शनिवार, 16 मार्च 2013

धर्मेश जैन का छिपा एजेंडा क्या है?


Dharmesh Jain
श्रीश्याम सत्संग समिति की ओर से सुभाष उद्यान में आयोजित श्रीरामनाम परिक्रमा कार्यक्रम में नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर धर्मेश जैन जिस तरह से विशेष भूमिका अदा की, उसे देख कर राजनीति के जानकार उनके छिपे एजेंडे को सूंघने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा इसलिए कि वे हैं तो जैन समाज के, जो कि सनातन अथवा हिंदू धर्म से अलग धर्म का पालन करने वाला है, मगर सनातन धर्म से जुड़े समूह के इतने विशाल आयोजन में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। शहर को शायद ही कोई ऐसा नेता हो, जिसे उन्होंने इस आयोजन में बुलवा कर आरती करने का मौका न दिया हो। ख्वाजा साहब की दरगाह के प्रमुख खादिमों ने भी सांप्रदायिक सौहार्द्र का परिचय देते हुए इसमें शिरकत की। इतना ही नहीं कार्यक्रम की विशालता का अंदाजा इस बात से भी लगता है कि ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के दीवान सैयद जेनुअल आबेदीन का अभिनंदन करने अजमेर आए शिवसेना के सांसद अनंत गीते, संजय राउत तथा अनिल देसाई ने भी इस कार्यक्रम में शिरकत करना मुनासिब समझा। उनका स्वागत करने वालों में जैन की ही पुत्र विवेक जैन आगे थे। इसी प्रकार विहिप नेता प्रवीण भाई तोगडिय़ा का आगमन भी विशेष अर्थ रखता है।
हालांकि यह सही है कि भले ही जैन धर्म हिंदू धर्म से अलग है, मगर वैश्य समुदाय का हिस्सा होने और जैनियों के सामान्यत: भाजपा मानसिकता के होने के कारण जैनियों की नजदीकी सनातन धर्मियों से रहती ही है। जहां तक जैन का सवाल है वे भाजपा संगठन में अहम भूमिका में रहे हैं और पिछले भाजपा कार्यकाल में न्यास सदर भी रह चुके हैं, इस कारण उनकी हिंदूवादी संगठनों से स्वाभाविक करीबी है। इस नाते हिंदू धर्म के आयोजनों में भी उनकी विशेष मौजूदगी रहती है। हालांकि जैन स्वभाव से धार्मिक हैं और समाज के धार्मिक कार्यों में भी अग्रणी भूमिका में रहते हैं, इस कारण चौंकने जैसा कुछ नहीं है, मगर सनातन धर्मावलंबियों के इतने विशाल आयोजन में उनकी अहम भूमिका में होना तनिक चौंकाने वाला प्रतीत होता है। जैन धर्म से होने के कारण यूं भले ही वे हिंदुओं की तरह हनुमान जी को न मानते हों, मगर उन्होंने अपने संस्थान की ओर से हनुमान चालीसा बड़े छपवा कर उनका वितरण भी किया है।
भले ही जैन का इस आयोजन में अग्रणी भूमिका में रहने के पीछे कोई खास मकसद न हो और वे विशुद्ध धार्मिक व सामाजिक भाव से जुड़े हों, मगर चुनावी मौसम में इस प्रकार की गतिविधियों को स्वाभाविक रूप से उसी की रोशनी में देखा जाता है। भले ही जैन आयोजन की सफलता को राजनीति में भुनाने की अपनी ओर से कोई कोशिश न करें, मगर यह स्वयंसिद्ध तथ्य है कि इस आयोजन से उनके कद में इजाफा हुआ है और उन्हें इसका राजनीति पृष्ठभूमि में लाभ जरूर मिलेगा। कहने की आवश्यकता नहीं है कि उनकी नजर आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की सीट सहित अजमेर लोकसभा सीट पर है।
-तेजवानी गिरधर

शक की सुई पूर्व बोर्ड अध्यक्ष डॉ. गर्ग पर भी?

subhash gargराजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के वित्तीय सलाहकार नरेंद्र कुमार तंवर के एसीबी के शिकंजे में फंसने के साथ ही बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सुभाष गर्ग पर भी शक की सुई घूमती नजर आ रही है। कयास ये लगाया जा रहा है कि तंवर के पास मिली करोड़ों की संपत्ति का कहीं न कहीं डॉ. गर्ग से भी कनैक्शन है। इस प्रकरण को शिक्षा मंत्री बृजकिशोर शर्मा के उस बयान की रोशनी में भी देखा जा रहा है कि जब डॉ. गर्ग का कार्यकाल समाप्त हो रहा था तो उन्होंने बाकायदा सार्वजनिक रूप से कहा था कि वे तो ये चाहते हैं कि डॉ. गर्ग को ही अध्यक्ष बनाया जाए, यह दीगर बात है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनकी सिफारिश को नजरअंदाज कर दिया।
हालांकि यह जांच में ही सामने आ पाएगा कि तंवर के पासा मिली संपत्ति का डॉ. गर्ग से कोई संबंध है या नहीं, मगर राजस्थान शिक्षक संघ (राधाकृष्णन) के प्रदेश अध्यक्ष विजय सोनी ने तो बाकायदा बयान जारी कर डॉ. गर्ग के कार्यकाल की जांच कराने की मांग कर डाली है। सोनी का आरोप है कि वित्तीय सलाहकार नरेंद्र तंवर ने डॉ. गर्ग की मिलीभगत से ही भ्रष्टाचार किया है। उन्होंने कहा कि एक ओर प्रायोगिक परीक्षाओं की राशि, उडनदस्तों की राशि व अन्य भुगतान अटके हैं, दूसरी ओर वित्तीय सलाहकार के कृपा पात्रों को करोड़ों रुपए के भुगतान इनके कार्यकाल में किए गए। ज्ञातव्य है कि सोनी उस वक्त भी आरोप लगाते रहते थे, जब कि डॉ. गर्ग पद पर थे, मगर उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह दब जाती थी।
ज्ञातव्य है कि भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी भी पूर्व में बोर्ड अध्यक्ष डॉ. गर्ग पर आरोप लगाते रहे हैं। उन्होंने निर्माण कार्यों व ठेकों में गड़बड़ी सहित आरटेट परीक्षा 2011 के दौरान बोर्ड को मिली बेरोजगार युवकों की फीस का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था और राज्य सरकार से डॉ. गर्ग के कार्यकाल की निष्पक्ष आयोग से जांच करवाने सहित उन्हें बर्खास्त करने की मांग की थी।
इस प्रकरण में अहम सवाल ये उठ रहा है कि डॉ. गर्ग के कार्यकाल में ही एफए नरेंद्र तंवर का तबादला अन्यत्र हो गया था, लेकिन इस तबादले को रद्द करवा कर उन्हें यहीं पदस्थापित किया गया। जानकारी ये भी मिली है कि एसीबी को तंवर के कक्ष में तलाशी के दैरान बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष का एक सिफारिशी पत्र भी मिला है, जिसमें तंवर को काम का आदमी बताते हुए तबादला निरस्त करने की बात लिखी है। इसी सिलसिले में अहम बात ये भी है कि बोर्ड के इतिहास में पहली बार एक ही अध्यक्ष और एफए के कार्यकाल में रिकार्ड निर्माण कार्य हुए। बोर्ड में बीते तीन साल में 40 करोड़ रुपए से अधिक के निर्माण कार्य हुए हैं। सवाल ये भी कि जिस आरएसआरडीसी के काम को पूर्व वित्तीय सलाहकार ने घटिया करार दे दिया था, उसी से बोर्ड ने सभी निर्माण कार्य कराए। बताया जाता है कि डॉ. सुभाष गर्ग की गुड बुक में शामिल तंवर की देखरेख में ही में निर्माण कार्य से लेकर रद्दी के ठेके, परीक्षा सामग्री के परिवहन संबंधी ठेके, पुस्तक प्रकाशन के लिए विभिन्न फर्मों से संबंधित टेंडर और इन छपी पुस्तकों के प्रदेश भर में पहुंचाने के टेंडर आदि हुए। बोर्ड ने 1970 से 2000 तक के विद्यार्थिर्यों के परीक्षा दस्तावेज के डिजिटलाइजेशन के लिए भी बड़ा ठेका किया। बोर्ड प्रबंधन ने गोपनीयता के नाम पर आज तक इस ठेके की राशि सार्वजनिक नहीं की है। बोर्ड ने दो बार आरटेट का आयोजन किया है। इसका अधिकतर कार्य भी एफए के हाथ में रहा है।
ज्ञातव्य है कि तंवर के अजमेर के पंचशील स्थित बंगले से बोर्ड की 54 करोड़ 70 लाख रुपए की एफडीआर मिली है। बोर्ड के निकट स्थित आईसीआईसीआई बैंक के लॉकर से करीब 3.50 लाख रुपए के सोने के सिक्के और नकदी बरामद हुई। जांच में आरोपी की संपति का आंकड़ा करीब 11 करोड़ पहुंच चुका है।
-तेजवानी गिरधर