बुधवार, 29 मई 2013

स्लम फ्री सिटी बनाने की योजना पर खुश होने की जरूरत नहीं है

अजमेर वासियों के लिए यह खबर वाकई खुश होने वाली बात है कि अजमेर शहर को देश का पहला स्लम फ्री सिटी बनाने की योजना मंजूर हो गई है। इसका स्वागत किया ही जाना चाहिए। मगर संभव है आपको हैडिंग पढ़ कर अटपटा लगा हो कि आखिर ऐसी क्या बात है कि खुशी के मौके पर नकारात्मक टिप्पणी क्यों की जा रही है।
असल में महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और तीर्थराज पुष्कर की बदोलत अजमेर का नाम विश्व के मानचित्र पर अलग ही चमकता है। बारहों महीने यहां बड़ी हस्तियों, नेताओं और फिल्म कलाकारों का आना-जाना लगा ही रहता है। नतीजतन यहां के विकास के लिए कई बार पैकेज घोषित हुए हैं। कुछ लागू भी हुए हैं, उसके बाद भी दरगाह इलाके और पुष्कर सरोवर के हालात किसी से छिपे हुए नहीं हैं। वजह ये है कि यहां योजनाएं लागू तो होती हैं, मगर चूंकि राजनीतिक जागरूकता का अभाव है, इस कारण उनकी ठीक से मॉनीटरिंग नहीं होती और उसका परिणाम ये होता है कि योजनाओं में लगी राशि पानी में चली जाती है। आपको याद होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के कार्यकाल में अरावली की पहाडिय़ों को हरा-भरा कर उसे पुराना स्वरूप प्रदान करने के लिए हैलीकॉप्टर से बीजारोपण का काम शुरू हुआ, मगर उस पर ठीक से ध्यान न देने के कारण उसे गाय खा गई। आज पहाडिय़ां पहले से भी ज्यादा नंगी हो गई हैं। इसी प्रकार पुष्कर वैली प्रोजेक्ट पर भी करोड़ों खर्च किए गए, मगर पहाडिय़ों की दुर्दशा और सरोवर की बदहाली खुद ही कहानी बयां कर रही है कि वह पैसा न जाने कहां बह गया। तीर्थराज पुष्कर के पास बूढ़ा पुष्कर के जीर्णोद्धार पर भी खूब पैसा खर्च किया गया और भाजपा नेता औंकार सिंह लखावत ने प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की मौजूदगी में भव्य समारोह भी हुआ, मगर सरकार बदलने के बाद आज हालत ये है कि उधर कोई झांकने को तैयार नहीं है। बात करें हवाई अड्डे की तो उसके लिए कितने पापड़ बेले गए हैं। वर्षों बाद गहलोत सरकार ने आते ही एमओयू पर हस्ताक्षर किए, मगर साढ़े चार साल बीत गए, अब जा कर धरातल पर कुछ होता नजर आ रहा है।
इसी प्रकार सीवरेज योजना को ही लीजिए। जब इसे अजमेर में लागू किए जाने की बात आई तो बड़ी खुशी की लहर थी, मगर उस पर जैसा अमल हुआ है, वह किसी ने छिपा नहीं है। आज भी वह अधूरी है। कई जगह काम अधूरा है तो जो पूरा हो चुका है, उस पर विवाद चल रहा है। इस दौरान न जाने कितनी जानें काल-कलवित हो गईं, मगर यह शहर केवल सियापा ही करता रहा। इस सिलसिले में एक कलेक्टर ने तो यहां तक कहा था कि अगर कोई और शहर होता तो हंगामा हो जाता और प्रशासन की जान सांसत में होती। इसी कड़ी में एक सच्चाई ये भी है कि राजनीतिक जागरूकता का अभाव ही वह वजह कि यहां अफसरशाही हावी है और उन्हें अजमेर बहुत सूट करता है। कई अफसर तो ऐसे हैं, जिन्हें कई साल हो गए अजमेर में बसे हुए और यहीं पर विभाग बदल बदल कर तबादला करवा लेते हैं।
खैर, इन सब योजनाओं में सबसे खराब अनुभव रहा दरगाह विकास योजना का। उसके लिए तीन सौ करोड़ रुपए से भी ज्यादा की योजना बनाई गई। बड़ी खुशी थी। बाकायदा अलग-अलग मद में राशि भी तय हुई। अजमेर फोरम ने तो इसे अपना प्राइम प्रोजेक्ट बना कर लगातार दबाव बनाए रखा। मगर वह अजमेर, जयपुर व दिल्ली के बीच डौलती रही और उसे गाय कब खा गई, पता ही नहीं लगा। ऐसा इस वजह से हुआ कि अजमेर के नेताओं ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया। और आप समझ सकते हैं कि बिना फॉलोअप के कुछ भी नहीं होता। आज भी उस योजना की फाइलें कहने को वजूद में, मगर दफ्न हैं, मगर किसी को फुर्सत नहीं है कि उसके पीछे पड़े।
वस्तुत: इसी कारण इस शहर को कोई इलायची बाई की गद्दी के नाम  से पुकारता है तो कोई इसे मुर्दा शहर, मुर्दा लोग की उपमा देता है। टायर्ड और रिटायर्ड तो इसे वर्षों से कहा ही जाता है। राजनीतिक जागरूकता के अभाव और सशक्त नेतृत्व के अभाव में यहां के लोग इतने सहनशील हैं कि हर परेशानी को बिना कोई गिला-शिकवा किए सहन करते रहते हैं। आईआईटी के लिए जरूर सिटीजंस कौंसिल के महासचिव व जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष दीनबंधु चौधरी और युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा ने अभियान को दिशा दी और जागरूकता लाने की कोशिश की, मगर उसे अपेक्षित जनसमर्थन नहीं मिल पाया और अजमेर का हक मारा गया। सचिन पायलट के केन्द्रीय राज्य मंत्री बनने के बाद अलबत्ता यहां विकास को दिशा मिली है, मगर निचले स्तर पर आज भी वही हालत है।
एक-दो नेताओं को छोड़ कर अधिसंख्य नेताओं की हालत ये है कि वे यहां चल रही योजनाओं के बारे में न तो समझते हैं और न ही उसका फॉलोअप करते हैं। इसी कारण यह खबर सुन कर कि अजमेर स्लम फ्री बनेगा, उतनी खुशी नहीं होती, जितनी कि होनी चाहिए। आज भले ही नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शहाणी व नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया योजना मंजूर होने पर खुशी में गाल बजा रहे हों और इसका श्रेय सचिन पायलट को देने से नहीं थक रहे हों, मगर वे और उनके बाद आने वाले जनप्रतिनिधि इस योजना पर ठीक से ध्यान देंगे, इसमें तनिक संदेह है।
-तेजवानी गिरधर