शनिवार, 30 जून 2012

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का शिविर : अब लकीर पीटने से क्या?

कैसी विडंबना है कि एक ओर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसरसंघ चालक मोहन राव भागवत सहित संघ के अन्य कार्यकर्ता हिंदुत्व की अनूठी परिभाषा पर प्रयोग करते हुए मुसलमानों को भी हिंदू मान रहे हैं, क्योंकि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू ही है, तो दूसरी ओर इसी सिलसिले में हिंदुओं की आस्था के केन्द्र तीर्थराज पुष्कर में आयोजित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के शिविर को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है। एक ओर जहां दरगाह कमेटी के सदस्य इलियास कादरी व कुछ अन्य मुस्लिम नेताओं ने शिविर पर सवाल उठाते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से शिविर की गहन जांच की मांग की है, वहीं अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ने पलट वार करते हुए शिविर पर अंगुली उठाने को चंद लोगों की बौखलाहट करार दे दिया है।
अव्वल तो पूर्व घोषित शिविर हो जाने के बाद उस पर सवाल उठाना सांप निकल जाने के बाद लकीन पीटने के समान है। अगर परेशानी इस बात पर थी कि दरगाह बम विस्फोट के कथित आरोपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार ने इसमें कैसे शिरकत की तो यह तो पहले से ही तय था कि वे इस शिविर को संबोधित करेंगे। तब किसी को कुछ नहीं सूझा और अब सवाल ये उठाया जा रहा है कि शिविर की अनुमति ली गई थी या नहीं। यदि ऐसा शिविर आयोजित करना कानूनन गलत था तो उस पर पहले ऐतराज किया जाना चाहिए था। हालांकि जिला कलेक्टर वैभव गालरिया ने यह कह कर कि पल्ला झाड़ लिया कि जांच के बाद ही बता पाऊंगा कि शिविर के लिए अनुमति ली गई या नहीं, मगर प्रो. देवनानी तो यह कह कर विरोधियों का मुंह बंद करने की कोशिश की ही है कि ऐसे शिविर हेतु प्रशासन से किसी प्रकार की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। शिविर कोई गोपनीय नहीं था, शिविर के संबंध में मीडिया को पूरी जानकारी थी तथा मीडिया ने शिविर में वक्ताओं द्वारा व्यक्त राष्ट्रवादी विचारों को प्रमुखता से छापा भी है।
वक्ताओं द्वारा गैर जिम्मेदाराना बयान एवं सामाजिक व धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले भाषण दिए जाने की बात सिर्फ कादरी ही कह रहे हैं। अखबारों में तो ऐसा कुछ नजर नहीं आया। इस मामले में देवनानी की यह बात सही है कि जब भी हिंदू-मुस्लिम एकता की बात होती है, चंद लोगों के पेट में मरोड़ उठने लगते हैं, जो मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में प्रयोग करते हैं और कट्टरता व धार्मिक उन्माद फैलाकर उनके विकास व उन्नति को अवरुद्ध करते हैं। मजहब के नाम पर आपस में बांटकर राजनीति करने वालों व कुछ स्वार्थी तत्वों को देश में भाईचारा बढ़ाने के लिए किए जा रहे अच्छे काम गले नहीं उतर रहे हैं। कादरी की यह बात जरूर सही है कि शिविर में कुछ अज्ञात मुल्लाओं व कुछ अजनबी मुसलमान चेहरों को एकत्रित किया गया था। इसमें स्थानीय मुसलमानों की मौजूदगी नगण्य ही थी।
रहा सवाल इंद्रेश कुमार का तो देवनानी के इस तर्क में जरूर दम है कि सरकार एवं जांच एजेंसियां उन पर लगाए गए किसी आरोप को सिद्ध नहीं कर पाई है, मगर कादरी की यह बात भी सही कि जांच एजेंसी व अदालत ने उन्हें अभी क्लीन चिट नहीं दी है। मीडिया को भी पता नहीं कि वे पाक साफ हैं, इस कारण जब मीडिया ने इस बारे में स्वयं इंद्रेश कुमार से सवाल किए तो वे बौखला गए और मीडिया से बात करने से ही मना कर दिया। बाद में बमुश्किल राजी हुए।
जहां तक शिविर के मकसद का सवाल है, अपुन को एक तो यही लगा था कि यह मुस्लिमों को संघ से जोडऩे की कवायद है और इसके लिए हिंदुओं के तीर्थस्थल पुष्कर को चुनना सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। दूसरा इसके बहाने शिविर संयोजक सलावत खान पुष्कर में चुनावी जमीन की तलाश कर रहे हैं। षडय़ंत्र जैसा कुछ नहीं। मगर कांग्रेस विचारधारा वाले मुस्लिमों के लिए यह षडय़ंत्र के समान ही है, क्योंकि उनकी झोली में पड़े मुस्लिमों में संघ सेंध मारने की कोशिश कर रहा है।
हां, इस पर जरूर मतभिन्नता हो सकती है कि संघ मुस्लिमों को भी हिंदू बता कर उन्हें मुख्य धारा में लाना चाहता है, इसमें पूरी ईमानदारी है या फिर केवल वोटों की राजनीति। ये सवाल महज इस कारण उठता है कि मुसलमानों को अपना भाई कहने में जुबान को कोई जोर नहीं आता, मगर धरातल का सच ये ही है कि दिल को बड़ी तकलीफ होती है। कम से कम संघनिष्ठ और हिंदूवादियों को। कदाचित हिंदू-मुस्लिम के बीच इस खटास का ही परिणाम है कि पूर्व सर संघ चालक कु सी सुदर्शन और इंद्रेश कुमार के साथ फोटो खिंचवाने पर खादिम सैयद अफशान चिश्ती का विरोध शुरू हो गया है। खादिमों ने अंजुमन मोईनिया फखरिया चिश्तिया खुद्दाम सैयद जादगान को पत्र लिख कर खादिम के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
खैर, अब शिविर के मसले पर जो कुछ भी आरोप-प्रत्यारोप हो रहे हैं, वे लकीर पीटने के समान है और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील अजमेर की सेहत के लिए तो अच्छा नहीं है। 

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

डटे हुए हैं डीएसओ गोयल, आखिर माजरा क्या है?


भारी विरोध और अनेक आरोपों के बाद भी अजमेर के जिला रसद अधिकारी हरिशंकर गोयल अपने पद पर डटे हुए हैं। यह आश्चर्यजनक इस कारण भी है कि कांग्रेस राज में कांग्रसियों के ही विरोध के बाद भी उनका बाल भी बांका नहीं हुआ है। अब तक तो उनकी शिकायत जिला कलेक्टर और मुख्यमंत्री से ही होती रही है, मगर अब तो खुले आम उनके मुंह पर ही उन्हें भ्रष्ट बताया जा रहा है। नए राशन कार्ड बनाने की प्रक्रिया के सिलसिले में नगर निगम सभागार में आयोजित बैठक में पार्षदों ने उन्हें खुले आम भ्रष्ट कहा गया और राशन वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार सहित कई अहम मुद्दों पर गोयल को आड़े हाथों लिया। एक पार्षद ने कहा कि विभाग द्वारा प्रत्येक राशन की दुकान से चार सौ रुपए प्रति माह की रिश्वत ली जाती है। पार्षद मोहनलाल शर्मा ने यह कहते हुए सनसनी फैला दी कि गोयल तो खुद भ्रष्ट हैं, यह राशि इनके पास भी तो जाती है। इस पर गोयल ने कहा कि यह आरोप झूठा है। किसी की सोच पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है।
बहरहाल सवाल ये है कि इतने विवादास्पद बनाए जाने के बावजूद वे बेपरवाह बने हुए हैं, तो इसका मतलब ये है कि या तो वे वाकई ईमानदार हैं और बेईमान होने के आरोप राजनीति का हिस्सा हैं और या फिर उच्चाधिकारियों व रसद विभाग के मंत्री बाबूलाल नागर तक उनकी पकड़ इतनी मजबूत है कि कोई कितना भी भौंके, वे मस्त हाथी तरह ही चल रहे हैं। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि जांको राखे साईयां, मार सके ना कोय।
ज्ञातव्य है कि गोयल की कार्यप्रणाली से सर्वप्रथम भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने नाराजगी दर्शायी थी। श्रीमती भदेल ने विधानसभा में यहां तक कह दिया था कि अजमेर में खाद्य मंत्री की नहीं बल्कि गोयल की चलती है। गोयल पर दूसरा प्रहार रसद विभाग की जिला स्तरीय सलाहकार समिति के सदस्य प्रमुख कांग्रेसी नेता महेश ओझा व शैलेन्द्र अग्रवाल ने किया था और आरोप लगाया कि गोयल समिति की उपेक्षा कर रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री को शिकायत भेज कर उनके खिलाफ कार्यवाही करने व स्थानांतरण करने की मांग की है। गोयल की शिकायत राज्यसभा सदस्य प्रभा ठाकुर ने भी मुख्यमंत्री से कर रखी है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि राशन की दुकानों के आवंटन की प्रणाली में धांधली बाबत अनेक शिकायतें सामने आई हैं। राशन वितरण संबंधी अनियमितताओं के कारण अजमेर की जनता परेशान है। जिले में गैस एजेंसियों की मनमानी व रसाई गैस की सरेआम कालाबाजारी के कारण उपभोक्ताओं को समय पर रसोई गैस नहीं मिलने की शिकायतें लगातार आ रही हैं। अनुरोध है कि जिला रसद अधिकारी का तत्काल स्थानांतरण किया जाए और उन्हें जनहित संबंधी जिम्मेदारी नहीं दी जाए।
इन सभी शिकायतों का गोयल पर कोई असर नहीं पड़ा। यहां तक जिन राशन वालों से रिश्वत लेने का आरोप है, उन पर भी उनकी गहरी पकड़ है। तभी तो महेश ओझा व शैलेन्द्र अग्रवाल पर पलट वार करते हुए अजमेर डिस्ट्रिक्ट फेयर प्राइज शॉप कीपर्स एसोसिएशन ने आरोप जड़ दिया कि वे राशन वालों से अवैध वसूली करते हैं। उन्होंने बाकायदा मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन जिला कलेक्टर को भी दिया। हालांकि इसे साबित करना कत्तई नामुमकिन है कि गोयल के कहने पर ही राशन की दुकान वाले आगे आए, मगर ये सवाल तो उठ ही गया कि यदि राशन की दुकान वाले सलाहकार समिति के सदस्यों से पीडि़त थे तो वे गोयल पर हमले से पहले क्यों नहीं बोले? गोयल की शिकायत होने पर ही उन्हें सलाहकार समिति के सदस्यों की करतूत याद कैसे आई?
जो कुछ भी हो, मगर इतना तय है कि गोयल ने अब तक किसी की भी परवाह किए बिना शुद्ध के लिए युद्ध सहित अवैध रसोई गैस की धरपकड़ के मामले में धूम मचा रखी है। भ्रष्ट व्यापारियों में उनका जबरदस्त खौफ है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि गोयल बेहद ईमानदार और कड़क अफसर हैं।  दूसरी ओर चर्चा ये भी है कि उनकी ईमानदारी इस कारण स्थापित है क्योंकि  कोई भी दुकानदार उनसे पंगा मोल नहीं लेना चाहता। वैसे भ्ी व्यापारी ले दे कर मामला सुलटाने में विश्वास रखते हैं। कदाचित इसी कारण आज तक एक भी मामले में गोयल के भ्रष्टाचार को साबित नहीं किया जा सका है।