रविवार, 23 जून 2013

सचिन के जिम्मे छोड़ें या नहीं, दखल तो उन्हीं का रहेगा

शहर जिला कांग्रेस कमेटी व ब्लॉक कांग्रेस कमेटी ने विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस प्रत्याशियों के चयन का फैसला सांसद व केंद्रीय कंपनी मामलात राज्यमंत्री सचिन पायलट पर छोड़ देने का भले ही पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती और डॉ. राजकुमार जयपाल की लॉबी ने विरोध किया हो, मगर सच ये है कि अजमेर जिले की विधानसभा टिकटों के फैसले में उनका ही दखल रहने वाला है।
ज्ञातव्य है कि शहर जिला कांग्रेस कमेटी की बैठक में शहर अध्यक्ष महेंद्र सिंह रलावता ने विधानसभा चुनाव में टिकट देने का फैसला सचिन पायलट पर छोडऩे का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया। इस पर पीसीसी सचिव ललित भाटी, मेयर कमल बाकोलिया, नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शाहनी, शहर कांग्रेस के उपाध्यक्ष कैलाश झालीवाल, प्रमिला कौशिक, प्रताप यादव, महामंत्री सुकेश काकरिया, राजनारायण आसोपा, राजेंद्र नरचल व प्रवक्ता राजेंद्र कुमार वर्मा समेत अन्य पदाधिकारियों ने प्रस्ताव पर अपने हस्ताक्षर किए। इससे पहले कांग्रेस के चारों ब्लॉक की बैठकों में भी अध्यक्ष विजय जैन, अशोक बिंदल, आरिफ हुसैन समेत अन्य पदाधिकारियों ने प्रत्याशी के चयन का फैसला सांसद सचिन पायलट पर ही छोड़ते हुए इसके समर्थन में एक लाइन का प्रस्ताव पारित किया।
इस पर कुलदीप कपूर का यह कहना तर्कसंगत लगता है कि टिकट का फैसला सचिन पायलट पर छोडऩा है तो पर्यवेक्षक यहां आए ही क्यों हैं। शायद उनकी भावना की कद्र करते हुए ही पर्यवेक्षक राजेश खेरा ने सभी दावेदारों से मिलना बेहतर समझा। मगर खुद वे भी जानते हैं वे तो मात्र एक दूत हैं, ऊपर तो सचिन की चलने वाली है।
भले ही पिछले दिनों जयपुर में फीडबैक के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने यह कह कर सचिन के जिम्मे टिकट निर्धारण का दायित्व डालने से इंकार कर दिया कि एक सांसद के भरोसे टिकट वितरण नहीं किया जाएगा, मगर सब समझते हैं कि यह एक औपाचारिक बयान था। टिकट वितरण में तो सचिन की चलेगी। इसका इशारा इसी बात से लगता है कि उन्होंने यह भी कहा था कि आपके पास तो सचिन जैसा डायनेमिक लीडर है। टिकट वितरण में सचिन की इस कारण भी चलेगी कि आज वे जिस ऊंचे स्थान पर काबिज हैं, उसे कायम रखने के लिए उन्हें अपना प्रभाव अजमेर जिले में साबित भी करना होगा। विशेष रूप से अजमेर की उत्तर व दक्षिण सीट जितवाना उनके लिए बेहद जरूरी है, जिस पर पिछले दस साल से भाजपा का कब्जा है।
यदि सचिन के कहने से ही टिकट दी गई तो स्वाभाविक है कि वे अजमेर दक्षिण में डॉ. राजकुमार जयपाल को कत्तई टिकट नहीं लेने देंगे। संभव है वे अजमेर दक्षिण में पूर्व उपमंत्री ललित भाटी पर हाथ रखें, जिन्होंने उन्हें लोकसभा चुनाव में जीतने में मदद की थी। अजमेर उत्तर की बात करें तो वे डॉ. श्रीगोपाल बाहेती की राह में सबसे बड़ा रोड़ा होंगे। देखने वाली बात ये होगी कि वे शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता पर हाथ रखते हैं या फिर किसी सिंधी को प्राथमिकता देते हैं। सिंधियों में एसीबी की जाल में फंसे नरेन शहाणी भगत का दावा कमजोर होने के बाद वे किस सिंधी पर हाथ रखते हैं, ये तो वक्त ही बताएगा।
यहां यह बताना प्रासंगिक ही रहेगा कि पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस व भाजपा की स्थिति क्या थी?
अजमेर उत्तर में भाजपा के प्रो. वासुदेव देवनानी ने कांग्रेस के डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को 688 मतों से हराया था, जबकि लोकसभा चुनाव में यहां भाजपा ने अपनी बढ़त बढ़ाई और किरण माहेश्वरी को सचिन की तुलना में 2 हजार 948 वोट ज्यादा मिले थे। वजह ये रही कि विधानसभा चुनाव में सिंधी मतदाता देवनानी के पक्ष में लामबंद हो गया था, जबकि लोकसभा चुनाव में वह फैक्टर समाप्त हो गया। अजमेर दक्षिण में भाजपा की श्रीमती अनिता भदेल ने कांग्रेस के डॉ. राजकुमार जयपाल को 19 हजार 306 मतों से पराजित किया। लोकसभा चुनाव में भाजपा की तो बढ़त सिमटी ही,  सचिन ने किरण से 2 हजार 157 वोट ज्यादा लिए। इसकी वजह ये रही कि विधानसभा चुनाव में बागी बन कर खड़े हुए पूर्व उप मंत्री ने कांग्रेस को 15 हजार 610 वोटों का झटका दिया था, जबकि वे लोकसभा चुनाव में सचिन के कहने से पार्टी में लौट आए। विधानसभा चुनाव में चले सिंधीवाद के लोकसभा चुनाव में गायब होने को भी एक वजह माना जाता है।
बहरहाल, अजमेर की दोनों टिकटें सचिन की सहमति से दी गईं तो उन पर कांग्रेस प्रत्याशियों को जिताने की जिम्मेदारी भी उन्हें ही वहन करनी होगी।
-तेजवानी गिरधर

भगत के उलझने से गैर सिंधी दावेदारों का रहेगा दबाव

एसीबी द्वारा लैंड फॉर लैंड मामले में मुकदमा दर्ज करने के बाद यूआईटी अध्यक्ष नरेन शाहनी भगत का अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र का दावा कमजोर हो सकता है और इसी कारण गैर सिंधी दावेदारों का दबाव बढ़ जाएगा।
पिछली बार कांग्रेस ने गैर सिंधी का प्रयोग करते हुए पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को टिकट दिया, मगर सिंधी-गैर सिंधीवाद भड़कने के कारण वे हार गए। हालांकि हार का अंतर लगभग छह सौ वोट का ही रहा, मगर इससे लगने लगा कि कांग्रेस आगामी चुनाव में दुबारा गैर सिंधी को टिकट देने का खतरा शायद ही मोल ले। मगर भगत का दावा कमजोर होने की स्थिति में समीकरण कुछ बदल गए हैं। वे सिंधी दावेदारों से सबसे ज्यादा मजबूत माने जाते हैं। पार्टी उन्हें एक बार टिकट दे चुकी है, मगर वे पूर्व विधायक नानकराम जगतराय के बागी हो कर खड़े हो जाने के कारण हार गए। हार का अंतर चूंकि मात्र 2 हजार 240 था, इस कारण उनका दावा पिछली बार भी मजबूत था। इस बार उन्होंने अपनी तैयारी टिकट लेने के हिसाब से करना शुरू की, मगर एसीबी की चपेट में आ गए। उनके बाद यूं तो दावेदार कई हैं, मगर कांग्रेस उन पर विचार करने से पहले ये भी आंकेगी कि वे जीताऊ भी हैं या नहीं। सिंधी दावेदारों में डिप्टी सीएमएचओ डॉ. लाल थदानी, युवा नेता नरेश राघानी, पूर्व पार्षद रमेश सेनानी, हरीश हिंगोरानी, पूर्व पार्षद हरीश मोतियानी आदि की गिनती होती है। कांग्रेस पार्षद रश्मि हिंगोरानी भी दावेदारों में शुमार हो सकती हैं, जो कि सिंधी होने के साथ-साथ महिला कोटे का लाभ लेना चाहेंगी। उनके अतिरिक्त पूर्व आईएएस अधिकारी एम. डी. कोरानी के पुत्र शशांक कोरानी दमदार हो सकते हैं और वे चाहें टिकट ला भी सकते हैं। इसकी वजह ये है कि जहां एम. डी. कोरानी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी हैं, वहीं शशांक कोरानी अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के दोस्त हैं। मगर अभी उनका मानस स्पष्ट नहीं है।
यदि कांग्रेस को कोई उपयुक्त सिंधी दावेदार नहीं मिला तो फिर गैर सिंधी को आजमाया जा सकता है। उनमें सबसे प्रबल दावेदार मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले डॉ. बाहेती को माना जाता है। चूंकि उनकी हार का अंतर कोई खास नहीं रहा था, इस कारण वे फिर से दावेदारी करने की स्थिति में हैं। हालांकि पिछली हार के कारण काफी हतोत्साहित थे, मगर बदले हालात में उन्होंने जमीन पर अपने आप को मजबूत करना शुरू कर दिया है। पिछली बार हार की एक वजह उनका ओवर कॉन्फीडेंस था। इस बार वे संभल कर रहेंगे। वैसे उनको टिकट देने के लिए पायलट सहमत होंगे, इसमें थोड़ा संशय है। उनके अतिरिक्त शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता भी मजबूत दावेदार हैं। उनकी सीधी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह तक पकड़ है। वे पायलट खेमे के भी हैं। वे संगठन के अध्यक्ष पद पर काबिज तो हैं, मगर संगठन दो फाड़ की स्थिति में है, इस कारण उनका दावा कमजोर होता है। वैसे भी उनकी समाज के वोट इतने नहीं कि कांग्रेस उन पर जातीय समीकरण के तहत दाव खेल सके। शहर कांगे्रस के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग भी दावा कर सकते हैं। पिछली बार उन्होंने टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में परचा भरा था, मगर कांग्रेस आलाकमान के आग्रह पर परचा वापस ले लिया। इस बार फिर वे दावेदारी कर सकते हैं। उन्होंने भी जयपुर-दिल्ली तक अपने संपर्क सूत्र बना रखे हैं, मगर उनका खुलासा कम ही करते हैं। शहर जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री सुकेश काकरिया व महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सबा खान भी दावेदारों में शुमार हैं।
-तेजवानी गिरधर