बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

आप में शुरू हुई तू-तू मैं-मैं


कीर्ति पाठक
कीर्ति पाठक
जैसे महल हो या झौंपड़ी, कहीं भी आग लग सकती है, वैसे ही पद का झगड़ा ऐसा है, जो हर जगह होता है। शैशव काल से गुजर रही गिनती के सदस्यों वाली आम आदमी पार्टी की अजमेर इकाई में भी पद को लेकर तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई है। हुआ असल में यूं कि पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता नील शर्मा को कार्यकर्ता-संगठन संयोजक अजमेर की जिम्मेदारी दिए जाने पर उन्हें फेसबुक पर पार्टी की अजमेर प्रभारी श्रीमती कीर्ति पाठक की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं दी गईं और आशा व्यक्त की गई कि आप के सहयोग से आम आदमी पार्टी अजमेर में संगठन का काम दु्रत गति से आगे बढ़ेगा।
इस पर पार्टी के एक हितचिंतक बुजुर्ग केशवराम सिंघल ने प्रतिक्रिया दी कि -मुझे आश्चर्य हुआ.... क्या श्री राजेंद्र सिंह हीरा, जो इस पद पर कार्य कर रहे हैं, उन्हें कब हटाया गया, किसने हटाया? पार्टी की एक बैठक में मुझे तो बताया गया था कि कार्यकर्ता/संगठन संयोजक श्री राजेंद्र सिंह हीरा हैं। मुझे पता चला कि श्री राजेंद्र सिंह हीरा ने राज्य सम्मेलन में भी इस पद की हैसियत से 17 फरवरी 2013 को भाग लिया था। आपके इस समाचार से मुझे आश्चर्य हुआ।
इस पर प्रतिप्रतिक्रिया करते हुए श्रीमती पाठक ने लिखा कि-केशवराम सिंघल जी, कल की कार्यकारिणी बैठक में सर्वसम्मति से ये निर्णय लिया गया था। राजेन्द्र सिंह जी अब इस जिम्मेदारी को नहीं निभा रहे हैं। और एक बात, आम आदमी पार्टी में कोई भी पद नहीं होता। यहां सब अपने को दी गई जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हैं।
केशवराम सिंघल
केशवराम सिंघल
हालांकि यह पार्टी के अंदर का मामला है कि वह किसे जिम्मेदारी देती है या नहीं। इसके अतिरिक्त श्रीमती पाठक जैसी जिम्मेदार पदाधिकारी जो कह रही हैं, वह सही ही होगा, मगर जिस तरह फेसबुक पर सार्वजनिक रूप से इस पद को लेकर क्रिया-प्रतिक्रिया हुई है, उससे लगता है कि जरूर कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ हुई है।
बहरहाल, पारदर्शिता की पैराकार आम आदमी पार्टी की पारदर्शिता जब फेसबुक पर आती है तो यह एक सुखद बात है कि वहां सब कुछ पारदर्शी है।
-तेजवानी गिरधर

क्या नए एसपी हटाएंगे मदारगेट से ठेले?

gaurav shrivastavकहा जाता है कि अजमेर जिले के नए पुलिस कप्तान गौरव श्रीवास्तव काफी कड़क और ऊर्जावान हैं, इसी कारण उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे भ्रष्टाचार का दाग झेल रही अजमेर की पुलिस को सुधारने के लिए कुछ कदम उठाएंगे। खुद उन्होंने भी पदभार संभालते ही कहा था कि वे ईमानदारी की मिसाल पेश करेंगे। ऐसे ईमानदार पुलिस कप्तान से उम्मीद की जा सकती है कि वे शहर के हृदय स्थल मदारगेट पर यातायात के लिए मुसीबत का सबब बने हुए ठेलों को हटवाएंगे।
यहां यह लिखना प्रासंगिक ही होगा कि जब अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल पर बाजार के व्यापारियों की एकजुटता से एक ओर जहां शहर के इस सबसे व्यस्ततम बाजार मदारगेट की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने का बरसों पुराना सपना साकार रूप ले रहा था, तब पूर्व पुलिस कप्तान राजेश मीणा के रवैये के कारण नो वेंडर जोन घोषित इस इलाके को ठेलों से मुक्त नहीं किया जा पाया।
MadarGateमीणा यह कह कर ठेले वालों को हटाने में आनाकानी कर रहे थे कि पहले निगम इसे नो वेंडर जोन घोषित करे और पहल करते हुए इमदाद मांगे, तभी वे कार्यवाही के आदेश देंगे। उनका तर्क ये भी बताया जा रहा था कि पहले नया वेंडर जोन घोषित किया जाए, तब जा कर ठेले वालों को हटाया जाना संभव होगा। असल बात ये है कि संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में गठित समिति मदार गेट को पहले से ही नो वेंडर जोन घोषित कर चुकी है। मीणा के तर्क के मुताबिक उसे निगम की ओर से नए सिरे से नो वेंडर जोन घोषित करने की जरूरत ही नहीं। पुलिस को खुद ही कार्यवाही करनी चाहिए। रहा सवाल मीणा के पहले वेंडर जोन घोषित करने का तो स्वाभाविक रूप से जो इलाका नो वेंडर जोन नहीं है, वही वेंडर जोन है। अव्वल तो उनका इससे कोई ताल्लुक ही नहीं कि ठेले वालों को नो वेंडर जोन से हटा कर कहां खड़ा करवाना है। उनके इस तर्क से तो वे ठेले वालों की पैरवी कर रहे प्रतीत होते थे। इसे भले ही साबित करना थोड़ा कठिन हो कि पुलिस वाले ठेले वालों से मंथली लेते हैं, मगर सच्चाई यही बताई जाती है। यदि वे ठेलों को हटाते हैं तो उसकी मंथली मारी जाती है। निलंबित एसपी मीणा को तो कदाचित यह जानकारी थी ही, नए एसपी श्रीवास्तव को भी जानकारी हो चुकी होगी। देखते हैं इस आरोप से मुक्त होने के लिए ही सही, वे कोई कार्यवाही करते हैं या नहीं? क्या ईमानदार पुलिस प्रशासन देने का वादा करने वाले श्रीवास्तव इस पर गौर करते हैं या नहीं? अगर वे कुछ करते हैं तो इससे एक तो उनका वादा पूरा होगा, वहीं शहर की जनता को मदार गेट पर सुगम यातायात हासिल हो सकेगा, जो कि वर्षों पुरानी जरूरत है।
-तेजवानी गिरधर

पुष्कर में आखिर कब थमेगी विदेशियों की नंगाई?

pushlar touristहाल ही जर्मनी के एक सिरफिरे विदेशी पर्यटक ने तीर्थराज पुष्कर के बद्री घाट चौक में ऊलजुलूल हरकतें कर बीच बाजार में मजमा लगा दिया। बाजार में जानवरों की भांति उछल-कूद करने लगा। मूत्रालय की दीवारों पर करीब एक घंटे तक लंबी-लंबी छलांग लगाने का अभ्यास करता रहा। जानकारी के अनुसार वह होटल में भी ऐसी ही हरकतें करता रहा। उछल-कूद करते हुए पड़ोसियों के घरों में भी जाता रहा। करीब एक घंटे तक हंगामा मचाने के बाद मौके पर पहुंची पर्यटक पुलिस ने उसे धर-दबोचा और दोबारा ऐसी हरकतें नहीं करने की हिदायत देकर छोड़ दिया।
किसी विदेशी का तीर्थराज में इस प्रकार की हरकतें करने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई बार विदेशी पर्यटक इस प्रकार की नंगाई कर चुके हैं। कई बार पुष्कर की पवित्रता को भंग करते हुए अश्लील हरकतें कर चुके है। और यह भी एक कड़वा सच है कि ऐसा वे मादक पदार्थों का सेवन करने के बाद ज्यादा करते हैं। सवाल ये उठता है कि आखिर यह सिलसिला कब तक चलेगा? आखिर कब तक इन्हें छोटी-मोटी कानूनी कार्यवाही अथवा हिदायत दे कर छोड़ा जाता रहेगा? आखिर कभी इस पर पूरी तरह रोक लगेगी या भी नहीं? कभी उनसे पूछा भी गया है कि क्या वे अपने देश में भी इसी तरह नंगाई करते हैं? क्या उन्हें अपने देश में इस प्रकार भद्दा प्रदर्शन करने की पूरी आजादी है? कैसे मान लें कि हमें दकियानूसी और पिछड़ा मानने वाले हमसे कहीं ज्यादा सभ्य हैं? कैसे मान लें कि वे हमसे ज्यादा सुसंस्कृत हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि जो कुछ करने की उनके देश में आजादी नहीं है, उसकी कुंठा की पूर्ति यहां की लचर कानून व्यवस्था का फायदा उठा कर हमारी संस्कृति को तार-तार किए दे रहे हैं? अफसोसनाक बात है कि आए दिन इस प्रकार की घटनाएं होती रहती हैं, मगर आज तक इसका स्थाई समाधान नहीं खोजा जा सका है।
यह सही है कि पर्यटन महकमे की ओर किए जाने वाले प्रचार-प्रसार के कारण यहां विदेशी पर्यटक खूब आकर्षित हुए हैं और सरकार की आमदनी बढ़ी है, मगर विदेशी पर्यटकों की वजह से यहां की पवित्रता पर भी संकट आया है। असल में पुष्कर की पवित्रता उसके देहाती स्वरूप में है, मगर यहां आ कर विदेशी पर्यटकों ने हमारी संस्कृति पर आक्रमण किया है। होना तो यह चाहिए कि विदेशी पर्यटकों को यहां आने से पहले अपने पहनावे और चाल-चलन पर ध्यान देने के कड़े निर्देश जारी किए जाने चाहिए। उन्हें पहले से ही पाबंद किया जाना चाहिए कि उन्हें यहां ऊलजुलूल हरकतें करने की आजादी कत्तई नहीं दी जाएगी। संबंधित पयर्टक एजेंसियों को भी इस बारे में पहले से आगाह किया जाना चाहिए। जैसे मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे में जाने से पहले सिर ढ़कने और जूते उतारने के नियम हैं, वैसे ही पुष्कर में भ्रमण के भी अपने कायदे होने चाहिए। यद्यपि इसके लिए कोई ड्रेस कोड लागू नहीं किया सकता, मगर इतना तो किया ही जा सकता है कि पर्यटकों को सख्त हिदायत हो कि वे अद्र्ध नग्न अवस्था में पुष्कर की गलियों या घाटों पर नहीं घूम सकते। होटल के अंदर कमरे में वे भले ही चाहे जैसे रहें, मगर सार्वजनिक रूप से अंग प्रदर्शन नहीं करने देना चाहिए। इसके विपरीत हालत ये है कि अंग प्रदर्शन तो दूर विदेशी युगल सार्वजनिक स्थानों पर आलिंगन और चुंबन करने से नहीं चूकते, जो कि हमारी संस्कृति के सर्वथा विपरीत है। कई बार तो वे ऐसी मुद्रा में होते हैं कि देखने वाले को ही शर्म आ जाए। यह ठीक है कि उनके देश में वे जैसे भी रहते हों, उसमें हमें कोई ऐतराज नहीं, मगर जब वे हमारे देश में आते हंै तो कम से कम यहां की मर्यादाओं का तो ख्याल रखें। विशेष रूप तीर्थ स्थल पर तो गरिमा में रह ही सकते हैं। विदेशी पर्यटकों के बेहूदा कपड़ों में घूमने से यहां आने वाले देशी तीर्थ यात्रियों की मानसिकता पर बुरा असर पड़ता है। वे जिस मकसद से तीर्थ यात्रा को आए हैं और जो आध्यात्मिक भावना उनके मन में है, वह खंडित होती है। जिस स्थान पर आ कर मनुष्य को अपनी काम-वासना का परित्याग करना चाहिए, यदि उसी स्थान पर विदेशी पर्यटकों की हरकतें देख कर तीर्थ यात्रा का मन विचलित होता है तो यह बेहद आपत्तिजनक और शर्मनाक है। कई बार तो ऐसा लगता है कि विदेशी पर्यटक जानबूझ कर अद्र्धनग्न अवस्था में निकलते हैं, ताकि स्थानीय लोग उनकी ओर आकर्षित हों। जब स्थानीय लोग उन्हें घूर-घूर कर देखते हंै, तो उन्हें बड़ा रस आता है। जाहिर तौर पर जब दर्शक को ऐसे अश्लील दृश्य आसानी से सुलभ हो तो वे भला क्यों मौका गंवाना चाहेंगे। स्थिति तब और विकट हो जाती है जब कोई तीर्थ यात्री अपने परिवार के साथ आता है। आंख मूंद लेने के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं रह जाता।
यह भी एक कड़वा सत्य है कि विदेशी पर्यटकों की वजह से ही पुष्कर मादक पदार्थों की मंडी बन गया है, जिससे हमारी युवा पीढ़ी बर्बाद होती जा रही है। इस इलाके एड्स के मामले भी इसी वजह से सामने आते रहे हैं।
यह सही है कि तीर्थ पुरोहितों ने पुष्कर की पवित्रता को लेकर अनेक बार आंदोलन किए हैं, कहीं न कहीं वे भी अपनी आमदनी के कारण आंदोलनों को प्रभावी नहीं बना पाए हैं। तीर्थ पुरोहित पुष्कर में प्रभावी भूमिका में हैं। वे चाहें तो सरकार पर दबाव बना कर यहां का माहौल सुधार सकते हैं। यह न केवल उनकी प्रतिष्ठा और गरिमा के अनुकूल होगा, अपितु तीर्थराज के प्रति लोगों की अगाध आस्था का संरक्षण करने के लिए भी जरूरी है।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

सचिन से बाजी मार गए सी. पी. जोशी


बेशक केन्द्रीय मंत्रीमंडल में अजमेर का पहली बार प्रतिनिधित्व करने वाले स्थानीय सांसद सचिन पायलट पर यहां की जनता को नाज है और उन्होंने अपनी पहुंच के अनुरूप अनेक काम भी किए हैं, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार रेल बजट में भीलवाड़ा के सांसद व केन्द्रीय केबिनेट मंत्री सी. पी. जोशी उनसे बाजी मार गए हैं। बेहद आश्चर्य की बात है कि अजमेर में जमीन एवं अन्य आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध होने के बाद भी मेन लाइन इलैक्ट्रिकल मल्टीपल यूनिट अर्थात मेमू के निर्माण के लिए फैक्ट्री भीलवाड़ा में लगेगी। इस पर एक हजार करोड़ रु. खर्च होंगे। यह योजना 802 बीघा जमीन पर विकसित की जाएगी। यह अजमेर वासियों के लिए एक झटका है। विशेष रूप से इसलिए कि अजमेर के खैरख्वाह सचिन पायलट दिल्ली में बैठे हुए हैं। अर्थात जोशी के मुकाबले वे कमजोर साबित हुए हैं। इसी प्रकार एग्जीक्यूटिव लॉन्ज व रेल नीर प्लांट भी जयपुर को मिलने का अर्थ है कि रेलवे के लिहाज से जयपुर अजमेर के मुकाबले लगातार आगे बढ़ रहा है। पूर्व में जोनल दफ्तर पर अजमेर का हक होने के बावजूद उसे जयपुर में स्थापित किया गया था।
हां, इतना जरूर है कि सचिन ने पुष्कर से मेड़ता व अजमेर से कोटा तक रेल लाइन डालने की घोषणा करवा कर एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। दोनों ही रेलमार्ग अजमेर के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं। दोनों योजनाएं लंबे समय से लंबित थी। दोनों रेल मार्ग का सर्वे हो चुका था, सिर्फ एस्टीमेट पर वित्तीय मंजूरी बाकी थी। बजट में इनका प्रावधान करवाने के लिहाज से सचिन धन्यवाद के पात्र हैं, मगर जहां तक कुछ नया दिलाने की बात है, उसमें जोशी ने बाजी मार ली है।
रेल बजट में पुष्कर-मेड़ता रेल लाइन के प्रावधान की बात करें तो यह काफी महत्वपूर्ण है। इससे पर्यटन, तीर्थ और यात्री सुविधाओं में विस्तार होगा ही, लेकिन इससे पश्चिमी राजस्थान और पंजाब के सीमावर्ती शहरों तक सैन्य पहुंच आसान हो जाएगी। यह रेल मार्ग बनने से अजमेर-जयपुर के रास्ते दिल्ली का एक शॉर्ट कट रूट जोधपुर, बीकानेर को मिल जाएगा। जोधपुर और अजमेर के बीच रेल मार्ग से सफर की अवधि दो-ढ़ाई घंटे कम हो जाएगी। वर्तमान में जोधपुर से अजमेर आने-आने में करीब 6 घंटे लगते हैं, पुष्कर-मेड़ता मार्ग से जोधपुर का सफर तीन-साढ़े तीन घंटे का ही हो जाएगा। इसके अतिरिक्त सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बीकानेर, कोलायत, फलोदी, बाड़मेर, जैसलमेर के लिए भी सीधा मार्ग बन जाएगा।
ज्ञातव्य है कि अजमेर-पुष्कर रेल लाइन का अभी तक कोई खास उपयोग नहीं हो रहा है। कहने भर को अजमेर व पुष्कर रेल लाइन मार्ग से जुड़े हुए हैं, मगर इस मार्ग से चंद लोग ही यात्रा कर रहे हैं। जितना इस मार्ग पर ट्रेन चलाने का खर्च होता है, उसके मुकाबले आय नगण्य है। पुष्कर के मेड़ता से जुड़ जाने के बाद इसका वास्तविक लाभ मिलेगा। हालांकि रेल लाइन डालने में समय लगेगा, मगर कम से कम श्रीगणेश तो होगा। एक बार शुरू हो जाने के बाद पूरा तो होगा, देर से ही सही। इसी प्रकार अजमेर-कोटा रेल लाइन से पर्यटन और व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा। अजमेर और कोटा में स्थित उच्च शिक्षा संस्थानों को प्रदेश और देश के अन्य हिस्से से जुड़ाव होगा।
रहा सवाल नई ट्रेनों को तो सचिन के प्रयास से तीन नई रेल सेवाएं शुरू करने और छह ट्रेनों का विस्तार करने की घोषणा की गई है, मगर अजमेर के धार्मिक व पर्यटन की दृष्टि से महत्व के मद्देनजर विशेष रेल सुविधाओं की घोषणा नहीं की गई। तीन साल पहले रेल बजट में अजमेर में वल्र्ड क्लास रेलवे स्टेशन बनाने की घोषणा भी धरी रह गई है।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

राजस्थान राजस्व मंडल में निबंधक भी बाहर का

Revenue Board 4राजस्व मामलों का सर्वोच्च संस्थान राजस्थान राजस्व मंडल सरकार की अनदेखी का शिकार है। इसमें सदस्यों का अभाव तो रहता ही है, अधिकारियों की स्वीकृत पद भी समय पर नहीं भरे जाते। आलम ये है कि निबंधक जैसा जरूरी पद भी रिक्त पड़ा है, जिसका अतिरिक्त कार्यभार मंडल अध्यक्ष उमराव मल सालोदिया ने अतिरिक्त संभागीय आयुक्त हनुमान सिंह भाटी को सौंपा है। कैसी विडंबना है कि निबंधक जैसे अहम पद पर भी स्थाई अधिकारी की नियुक्ति नहीं हो पा रही और अध्यक्ष को काम चलाने के लिए बाहर से अधिकारी को अतिरिक्त काम सौंपना पड़ रहा है। ऐसे में समझा जा सकता है कि एक ही अधिकारी दो महत्वपूर्ण पदों का काम एक साथ कैसे निबटा सकता है। असल में राजस्थान राजस्व मंडल पिछले लम्बे समय से राज्य सरकार की अनदेखी का शिकार बना हुआ है। प्रदेश भर के कास्तकारों के मामले निबटाने वाला राजस्व मंडल सदस्यों की कमी को भुगतने पर मजबूर हैं।
ज्ञातव्य है कि राजस्थान राजस्व मंडल में हर दिन प्रदेशभर के सैंकड़ों कास्तकार न्याय की आशा में आते हैं। न्याय की अवधारणा कहती है की न्याय तभी न्याय है, जब वो समय पर मिले काश्तकार को समय पर न्याय मिले यह सुनिश्चित करना राज्य सरकार का काम है, लेकिन शायद राजस्व मंडल राज्य सरकार की प्राथमिकता में शुमार नहीं। राजस्व मंडल में कहने को तो सदस्यों के 20 पद हैं, मगर कभी इन को पूर्ण रूप से नहीं भरा गया। कहने की जरूरत नहीं कि सदस्य ही विभिन्न मुकदमों को सुनते हैं और फैसले सुनाते हैं। प्रदेश भर के राजस्व मामलों की अपील का निस्तारण भी यहीं किया जाता है। बावजूद इसके हालत ये है कि यहां आईएएस कोटे के 6 पद हैं और सभी रिक्त हैं। अब या तो सरकार को इन पदों पर नियुक्तियों के लिए आईएएस अधिकारी नहीं मिल रहे हैं या फिर आईएएस अधिकारी इन पदों पर लगना नहीं चाहते क्यों कि आईएएस अधिकारियों के लिए सदस्य पद बर्फ में लगाए जाने के समान है। यहां आरएएस कोटे के 6 पद हैं, जिनमें से सरकार ने 5 पद भरे हैं, लेकिन इनमें से भी 3 आरएएस अधिकारी पदोन्नत हो कर आईएएस बने हैं और अब उन्हें इस पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है। राजस्व मंडल में न्यायिक कोटे का एक पद रिक्त है तो वकील कोटे के दो पद हैं, लेकिन दोनों ही पिछले कई सालों से खाली चल रहे हैं। एक कड़वा सच ये भी है कि कई बार मंडल सदस्य अधिकारी यहां स्थाई रूप से रहने की बजाय सर्किट हाउस में ही ठहरते हैं और हर शनिवार व रविवार उनकी अपने घर जाने की प्रवृत्ति रहती है। इस मामले को राजस्थान राजस्व मंडल बार एसोसिएशन लगातार सरकार के सामने उठाती रही हैं, लेकिन आज तक राज्य सरकार ने इस मामले में गंभीरता नहीं दिखाई।
राजस्व मंडल की इस बदहाली को प्रदेश भर से आने वाले सैंकड़ों काश्तकार रोजाना भुगतने को मजबूर हैं। मंडल में गिनती के सदस्य सुनवाई का काम कर रहे हैं, उनके बस की बात नहीं कि वे रोजाना सुचिबद्ध होने वाले मुकदमों का निस्तारण कर काश्तकारों को राहत दे पाएं। नतीजतन मुकदमों में फैसले के स्थान पर अगली तारीख दे दी जाती है।
लब्बोलुआब, काश्तकारों की समस्याओं को प्राथमिकता से दूर करने का दम भरने वाली राज्य सरकार का ध्यान कब राजस्थान राजस्व मंडल की और जायेगा, यह देखने वाली बात होगी।
-तेजवानी गिरधर

आनंद सिंह राजावत ने बढ़ा लिया अपना कद

राजस्थान विधानसभा में हाल ही नेता प्रतिपक्ष का पद संभालने वाले दिग्गज भाजपा गुलाबचंद कटारिया का अजमेर में विशेष स्वागत कार्यक्रम कर भाजपा के बजरंग मंडल अध्यक्ष आनंद सिंह राजावत ने अपना कद बढ़ा लिया है। कार्यक्रम में कार्यक्रम में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव डॉ. किरीट सोमैया को बुलवा कर भी राजावत ने एक उपलब्धि हासिल की है।
DSC_0106दिलचस्प है कि मंडल के इस कार्यक्रम में शहर भाजपा के अधिसंख्य नेता मौजूद थे, मगर चूंकि इसका आयोजन राजावत ने किया, इस कारण सारी क्रेडिट उन्हीं के खाते में चली गई। सच तो ये है कि राजावत ने अपने स्तर पर ही कटारिया के स्वागत कार्यक्रम बनाया और कटारिया इसके लिए राजी भी हो गए। इसके लिए शहर के अन्य नेताओं की सलाह की जरूरत भी नहीं समझी गई। इतना ही नहीं, राजावत ने अपने मंडल कार्यकर्ताओं के दम पर ही कार्यक्रम का सफल भी बनवा लिया। रेखांकित करने वाली बात ये रही कि पूरे कार्यक्रम को उन्होंने अपने हाथ में ही रखा और किसी को दखल करने नहीं दिया। इस प्रकार वे शहर भाजपा की राजनीति में उभर कर अग्रिम पंक्ति में आ खड़े हुए हैं।
DSC_0113अब जब कि कार्यक्रम संपन्न हो चुका है कि उसका पोस्टमार्टम किया जा रहा है। कोई चंद नेताओं के कार्यक्रम में न आने को गुटबाजी से जोड़ रहा है तो कोई राजावत के अपने दम पर ही कार्यक्रम करने पर आश्चर्य जता रहा है। यह स्वाभाविक भी है। सवाल ये उठता है कि क्या शहर भाजपा को ख्याल नहीं आया कि वह अपने स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करवाता, ताकि यह संदेश जाता कि शहर भाजपा एकजुट है? यदि राजावत को ही ख्याल आया तो उन्होंने अपने स्तर पर ही कार्यक्रम करने की क्यों सोची, शहर भाजपा को विश्वास में क्यों नहीं लिया? जब कार्यक्रम का प्रस्ताव आया तो क्या सोच कर कटारिया ने उसकी स्वीकृति दे दी, उन्होंने कार्यक्रम संयुक्त रूप से करने की सलाह क्यों नहीं दी? बेशक, कार्यक्रम में औपचारिकता के नाते सभी नेता आए, मगर इन्हीं सारे सवालों की वजह से ही आज यह मुद्दा बना है कि शहर भाजपा के बैनर पर कार्यक्रम करने पर विचार क्यों नहीं हुआ? संभव है शहर भाजपा अध्यक्ष रासासिंह रावत या अन्य किसी नेता ने कटारिया को बुला कर स्वागत करके अपना रुझान जाहिर न करना चाहा हो, मगर इतना तय है कि इस कार्यक्रम से राजावत रातों-रात अंग्रिम पंक्ति में आ खड़े हुए हैं। राजावत ने पहल करके पहले मारे सो मीर वाली कहावत चरितार्थ कर दिखाई है।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

किसी बड़े खुलासे की उम्मीद थी मिसेज सिंह से

bhagwant pc 02छात्रा के साथ दुराचार के प्रयास के आरोपों से घिरे भगवंत यूनिवर्सिटी के चेयरमैन अनिल सिंह की पत्नी श्रीमती आशा सिंह ने जब पहली बार मीडिया से मुखातिब होने की सूचना दी तो सभी को लगा कि वे जरूर कोई बड़ा खुलासा करने वाली हैं, जिससे मामला यूटर्न ले लेगा, मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं। उन्होंने कमोबेश वे ही बातें रखीं, जो कि पहले भी यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट रख चुका है। उन्होंने सफाई में वे ही बातें रखीं, जो कि आरोपी पक्ष से रखने की उम्मीद की जानी चाहिए।
उन्होंने छात्रा की फीस माफी के मसले पर यूनिवर्सिटी प्रशासन की वस्तुस्थिति रखी और छात्रा का साथ देने वाले पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल का नाम लिए बगैर सवाल उठाया कि उन्होंने अकेले इसी छात्रा की फीस माफी का प्रयास क्यों किया, मगर ये नहीं बता पाईं कि छात्रा का साथ देने की वजह आखिर है क्या? उन्होंने ये तो कहा कि एक लडकी को मोहरा बना कर चेयरमैन अनिल सिंह की प्रतिष्ठा को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करने का षड्यंत्र रचा और अजमेर पुलिस ने उन लोगों के दबाव में आकर झूठा मुकदमा दर्ज कर लिया, मगर ये खुलासा नहीं किया कि आखिर इस षड्यंत्र की वजह क्या रही? आखिर सिंह से उनकी क्या दुश्मनी थी? कोई भी बेवजह क्यों किसी के खिलाफ षड्यंत्र रचेगा? श्रीमती सिंह ने लोकल गार्जियन पर भी आरोप लगाने को लेकर छात्रा को घेरने की कोशिश जरूर की, मगर उससे यह कहीं साबित नहीं हुआ कि छात्रा के व्यक्तित्व या चरित्र में क्या दोष है? कुल मिला कर श्रीमती सिंह की प्रेस कांफ्रेंस महज एक औपचारिकता ही रही, जिससे कोई बड़ा निष्कर्ष निकल कर नहीं आया।
बेशक, लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपनी बात रखने का हक है और श्रीमती सिंह ने उसका उपयोग किया, मगर फैसला को तो कोर्ट ही करेगा कि सिंह ने दुराचार की कोशिश की या नहीं? हां, इतना जरूर है कि श्रीमती सिंह के सामने आने से यह साफ हो गया है कि इस मामले में परिवार सिंह के पूरी तरह से साथ है। इसके अतिरिक्त उन्होंने जो तर्क दिए हैं, वे लगते भले ही दमदार हों, मगर इससे सिंह की छवि कितनी साफ होगी, कहा नहीं जा सकता।
आइये, देखते हैं श्रीमती सिंह की ओर संवाददाता सम्मेलन में जारी किया गया लिखित नोट:-
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शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

घूसखोर एसआई ने दी नए एसपी को सलामी


एसआई नाथूसिंह
एसआई नाथूसिंह
भ्रष्टाचार के मामले में दो आईपीएस अधिकारियों अजय सिंह व राजेश मीणा की गिरफ्तारी, एक आरपीएस अधिकारी लोकेश सोनवाल की फरारी और 11 थानेदारों के लाइनहाजिर होने के कारण बदनाम हो चुके अजमेर पुलिस महकमे में नए कप्तान गौरव श्रीवास्तव को मोर्चा संभाले अभी जुम्मा जुम्मा आठ दिन भी नहीं हुए हैं कि उन्हीं के मातहत आदर्शनगर थाने के एसआई नाथूसिंह ने उन्हें रिश्वत का नया कारनामा करके सलामी ठोक दी है। दिलचस्प बात ये है कि जब भी कोई नया एसपी आता है तो कोई न कोई आपराधिक वारदात होती है और मीडिया लिखता है यह उनको पहला नजराना है, मगर शायद यह पहला मौका है जब उनके ही मातहत ने उनको ऐसा नजराना पेश किया है। अफसोसनाक बात ये है कि ऐसा तब हुआ है, जबकि श्रीवास्तव ने आते ही ऐलान किया था कि वे भ्रष्टाचार को कत्तई बर्दाश्त नहीं करेंगे और पुलिस कप्तान के रूप में ईमानदारी की मिसाल कायम करेंगे। ताजा कांड से तो ऐसा प्रतीत होता है कि उनके अधीनस्थों ने यह मिसाल न कायम होने देने की कसम सी खा ली है। श्रीवास्तव ने आते जो ऊर्जा व उत्साह दिखाया तो मीडिया ने भी उनसे कुछ ज्यादा उम्मीद पाल ली, इस पर आखिर उन्हें कहना पड़ा कि पुलिस तंत्र को सुधारने के लिए उनके पास कोई जादूई छड़ी नहीं है। अर्थात उन्हें अहसास था कि उनके महकमे में ऐसे अफसर मौजूद हैं, जिनकी आदत सुधरने में वक्त लगेगा।
अपुन ने इस कॉलम में पहले ही लिख दिया था कि श्रीवास्तव को रूटीन के अपराध से निपटने के अलावा कुछ ऐसा कर दिखाना होगा, जिससे यह लगे कि पुलिस फिर से मुस्तैद हो गई है। हालात वैसे ही हैं। उनको अपराधियों पर नकेल कसने से पहले अजमेर चरागाह समझ कर सांड बन कर चर रहे अपने मातहतों की नाक में नकेल डालनी होगी। जनता में पुलिस के प्रति जो विश्वास डगमगाया है, उसे कायम करने के लिए एडी-चोटी का जोर लगाना होगा।
ताजा कांड से ऐसा प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे अजमेर के पूरे पुलिस बेड़े ने भ्रष्टाचार के मामले में दो आईपीएस की गिरफ्तारी, एक आरपीएस के निलंबन और 11 थानेदारों के लाइन हाजिर होने से कोई सबक नहीं लिया है। इससे यह भी साबित होता है कि जिस महकमे पर कानून व्यवस्था कायम करने की जिम्मेदारी है, जिस फौज पर अपराधियों में कानून का डर पैदा करने का जिम्मा है, उसी के अफसरों में कानून का डर समाप्त हो गया है। घूस खाने की आदत इतनी शिद्दत से पड़ गई है कि हम नहीं सुधरेंगे का ठेका ले लिया है। जाहिर सी बात है कि जो अपराधियों को कानून की पतली गलियों से भागने से रोकने की मशक्कत करते हैं, उन्हें पता है कि वे पतली गलियां कौन सी हैं, जिनसे वे खुद आसानी से निकल जाएंगे। जैसा कि एसपी रिश्वत प्रकरण में भी होता नजर आ रहा है। ऐसे में अगर कोई यह ताना मारे कि पुलिस वाले वर्दी गुंडे हैं तो उसमें बुरा नही मानना चाहिए।
बहरहाल, श्रीवास्तव को मिली इस पहली सलामी से संभव है वे और मुस्तैद होंगे, वरना ईमानदारी की मिसाल कायम करना तो दूर बेईमानी से निपटने में नाकामी का तमगा ले कर रुखसत होंगे।
-तेजवानी गिरधर

यानि कि बहुत कठिन है थानेदारों का फंसना


एसीबी की गिरफ्त में निलंबित एसपी राजेश मीणा
एसीबी की गिरफ्त में निलंबित एसपी राजेश मीणा
अजमेर जिले के थानेदारों से मंथली लेने के मामले में भले ही पुलिस कप्तान राजेश मीणा गिरफ्तार व निलंबित हुए हों और फरार एएसपी लोकेश सोनवाल भी नामजद हों, मगर जिन थानेदारों को इसी सिलसिले में लाइन हाजिर किया गया है, उनका शिकंजे में फंसना कुछ कठिन ही प्रतीत होता है।
कहा जा रहा है कि मंथली प्रकरण में चिन्हित थानेदारों के खिलाफ केवल कॉल डिटेल रिकार्ड ही एक मात्र पुख्ता साक्ष्य हो सकता है, इसके अलावा अन्य कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं है। गृह विभाग के सचिव के निर्देश पर एसीबी थानेदारों की कॉल डिटेल का पूरा विवरण तैयार करने के लिए कहा था। उसी की पालना में एसपी ऑफिस में जांच पड़ताल कर थानेदारों की सर्विस बुक, सीयूजी नंबरों और बैंक अकाउंट के बारे में जानकारी जुटा कर एक सूची तैयार की गई है। बैंक खातों से यह पता लगाया जा रहा है कि थानेदारों ने कब कितनी राशि निकाली गई और जमा करवाई गई। अर्थात ये पता लगाया जाएगा कि मंथली का कितना हिस्सा वे अपने पास रखते थे। मगर यह जरूरी तो नहीं कि थानेदारों ने अपना सारा ट्रांजेक्शन बैंक के जरिए ही किया हो।
रहा सवाल कॉल डिटेल रिकार्ड का तो बेशक सीयूजी के नंबरों कॉल डिटेल से जांच कुछ आगे बढ़ेगी, मगर परेशानी ये है कि हर थानेदार के पास सीयूजी के अलावा एक-एक दो-दो निजी सेलफोन नंबर भी रहे होंगे। बताते हैं कि थानेदारों ने अगर दलाल रामदेव ठठेरा से बात की भी होगी तो अपने निजी नंबरों से। ऐसे में एसीबी के लिए थानेदारों व ठठेरा के बीच हुई बात का रिकार्ड हासिल करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। अव्वल तो निजी नंबरों का पता लगाना कठिन है, दूसरा मिल भी गए तो जरूरी नहीं कि उन्होंने अपने नाम से ही लिए हों। ऐसे में अगर कुछ थानेदार दम भर रहे हैं कि उनका कुछ नहीं हो सकता, तो उसमें दम नजर आता है।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

कृषि उपज मंडी में हारी हुई बाजी क्यों खेली भाजपा?

0732_3कृषि उपज मंडी-अनाज के अध्यक्ष पद के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस का पलड़ा भारी था और इसी कारण इसमें कांग्रेस की हगामी देवी ने भाजपा के प्रकाश मीणा को 2 के मुकाबले 9 मतों से हरा दिया। मजे की बात है कि अपनी कमजोर स्थिति के बाद भी भाजपा ने हारी हुई बाजी खेली। उससे भी दिलचस्प बात ये है कि भाजपा के पास साफ तौर पर तीन वोट थे, मगर उनमें से भी एक वोट उड़ कर हगामी की झोली में चला गया, जबकि भाजपा के दिग्गज नेता शहर जिला अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत, विधायक वासुदेव देवनानी, पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, सोमरत्न आर्य सरीखे नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी थी, हालांकि वे खुल कर सामने नहीं आए। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि भाजपा ने आखिर हारी हुई बाजी खेली ही क्यों?
बताया जाता है कि स्थानीय भाजपा नेताओं की रुचि इस उपचुनाव में थी या नहीं, मगर भाजपा मानसिकता के प्रकाश मीणा ने जरूर अति उत्साह दिखाया, ऐसे में भाजपा नेताओं को उनका साथ देना पड़ा। चर्चा है कि मीणा के पास एक खुद का व दो बलराम हरलानी व दिनेश चौहान के वोट थे और उन्होंने तीन और वोट जुटा लिए थे। अर्थात अगर उनका गणित काम कर जाता तो वे 5 के मुकाबले 6 मतों से जीत जाते। उधर इस बात की भनक कांग्रेसी खेमे को लग गई और इसकी सूचना अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट को दी गई। वहां से इशारा हुआ कि जीती हुई बाजी किसी भी सूरत में हारनी नहीं है।
कांग्रेस के पास मनोनीत सदस्य शिक्षा राज्यमंत्री नसीम अख्तर इंसाफ, कैलाश तेला, सत्यनारायण गुर्जर, किसान वर्ग से निर्वाचित प्रतिनिधि वार्ड 1 से कंचन देवी, वार्ड 3 हाजी रुस्तम चीता, वार्ड 4 से हगामी देवी, वार्ड 5 से इंदिरा देवी व वार्ड 6 से शहनाज बानो के वोट थे। भाजपा के पास वार्ड 2 से निर्वाचित सदस्य प्रकाश मीणा, मनोनीत पार्षद दिनेश चौहान व व्यापारी प्रतिनिधि सदस्य बलराम हरलानी के वोट थे। अर्थात कांग्रेस के पास कुल आठ वोट थे, इस कारण हगामी देवी की जीत में कोई संशय नहीं था, मगर भितरघात की आशंका को देखते हुए शिक्षा राज्यमंत्री नसीम अख्तर इंसाफ, श्रीनगर प्रधान रामनारायण गुर्जर, कांग्रेस देहात अध्यक्ष हाजी इंसाफ अली, कांग्रेस नेता हाजी रुस्तम आदि ने मोर्चा संभाल लिया। उनकी सफलता इसलिए भी रेखांकित करने योग्य है क्योंकि उन्होंने न केवल भीतरघात को पूरी तरह रोका, अपितु जरूरत न होने पर भी भाजपा खेमे का एक वोट हासिल कर लिया। अब सवाल ये उठ रहा है कि वह वोट किसका था? जाहिर सी बात है कि मीणा ने तो खुद को वोट दिया ही है, यानि टूटने वाला या तो दिनेश चौहान था या फिर बलराम हरलानी का। अब भाजपा के नेता माथापच्ची इस पर कर रहे हैं। वैसे एक बात की चर्चा जरूर है कि अगर मीणा अपनी गणित को लीक नहीं होने देते तो वे जीत भी सकते थे।
ज्ञातव्य है कि उपज मंडी के निर्वाचित अध्यक्ष श्योराम मीणा का निधन सितंबर 2011 में हो गया था। इसके बाद से ही उपाध्यक्ष शहनाज बानो अध्यक्ष पद का अतिरिक्त कार्य भी देख रही थीं।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

गनीमत है कि पीडि़ता के साथ जयपाल हैं


पत्रकारों से बात करती पीडित छात्रा
पत्रकारों से बात करती पीडित छात्रा
ये गनीमत है कि भगवंत यूनिवर्सिटी के चेयरमैन अनिल सिंह ने कथित रूप से जिस छात्रा के साथ दुराचार का प्रयास किया, उसने स्थानीय स्तर पर पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल का सहारा ले लिया, वरना उसे कभी का चुप करवा दिया जाता।
अनिल सिंह कितने ताकतवर हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि उन्होंने मामले से बचने के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी। यह अलग बात है कि कोई चारा नहीं बचने पर आखिर सरंडर कर दिया, मगर इससे पहले लंबे समय तक अंडरग्राउंड बने रहे। सिंह के हाथ लंबे होने का संकेत इस बात से भी मिलता है कि मामला मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जानकारी में आने बाद भी पुलिस खुद उनको पकड़ नहीं पाई। वे आर्थिक रूप से कितने संपन्न हैं, इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि उनकी ओर से छात्रा से कथित रूप से मिले लेक्चरर आशीष कुलश्रेष्ठ ने मामला रफा-दफा करने की एवज में एक करोड़ रुपए तक की पेशकश की। इतना ही नहीं अजमेर आना नहीं चाहे तो बाकी के सभी पेपर घर बैठ कर दिलाने की व्यवस्था करने व विदेश में नौकरी भी दिलवाने तक का चुग्गा डाला। साथ ही वे कितने बाहुबली हैं, इसका संकेत इसी बात से लगता है कि उनकी ओर से छात्रा को बात न मानने पर कथित रूप से जान से मारने की धमकी के एसएमएस व ईमेल किए गए। इतने दबाव में कोई भी लड़की या तो लालच में आ जाती या फिर डर कर सरंडर हो जाती, मगर चूंकि पीडि़त छात्रा ने डॉ. जयपाल का आश्रय लिया, इस कारण उसके मन में तनिक भी डर नहीं समाया। गलती से किसी और का सहारा लेती तो वह अनिल सिंह के बाहुबल व धनबल के आगे कदाचित पीछे हट जाता।
प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद डा जयपाल, रमेश सेनानी, कुलदीप कपूर व अन्य
प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद डा जयपाल, रमेश सेनानी, कुलदीप कपूर व अन्य
यहां उल्लेखनीय है कि भगवंत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. वी. के. शर्मा ने छात्रा की फीस माफ न करने पर झूठे मुकदमे में फंसाने और जयपाल व अनिल सिंह के बीच किसी जमीन विवाद की ओर इशारा किया था। अगर उनकी बात सही मान भी ली जाए तो भी ये स्पष्ट है कि अनिल सिंह से टक्कर लेने का माद्दा डॉ. जयपाल में ही है, चाहे निजी मकसद की वजह से ही सही। छात्रा के साथ डॉ. जयपाल नहीं होते तो अनिल सिंह कभी के मामले को सैट कर लेते।
ज्ञातव्य है कि अनिल सिंह को कोर्ट के आदेश पर पंद्रह दिन तक न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया है। सिंह ने एडीजे संख्या-5 महेंद्र सिंह के समक्ष समर्पण कर दिया था। बाद में उसे कार्यवाहक न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या-3 की अदालत में पेश कर एक दिन के रिमांड पर क्रिश्चियन गंज थाना पुलिस को सौंप दिया गया था।
-तेजवानी गिरधर

गोरान को दी गई क्लीन चिट अभी अधूरी है

dr. habib khan goran 2पुलिस थानों से मंथली लेने के मामले में गिरफ्तार अजमेर के एसपी राजेश मीणा ने यह कह कर कि दलाल रामदेव ठठेरा थैला लेकर राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष हबीब खान गोरान के घर भी गया था, उन पर संदेह की सुई इंगित करने की कोशिश की, मगर एसीबी के कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह ने गोरान को यह कह कर क्लीन चिट दे दी कि उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है। बात बिलकुल ठीक है। जब साक्ष्य मिला ही नहीं तो कार्यवाही होती भी क्या, मगर ठठेरा का गोरान के घर जाने का खुलासा ही अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।
अव्वल तो जब गोरान के घर पर ठठेरा के जाने को यदि सामान्य मुलाकात ही माना गया है, तो एसीबी को जरूरत ही क्या पड़ी कि उसने प्राथमिकी में इसका जिक्र किया। जब गोरान व ठठेरा के बीच कुछ गलत हुआ ही नहीं तो उसका जिक्र करना ही नहीं चाहिए था। चलो, एससीबी की इस बात को मान लेते हैं कि उनको गोरान के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है, मगर क्या इतना कहने भर से बात समाप्त हो जाती है। बेहतर ये होता कि वे इस बारे में ठठेरा ने क्या स्पष्टीकरण दिया, इसका खुलासा करते, ताकि उनकी बात पर यकीन होता। फरार आरपीएस लोकेश सोनवाल के घर निकलते समय वह बैग लेकर गोरान के घर गया और बाहर निकला तो बैग उसके हाथ में नहीं था, तो सवाल ये उठता है कि उस बैग में क्या था? क्या उसने आगरा गेट सब्जीमंडी से सब्जी खरीद कर गोरान के घर पहुंचाई थी? इसके अतिरिक्त अजीत सिंह ने यह भी नहीं बताया कि क्या उन्होंने इस बारे में गोरान से भी कोई पूछताछ की थी? यदि पूछताछ की थी तो उन्होंने ठठेरा के आने की क्या वजह बताई? अजीत सिंह की यह बात यकीन करने लायक है कि मंथली प्रकरण में गोरान की कोई लिप्तता नहीं पाई गई है, मगर एसपी मीणा को मंथली देने जाते समय बीच में उसका गोरान के घर थैला लेकर जाना संदेह तो पैदा करता ही है।
बेशक अजीत सिंह ने अपनी ओर से गोरान को क्लीन चिट दे कर एक अध्याय समाप्त करने की कोशिश की है, वरना आयोग अध्यक्ष जैसे बड़े संवैधानिक पद व आयोग जैसी बड़ी संस्था की कार्यप्रणाली पर संदेह बना ही रहता। मगर इस प्रकरण में उठ रहे चंद सवालों का भी खुलासा होना चाहिए, ताकि एसीबी की तरह आम जनता की ओर से भी गोरान को पूरी क्लीन चिट मिल जाए।
-तेजवानी गिरधर

श्रीवास्तव जी, कई चुनौतियां हैं आपके सामने

gaurav shrivastav 1भ्रष्टाचार के मामले में दो आईपीएस अधिकारियों की गिरफ्तारी और एक आरपीएस अधिकारी की फरारी के चलते हतोत्साहित अजमेर जिला पुलिस के नए कप्तान गौरव श्रीवास्तव भले ही यह कह कर कि पूर्व के मामलों पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, विवाद से बचने की कोशिश करें, मगर जनता में पुलिस के प्रति जो विश्वास डगमगाया है, उसे कायम करना उनके लिए बेहद जरूरी होगा। बेशक ये बहुत मुश्किल काम है, मगर श्रीवास्तव को रूटीन के अपराध से निपटने के अलावा कुछ ऐसा कर दिखाना होगा, जिससे यह लगे कि पुलिस फिर से मुस्तैद हो गई है। हालांकि पूरे भ्रष्ट तंत्र के चलते अकेले पुलिस को भ्रष्टाचार से मुक्त करना नितांत असंभव है, मगर श्रीवास्तव को कुछ ऐसा करना होगा, जिससे आम जनता को लगे कि पीडि़त की वाकई सुनवाई होती है और अपराधी पुलिस से खौफ खाने लगे हैं। पदभार संभालने के साथ ही उनका यह कथन कि वे एक कप्तान के रूप में ईमानदारी की मिसाल पेश करेंगे, इसे वास्तव में चरितार्थ करना श्रीवास्तव की अहम जिम्मेदारी होगी।
पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार से हट कर बात करें तो भी नए पुलिस कप्तान श्रीवास्तव के सामने अनेक चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हैं। सबसे बड़ी जिम्मेदारी है विश्वविख्यात तीर्थ स्थल पुष्कर व दरगाह शरीफ की सुरक्षा की। वो इसलिए क्योंकि आमतौर पर पाया गया है कि दावे भले ही कुछ भी किए जाएं, मगर कई बार ऐसा साफ दिखाई देता है कि इनकी सुरक्षा रामभरोसे ही चलती है। पुलिस ने कई बार बाहर से आने वाले लोगों पर निगरानी के लिए गेस्ट हाउसों में आईडी प्रूफ की अनिवार्यता पर जोर दिया है, मगर आए दिन बिना आईडी प्रूफ के लोगों के ठहरने के एकाधिक मामले प्रकाश में आ चुके हैं। आम लोगों की छोडिय़े, बेंगलुरू सीरियल बम ब्लास्ट के मास्टर माइंड व इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी उमर फारुख सहित कई अन्य संदिग्धों के बिना पहचान पत्र के ठहरने के सनसनीखेज खुलासे हो चुके हैं। पुलिस के चौकन्ने होने पर तब सबसे बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ था, जब मुंबई ब्लास्ट का मास्टर माइंड व देश में आतंकी हमले करने का षड्यंत्र रचने का आरोपी डेविड कॉलमेन हेडली बड़ी चतुराई से पुष्कर में रेकी कर गया, मगर पुलिस को हवा तक नहीं लगी। इसके अतिरिक्त दरगाह में बम विस्फोट भी पुलिस की नाकामी का ज्वलंत नमूना है।
श्रीवास्तव के लिए एक बड़ी चुनौती अजमेर-पुष्कर के मादक पदार्थों का ट्रांजिट सेंटर होना है। हालांकि बरामदगी भी होती रहती है, लेकिन हरियाणा मार्का की शराब का लगातार अजमेर में आना साबित करता है कि कहीं न कहीं मिलीभगत है। जिले में अवैध कच्ची शराब को बनाने और उसकी बिक्री की क्या हालत है और इसमें पुलिस की भी मिलीभगत होने का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि शराब तस्करों को छापों से पूर्व जानकारी देने की शिकायत के आधार पर दो पुलिस कर्मियों को लाइन हाजिर करना पड़ा।
पुलिस की नाकामी के खाते में पिछले कुछ सालों में हुए कई सनसनीखेज हत्याकांड भी शामिल हैं, जिनका आज तक राजफाश नहीं हो पाया है। आशा व सपना हत्याकांड जैसे कुछ कांड तो भूले-बिसरे हो गए हैं, जिन्हें पुलिस ने अपनी अनुसंधान सूची से ही निकाल दिया है। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि जेल में बंद होने के बाद भी वे अपनी गेंगें संचालित करते हैं। पूर्व एसपी हरिप्रसाद शर्मा ने तो यह तक स्वीकार किया कि जेल में कैद अनेक अपराधी वहीं से अपनी गेंग का संचालन करते हुए प्रदेशभर में अपराध कारित करवा रहे हैं और इसके लिए बाकायदा जेल से ही मोबाइल का उपयोग करते हैं। न्यायाधीश कमल कुमार बागची ने जेल में व्याप्त अनियमितताओं पर तो टिप्पणी ही कर दी कि अजमेर सेंट्रल जेल का नाम बदल कर केन्द्रीय अपराध षड्यंत्रालय रख दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
पिछले कुछ सालों में चैन स्नेचिंग के मामले तो इस कदर बढ़े हैं, महिलाएं अपने आपको पूरी तरह से असुरक्षित महसूस करने लगी हैं। वाहन चोरी की वारदातें भी लगातार बढ़ती जा रही हैं। रहा सवाल जुए-सट्टे का तो वह पुलिस थानों की नाक के नीचे धड़ल्ले से चल रहा है। इसी प्रकार नकली पुलिस कर्मी बन कर ठगने के मामले असली पुलिस को चिढ़ा रहे हैं। रहा सवाल चोरियों का तो उसका रिकार्ड रखना ही पुलिस के लिए कठिन हो गया है। अब तो केवल बड़ी-बड़ी चोरियों का जिक्र होता है।
कुल मिला कर नए एसपी गौरव श्रीवास्तव के लिए अनेक चुनौतियां हैं, देखते हैं वे उनसे कैसे पार पाते हैं।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

रिंकू व शक्तावत के झगड़े में कोई और न ले जाए टिकट

18Kek-1-300x213जूनियां क्षेत्र में पंचायत समिति सदस्य के लिये होने जा रहे उप चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने के दौरान केकडी विधानसभा क्षेत्र की भाजपा प्रभारी रिंकू कंवर और भूपेन्द्र सिंह शक्तावत के बीच एक बार फिर जिस तरह सड़क पर तीखी नोंकझोंक हुई, वह इस बात का साफ संकेत है कि इन दोनों के बीच सुलह का कोई रास्ता बाकी नहीं बचा है और खाई बढ़ती ही जा रही है। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तो खींचतान ओर बढ़ सकती है, क्योंकि दोनों ही केकड़ी सीट से भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार हैं।
ज्ञातव्य है कि रिंकू कंवर और भूपेन्द्र सिंह भाजपा की केकड़ी स्तरीय राजनीति के दो ऐसे दुश्मन हैं, जो दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते और यही वजह है कि मौका मिलते ही दोनों एक-दूसरे को नीचा दिखाने में भी कोई कोर कसर बाकी नहीं रखते। शक्तावत के बारे में रिंकू कंवर का रवैया उनके इस बयान में साफ झलकता है कि मैं एक व्यक्ति के अलावा सभी के साथ एकजुट होने को तैयार हंू, लेकिन जिस व्यक्ति ने मेरी राह में कांटे बिछाए थे, उसे मैं कभी माफ नहीं कर सकती और शायद इस जीवन में तो नहीं। गत विधानसभा चुनाव में रिंकू कंवर राठौड़ भाजपा प्रत्याशी के रूप में तथा भूपेन्द्र सिंह शक्तावत निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में आमने-सामने चुनाव लड़ चुके हैं। उस चुनाव में कांग्रेस के रघु शर्मा ने श्रीमती रिंकू कंवर को 12 हजार 659 मतों से पराजित किया था। शर्मा को 47 हजार 173 व रिंकू कंवर को 34 हजार 514 मत मिले। हालांकि कांग्रेस के बागी बाबूलाल सिंगारियां को 22 हजार 123 मिले, मगर रिंकू की हार में भूपेन्द्र सिंह का 17 हजार 801 वोट काटने को ही अहम माना जाता है। रिंकू व भूपेन्द्र के बीच खटास का एक कारण यह भी है कि रिंकू कंवर राठौड़ विधानसभा चुनाव से पहले प्रधान पद पर थीं और उनके खिलाफ उनकी ही पार्टी के पंचायत समिति सदस्यों द्वारा लाये गए अविश्वास प्रस्ताव का जिम्मेदार भूपेन्द्र सिंह शक्तावत को मानती हैं।
बहरहाल, ताजा संदर्भ में इन दोनों के झगड़े के ये मायने लगाए जा रहे हैं कि इन दोनों में से जिस को भी टिकट दिया गया, दूसरा उसे हराने में लग जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भाजपा हाईकमान दोनों में से किसी को ही टिकट देने का जोखिम उठाएगा? हालांकि राजपूतों के लिए अनुकूल इस सीट के लिए भाजपा के पास दमदार दावेदार के रूप में जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के पति युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा मौजूद हैं, मगर उन्होंने केकड़ी की बजाय पुष्कर से लडऩे की इच्छा जताई तो यह सीट किसी गैर राजपूत के खाते में जा सकती है। ऐसे में संभव है भाजपा किसी ब्राह्मण या वेश्य को टिकट देने का मानस बनाए।
फिलहाल रामेश्वर बम्बोरिया, शत्रुघ्न गौतम, राधेश्याम पोरवाल व राजेन्द्र विनायका अपनी दावेदारी जता रहे हैं। क्षेत्र में भाजपाई एक कैसे हों, इसके लिए कई तरह के प्रयास पहले भी किए जा चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद दावेदारों की टिकट पाने की होड़ के चलते अलग-अलग धड़ों में बिखरी भाजपा अंदरूनी कलह से नहीं उबर पा रही है। संभव ये भी है कि वसुंधरा राजे सिंधिया कांग्रेस नेता डा. रघु शर्मा को विधानसभा नहीं पहुंचने देने के लिए किसी दिग्गज को भी केकड़ी से चुनाव मैदान में उतार सकती है। इसके लिए प्रो. सांवरलाल जाट, भंवरसिंह पलाड़ा, डा. नाथूसिंह गुर्जर तथा पूर्व मुख्यमंत्री वसुधंरा राजे की पुत्रवधु निहारिका सिंह में से किसी एक को यहां से चुनाव लड़ाने का मानस बनाया जा सकता है।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

हुं... तो वे हबीब खान गोरान ही थे

dr. habib khan goran 2मंथली मामले में गिरफ्तार अजमेर के एसपी राजेश मीणा ने आखिर उस नाम को उजागर कर दिया, जिसके यहां भी दलाल रामदेव ठठेरा थैला लेकर गया था। और वो है राजस्थान लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष हबीब खान गोरान। अपुन ने पहले ही सवाल उठाया था कि मीणा की गिरफ्तारी को दस दिन बीत जाने के बाद भी एसीबी ने यह तथ्य क्यों उजागर नहीं किया कि ठठेरा थैला लेकर आखिर राजस्थान लोक सेवा आयोग के किस उच्चाधिकारी के घर पर कुछ वक्त रुका था? उसने वहां क्या किया? क्या वहां आयोग से जुड़े किसी मसले की दलाली की गई? या फिर वह यूं ही मिलने चला गया, क्योंकि वह उनका पूर्व परिचित था? जाहिर सी बात है कि हर किसी को यह जानने की जिज्ञासा थी कि आखिर वह उच्चाधिकारी कौन है और दलाल ने उसके घर पर जा कर क्या किया? इस बारे में मीडिया ने खबरों के फॉलो अप में उसका जिक्र तो कई बार किया है, मगर अपनी ओर से नाम उजागर करने से बचा, क्योंकि बिना सबूत के संवैधानिक पद पर बैठे उच्चाधिकारी का नाम घसीटना दिक्कत कर सकता था। यहां तक कि मीडिया ने इशारा तक नहीं किया, जबकि ऐसे मामलों में अमूमन वह इशारा तो कर ही देता है, भले ही नाम उजागर न करे।
अपुन ने तभी इस कॉलम में लिख दिया था कि इस मामले की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को अच्छी तरह से पता है कि आखिर वह अधिकारी कौन है? ऐसा हो ही नहीं सकता कि रिपोर्टिंग और फॉलो अप के दौरान जिन्होंने पुलिस व एसीबी में अपने संपर्क सूत्रों के जरिए सूक्ष्म से सूक्ष्म पोस्टमार्टम किया हो, उन्हें ये पता न लगा हो कि वह अधिकारी कौन है? मगर मजबूरी ये रही कि अगर एसीबी ने अपनी कार्यवाही में उसका कहीं जिक्र नहीं किया अथवा कार्यवाही में उसे शामिल नहीं किया तो नाम उजागर करना कानूनी पेचीदगी में उलझा सकता है। वैसे भी यह पत्रकारिता के एथिक्स के खिलाफ है कि बिना किसी पुख्ता जानकारी के किसी जिम्मेदार अधिकारी का नाम किसी कांड में घसीटा जाए।
इशारा तो अपुन को भी था, मगर ऑन द रिकार्ड सूचना न होने के कारण नाम का खुलासा नहीं किया, अलबत्ता यह जरूर बता दिया था कि सरकार एकाएक उस उच्चाधिकारी को फंसाने के मूड में नहीं है। चाहे उसके खिलाफ कुछ सबूत हों या नहीं। इसकी वजह ये है उसकी नियुक्ति ही आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बिगड़े जातीय समीकरण के तहत की थी। इसके अतिरिक्त यदि उस पर हाथ डाला जाता है तो आयोग की कार्यप्रणाली को ले कर भी बवाल खड़ा हो जाएगा। ऐसे में संभावना कम ही है कि उस अधिकारी का नाम सामने आ पाए।
खैर, एसीबी व सरकार ने जरूर गोरान का नाम अपनी ओर से उजागर नहीं किया, मगर मीणा ने अपनी जमानत अर्जी में इसका हवाला दे कर उस रहस्य से पर्दा उठा दिया है। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि एसीबी की प्राथमिकी में जिक्र है कि उन्हें ट्रेप करने वाले दिन ठठेरा गोरान के बंगले पर भी थैला लेकर गया था। मीणा ने इस पर ऐतराज जताया है कि गोरान को नामजद क्यों नहीं किया गया। हालांकि सवाल ये भी कि क्या मीणा को इस तरह किसी और के खिलाफ कार्यवाही न करने पर सवाल उठाने का अधिकार है या नहीं, या कोर्ट उस पर प्रसंज्ञान लेगा या नहीं। वैसे भी एसीबी जब अपनी कार्यवाही को एसपी के खिलाफ अंजाम दे रही थी तो इसी बीच किसी काम से ठठेरा के गोरान के बंगले पर जाने से ही तो यह आरोप नहीं बन जाता कि वे उन्हें भी रिश्वत की राशि देने गया था। हां, इतना जरूर है कि चूंकि गोरान भी आपीएस रहे हैं, इस कारण उसके ठठेरा के संबंध होना स्वाभाविक लगता है। खैर, जहां तक कानूनी पृष्ठभूमि का सवाल है ये तो एसीबी ही अच्छी तरह से बता सकती है कि गोरान के खिलाफ मामला बनता है या नहीं, मगर ठठेरा के गोरान के घर पर भी जाने से वे भी संदेह के घेरे में तो आ ही गए हैं। अब देखने वाली बात ये है कि सरकार इस खुलासे के बाद क्या करती है? वैसे गोरान पर हाथ डालना थोड़ा कठिन इस कारण है कि वे संवैधानिक पद पर हैं और उनके खिलाफ कदम उठाने के लिए राज्यपाल की अनुमति लेनी होगी। जहां तक राजनीति का सवाल है, सरकार ने गोपालगढ़ कांड की वजह से नाराज मुस्लिमों को खुश करने के लिए उनकी नियुक्ति करवाई है, इस कारण भी सरकार चाहेगी कि जहां तक संभव हो उन्हें न लपेटा जाए।
-तेजवानी गिरधर

भाजपा का अग्रिम संगठन है राष्ट्र उत्थान मंच?

rashtra-uthan-01-450x288इन दिनों अजमेर की बहबूदी के लिए सक्रिय राष्ट्र उत्थान मंच का वजूद भले ही स्वतंत्र है, मगर इसमें अधिसंख्य कार्यकर्ता भाजपा के होने के कारण यदि इसे भाजपा का ही अग्रिम संगठन कहा जाए या घोषित कर दिया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, उलटे ज्यादा बेहतर होगा। इससे जहां मंच की क्रेडिट बढ़ेगी, वहीं मंच की ओर से किए जा रहे जनहित के कार्यों को भाजपा अपने खाते में दर्ज करवा सकेगी।
ज्ञातव्य है कि आजकल मंच ने कच्ची बस्ती में रहने वाले गरीब लोगों को पट्टे दिलवाने के लिए कमर कस रखी है और उसके लिए मंच के नरेन्द्र सिंह शेखावत, अशोक राठी, पृथ्वीराज सांखला, संजीव नागर सहित कई कार्यकर्ता कच्ची बस्ती और वन भूमि पर बसे गरीब लोगों के साथ जयपुर विधानसभा पर धरना देने के लिए कूच कर चुके हैं। मंच की ताकत का प्रदर्शन इससे पहले भी हो चुका है, जब उसने सरहद पर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा दो भारतीय सैनिकों की बर्बर हत्या के विरोध में नव निमार्ण सेना और नव दुर्गा मंडल के सहयोग से आधे दिन अजमेर बंद करवाया था। तब इन संगठनों के नाम यह क्रेडिट गई थी कि उन्होंने प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के सोये होने पर उसकी भूमिका अदा की थी। बहरहाल, अब जब कि मंच ने कच्ची बस्ती वासियों की खैर-खबर ली है तो यह सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि आखिर क्या वजह है कि मंच के कर्ताधर्ता भाजपा के होने के बाद भी भाजपा के बैनर पर काम करने की बजाय मंच को आगे बढ़ा रहे हैं? वैसे एक बात जरूर है, मंच के कर्ताधर्ता चतुर तो हैं क्योंकि समानांतर काम करने के बाद भी उन को युवा मोर्चा के दूसरे धड़े की तरह सामानांतर होने की संज्ञा नहीं दी जा पा रही, क्योंकि वे भाजपा शब्द का कहीं भी इस्तेमाल नहीं कर रहे।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

सचिन पायलट का विकल्प अब है भी तो नहीं

sachin paylet 02अजमेर की शहर जिला व देहात जिला कांग्रेस इकाइयों ने एक सुर से मौजूदा सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात मंत्री सचिन पायलट को ही अजमेर से दुबारा टिकट देने की पैरवी है। कांग्रेस हाईकमान की ओर से भेजे कए पर्यवेक्षक को फीडबैक देते हुए सचिन की तारीफ में ये कहा गया है कि उनके लिए सभी कांग्रेसजन एकजुट हैं और विकास पर ध्यान देने के कारण जनता उनको चाहती है। सचिन के इस गुणगान पर किसी को कोई आश्चर्य नहीं है। वजह ये है कि सचिन के मुकाबले का दूसरा विकल्प है भी तो नहीं। यदि कोई लुके-छिपे दावेदार होंगे भी तो कम से कम सचिन के सामने तो खड़े होने की स्थिति में नहीं हैं।
यहां रेखांकित करने वाली बात ये है कि अजमेर में दमदार दावेदार न होने के कारण ही तो पिछली बार बाहरी होते हुए भी उन्हें टिकट दिया गया था। अब तो केन्द्र में मंत्री भी हैं, सो उनके सामने खड़ा हो कर दावेदारी करने की हिम्मत शायद ही कोई करे। हर लुका-छिपा दावेदार जानता है कि उसकी दावेदारी को सुनने वाला कौन है। यदि हाईकमान सचिन को ही टिकट देने की ठान लेगा तो उनके दावे के तो कोई मायने ही नहीं रह जाएंगे। पिछली बार देहात जिला कांग्रेस अध्यक्ष नाथूराम सिनोदिया ने पूर्व विधायक डॉ.श्रीगोपाल बाहेती की पैरवी की थी, मगर अब वे पूरी तरह से सचिन के साथ हैं। पहले एडवोकेट जसराज जयपाल की अध्यक्षता वाली शहर इकाई जरूर उनके खिलाफ थी, मगर सचिन ने उसका कब्जा अपनी लॉबी के महेन्द्र सिंह रलावता को दिला रखा है। वे सचिन के गुण नहीं गाएंगे, तो किसके गायेंगे?
आइये, जरा पिछली बार की स्थिति पर नजर डाल लें। तब सबसे तगड़े दावेदार पूर्व सांसद विष्णु मोदी थे, क्योंकि वे इसी शर्त के साथ भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में लौटे थे। मगर इसी बीच सचिन का नाम आ गया। सचिन व मोदी के नाम की सुगबुगाहट के बावजूद स्थानीय दावेदारों ने खम ठोका था। तब शहर कांग्रेस ने पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को प्रत्याशी बनाने के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया था। शहर कांग्रेस अध्यक्ष जसराज जयपाल की अध्यक्षता में हुई बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया था कि डॉ. बोहती अजमेर के जनप्रिय नेता हैं, कांग्रेस कार्यकर्ताओं का भी उनसे लगाव है। स्थानीय कांग्रेसी होने के नाते उन्हें लोकसभा का टिकट मिलना चाहिए। जिले के दो विधायकों, पुष्कर की नसीम अख्तर इंसाफ व किशनगढ़ के नाथूराम सिनोदिया भी डॉ. बाहेती की पैरवी कर दी थी। यहां उल्लेखनीय है कि किशनगढ़ विधायक सिनोदिया देहात जिला कांग्रेस अध्यक्ष भी थे। केकड़ी के रघु शर्मा व नसीराबाद के महेन्द्र सिंह गुर्जर जरूर पूर्व सांसद विष्णु मोदी के साथ थे। डॉ. बाहेती के प्रति सर्वसम्मति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्थानीय प्रमुख कांग्रेसी नेताओं का दल उनकी पैरवी करने को दिल्ली कूच कर चुका था, मगर बताते हैं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कहने पर वे अजमेर लौट आए। गहलोत को पता लग चुका था कि टिकट तो सचिन को ही दिया जाएगा, सो काहे को विवाद खड़ा किया जाए। वे जानते थे कि बाहेती की दावेदारी के पीछे उन्हीं का हाथ माना जाएगा। कुल मिला कर शहर व देहात जिला कांग्रेस का समर्थन बाहेती को मिल जाने के बाद भी कांग्रेस हाईकमान ने सचिन को मैदान में उतार दिया।
प्रसंगवश बता दें कि तब विधानसभा चुनाव में हार से बौखलाए अजमेर डेयरी सदर रामचंद्र चौधरी ने भी दमदार तरीके से अपनी दावेदारी पेश की थी। इसी प्रकार पूर्व जिला प्रमुख रामस्वरूप चौधरी ने भी किशनगढ़ के कुछ नेताओं व जाटों के साथ दावेदारी की। महज दावेदारी करने के लिए तब पूर्व विधायक हाजी कयूम खान, नरेन शहाणी भगत, महेन्द्र सिंह रलावता जयशंकर चौधरी, सौरभ बजाड़, सुआलाल चाड व मोक्षराज आर्य ने भी अपनी अर्जियां पेश की थीं।
इसी सिलसिले में यह बताना प्रासंगिक रहेगा कि अजमेर में सचिन से पहले प्रभा ठाकुर को छोड़ कर कांग्रेस के सारे प्रत्याशी भाजपा के रासासिंह रावत के सामने धराशायी हो गए थे। उनमें बाबा गोविंद सिंह गुर्जर, किशन मोटवानी, जगदीप धनखड़, हाजी हबीबुर्रहमान शामिल हैं। प्रभा ठाकुर एक बार जीतीं और एक बार हारीं। पिछली बार कांग्रेस के बाहरी प्रत्याशी सचिन के सामने भाजपा ने भी बाहरी किरण माहेश्वरी को उतारा, मगर भाजपा का वह प्रयोग विफल हो गया।
बहरहाल, अब माहौल बदल चुका है। सचिन सिटिंग एमपी तो हैं ही केन्द्र में राज्यमंत्री भी हैं। उनकी परफोरमेंस भी ठीक मानी जा रही है। ऐसे में शायद ही कोई प्रबल दावेदार उभर कर आए। हां, अगर सचिन ही सीट बदलने की सोचें तो बात अलग हो सकती है।
वैसे एक बात है। माना कि शहर व देहात की दोनों इकाइयां भले ही सचिन के साथ हों, मगर इसका ये अर्थ निकालना ठीक नहीं होगा कि अजमेर जिले की पूरी कांग्रेस सचिन से राजी है। आज भी कई दिग्गज सचिन को पसंद नहीं करते। इनमें जसराज जयपाल, डॉ. बाहेती आदि को शामिल किया जा सकता है। यानि कि सचिन के केन्द्र में मंत्री होने के साथ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से करीबी होने के बावजूद उन्होंने अपना स्टैंड कायम रखा है और यही उनकी क्रेडिट है।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

आरपीएससी के बाहर निषेधाज्ञा कोई समाधान नहीं

rpsc thumbरोजाना हो रहे धरना-प्रदर्शन से तंग आ कर आखिर जिला प्रशासन ने आरपीएससी के आसपास निषेधाज्ञा लागू कर दी है। अब आयोग के खिलाफ अभ्यर्थी धरना-प्रदर्शन नहीं कर सकेंगे। खुद अतिरिक्त जिला दंडनायक शहर जगदीश पुरोहित से स्वीकार किया है कि यह कार्यवाही आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली विभिन्न परीक्षाओं के अभ्यर्थियों द्वारा आयोग कार्यालय के बाहर आए दिन किए जाने वाले प्रदर्शनों को रोकने के लिए की गई है।
यहां ज्ञातव्य है कि पिछले काफी समय से आरपीएससी के सामने आए दिन अभ्यर्थियों का जमावड़ा हो रहा था। विशेष रूप से ग्रेड सेकंड टीचर्स भर्ती परीक्षा, पीटीआई, एसआई, एचएम भर्ती परीक्षा आदि के अभ्यर्थियों में असंतोष है, मगर उसके समाधान की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है। नतीजतन अभ्यर्थियों में असंतोष बढ़ता जा रहा है। आयोग के बाहर का माहौल आए दिन गरमा जाता और पुलिस को रोजना मशक्कत करनी पड़ी थी। ऐसे में जिला प्रशासन ने आखिरकार निषेधाज्ञा लागू कर समस्या के समाधान की कोशिश की है। बेशक इससे जिला प्रशासन व पुलिस की समस्या का समाधान तो हो जाएगा, मगर परेशान अभ्यर्थियों की समस्या का क्या होगा, इस पर न आयोग और न ही सरकार ध्यान दे रही है। ग्रेड सेकंड टीचर्स भर्ती परीक्षा गणित व सामाजिक विज्ञान के अभ्यर्थियों की ही चर्चा करें, तो वे आयोग के बाहर पिछले 31 जनवरी से अनिश्चितकालीन धरना दे रहे थे। उनकी समस्या का समाधान तो हुआ नहीं और निषेधाज्ञा लागू कर दिी गई। अब वे धरना-प्रदर्शन नहीं कर सकते। एक लोकतांत्रिक देश में अपने विरोध की अभिव्यक्ति की आजादी छीन लेना वाकई शर्मनाक है। इससे लगता है कि सरकार अपनी व्यवस्थाओं के प्रति तो पूरी संवेदनशील है, मगर शांति से प्रदर्शन करने वाले अभ्यर्थियों की समस्याओं से उसका कोई लेना-देना ही नहीं है।
असल में आयोग के मौजूदा अध्यक्ष रिटायर्ड आईपीएस हबीब खान को विरासत में बदहाल आयोग ही मिला था। पूर्व अध्यक्ष प्रो. बी एम शर्मा उनके लिए ऐसी समस्याएं छोड़ गए, जिनसे आयोग की प्रतिष्ठा धूमिल होती जा रही है। शर्मा के कार्यकाल में प्रश्नपत्रों के जितने मामले कोर्ट में गए, उतने कभी नहीं गए। आरजेएस व एपीपी जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा के मामले कोर्ट में गए, जो कि एक बहुत ही गंभीर बात है। इसके अतिरिक्त आरएएस, लेखाकार-कनिष्ठ लेखाकार, पीआरओ, एपीआरओ आदि की परीक्षाओं में प्रश्नपत्रों में अनेक आपत्तियां आईं। आरएएस प्री का भौतिकी विषय का प्रश्न पत्र तो आयोग को दोबारा ही करना पड़ गया। आरजेएस की 21 दिसम्बर 2011 को हुई परीक्षा में 26 प्रश्नपत्रों पर आपत्तियां थीं, जिनमें से 14 को तो आयोग ने भी माना। इतना ही नहीं हबीब खान के कार्यभार संभालने के ठीक दूसरे ही दिन आयुर्वेद विभाग में विवेचक पदों पर भर्ती के लिए ली गई संवीक्षा परीक्षा पर भी सवालिया निशान लग गया। कुल मिला कर अभ्यर्थियों की इस प्रकार की नियमित शिकायतों से आयोग की पूरी कार्यप्रणाली पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। आयोग भले ही इसके लिए प्रश्न पत्र बनाने वाले को दोषी बताए, मगर जिम्मेदारी तो आयोग की है। हाल ही एक तथ्य और उजागर हुआ है। वो यह कि ने गत वर्ष पेपर बनवाने पर 15 करोड़ रुपए खर्च किए, इसके बावजूद विभिन्न भर्ती परीक्षाओं के प्रश्न पत्रों में गलतियों की भरमार रही। जब तक आयोग व सरकार इस मामले में गंभीर नहीं होगी, तब तक न तो हालात सुधरेंगे और न ही अभ्यर्थियों के रोष को कम किया जा सकेगा।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

सोनवाल क्या, दोषी तो एसपी मीणा भी नहीं हैं


लोकेश सोनवाल
लोकेश सोनवाल
अजमेर जिले में थानों से मंथली वसूली मामले में फरार चल रहे मुख्य आरोपी एएसपी लोकेश सोनवाल का कहना है कि एसीबी ने उसे झूठे मुकदमे में फंसाया है। अपने वकीलों जुगल किशोर भारद्वाज तथा भगवान सिंह चौहान के माध्यम से कोर्ट में प्रस्तुत प्रार्थना पत्र के जरिए उन्होंने जो तर्क दिए हैं, उससे तो यही लगता है कि उनकी बातों में दम है। वे ही क्यों, कानाफूसी तो ये भी है कि एसपी राजेश मीणा भी दोषी नहीं हैं, उन्हें भी झूठा फंसाया गया है।
सोनवाल की ओर से प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि एसीबी ने एसपी राजेश मीणा के बंगले में सोफे पर बैठे एक प्राइवेट व्यक्ति रामदेव ठठेरा के पास गुलाबी थैली में 2 लाख 05 हजार रुपए, अष्टधातु की कुबेर व कछुए की मूर्ति और मिठाई का डिब्बा बरामद किया था। उसके बाद एसीबी ने जो एफआईआर दर्ज की उसमें उन्हें भी नामजद कर भ्रष्टाचार कानून की धाराओं के तहत मुकदमा कर लिया। मुकदमे का जो आधार बनाया गया है, वह ठठेरा द्वारा एसीबी अफसरों के सामने किए गए कबूलनामे व बयानों के आधार पर बनाया गया है, जबकि कानूनन पुलिस अफसर या एसीबी के समक्ष किसी मुल्जिम की स्वीकृति के आधार पर मुल्जिम बनाया जाना गलत है।
राजेश मीणा
राजेश मीणा
हालांकि उनकी इस अर्जी पर फैसला कोर्ट को ही करना है, मगर यदि उनके तर्कों को मोटे तौर पर सही माना जाए तो निलंबित एसपी राजेश मीणा भी दोषी नजर नहीं आते। कानाफूसी है कि क्या दलाल किस्म के किसी व्यक्ति के कबूलनामे के आधार पर एसपी को गिरफ्तार करना अच्छी बात है? उन्होंने कौन सा केमिकट से रंगे नोटों को हाथ में पकड़ा था? कोई व्यक्ति यदि अपने नोटों के साथ कोई बात करने आता है तो इससे यह तो साबित नहीं होता कि वह रिश्वत या मंथली ही ले कर आया था। जिस तरह ठठेरा के कहने मात्र से सोनवाल के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है, उसी तरह मीणा भी व्यर्थ ही गिरफ्तार कर लिए गए। यह वाकई नाइंसाफी है कि किसी प्राइवेट व्यक्ति के कहने मात्र पर इतनी बड़ी कार्यवाही कर दी गई। जब मीणा व सोनवाल अपने-अपने पदों पर थे, तब वे तो इस प्रकार किसी की शिकायत मात्र के आधार पर मुकदमा दर्ज नहीं किया करते थे। वे ही क्यों पूरा पुलिस महकमा इस तर्ज पर चलता है। किसी की शिकायत मात्र के आधार पर न तो किसी को थाने पर बैठाए रखा जाता है और न ही उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाता है। पर न जाने क्यों मीणा व सोनवाल के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया? यह वाकई घोर नाइंसाफी है।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

प्रभा ठाकुर को फिर आई अजमेर की याद

prabha thakur 2मूलत: अजमेर जिले की रहने वाली राज्यसभा सदस्य डॉ. प्रभा ठाकुर को एक बार फिर अजमेर की याद आ गई। ये वाकई उनकी अजमेर वासियों पर बड़ी मेहरबानी है। वे न तो लोकसभा सदस्य बनने पर अजमेर के लिए कुछ कर पाईं, क्योंकि उनका वह कार्यकाल छोटा ही रहा और न ही लगातार दूसरी बार राज्यसभा सदस्य बनने पर उन्होंने कोई उपलब्धि अपने खाते में दर्ज करवाई। बावजूद इसके उन्हें यदा-कदा इस प्रकार अजमेर की याद आती रहती है, ताकि अजमेर वासियों को सनद रहे कि दिल्ली में रहते हुए उन्हें अजमेर की बहुत चिंता है। ठीक उसी तरह, जैसे बार-बार लोकसभा सदस्य बनने वाले रासासिंह रावत भी लिखा-पढ़ी तो बहुत किया करते थे, मगर उससे होता जाता कुछ नहीं था।
बहरहाल, डॉ. ठाकुर ने इस बार आगामी रेल बजट के मद्देनजर एक लंबा-चौड़ा ड्राफ्ट बना कर रेल मंत्री को भेजा है, जिसमें अजमेर रेलवे स्टेशन को विश्व स्तरीय बनाने का काम शुरू करने पर जोर दिया गया है। अजमेर के विकास के लिए उनकी ओर से दिए गए सुझाव बेशक सराहनीय हैं, मगर सवाल ये है कि उनकी ओर से अब तक दिए गए कितने सुझावों पर अमल हुआ है। वे केवल राज्यसभा सदस्य मात्र नहीं हैं, बल्कि हाईकमान तक उनकी पहुंच भी बताई जाती है, मगर अजमेर के लिए उन्होंने एक भी बड़ा काम नहीं करवाया। इससे संदेह होता है कि कहीं यह भ्रम तो नहीं है कि उनकी दिल्ली में बड़ी जान-पहचान है या फिर दिखाने भर के लिए इस तरह अपनी सक्रियता दर्शाती रहती हैं, उसमें गंभीरता कहीं भी नहीं है। कानाफूसी है कि वार-त्यौहार पत्रकारों को गिफ्ट दे कर उन्होंने ऐसी सेटिंग कर रखी है कि उनकी खबर दिल्ली में बैठे ही यहां आसानी से छप जाती है।
-तेजवानी गिरधर