिए भारी है उपचुनाव

अजमेर लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव के लिए प्रत्याशियों के नामांकन के बाद उनकी व्यक्तिगत छवि के अतिरिक्त जातीय व राजनीतिक समीकरण अपनी भूमिका निभाएंगे, मगर यदि मुद्दों की बात करें तो यह उपचुनाव भाजपा के लिए भारी रहेगा।
इस उपचुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों की बात करें तो महंगाई एक बड़ा मुद्दा है। महंगाई को ही सबसे बड़ा मुद्दा बना कर केन्द्र में मोदी सरकार काबिज हुई थी, मगर उसके सत्तारूढ़ होने के बाद महंगाई और अधिक बढ़ गई है, इस कारण यह मुद्दा इस बार भाजपा को भारी पडऩे वाला है।
इसी प्रकार नोट बंदी की वजह से व्यापार जगत से लेकर आमजन को जो परेशानी हुई, उसका प्रभाव इस चुनाव पर पड़ता साफ दिखाई देता है। इसे मोदी सरकार की एक बड़ी नाकामी के रूप में माना जाता है। नाकामी इसलिए कि जिस कालेधन को बाहर लाने की खातिर नोटबंदी लागू की गई, वह तनिक भी निकल कर नहीं आया। और यही वजह है कि पिछली बार मोदी लहर का जो व्यापक असर था, वह इस बार पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। हालांकि भाजपा अब भी मोदी के नाम पर ही वोट मांगने वाली है।
इसी प्रकार आननफानन में जीएसटी लागू किए जाने से व्यापारी बेहद त्रस्त है। भाजपा मानसिकता का व्यापारी भी मोदी सरकार के इस कदम की आलोचना कर रहा है। मोदी सरकार के प्रति यह गुस्सा कांग्रेस के लिए वोट के रूप में तब्दील होगा, इसको लेकर मतैक्य हो सकता है। उसकी एक बड़ी वजह ये है कि वर्तमान में केन्द्र व राज्य में भाजपा की ही सरकार है और ऐसे में व्यापारी मुखर होने से बचेगा।
मोदी सरकार की परफोरमेंस अपेक्षा के अनुरूप न होने व वसुंधरा राजे की सरकार की नकारा वाली छवि भी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है। इसमें ऐंटी इन्कम्बेंसी को भी शामिल किया जा सकता है। इतना ही नहीं राज्य कर्मचारियों, शिक्षकों व चिकित्सकों के अतिरिक्त बेरोजगार युवाओं में भी राज्य सरकार के प्रति गहरी नाराजगी है।
बात अगर स्थानीय मुद्दों की करें तो विकास एक विचारणीय मुद्दा है। कांग्रेस के पास यह मुद्दा सबसे अधिक प्रभावोत्पादक है। उसकी वजह ये है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र से सांसद व केन्द्रीय राज्य मंत्री रहे मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के कार्यकाल में अभूतपूर्व विकास कार्य हुए, जिनमें प्रमुख रूप से हवाई अड्डे का शिलान्यास, केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना सहित अनेक रेल सुविधाएं बढ़ाना शामिल है। वस्तुत: पूर्व भाजपा सांसद प्रो. रासासिंह रावत के पांच बार यहां से सांसद रहने के बाद भी उनके कार्यकाल में कोई विकास कार्य नहीं हुआ। निवर्तमान भाजपा सांसद स्वर्गीय प्रो. सांवर लाल जाट का कार्यकाल भी उपलब्धि शून्य माना जाता है। जमीनी स्तर पर आम जनमानस में भी यह धारणा है कि सचिन पायलट विकास पुरुष हैं। लोगों को मलाल है कि पिछली बार मोदी लहर के चलते वे पराजित हो गए। हालांकि विकास का यह मुद्दा विशेष रूप से सचिन पायलट के उम्मीदवार होने पर अधिक कारगर होता।
दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी के पास केवल मोदी के नाम पर केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं के आधार पर वोट मांगने की गुंजाइश है। आंकड़ों के नाम पर राज्य सरकार की योजनाओं को गिनाया तो जा सकेगा, मगर आम धारणा है कि वसुंधरा राजे का यह कार्यकाल अपेक्षा के विपरीत काफी निराशाजनक रहा है। किशनगढ़ हवाई अड्डे की ही बात करें तो भले ही इसका शुभारंभ वसुंधरा ने किया और इसे अपने खाते में गिनाने की कोशिश की, मगर आम धारणा है कि अगर सचिन पायलट कोशिश न करते तो यह धरातल पर ही नहीं आता।
स्थानीय जातीय समीकरण की बात करें तो भाजपा की यह मजबूरी ही है कि उसे जाट प्रत्याशी ही देना पड़ा, क्योंकि यह सीट प्रो. सांवरलाल जाट के निधन से खाली हुई है। इसके अतिरिक्त जाट वोट बैंक भी तकरीबन दो लाख से अधिक है, जिसे भाजपा नाराज नहीं करना चाहती थी। भाजपा के पक्ष में यह एक बड़ा फैक्टर है। मगर इसमें भी एक पेच ये है कि प्रो. जाट के तुलना में उनक पुत्र रामस्वरूप लांबा की छवि कमजोर है। शहरी क्षेत्र में जाट फैक्टर नहीं है, मगर ग्रामीण इलाकों में गैर जाटों के लामबंद होने की संभावना है।
जहां तक गुर्जर वोट बैंक का सवाल है, वह सचिन पायलट के प्रभाव की वजह से कांग्रेस को मिलेगा। यूं परंपरागत रूप से रावत वोट बैंक भाजपा का रहा है, मगर किसी प्रभावशाली रावत नेता के अभाव में भाजपा को उसका पूरा लाभ मिलेगा, इसमें तनिक संदेह है। लगातार छह चुनावों में प्रो. रासासिंह रावत के भाजपा प्रत्याशी होने के कारण रावत वोट एकमुश्त व अधिकाधिक मतदान प्रतिशत के रूप में भाजपा को मिलता था, मगर अब वह स्थिति नहीं है। वैसे भी परिसीमन के दौरान रावत बहुल मगरा इलाका अजमेर संसदीय क्षेत्र से हटा दिया गया था, इस कारण उनके तकरीबन पचास हजार वोट कम हो गए हैं। वैश्य व सिंधी वोट बैंक परंपरागत रूप से भाजपा के पक्ष में माना जाता है, जबकि मुस्लिम व अनुसूचित जाति का वोट बैंक कांग्रेस की झोली में गिना जाता है। परंपरागत रूप से भाजपा का पक्षधर रहा राजपूत समाज कुख्यात आनंदपाल प्रकरण की वजह से नाराज है। उसे सरकार हल नहीं कर पाई है। ब्राह्मण वोट बैंक के कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में लामबंद होने के आसार हैं। कुल मिला कर मौजूदा मुद्दों की रोशनी में यह उपचुनाव भाजपा के लिए कठिन है, भले ही केन्द्र व राज्य में उसकी सरकार है, जिसका दुरुपयोग होने की पूरी आशंका है।
-तेजवानी गिरधर