मंगलवार, 7 मार्च 2017

राजावत के मुंह से फिर निकल गया सच

भाजपा विधायक भवानी सिंह राजावत सच्चे राजनीतिज्ञ नहीं, बल्कि सच्चे इंसान प्रतीत होते हैं। आजकल सच्चा राजनीतिज्ञ वही, जो झूठ बोलने में माहिर हो, मगर राजावत अमूमन सच बोल जाते हैं। हालांकि वे बोलने के बाद जरूर पछताते होंगे कि जो नहीं कहना चाहिए था, वह कह दिया।
पिछले दिनों उन्होंने अनौपचारिक बात में मोदी सरकार की नोट बंदी की आलोचना की, मगर जब उसका वीडियो वायरल हो गया तो दूसरे ही दिन भाजपा में खलबली मच गई। ऐसे में उन्होंने अपने कथन का खंडन किया कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा था।
हाल ही नयापुरा स्थित पोस्ट ऑफिस पासपोर्ट सेवा केंद्र के उद्घाटन के मौके पर कोटा में नया एयरपोर्ट नहीं बनवाने को लेकर भी इतने खफा हुए कि अपनी ही सरकार पर तंज कस दिया और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट की तारीफ कर दी। राजावत ने सांसद ओम बिरला की मौजूदगी में कहा कि पायलट जब अजमेर से सांसद थे, तो किशनगढ़ जैसी जगह पर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बन गया। कहां किशनगढ़ और कहां कोटा?
स्वाभाविक रूप से यह खबर अखबारों की सुर्खियां बनीं। खबर थी ही ऐसी। अजमेर के भाजपा नेताओं तो बहुत बुरा लगा होगा कि उनकी पार्टी के विधायक कांग्रेस नेता की तारीफ कर रहे हैं, जबकि उन्होंने तो पायलट की नाकामी गिना कर वोट बटोरे थे। अब जब किशनगढ़ का हवाई अड्डा शुरू होगा तो वे इसका श्रेय नहीं ले पाएंगे, क्योंकि तब लोग उन्हें राजावत का बयान याद दिलवा देंगे।
अजमेर के संदर्भ में ये खबर इसलिए भी अहमियत रखती है क्योंकि पांच बार सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत की तुलना में पायलट ने एक टर्म में ही इतना काम करवा दिया कि भाजपाई भी आपसी खुसर फुसर में उनकी उपलब्धियों को स्वीकार करते थे। मगर मोदी लहर ने सब पर पानी फेर दिया। आपको याद होगा कि तब पायलट ने मोदी लहर की आशंका में चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि अगर काम करने पर भी वोट नहीं मिलेगा तो फिर नेताओं का अपने क्षेत्र में काम करवाने पर से विश्वास उठ जाएगा। बेशक लहर में पायलट भी नहीं बच पाए, मगर यह चर्चा आज भी होती है कि पायलट ने जो काम करवाए, उसकी तुलना में रावत ने धेला भर भी काम नहीं करवाया।
खैर, भाजपा विधायक ने ही पायलट को सर्टिफिकेट दे दिया है, तो अब तो अजमेर के भाजपाइयों को भी मानना पड़ेगा।

क्या केवल हिलाल कमेटी से इस्तीफा देना की काफी होगा?

महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सालाना उर्स के सिलसिले में चांद दिखाई देने के ऐलान में बदलाव को लेकर पिछले दिनों हुए विवाद के साथ कुछ और धार्मिक व रस्मी पेचीदगियां भी पैदा हो गई हैं। इन पर दरगाह कमेटी ने अभी तक गौर नहीं किया है, मगर दरगाह से जुड़े लोग व आम मुसलमानों में उसकी खासी चर्चा है।
दरअसल हिलाल कमेटी में तीन प्रमुख सदस्य सीधे दरगाह से ही जुड़े हुए हैं, जिनमें शहर काजी व शाहजहांनी मस्जिद के इमाम मौलाना तौसीफ सिद्दीकी, अकबरी मस्जिद के इमाम हाफिज अब्दुल गफूर व सदर ए मुसरिस, दारुल उलूम मोइनिया इस्लामिया मौलाना बशीरुल कादरी शामिल हैं। बाकी के तीन बाहर के हैं, जिनमें हाफिज रमजान और मौलाना जाकिर हुसैन अशरफ, हाफिज फैयाज हुसैन मुस्लिम धर्म व रीति-रिवाज के जानकार होने के नाते हिलाल कमेटी में हैं। गौरतलब है कि इन सदस्यों ने उनके साथ बदसलूकी होने के कारण हिलाल कमेटी से इस्तीफा देने की पेशकश कर रखी है। बाहर के सदस्य अगर हिलाल कमेटी से इस्तीफा देते हैं तो दरगाह कमेटी उनकी जगह पर अन्य की नियुक्ति कर देगी, मगर अजमेर के तीन सदस्यों का केवल हिलाल कमेटी से इस्तीफा देना काफी नहीं होगा। चूंकि वे दरगाह स्थित तीन प्रमुख स्थानों के मुखिया हैं, इसी के नाते हिलाल कमेटी के सदस्य हैं। यानि कि उन्हें उन पदों से भी इस्तीफा देना होगा, तभी उनके स्थान पर नए पदासीन किए जा सकेंगे, जो कि नई हिलाल कमेटी के सदस्य होंगे। हालांकि दरगाह कमेटी हिलाल कमेटी के सदस्यों के साथ बदसलूकी को लेकर गंभीर है और सख्त कार्यवाही का आश्वासन दे रही है, ऐसे में संभव है सभी सदस्य इस्तीफे की पेशकश वापस ले लें।
एक और मसला भी चर्चा में है। वो यह कि शरियत के मुताबिक पेश इमाम के साथ बदसलूकी करने वालों की नमाज जायज नहीं होती है। अगर वे नमाज में शिरकत करते हैं तो उनके पीछे खड़े नमाजी की नमाज भी फासिद हो जाएगी। जाहिर तौर पर बदसलूकी करने वाले भी नमाज तो अदा करते ही होंगे। दरगाह कमेटी को इस पर भी गौर करना होगा कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए?
जहां तक मूल विवाद का सवाल है, इसको लेकर भी वर्ग बन गए हैं। एक ओर खादिम हैं तो दूसरी ओर आम मुसलमाल। दरगाह कमेटी व जिला प्रशासन को यह देखना होगा कि विवाद का निपटारा जल्द से जल्द हो जाए, ताकि दो वर्गों के बीच कटुता की नौबत न आए।
गौरतलब है कि हिलाल कमेटी ने 27 फरवरी को हुई बैठक के बाद चांद नहीं दिखाई देने का ऐलान किया। इस हिसाब से 1 मार्च से ही जमादिउस्सानी महीने की एक तारीख मानी जाती। चूंकि इस तारीख की बड़ी अहमियत है, इस कारण इसकी खबर तुरंत देशभर में फैल गई। मगर बताया जाता है कि 28 फरवरी को हिलाल कमेटी के पास अहमदाबाद से खबर आई कि चांद 27 को ही दिखाई दे चुका है और चांद की पहली तारीख 28 को ही हो गई है। इसी को आधार बना कर हिलाल कमेटी के सदर ने ऐलान कराया कि चांद रात 27 की ही हो गई और 28 को चांद की एक तारीख है। यानि कि ख्वाजा साहब की छठी 5 मार्च को और उर्स का झंडा 24 मार्च को चढ़ेगा। जाहिर तौर पर यह ऐलान होते ही खलबली मच गई। दरगाह से जुड़े कुछ लोगों ने शहर काजी और कमेटी सदस्यों के साथ कथित तौर पर बदसलूकी की।
-तेजवानी गिरधर
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