रविवार, 17 सितंबर 2017

बीजेपी की जाजम तैयार, मगर उतारे किसको?

अजमेर लोकसभा सीट के लिए आगामी नवंबर-दिसंबर में संभावित उपचुनाव के लिए भाजपा की संगठनात्मक जाजम तो तैयार है, मगर सबसे बड़ी समस्या ये है कि उस पर उतारे किस नेता को?ï उसे यह उपचुनाव इसलिए जीतना बहुत जरूरी है, क्योंकि इस के परिणाम आगामी साल में होने वाले विधानसभा चुनाव को सीधा-सीधा प्रभावित करेंगे। एक तरह से इस चुनाव का परिणाम ठीक उसी तरह से है, जैसे चावल पका या नहीं, यह देगची में से एक चावल को निकाल कर देखा जाता है। बेशक केन्द्र व राज्य में भाजपा की सरकार होने का फायदा मिलना ही है, मगर ये चुनाव इस बात का सेंपल होगा कि राजस्थान में मोदी लहर व वसुंधरा के ग्लैमर की हालत कैसी है?
वस्तुत: संगठनात्मक लिहाज से भाजपा बहुत अधिक सक्रिय हो गई है। बूथ स्तर तक की चुनावी सेना व सैनिक कमर कस कर तैयार हैं। सत्ता है तो साधन-संसाधन की भी कोई कमी नहीं है। मगर डर सिर्फ इस बात का है कि जनता का मूड कहीं बिगड़ तो नहीं गया है? उसकी अनेक वजुआत हैं। यथा नोटबंदी व जीएसी की वजह से आई बाजार में आई घोर मंदी, महंगाई, बेराजगारी, काले धन को लेकर की गई बड़ी-बड़ी घोषणाएं इत्यादि इत्यादि। इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री वसुंधरा को अपेक्षित फ्री हैंड न मिलने के कारण उनका परफोरमेंस निल है। इस बात को ठेठ गांव में बैठा भाजपा का कार्यकर्ता भी जान रहा है। मोदी व वसुंधरा के नाम पर जनता का वोट लेने वाला कार्यकर्ता के सामने जब सवाल खड़े करती है, तो उससे जवाब देते नहीं बनता।
मायूस मोदी समर्थकों के साथ ही ग्रहों का चक्र भी मोदी से कुछ यूं  नाराज सा है कि पिछले दो महीने से हर घटना सरकार के लिए अपयश लेकर आ रही है। वो चाहे गोरखपुर में बच्चों का असमय संसार छोडऩा हो या फिर एक के बाद रेल दुर्घटनाएं या बाबा राम रहीम का भाजपा के सरंक्षण में बेनकाब होना या फिर एबीवीपी की ताजा चुनावी पराजय, जिधर देखिये, हवा में एक नकारात्मक सी प्रतिक्रिया है।
ऐसे हालात में ऐसा कौन सा प्रत्याशी होगा, जो भाजपा की नैया पार लगाएगा, यह सवाल भाजपा के लिए यक्ष बन कर खड़ा है। उस पर सबसे बड़ा दबाव ये है कि जाट के अतिरिक्त किसी अन्य जाति के प्रत्याशी को उतारे जाने का विचार मात्र भयावह है। वजह स्पष्ट है। यह सीट अब जाट बहुल हो चुकी है। दूसरा ये कि प्रो. सांवरलाल जाट के निधन से खाली हुई है। तो जाट प्रत्याशी के अतिरिक्त अन्य पर दाव खेलने पर जाट समुदाय नाराज हो सकता है। जाटों में भी प्रो. जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा का भारी दबाव है, जो लगातार गांवों में ऐसे दौरे कर रहे हैं, मानो वे ही प्रत्याशी होने वाले हैं। भाजपा समझ रही है कि लांबा का कद व पकड़ उनके पिता प्रो. जाट के मुकाबले कमजोर है। बेशक केन्द्र व राज्य सरकार की ताकत उनके साथ हो सकती है, मगर पिछली बार की तरह मोदी लहर जैसा आलम नहीं है, जिस पर सवार हो कर नैया पार लग जाए। उलटा एंटी इंन्कंबेंसी अलग सता रही है। ऐसे में लांबा पर दाव खेलने से पहले भी उसे सौ बार सोचना होगा। अगर लांबा को नसीराबाद विधानसभा सीट के लिए राजी कर भी लिया जाता है तो जाटों में सिर्फ अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी, किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी व सी बी गेना ही विकल्प बचते हैं। अगर कांग्रेस की ओर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट आ गए, जैसा कि इन दिनों हौवा बना हुआ है, तो इनमें से कोई भी नहीं टिक पाएगा। कारण कि सचिन पायलट हाईप्रोफाइल हैं और उनके केन्द्रीय राज्यमंत्री रहते कराए गए काम जनता के जेहन में हैं। ऐसे में भाजपा स्थानीय जाट की बजाय बाहरी जाट पर विचार कर सकती है। इस रूप में सतीश पूनिया का नाम चर्चा में आया है। रहा सवाल गैर जाट का तो उस पर दाव खेलने का रिस्क भाजपा शायद नहीं ले पाएगी। कुल मिला कर भाजपा की मजबूत सेना को एक मजबूत सेनापति की दरकार है, जिसका फैसला करने से पहले वह कांग्रेस खेमे में झांक कर रही है, उधर से कौन आ रहा है?
-तेजवानी गिरधर
7742067000