मंगलवार, 20 अगस्त 2013

जस्टिस इसरानी का विरोध भी हो गया शुरू

आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर सीट के लिए कांग्रेस की ओर से जस्टिस इंद्रसेन इसरानी का नाम चर्चा में आते ही उनका विरोध भी शुरू हो गया है। ज्ञातव्य है कि अजमेर में ब्लॉक व शहर स्तर पर तैयार पैनलों में उनका नाम नहीं है, फिर भी जयपुर व दिल्ली में उनके नाम की चर्चा है। असल में राजस्थान में वरिष्ठतम सिंधी नेता माने जाते हैं और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी हैं। बताया तो यह तक जाता है कि सिंधी समाज के बारे में कोई भी निर्णय करने से पहले गहलोत उनसे चर्चा जरूर करते हैं। इसी कारण जैसे ही उनका नाम सामने आया, उसे गंभीरता से लिया गया। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव व अजमेर प्रभारी सलीम भाटी की ओर से की गई रायशुमारी के दौरान तो बाकायदा उनका नाम लेकर कांग्रेस नेता राजेन्द्र नरचल ने विरोध दर्ज करवा दिया और कहा कि जब अजमेर में पर्याप्त नेता हैं तो फिर क्यों बाहरी पर गौर किया जा रहा है। वे यहीं तक नहीं रुके। आगे बोले कि वे इसरानी का पुरजोर विरोध करेंगे, चाहे उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया जाए। उन्होंने ये तान किसके कहने पर छेड़ी, इसका पता नहीं लग पाया है। इसरानी के नाम पर अन्य दावेदारों को कितनी चिंता है, इसका अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है। हाल ही जब एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली गया और वहां भी जस्टिस इसरानी के नाम की चर्चा हुई तो उसने उनका विरोध कर दिया और साथ ही अजमेरनामा में चौपाल कॉलम के अंतर्गत गत दिवस छपे न्यूज आइटम का प्रिंट भी दिखा दिया, जिसमें बताया गया है कि इससे पहले भी वे अजमेर में जमीन तलाशने आ चुके हैं और विवादित बयान देने के कारण भाग छूटे थे।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि इसरानी का नाम खुद उनकी ओर चलाया हुआ नहीं दिखता। इसकी वजह ये है कि एक तो वे बेहद रिजर्व नेचर के हैं और दूसरा चुनावी राजनीति के दावपेच से पूर्णत: अनभिज्ञ। स्थानीय स्तर पर उनकी कुछ पकड़ भी नहीं है। उनका नाम गहलोत लॉबी में कहीं चर्चा में आया होगा ओर वहीं से पंख लगा कर चुनावी आसमान में घूम रहा है।
-तेजवानी गिरधर
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बाकोलिया की दावेदारी दमदार तो उस पर सवाल भी कम वाजिब नहीं

आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर दक्षिण सीट के लिए अजमेर नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया की दावेदारी यूं तो सशक्त और जायज है, मगर कांग्रेस नेता वैभव जैन ने जो सवाल उठाया है, वह भी दमदार तो है।  ज्ञातव्य है कि जैन ने हाल ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव व अजमेर प्रभारी सलीम भाटी की ओर से की गई रायशुमारी के दौरान कहा था कि बाकोलिया को उन्हें मेयर ही रहने दो। अभी उनके कार्यकाल के दो साल बाकी है। उन्हें विधायक का टिकट दिया तो कांग्रेस को वापस मेयर की कुर्सी नहीं मिल पाएगी।
अव्वल तो बाकोलिया को नैतिकता के आधार पर ही दावेदारी नहीं करनी चाहिए। उनके प्रति अजमेर की जनता ने मेयर के रूप में पूरे पांच साल के लिए विश्वास जाहिर किया है। उन्हें इस विश्वास को कायम रखते हुए मेयर के रूप में ही जिम्मेदारी निभानी चाहिए। वैसे भी यह अपने आप में ही बड़ा बचकाना और मौका परस्ती लगता है कि जिस मेयर का अभी दो साल का कार्यकाल बाकी हो, वह विधानसभा चुनाव देख कर टिकट के लिए लार टपकाए। यानि कि उसे जनता की सेवा से ज्यादा खुद के कैरियर की चिंता है।  यदि जनसेवा करनी है तो मेयर रह कर भी की जा सकती है। इस सिलसिले में मौजूदा भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल का उदाहरण दिया जा सकता है, मगर उन्हें भाजपा के पार्षदों ने चुना था। पार्टी ने उन्हें विधानसभा का टिकट दिया तो उससे पार्टी को कोई नुकसान नहीं हुआ, क्योंकि बहुमत के कारण उनके स्थान पर श्रीमती सरोज यादव को नगर परिषद का सभापति बना दिया गया। बाकोलिया अगर इस्तीफा देकर टिकट मांगते हैं तो स्पष्ट है कि मेयर का चुनाव दुबारा सीधे जनता के माध्यम से होगा। और चुनाव में दुबारा कांग्रेस जीते ही, ये जरूरी नहीं, क्योंकि अब माहौल और समीकरण पहले जैसा नहीं होगा । फिर जब खुद कांग्रेसी ही ये मानते हैं कि दुबारा चुनाव होने पर यह कुर्सी चली जाएगी, तो इस पर गौर करना ही चाहिए।
इसके अतिरिक्त जनहित की दृष्टि से भी मेयर का मध्यावधि चुनाव करवाना उचित नहीं, क्योंकि उस पर जो खर्च होगा, उसका भार अंतत: जनता पर ही पड़ेगा।
जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है, अनुसूचित जाति के अन्य तबकों को ऐतराज हो सकता है कि अजमेर जिले की तीन महत्वपूर्ण कुर्सियां पहले से ही रेगर जाति के पास हैं। अजमेर नगर निगम की मेयर की कुर्सी पर बाकोलिया काबिज हैं ही, ब्यावर नगर परिषद की सभापति की कुर्सी पर मुकेश मौर्य और पुष्कर नगर पालिका अध्यक्ष की कुर्सी पर श्रीमती मंजू कुर्डिया बैठी हैं। तो क्या ऐसे में अजमेर दक्षिण की सीट भी रेगर समाज को ही दी जानी चाहिए? यदि अधिसंख्य महत्वपूर्ण सीटें रेगर समाज ही ले जाएगा तो कोली बहुल अजमेर दक्षिण इलाके के कोलियों का क्या होगा?
यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि इस इलाके में सर्वाधिक वोट कोलियों के माने जाते हैं। उनके अतिरिक्त मेघवाल, भांभी, बलाई व बैरवा हैं। इस सभी जातियों का रुझान कांग्रेस की ओर ही रहता है, हालांकि श्रीमती भदेल के विधायक बनने के बाद कोलियों में विभाजन हुआ है। मुस्लिमों का झुकाव भी कांग्रेस की ओर ही माना जाता है। यहां भाजपा के वोट बैंक सिंधी, माली व वैश्य माने जाते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कारण कुछ माली जरूर कांगे्रस में हैं।
जहां तक बाकोलिया की दावेदारी का सवाल है, वह काफी दमदार नजर आती है। असल में उनकी नजर सिंधी वोटों पर भी है, जिनके दम पर वे मेयर का चुनाव जीत गए थे। ज्ञातव्य है कि उन्हें मेयर का टिकट देने का आधार ही ये था कि वे अजमेर के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और पांच बार नगर पालिका अजमेर के पार्षद रहे स्वर्गीय श्री हरिशचंद जटिया के पुत्र हैं, जिन्होंने आजादी के बाद बजमेर में सिंध प्रांत से आए विस्थपितों को पुन: बसाने व मुआवजा दिलाने में महती भूमिका निभाई। वे मूलत: सिंध के रहने वाले थे और उन्हें सिंधी ही माना जाता था। आज भी कई पुराने सिंधी बाकोलिया को स्वर्गीय जटिया की वजह से सिंधी ही मानते हैं। मेयर के चुनाव में उन्होंने इस धारणा को भुनाया भी। इस प्रकार वे ऐसे अकेले दावेदार हैं, जो अनुसूचित जाति से होते हुए भी सिंधी जनाधार रखते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000