सोमवार, 18 जून 2012

क्या भागवत के कन्हैया सोनी के घर रुकने के कोई मायने हैं?


सिंधुपति महाराजा दाहरसेन के बलिदान दिवस पर आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में अजमेर आए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत कार्यक्रम के अतिरिक्त कहां ठहरेंगे, इसको लेकर अनेक प्रकार के कयास लगाए जा रहे थे। कोई कह रहा था कि संघ पृष्ठभूमि के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी कोशिश रहेगी कि वे उन्हें अपने यहां ले जाएं ताकि उनके खिलाफ एकजुट हो चुके भाजपाइयों को झटका दिया जा सके। कुछ लोगों की तो बाकायदा इस पर नजर भी थी कि देवनानी के घर व गली की रंगाई-पुताई तो नहीं हुई है या सुरक्षा इंतजाम तो नहीं किए गए हैं। कदाचित कुछ ऐसे भी हों, जिन्होंने प्रयास भी किए हों कि भावगत उनके घर न जाएं।
कोई कह रहा था कि वे किसी भी ऐसे स्वयंसेवक के घर जाएंगे, जिसका राजनीति से सीधा कोई वास्ता न हो। अगर ऐसा है तो यह वाकई विडंबनापूर्ण है कि अपने ही राजनीतिक चेहरे भाजपा से संघ कैसे दूर रहना चाहता है। अर्थात इस परिवार में दो दर्जे के लोग हैं। एक वे जो सीधे संघ से जुड़े हुए हैं और एक वे जो कभी संघ की शाखाओं में नहीं गए, मगर हैं भाजपा में। जाहिर तौर जो संघ पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ नहीं है, वह संघ की नजर में दोयम दर्जे का है। खैर, बात चल रही थी भागवत के ठहरने की। कोई कह रहा था कि वे ऐसे स्वयंसेवक के घर ठहरेंगे, जो बहुत जाना पहचाना चेहरा न हो, कहीं वह इसको भुना न ले। कई तरह की बातें थीं, मगर संघ के चंद प्रमुख कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त किसी को जानकारी नहीं थी कि वे आखिर कहां ठहरेंगे।
बहरहाल, आखिरकार वे हरिभाऊ उपाध्याय नगर विस्तार में दाहरसेन स्मारक से कुछ ही दूर संघ के कार्यकर्ता कन्हैया सोनी के यहां ठहरे। यूं तो इसके कोई मायने नहीं हैं कि वे वहां क्यों ठहरे, मगर चूंकि संघ की चाल ढ़ाई घर वाली होती है, इस कारण स्थानीय राजनीतिक हलकों में इसकी चर्चा जरूर शुरू हो गई है। आपको बता दें कि ये कन्हैया सोनी निहायत सज्जन हैं और उनकी भाजपा की सक्रिय राजनीति में कुछ खास रुचि नहीं है। ये वे ही हैं, जो पिछली बार भाजपा शासनकाल के दौरान नगर सुधार न्यास के ट्रस्टी बनाए गए थे। अपने कार्यकाल के दौरान दाहरसेन स्मारक की खैर खबर लेते रहे, मगर इस वजह से राजनीतिक रूप से चर्चा में नहीं रहे। कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी वे अखबारों की सुर्खियों में नहीं रहे। लेकिन अब जब कि वे भागवत के जजमान बने तो चर्चा में आ गए हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं और भाजपा का टिकट किसे मिलेगा, इसका कुछ अता-पता नहीं, मगर कुछ प्रमुख दावेदारों में उनका नाम भी शुमार हो गया है। तर्क सिर्फ ये है कि संघ का कुछ पता नहीं, ऐन वक्त पर किस पर हाथ रख दे, जिसकी कि भले ही राजनीतिक पृष्ठभूमि अथवा अनुभव न रहा हो। अजमेर के इतिहास में ऐसे एकाधिक उदाहरण हैं। प्रमाण है नवलराय बच्चानी, हरीश झामनानी, वासुदेव देवनानी, अनिता भदेल, श्रीकिशन सोनगरा, के नाम। और संघ उनको जिनवा भी लाता है। एक तथ्य ये भी माना जाता है कि अजमेर की दोनों सीटें संघ के खाते में हैं।
ज्ञातव्य है कि लगातार दो बार विधायक रहे प्रो. वासुदेव देवनानी का दावा सबसे प्रबल माना जाता है, मगर चूंकि भाजपा का एक बड़ा धड़ा उनकी कार सेवा कर रहा है, इस कारण कुछ संशय पैदा होता है। पिछली बार भी उन्हें बड़े पापड़ बेलने पड़े थे। उनके अतिरिक्त प्रमुख रूप से उभरने वालों में स्वामी समूह के एमडी कंवलप्रकाश किशनानी का नाम आता है। भामस नेता महेन्द्र तीर्थानी भी पंक्ति में बताए जाते हैं। रहा सवाल पूर्व शहर महामंत्री तुलसी सोनी का तो उन्होंने देवनानी के चक्कर में पार्षद का चुनाव हार कर खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। ऐसी ही गलती जाने-माने वकील अशोक तेजवानी से हो गई। नाम तो प्रमुख समाजसेवी जगदीश वच्छानी का भी लेने में कोई हर्ज नहीं है, मगर बताते हैं कि उन्हें गुरू स्वामी हिरदाराम जी महाराज मना कर गए कि सक्रिय राजनीति में मत जाना।
अव्वल तो भाजपा किसी गैर सिंधी को शायद ही टिकट दे, मगर बाइ द वे ऐसा होता है तो फिर कई की लार टपक सकती है। प्रमुख रूप से लाला बन्ना के नाम से चर्चित पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत का नाम सबसे ऊपर है। वो तो देवनानी का संघ वाला हथियार चल गया, वरना वे तो पिछली बार ही प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर से घनिष्ठ संबंधों के चलते टिकट हासिल कर चुके थे। बड़े नामों में आप पूर्व शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेडा व पूर्णाशंकर दशोरा, पूर्व न्यास अध्यक्ष धर्मेश जैन, संघ के महानगर प्रमुख सुनील जैन, पूर्व नगर निगम मेयर धर्मेद्र गहलोत व पूर्व डिप्टी मेयर सोमरत्न आर्य, सतीश बंसल आदि को शुमार कर सकते हैं। माफ कीजिएगा, कोई नाम रह गया हो तो मेहरबानी करके बुरा न मानिये, अगली बार उनका भी जिक्र कर दिया जाएगा। पार्षद ज्ञान सारस्वत भी दावेदारी की तैयार कर रहे हैं। उन्होंने तो बाकायदा जमीन पर काम भी शुरू कर रखा है। एक और पार्षद जे. के. शर्मा की भी बड़ी इच्छा है कि साफ सुथरी छवि के आधार पर उनको मौका मिलना चाहिए। अब ये देखने वाली बात होगी होता क्या है?

-तेजवानी गिरधर
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