सोमवार, 29 अप्रैल 2013

शैक्षिक राजधानी बनी भ्रष्टाचारियों का अड्डा


अरावली पर्वत शृंखला के आंचल में महाराजा अजयराज चौहान द्वारा स्थापित अजमेर नगरी की दुनिया में खास पहचान रही है। इसका आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व इसी तथ्य से आंका जा सकता है कि सृष्टि के रचयिता प्रजापिता ब्रह्मा ने तीर्थगुरू पुष्कर में ही आदि यज्ञ किया था। सूफी मत के कदीमी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के रूहानी संदेश से महकती इस पाक जमीन में पल्लवित व पुष्पित विभिन्न धर्मों की मिली-जुली संस्कृति पूरे विश्व में सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल पेश करती है। इस रणभूमि के ऐतिहासिक गौरव का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह सम्राटों, बादशाहों और ब्रितानी शासकों की सत्ता का केन्द्र रही है। आजादी के आंदोलन में तो यह स्वाधीनता सेनानियों की प्रेरणास्थली रही। मगर............. मगर, अब दुष्कर्मियों और भ्रष्टाचारियों के अड्डे के रूप में पहचान बनाने लगी है। कुछ साल पहले बहुचर्चित अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड की वजह से पूरी दुनिया में यह जमीं शर्मसार हुई और अब भ्रष्टाचार के एक के बाद एक कांड खुलने से यह भ्रष्टाचार का अड्डा साबित होती जा रही है।
ताजा मामला कोर्ट से जुड़ा है, जिसमें कोर्ट स्टेनोग्राफर, कनिष्ठ लिपिक भर्ती परीक्षा में पांच से छह लाख रुपए लेकर भर्ती करवाने का खुलासा हुआ है। एसीबी ने इस मामले में दो वकीलों, नसीराबाद कोर्ट के नाजिर और अजमेर कोर्ट में लिपिक के घर छापा मारा। इससे पहले भी अनेक मामले उजागर हो चुके हैं और प्रदेशभर में एसीबी की सर्वाधिक कार्यवाहियों का रिकार्ड बनता जा रहा है।
आपको याद होगा कि एसीबी ने इससे पहले कैटल फीड प्लांट के तत्कालीन मैनेजर सुरेंद्र कुमार शर्मा के पास 10 करोड़ की नकदी व सोना पकड़ा था। कोआपरेटिव बैंक के एमडी हनुमान कच्छावा का आय से अधिक संपत्ति का प्रकरण भी एसीबी की कार्यवाही से उजागर हुआ। इसके बाद बैंक के ही ब्रजराजसिंह भी एसीबी के जाल में फंसे और कोर्ट से सजा भी हुई।  कानून की रक्षा करने वाली पुलिस भी एसीबी की कार्यवाही से नहीं बच पाई। आईपीएस अजय सिंह के पकड़े जाने से इसकी शुरुआत हुई। जब एसपी राजेश मीणा के घर छापा पड़ा तो पूरी अजमेर जिले की पुलिस भ्रष्टाचार में संलिप्त पाई गई। इस मामले में तत्कालीन एसपी राजेश मीणा और एएसपी लोकेश सोनवाल से लेकर करीब एक दर्जन थानाधिकारी उलझे। मीणा चार माह से जेल में है, जबकि लोकेश सोनवाल फरार है। दो थानाधिकारियों के स्थाई गिरफ्तारी वारंट जारी हो रखे हैं तो शेष के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए जरूरी कार्रवाई की जा रही है। इस प्रकरण में राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष पर भी छींटे आए, मगर उनके खिलाफ मामला नहीं बना। पिछले दिनों आबकारी का डिपो मैनेजर और आदर्शनगर थाने का तत्कालीन एसआई भी एसीबी की गिरफ्त में आए। इसके बाद एसीबी ने फिर एक बड़ी कार्रवाई कर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के वित्तीय सलाहकार नरेंद्र कुमार तंवर को धर दबोचा। तंवर से करोड़ों रुपए की बोर्ड की एफडी और अकूत संपत्ति का पता चला। तंवर भी जेल में हैं। इस सिलसिले में आम जनता की नजर में बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पर भी शक की सुई घूम गई, यह बात अलग है कि अब तक वे लपेटे में नहीं आए हैं।
सवाल ये उठता है कि आखिर इसकी वजह क्या है कि अजमेर में ही भ्रष्टाचार के मामले अधिक पकड़ में आ रहे हैं। यूं भले ही इस शहर को टायर्ड व रिटायर्ड लोगों का शहर कहा जाए, मगर उसी की जड़ में छिपा है यहां हो रहे गोरखधंधे का राज। आप रिकार्ड उठा कर देख लीजिए, जो भी अधिकारी एक बार यहां आ जाता है तो उसकी कोशिश यही रहती है कि किसी न किसी रूप में यहीं बना रहे। इसी वक्त कोई एक दर्जन बड़े अधिकारी अजमेर में मौजूद हैं, जो डिपार्टमेंट बदल-बदल की अजमेर को ही अपना ठिकाना बनाए हुए हैं। वजह ये नहीं है कि इस आध्यात्मिक धरा पर उन्हें आत्मिक सुकून मिलता है, अपितु कारण ये है कि यहां लूटना आसान है, क्योंकि जनता तो सोयी हुई है ही, सहनशील है ही, यहां के नेता भी मस्त हैं। सच तो ये है कि उन्हें पता ही लगता कि कौन अधिकारी कितना लूट रहा है। उनमें दमदारी भी नहीं है। इसी कारण अधिकारियों की यहां मौज ही रहती है और वे पूरी नौकरी तो यहां करना चाहते ही हैं, रिटायर्ड होने के बाद भी यहीं बस जाते हैं।
माना कि भ्रष्टाचार हर जगह मौजूद है, मगर अकेले अजमेर के अधिकारी ही एसीबी की चपेट में कैसे आ रहे हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि यहां राजनीतिक तंत्र कमजोर होने के कारण वे बेखौफ भ्रष्टाचार करते हैं और एसीबी के जाल में फंस जाते हैं। और इसी वह से अजमेर अब भ्रष्टाचारियों का अड्डा सा बन गया है। पूर्व एसपी राजेश मीणा को ही लीजिए। क्या जिस प्रकार उन पर मंथली वसूलने का आरोप लगा, वैसे मंथली और जिलों में नहीं वसूली जाती? बेशक वसूली जाती है, मगर यहां आ कर मीणा इतने बेखौफ हो गए कि उन्हें ख्याल ही नहीं रहा कि कभी एसीबी के चक्कर में आ जाएंगे। स्पष्ट है कि उन्होंने यहां की जनता, व्यापारियों व छुटभैये नेताओं का मिजाज जान लिया और ठठेरा के चक्कर में लापरवाह हो गए। वे क्या सारे थानेदार भी बड़ी आसानी से ठठेरा के जाल में आ गए।
ताजा मामला भी बहुत गंभीर है। भले ही इसमें फिलहाल चंद लोग ही लपेटे में आए हैं, मगर ठीक से और पूरी ईमानदारी से काम हुआ व राजनीतिक दखलंदाजी नहीं हुई तो चौंकाने वाली जानकारियां भी सामने आ सकती हैं।
-तेजवानी गिरधर

पहाडिय़ा को आज जातीय व्यवस्था से परहेज क्यों?


हरियाणा के राज्यपाल एवं राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाडिय़ा गत दिवस पुष्कर सरोवर की पूजा-अर्चना के बाद अपने अखिल भारतीय खटीक समाज के पुश्तैनी पुरोहित पर यह कह कर जम कर बरसे कि मेरी कोई बिरादरी नहीं है और धार्मिक स्थानों को जातियों में मत बांटो। वे खटीक समाज के पुश्तैनी पुरोहित द्वारा विजिटिंग कार्ड देने से गुस्साए और उसकी बही में हस्ताक्षर करने से भी इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि जाति क्या होती है, मेरी कोई बिरादरी नहीं है और न ही मेरा कोई पुश्तैनी पुरोहित है। उन्होंने कहा कि मैं किसी से भी पूजा करवा सकता हूं। मैं पुष्कर में कई बार आ चुका हूं तथा लेकिन इससे पहले कभी भी पुश्तैनी पंडा नहीं आया। पहाडिया ने कहा कि यह गलत व्यवस्था बदलना चाहिए। इस वाकये से कई अहम सवाल उठ खड़े हुए हैं।
सबसे बड़ा सवाल ये कि पहाडिय़ा आज जिस जातीय व्यवस्था से परहेज कर रहे हैं, क्या इसी जातीय व्यवस्था की वजह से ही इस मुकाम पर नहीं पहुंचे हैं? वे जिस जांत-पांत पर आज ऐतराज कर रहे हैं, क्या उसी व्यवस्था के चलते आरक्षित विधानसभा सीट से चुनाव लड़े हैं? अगर उन्हें इस जातीय व्यवस्था से इतनी ही एलर्जी थी, तो विधायक पद का चुनाव आरक्षित सीट से ही क्यों लड़े, किसी सामान्य सीट से चुनाव लड़ते? क्या कांग्रेस ने उन्हें मेरिट के आधार पर राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया था, या फिर अनुसूचित जाति को तुष्ट करने के लिए इस पद से नवाजा? क्या इस प्रचलित धारणा से इंकार किया जा सकता है कि राज्यपाल जैसे संवैधानिक अथवा राजनीतिक पदों पर नियुक्तियां राजनीतिक आधार पर जातीय संतुलन को बनाए रखने के लिए किया जाता? कैसी विचित्र बात है कि कहीं न कहीं जिस जाति की बदौलत पहाडिय़ा आज इस मुकाम पर हैं, उसे वे सिरे से नकारते हुए कह रहे हैं कि जाति क्या होती है? इतने बड़े पद पर पहुंचने के बाद वे कह रहे हैं कि उनकी कोई बिरादरी नहीं है? सवाल ये उठता है कि अगर उनका जाति व बिरादरी पर कोई विश्वास नहीं है तो वे अपने नाम के साथ खटीक समाज के पहाडिय़ा सरनेम का उपयोग क्यों करते हैं? क्या उन्होंने कभी जातीय व्यवस्था के तहत चल रही आरक्षण व्यवस्था का विरोध किया है या अब करने को तैयार हैं?
हो सकता है कि उनका कोई पुश्तैनी पंडा न हो, या उनकी जानकारी में न हो, मगर तीर्थराज पुष्कर में परंपरागत रूप से जातीय आधार पर चल रही पुरोहित व्यवस्था को कैसे नकार सकते हैं? यदि उनकी पूर्व की तीर्थयात्रा के दौरान गलती से कोई पुरोहित दावा करने नहीं आया तो आज आया पुरोहित अवैध है? बेशक यह यह उनकी इच्छा पर निर्भर है कि वे अपनी जाति के पंडे से पूजा करवाएं या न करवाएं, मगर उस व्यवस्था को ही सिरे से कैसे नकार सकते हैं, जो कि पुरातनकाल से चली आ रही है, जिसमें कि सभी यकीन है? सच तो ये है कि इसी व्यवस्था के चलते नई पीढ़ी के लोगों को अपने पुरखों के बारे में जानकारी मिलती है, जो सामान्यत: अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं है। सवाल ये भी है कि वे किस अधिकार के तहत एसडीएम को हिदायत दे गए कि पुष्कर तीर्थ में की जा रही जातिवादी पंडागिरी को बंद करवाएं? क्या उनकी हिदायत को मानने के लिए एसडीएम बाध्य हैं? क्या इसके लिए राज्य सरकार को अनुशंषा करने की बजाय उस अधिकारी को निर्देश देना उचित है, जो कि उनके अधीन आता ही नहीं है? अव्वल तो ये भी कि क्या एसडीएम के पास ऐसे अधिकार हैं कि वे जातीय आधार पर हजारों से साल से चल रही पंडा व्यवस्था को बदलवा दें?
वैसे एक बात है कि पहाडिय़ा के विचार वाकई उत्तम हैं और आदर्श व्यवस्था के प्रति उनके विश्वास के द्योतक हैं, मगर ये सवाल इस कारण उठते हैं कि जिस व्यवस्था की पगडंडी पर चल कर वे आज जहां आ कर ऐसी आदर्श व्यवस्था की पैरवी करते हैं, वह बेमानी है।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 28 अप्रैल 2013

क्या बार कौंसिल की समिति कर रही है वकील चौहान की तरफदारी?


राजस्थान बार कौंसिल की ओर से न्यायालय भर्ती परीक्षा घोटाले की जांच के लिए बनी समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट कौंसिल को सौंपते हुए जहां कुछ सिफारिशें की हैं, वहीं कुछ अहम सवाल भी उठा दिए हैं। उसका मौजूदा परीक्षा निरस्त किए जाने की अनुशंसा करना और पिछले सालों में हुई भर्तियों की जांच हाईकोर्ट द्वारा गठित निष्पक्ष समिति से कराए जाने की अनुशंसा करना समझ में आता है। साथ ही न्यायिक कर्मचारियों की भर्ती राजस्थान उच्च न्यायालय को अपने स्तर पर आयोजित करने का सुझाव भी उचित प्रतीत होता है। मगर जिस प्रकार से सवाल उठाए हैं, उससे वह एसीबी की कार्यवाही में दखल करती और न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही अपना अभिमत प्रस्तुत करती प्रतीत होती है। उससे यह भी आभास होता है कि कहीं कौंसिल ने इस मामले की मॉनीटरिंग करने और गुणावगुण की समीक्षा तक करने के मकसद से कमेटी का गठन तो नहीं किया था।
समिति के सदस्य और जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश टंडन व पूर्व अध्यक्ष किशन गुर्जर ने एंटी करप्शन ब्यूरो की जांच पर जिस प्रकार सवाल उठाए हैं, उससे यह साफ लगता है कि उसे न्यायालय से पहले इस कमेटी के सदस्यों के सवालों के जवाब देने होंगे। उन्होंने किस प्रकार एफआईआर का पोस्टमार्टम किया है, इसका अनुमान उसके इन सवालों से लग जाता है कि एसीबी ने संपूर्ण कार्रवाई की वीडियो रिकार्डिंग भी करवाई है, ऐसा बताया गया था, लेकिन एफआईआर में इसका हवाला नहीं है। उन्होंने यह भी पूछा है कि जिला जज के घर जाते समय कानावत के पास केतली थी तो उसका हवाला एफआईआर में क्यों नहीं है। वैसे एक बात तो है कि कमेटी ने संबंधित न्यायाधीश अजय कुमार शारदा के मामले में सवाल उठा कर साहस का परिचय जरूर दिया है। बात स्वाभाविक भी है कि जब एसीबी की एफआईआर में आरोपी हेमराज के हवाले से न्यायाधीश अजय कुमार शारदा पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं और अगर वास्तव में ऐसा था तो एसीबी ने उसी दिन न्यायाधीश के आवास पर छापा क्यों नहीं मारा? अगर इजाजत लेने की जरूरत होने पर एसीबी ने तत्काल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को सूचित क्यों नहीं किया?
कमेटी के कुछ सवालों से यह आभास होता है कि कहीं वह वकील भगवान चौहान की तरफदारी तो नहीं कर रही। बानगी देखिए-वकील भगवान सिंह के घर 90 हजार मिलने के आधार पर उसे प्रकरण से जोडना कहां तक उचित है, किसी वकील के घर इतनी रकम मिलना कोई अपराध नहीं है। प्रकरण में फंसाए जाने की आशंका से मौके से चले जाना भी अपराध नहीं है। फिर एसीबी ने केवल इस आधार पर भगवान सिंह को आरोपी प्रचारित क्यों किया है? समिति ने कहा कि एसीबी को सत्यता उजागर करनी चाहिए? अगर कोई तथ्य गलत है तो उसका खंडन होना चाहिए था। समिति सदस्यों के रुख से एक अहम सवाल ये भी उठता है कि क्या कमेटी को केवल जांच रिपोर्ट देने को कहा गया था या अपने स्तर सवाल उठाने की भी जिम्मेदारी दी गई थी।
वैसे एक बात जरूर बड़ी दिलचस्प है, वो यह कि लिपिक भर्ती प्रकरण में फरार आरोपी वकील भगवान सिंह अजमेर में थानों से मंथली वसूली मामले में फरार चल रहे एएसपी लोकेश सोनवाल के वकील हैं। कैसा अजीब संयोग है कि सोनवाल तो एसीबी के वांटेड हैं, और अब भगवान सिंह भी।
-तेजवानी गिरधर 

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

अजमेर में कई स्थान हैं, जिनके नाम बदल गए हैं


kesarganjअपने एक मित्र और अजमेर के प्रबुद्ध नागरिक ऐतेजाद अहमद खान ने हाल ही फेसबुक पर एक फोटा शाया किया है, जो कि यह प्रमाणित करता है कि हम जिसे केसरगंज (Kesar) इलाके के नाम से जानते हैं, वह असल में (Qaiser) गंज है, जिसकी स्थापना 1883 में हुई थी। इसका अपभ्रंश होते हुए वह केसरगंज हो गया और ये ही आजकल प्रयोग में आ रहा है। उन्होंने वाकई मेहनत करके यह जानकारी सार्वजनिक की है। कदाचित और लोगों को भी इस बारे में जानकारी हो, जिन्होंने कि अजमेर के इतिहास की पुस्तकों का अध्ययन किया है।
वैसे, एक बात है, अकेला केसरगंज ही इस प्रकार का मामला नहीं है। शहर के अन्य कई स्थान भी पहले किसी और नाम से थे, जो कि बाद में बदल गए। इनकी बानगी देखिए- जिसे हम आज रामगंज कहते हैं, वह कभी रसूल गंज हुआ करता था। इसका प्रमाण ये है कि आज भी पुलिस चौकी वाली गली में उसकी नामपट्टिका लगी हुई है। 
ढ़ाई दिन का झौंपड़ा
ढ़ाई दिन का झौंपड़ा
इसी प्रकार आज जिस पर्यटन स्थल को हम ढ़ाई दिन का झौंपड़ा कहते हैं, वह कभी संस्कृत विद्यालय हुआ करता था। दरगाह के सिर्फ एक किलोमीटर फासले पर स्थित यह अढ़ाई दिन का झौंपड़ा मूलत: सरस्वती कंठाभरण नामक विद्यालय था। अजमेर के पूर्ववर्ती राजा अरणोराज के उत्तराधिकारी विग्रहराज तृतीय ने इसका निर्माण करवाया था। सन् 1192 में मोहम्मद गौरी ने इसे गिराकर कर मात्र ढ़ाई दिन में बनवा दिया। बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे मस्जिद का रूप दे दिया। मराठा काल में यहां पंजाबशाह बाबा का ढ़ाई दिन का उर्स भी लगता था। कदाचित इन दोनों कारणो से इसे अढ़ाई दिन का झौंपड़ा कहा जाता है। यहां बनी दीर्घाओं में खंडित मूर्तियां और मंदिर के अवशेष रखे हैं।
इसी प्रकार अजमेर शहर के केन्द्र में नया बाजार के पास स्थित इस अकबर के किले का निर्माण अकबर ने 1571 से 1574 ईस्वी में राजपूतों से होने वाले युद्धों का संचालन करने और ख्वाजा साहब के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए करवाया था। बाद में इसे राजपूताना संग्रहालय और मैगजीन के नाम से भी जाना जाने लगा। 
संग्रहालय
संग्रहालय
यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल भारतीय राजनीति में अहम स्थान रखता है, क्योंकि यहीं पर सम्राट जहांगीर ने दस जनवरी 1916 ईस्वी को इंग्लेंड के राजा जॉर्ज पंचम के दूत सर टामस रो को ईस्ट इंडिया कंपनी को हिंदुस्तान में व्यापार करने की अनुमति दी थी। टामस रो यहां कई दिन जहांगीर के साथ रहा। ब्रिटिश काल में 1818 से 1863 तक इसका उपयोग शस्त्रागार के रूप में हुआ, इसी कारण इसका नाम मैगजीन पड़ गया। वर्तमान में यह संग्रहालय है। पूर्वजों की सांस्कृतिक धरोहर का सहज ज्ञान जनसाधारण को कराने और संपदा की सुरक्षा करने की दृष्टि से भारतीय पुरातत्व के महानिदेशक मार्शल ने 1902 में लार्ड कर्जन के अजमेर आगमन के समय एक ऐसे संग्रहालय की स्थापना का सुझाव रखा था, जहां जनसाधारण को अपने अतीत की झांकी मिल सके। अजमेर के गौरवमय अतीत को ध्यान में रखते हुये लार्ड कर्जन ने संग्रहालय की स्थापना करके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन एजेन्ट कालविन के अनुरोध पर कई राज्यों के राजाओं ने बहुमूल्य कलाकृतियां उपलब्ध करा संग्रहालय की स्थापना में अपना अपूर्व योग दिया। संग्रहालय की स्थापना 19 अक्टूबर, 1908 को एक शानदार समारोह के साथ हुई। संग्रहालय का उद्घाटन ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन एजेन्ट कालविन ने किया और उस समारोह में विभिन्न राज्यों के राजाओं के अतिरिक्त अनेक विदेशी भी सम्मिलित हुये। सन् 1892 में इसके दक्षिणी पूर्वी बुर्ज में नगरपालिका का दफ्तर भी खोला गया था।
कुछ और उदाहरण लीजिए- यह सब जानते हैं कि ईसाई समुदाय के लोग जिस स्थान पर रहा करते थे, उसे क्रिश्चियनगंज कहा जाता है, मगर आज कई लोग उसे कृष्णगंज के नाम से पुकारना पसंद करते हैं और कुछ संस्थाओं के नाम इसी नाम पर हैं। इसी प्रकार अंदरकोट को आज कई लोग इंद्रकोट कहना पसंद करते हैं, जब कि इसका अर्थ था परकोटे के अंदर का हिस्सा। इसी प्रकार आप ख्याल होगा कि जवाहरलाल नेहरू अस्पताल को आज भी कई पुराने लोग विक्टोरिया अस्पताल के नाम से जानते हैं, जिसका नाम आजादी के बाद नेहरू जी के नाम से कर दिया गया। 
ajmer logoइसी प्रकार इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के शासन की रजत जयंती के मौके पर रेलवे स्टेशन के सामने विक्टोरिया क्लॉक टावर निर्माण करवाया गया, जिसे आज हम केवल क्लॉक टावर या घंटाघर के नाम से जानते हैं और उसी के नाम पर क्लॉक टावर पुलिस थाने का नाम है।
वस्तुत: कालचक्र में जब भी जो प्रभावशाली हुआ, उसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर नाम बदल दिए। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इसमें उद्वेलित होने जैसी कोई बात नहीं है। 
जनाब ऐतेजाद अहमद खान ने बेशक एक महत्वपूर्ण जानकारी सार्वजनिक की है, मगर उसकी प्रस्तुति कुछ असहज करने वाली है। वो यह कि उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिखा है कि कृपया बजरंग दल या कोई और दल इस पर उत्तेजित न हो, ये एक सच्चाई है। इस पंक्ति की जरूरत नहीं थी। उन्हें अपनी जानकारी को मात्र जानकारी के लिए निरपेक्ष भाव से प्रस्तुत करना चाहिए था।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

भाजपा के बाद कांग्रेस के नेता भी पीछे पड़े बीना काक के


अजमेर जिले की प्रभारी मंत्री श्रीमती बीना काक के यदाकदा अजमेर आने और यहां की समस्याओं पर ध्यान न दिए जाने पर भाजपा नेताओं ने तो विरोध दर्शाया ही है, अब कांग्रेसी नेता भी उनके पीछे पड़ गए हैं। ज्ञातव्य है पिछले दिनों जब बीना काक ने अजमेर संग्रहालय में लाइट एंड साउंड शो का उद्घाटन किया तो भाजपा नेताओं ने उन पर कभी-कभी अजमेर आने और केवल वाहवाही के कार्यक्रमों में शिरकत करने का आरोप लगाया था। इस सिलसिले में अजमेर दक्षिण की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने तो यहां तक कहा था कि यह लाइट एंड साउंड शो का प्रोजेक्ट उनके प्रयासों की देन है।
बहरहाल, बीना काक की अजमेर की अनदेखी किए जाने की प्रवृत्ति पर कांग्रेसी नेताओं ने भी ऐतराज जताया है। मनोतीन कांग्रेसी पार्षद सैयद गुलाम मुस्तफा, शहर जिला कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग, कांग्रेस अल्पसख्यंक प्रकोष्ठ के पूर्व जिला अध्यक्ष डॉ. मंसूर अली, शहर युवक कांग्रेस के पूर्व महामंत्री राजकुमार जैन, अजमेर जिला इंटक के अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह शेखावत आदि ने कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी को पत्र लिख कर कहा है कि अजमेर के कांग्रेसजन आपके ध्यान में अजमेर की प्रभारी मंत्री की अजमेर के प्रति उपेक्षा की ओर ध्यान आकर्षित करा कर निवेदन कराना चाहते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर प्रभारी मंत्री को अजमेर के प्रति रुचि दिखाने, अजमेर आने व कार्यकर्ताओं व प्रशासन से मिलने हेतु पाबंद किया जाए अन्यथा और किसी प्रभारी मंत्री को नियुक्त करने के निर्देश दें। पत्र में लिखा है कि प्रभारी मंत्री के समय-समय पर कांग्रेसजन से संवाद कायम नहीं करने से कांग्रेसजन का मनोबल टूटता है तथा वे असहाय हो जाते हैं। प्रभारी मंत्री के नियमित रूप से नहीं आने तथा नियंत्रण के अभाव में प्रशासन कांग्रेसजन की उपेक्षा करता है तथा मनमाने तरीके से कार्य कर रहा है। प्रशासन को रोकने पर कहा जाता है कि हमारा ट्रांसफर करवा दो। इस प्रकार प्रशासनिक अराजकता फैली हुई है।
उल्लेखनीय है कि शहर कांग्रेस की गत दिनों हुई बैठक में ब्लॉक अध्यक्ष विजय जैन ने इस बात की पीड़ा जाहिर की थी कि शहर में सोनू निगम नाइट के पास उन्हें ही नहीं मिल पाए और कार्यकर्ता उनसे पास की डिमांड कर रहे थे। उन्होंने यह भी कहा कि पर्यटन मंत्री बीना काक अजमेर आई और अन्य नेताओं के आगमन की उन्हें कोई सूचना नहीं दी जाती जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। कांग्रेसियों की इस पीड़ा से भाजपा नेताओं के आरोपों की पुष्टि भी हो रही है। बहरहाल देखना ये है कि क्या कांग्रेस व भाजपा के इस दबाव के मद्देनजर उन्हें प्रभारी मंत्री पद से हटाया जाता है या नहीं।
-तेजवानी गिरधर

क्या हैं बार कौंसिल की जांच के मायने?


खबर है कि राज्य में वकीलों की शीर्ष संस्था राजस्थान बार कौंसिल ने अजमेर जिला एवं सत्र न्यायालय में हुई लिपिक परीक्षा में कथित धांधली की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है, जिसके अध्यक्ष बार कौंसिल के सदस्य एवं राजस्व मंडल के वरिष्ठ वकील भवानी सिंह शक्तावत हैं और जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश टंडन और पूर्व अध्यक्ष किशन गुर्जर को बतौर सदस्य शामिल किया गया है। कौंसिल ने कमेटी को निर्देश दिए हैं कि इस सारे मामले की जांच कर अपनी रिपोर्ट 48 घंटे के भीतर कौंसिल के जोधपुर कार्यालय को भिजवाई जाए।
यूं तो बार कौंसिल की यह त्वरित कार्यवाही उसकी संवेदनशीलता और सक्रियता को दर्शाती है, मगर सवाल ये उठता है कि उसकी इस जांच के मायने और औचित्य क्या है? जब यह मामला क्राइम का है और आगे न्यायिक प्रक्रिया से ही तय होगा कि कौन दोषी है और कौन नहीं, ऐसे में कौंसिल की जांच का क्या होगा? जब स्थापित न्यायिक व्यवस्था के अनुरूप ही कार्यवाही होनी है तो कौंसिल समानांतर रूप से जांच क्यों करवा रही है? क्या कौंसिल को न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही का अधिकार है? अगर है तो उसकी संवैधानिक स्थिति क्या है? यदि जांच में यह सामने आता है कि भगवान चौहान सहित अन्य वकील दोषी हैं तो क्या कौंसिल कोर्ट का फैसला आए बिना ही कार्यवाही करेगी? या करने के लिए अधिकृत है? एक सवाल ये भी कि क्या कौंसिल इस प्रकरण में होने वाली न्यायिक प्रक्रिया में एक पक्ष बनने का अधिकार रखती है?
बेशक कौंसिल राज्यभर के वकीलों की अधिकृत संस्था है, मगर क्या उसका लिपिक भर्ती से क्या सीधा संबंध है? जैसा कि जिला बार अध्यक्ष राजेश टंडन ने बताया है कि परीक्षा में धांधली की जांच के लिए उन्हें जो जिम्मेदारी दी गई है, उसके तहत इस मामले में आरोपियों के साथ ही अन्य संबंधित की लिप्तता की पड़ताल की जाएगी और कमेटी यह भी जांच करेगी कि संपूर्ण परीक्षा की कार्रवाई सही तरीके से संपादित हुई थी या नहीं, सवाल ये उठता है कि क्या कौंसिल को परीक्षा की प्रक्रिया के संपादन पर निगरानी अथवा उसकी जांच करने का अधिकार है? अगर कौंसिल की जांच रिपोर्ट में लिपिक दोषी पाए जाते हैं तो क्या वह उनके खिलाफ भी कार्यवाही करने के लिए अधिकृत है? अगर भर्ती प्रक्रिया सही तरीके से संपादित नहीं होने की रिपोर्ट आई तो क्या कौंसिल को उसे रद्द करने का भी अधिकार है अथवा यह हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है? क्या कौंसिल के कार्यक्षेत्र में वकीलों के अतिरिक्त कोर्ट के लिपिक भी आते हैं?
हां, इतना तो समझ में आता है कि अगर कोई वकील न्यायिक प्रक्रिया के तहत दोषी पाया जाता है तो कोर्ट तो उसे सजा देगा ही और कौंसिल भी कार्यवाही कर सकती है, मगर पूरी भर्ती प्रक्रिया से उसका क्या लेना-देना है? अगर इसका जवाब में ना में है तो यह जांच पूरी तरह से बेमानी ही प्रतीत होती है।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

चुप क्यों हैं बयानवीर रघु शर्मा?


जानकारी है कि सरवाड़ में पिछले सात दिन से जारी गतिरोध चलते बंद पड़े बाजार का मसला नहीं सुलझा पाने के कारण राज्य सरकार के मुख्य सचिव सी के मैथ्यू ने जिला कलेक्टर वैभव गालरिया की क्लास ली है। मंगलवार की शाम फोन पर मैथ्यू ने गालरिया से जवाब-तलब किया और सारे प्रयासों के बाद भी गतिरोध न टूटने के लिए डांट लगाई। गालरिया ने उन्हें जानकारी दी बताई कि प्रशासन ने अपनी ओर से समझाइश की पूरी कोशिश की है, मगर हिंदू उत्सव समिति अड़ी हुई है। समिति की अधिसंख्य मांगें मान ली गई हैं, फिर भी उसका अडिय़ल रवैया समझ से बाहर है। वैसे इसमें कोई दोराय नहीं कि गालरिया व एसपी गौरव श्रीवास्तव प्रतिदिन सरवाड़ में रह कर मामले को सुलझाने की ईमानदार कोशिश कर रहे हैं, मगर उन्हें सफलता हाथ नहीं आ रही। यह अनुभव की कमी को दर्शाता है। अजमेर जैसे संवेदनशील जिले के लिहाज से काफी गंभीर है। समझा जाता है कि सरवाड़ का मसला अब राजनीतिक रूप ले चुका है। प्रशासन को राजनीतिक सहयोग नहीं मिल पा रहा। इस कारण उसको दिक्कत आ रही है। मगर इसे प्रशासन का फैल्योर तो कहा ही जाएगा।
इस पूरे प्रकरण में शर्मनाक पहलु ये है कि इलाके के विधायक व सरकारी मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा ने एक भी दिन मौके पर जा कर मसला सुलझाने की कोशिश नहीं है। उनकी चुप्पी रहस्यपूर्ण है। आमतौर पर राजनीति मसलों पर क्रीज से बाहर जा कर बयानबाजी करने वाले प्रखर वक्ता शर्मा की इस चुप्पी के अपने अर्थ हैं। समझा जाता है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तुष्टिकरण की नीति अपना कर अपने परंपरागत वोटों को सहेज कर रखना चाहते हैं। और यही वजह है कि  जानबूझकर वहां जाने से बच रहे हैं। उन्हें ये भी डर है कि कहीं वहां जाने पर विवाद का पूरा ठीकरा उनके माथे न आ जाए।
जो भी हो, मगर सरवाड़ का मसला इतना लंबा खिंच जाना यह साबित करता है कि इसमें सरकार, राजनीतिज्ञ व प्रशासन नाकाम हो गए हैं।
ज्ञातव्य है कि उत्सव समिति के पदाधिकारी गोपाल वाटिका एवं रानी कुंड को किए गए कुर्क की कार्रवाई निरस्त करने की मांग को लेकर अड़े हैं। दूसरी ओर गोपाल वाटिका में स्थाई पुलिस चौकी स्थापित करने, गणगौरी चौक से अतिक्रमण हटाने एवं पानी की छब्बील को हटवाने, मारपीट की घटना में घायल हुए युवक के परिजन को दो-दो लाख रुपए सहायता राशि दिलवाने, क्षेत्रीय पुलिस उपअधीक्षक सरिता सिंह व सरवाड़ थाना प्रभारी दिनेश कुमावत को यहां से अन्यत्र लगाने, मारपीट के आरोपियों को गिरफ्तार करने एवं पालिका प्रशासन की ओर से गणेश तालाब को समतल करने के जारी टेंडर को निरस्त करने की मांग पर लगभग सहमति बन गई है।
विवाद का केंद्र बने रानी कुंड एवं गोपाल वाटिका को कुछ दिन पूर्व ही उपखंड मजिस्ट्रेट ने कुर्क कर वहां थाना प्रभारी को रिसीवर नियुक्त किया था। प्रशासन ने यहां आए दिन होने वाले विवाद को समाप्त करने और इन दोनों स्थलों की सुरक्षा की दृष्टि के मद्देनजर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के तहत दोनों संपतियों को कुर्क की।
-तेजवानी गिरधर

रेगर समाज के दावे से कोलियों में खुसरफुसर


मेयर बाकोलिया की अजमेर दक्षिण पर नजर?
हाल ही रेगर समाज के सामूहिक विवाह सम्मेलन में अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट की मौजूदगी में समाज के पंचों की ओर से अजमेर दक्षिण सीट पर जिस प्रकार अपना हक जताया, उससे कोलियों में खुसरफुसर शुरू हो गई है। विशेष रूप से कोली समाज के सबसे प्रबल दावेदार पूर्व उप मंत्री ललित भाटी का सतर्क होना लाजिमी हैं, जिन्हें उम्मीद है कि इस बार शहर कांग्रेस महेन्द्र सिंह रलावता के सहयोग और सचिन की मेहरबानी से टिकट मिल सकता है।
हालांकि रेगर समाज की ओर से यह स्पष्ट नहीं किया गया है, उनकी ओर से दावेदार कौन होगा, मगर जिस ढंग से अजमेर के मेयर कमल बाकोलिया मुखर हुए, उससे लगता है कि कहीं इस सीट पर उनकी तो लार नहीं टपक रही। वैसे उनके एक बयान से स्वत: ही रेगर समाज का दावा कमजोर हो रहा है, वो यह कि सचिन ने अजमेर के मेयर बाकोलिया, ब्यावर नगर परिषद के सभापति मुकेश मौर्य व पुष्कर नगर पालिका की अध्यक्ष श्रीमती मंजू कुडिऱ्या पर भरोसा जताया और तीनों ने सीटें जीत कर दिखाई। ऐसे में सवाल ये उठता है कि यदि अधिसंख्य महत्वपूर्ण सीटें रेगर समाज ही ले जाएगा तो कोली बहुल अजमेर दक्षिण इलाके के कोलियों का क्या होगा?

सोमवार, 22 अप्रैल 2013

सचिन पायलट से ये दूरी क्या गुल खिलाएगी?


एक ओर विधानसभा चुनाव की नजदीकी के चलते प्रदेश हाईकमान तैयारियां शुरू कर चुका है, दावेदार भी भीतर ही भीतर टिकट की जुगाड़ में लगे हुए हैं तो दूसरी ओर अजमेर में केंद्रीय राज्यमंत्री सचिन पायलट व शहर कांग्रेस के एक धड़े के नेताओं के बीच बनी दूरियां पाटी नहीं जा पा रहीं। अगर ये कहा जाए कि पाटने की कोशिश की भी नहीं जा रही, तो ज्यादा उचित होगा। गत दिवस जब पायलट अजमेर आए तो शहर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जसराज जयपाल, पूर्व विधायक डॉ. राज कुमार जयपाल, कुलदीप कपूर, विजय यादव तथा महेश ओझा समेत अन्य नेता उनके किसी भी कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। इसे मीडिया ने भी रेखांकित किया। कहने की जरूरत नहीं है कि इस धड़े ने एक लंबे अरसे से पायलट से दूरी बना कर रखी है और वह उनके आभा मंडल से अप्रभावित होने को स्थापित कर चुका है।
असल में पायलट व इस धड़े के बीच दूरी की एक मात्र वजह है कि पायलट कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बेहद करीब हैं। वे इस गुट को कुछ अहमियत नहीं देते और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी पायलट व इस गुट के बीच चल रही नाइत्तफाकी को जानबूझ कर नजरअंदाज किए हुए हैं। सच तो ये है कि पायटल के कद के चलते चंद्रभान व गहलोत अजमेर के मामले में कम ही पड़ते हैं। तभी तो मजाक में ये कहा जाना लगा है कि अजमेर तो केन्द्र शासित प्रदेश है, जिस पर प्रदेश का कोई जोर नहीं। मगर सवाल ये है कि अब विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। अगर इसी प्रकार गुटबाजी जारी रही तो अजमेर की दोनों सीटों के प्रत्याशियों को परेशानी पेश आएगी, चाहे वह किसी भी गुट का हो। भले ही पायलट अपने ही गुट के नेताओं को टिकट दिलवाएं, मगर उनका जीतना आसान नहीं होगा, क्योंकि पायलट विरोधी गुट कमजोर होने के कारण चुप भले ही बैठा हो, मगर धरातल पर आज भी उसकी अच्छी पकड़ है। सच तो ये है कि यह गुट लंबे अरसे तक शहर की कांग्रेस को चलाता रहा है, इस कारण इसकी जमीन पर गहरी पकड़ है। देखना ये होगा कि विधानसभा चुनाव और नजदीक आने पर कोई सुलह हो पाती है या नहीं? अगर यथास्थिति ही रहती है तो कोई आश्चर्य नहीं कि भाजपा एक बार फिर दोनों सीटों पर काबिज हो जाए।
-तेजवानी गिरधर

पहले भी होती रही है राजस्व मंडल के विखंडन की साजिश


राजस्थान में राजस्व मामलों की सर्वोच्च अदालत राजस्थान राजस्व मंडल पर एक बार फिर विखंडन का खतरा मंडरा रहा है। इस पर राजस्व बार एसोसिएशन ने केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट को ज्ञापन सौंप कर विखंडन को रुकवाने की मांग की है। इस बार राज्य सरकार अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के लिए एससी एसटी लैंड ट्रिब्यूनल का गठन करने जा रही है, जिससे राजस्व मंडल का एकीकृत स्वरूप प्रभावित होगा। दरअसल हाल ही में सरकार ने बजट में एससी एसटी लैंड ट्रिब्यूनल के गठन की घोषणा की है, इसके लिए राजस्व मंडल से सुझाव भी मांगे गए हैं। वकीलों का मानना है कि अगर ट्रिब्यूनल गठित होता है तो राजस्व मंडल का एकीकृत स्वरूप प्रभावित होगा, क्योंकि मंडल राजस्व मामलों की राज्य की सर्वोच्च अदालत है। उनका कहना है कि यदि सरकार एससी एसटी से जुड़े मुकदमों का त्वरित निस्तारण करना चाहती है तो राजस्व मंडल में ही अलग से स्पेशल बैंच गठित की जा सकती है।
वस्तुत: यह पहला मौका नहीं है कि मंडल के टुकड़े की साजिश की जा रही हो। इससे पहले भी अलग बैंचों का गठन करने के बहाने विखंडन की कोशिशें होती रही हैं। पिछली बार तो संभागीय आयुक्तों को राजस्व मंडल का सदस्य बना कर इसका विखंडन करने का प्रस्ताव अमली रूप लेने जा रहा था। तब राजस्व मंत्री हेमाराम चौधरी ने यह कह कर अपना पिंड छुड़वाने की कोशिश कर रहे थे कि उनके पास  इस प्रकार के प्रस्ताव की कोई भी फाइल नहीं आई है। वे जानते हुए भी अनजान बन रहे थे। विवाद शुरू ही इस बात से हुआ कि राजस्व महकमे के शासन उप सचिव ने संभागीय आयुक्तों को राजस्व मंडल के सदस्य की शक्तियां प्रदत्त करने संबंधी पत्र मंडल के निबंधक को लिखा था। पत्र की भाषा से ही स्पष्ट था कि सरकार मंडल को संभाग स्तर पर बांटने का निर्णय कर चुकी थी, बस उसे विखंडन का नाम देने से बच रही थी। शासन उपसचिव के पत्र से ही स्पष्ट था कि गत 1 अप्रैल 2011 को अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास की अध्यक्षता में हुई बैठक में ही निर्णय कर यह निर्देश जारी कर दिए थे कि संभागीय आयुक्तों को मंडल सदस्य के अधिकार दे दिए जाएं। तभी तो शासन उपसचिव ने निबंधक को साफ तौर निर्णय की नोट शीट भेज कर आवश्यक कार्यवाही करके सूचना तुरंत राजस्व विभाग को देने के लिए कहा।
तब सवाल ये उठा था कि क्या राजस्व मंत्री की जानकारी में लाए बिना ही अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास की अध्यक्षता में निर्णय कर लिया गया? उससे भी बड़ा सवाल ये कि अगर अधिकारियों के स्तर पर निर्णय ले भी लिया था तो उसे कार्यान्वित किए जाने के लिए उनके अधीन विभाग के शासन उप सचिव ने राजस्व मंत्री को जानकारी दिए बिना ही मंडल के निबंधक को पत्र कैसे लिख दिया? माजरा साफ था कि या तो वाकई मंत्री महोदय को जानकारी दिए बिना ही पत्र व्यवहार चल रहा था, या फिर वे झूठ बोल रहे थे। इस मसले का एक पहलु ये भी था कि मंत्री महोदय इस भुलावे में थे कि पहले फाइल उनके पास आएगी, वे सीएस से बात करेंगे, फिर फाइल मुख्यमंत्री के पास जाएगी, कानून में संशोधन के लिए विधानसभा में रखा जाएगा और राज्यपाल की भी मंजूरी लेनी होगी।  यदि इस मामले में इतनी लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता तो शासन उप सचिव के पत्र में इतना स्पष्ट कैसे लिखा हुआ होता कि अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास के निर्देशों पर आवश्यक कार्यवाही की जाए? यानि कि मंत्री महोदय को ये गलतफहमी थी कि इसके लिए कानून पारित करना होगा, जबकि अधिकारी अपने स्तर पर व्यवस्था को अंजाम देने जा रहे थे।
इसका एक मतलब ये भी था कि अजमेर के वकील, बुद्धिजीवी व प्रबुद्ध नागरिक जिस व्यवस्था को विखंडन मान कर आंदोलित थे, सरकार की नजर में वह एक सामान्य प्रक्रिया मात्र थी। और यही वजह रही कि जैसे ही सरकार से ये पूछा गया कि क्या राजस्व मंडल का विखंडन किया जा रहा है तो वह साफ कह रही थी कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। यानि कि बाकायदा विखंडन तो किया जा रहा था, मगर उसे विखंडन का नाम देने से बचा जा रहा था। इसी शाब्दिक चतुराई के बीच मामला उलझा था। यह तो गनीमत रही कि उस वक्त राजस्व बार के अतिरिक्त अजमेर फोरम भी सक्रिय हुआ और सभी राजनीतिक दलों से जुड़े वकीलों ने भी एकजुटता दिखाई, साथ ही अजमेर के सांसद व तत्कालीन केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट भी सक्रिय हुए, तब जा कर विखंडन रोका जा सका।
एक बार फिर मंडल के विखंडन की कोशिशें की जा रही हैं। ये भी ठीक उसी प्रकार की कोशिश है, जैसी पहले शाब्दिक जाल में लपेट कर की जा रही थी। अब देखना ये होगा कि बार का दबाव कितना काम करता है? पायलट क्या करते हैं?
यहां आपको बता दें कि आजादी और अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के बाद राज्य के लिए एक ही राजस्व मंडल की स्थापना नवंबर 1949 में की गई। पूर्व के अलग-अलग राजस्व मंडलों को सम्मिलित कर घोषणा की गई कि सभी प्रकार के राजस्व विवादों में राजस्व मंडल का फैसला सर्वोच्च होगा। खंडीय आयुक्त पद की समाप्ति के उपरांत समस्त अधीनस्थ राजस्व विभाग एवं राजस्व न्यायालय की देखरेख एवं संचालन का भार भी राजस्व मंडल पर ही रखा गया। इसके प्रथम अध्यक्ष बृजचंद शर्मा थे। इसका कार्यालय जयपुर के हवा महल के पिछले भाग में जलेबी चौक में स्थित टाउन हाल, जो कि पहले राजस्थान विधानसभा भवन था, में खोला गया। बाद में इसे राजकीय छात्रावास में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद एमआई रोड पर अजमेरी गेट के बाहर रामनिवास बाग के एक छोर के सामने यादगार भवन में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद इसे जयपुर रेलवे स्टेशन के पास खास कोठी में शिफ्ट किया गया। सन् 1958 में राव कमीशन की सिफारिश पर अजमेर में तोपदड़ा स्कूल के पीछे शिक्षा विभाग के कमरों में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद 26 जनवरी 1959 को जवाहर स्कूल के नए भवन में शिफ्ट किया गया। इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय ज्ञ् श्री मोहनलाल सुखाडिय़ा ने किया।
-तेजवानी गिरधर

गुडिय़ा के बहाने सचिन पर आरोप, फिर छिड़ी बहस


दिल्ली के बहुचर्चित गुडिय़ा बलात्कार कांड के बारे में अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट ने जैसे ही पत्रकारों के सवालों के जवाब में बयान दिया, तो आम आदमी पार्टी की अजमेर प्रभारी श्रीमती कीर्ति शर्मा पाठक  ने उसे मुद्दा बना कर फेसबुक पर उन पर आरोप जड़ दिए। नतीजतन बहस छिड़ गई। इसमें शहर जिला कांग्रेस के महासचिव विपिन बेसिल, शहर जिला भाजपा मंडल अध्यक्ष आनंद सिंह राजावत, भीलवाड़ा के पत्रकार लखन सालवी, अंकुत त्यागी आदि ने हिस्सा लिया। बहस में यह मुद्दा विशेष रूप से उभरा सचिन अजमेर वासियों को पूरा समय नहीं देते। आइये, देखें वह रोचक मगर एक सोच पैदा करने वाली बहस:-
  • लीजिये माननीय NRA (non resident ajmer ) सांसद महोदय सचिन जी पायलट बोले .....
    देवी से हैवानियत पर शोक जताया और कहा कि समाज को इसे रोकने के लिए काम करना होगा .....
    अरे साब और क्या कर रही है आम जनता ...अब जागरूक हो कर ही तो मांग कर रही है जिसे आप हवा में उड़ा रहे हैं ....
    वे कहते हैं कि कोई प्रकरण सामने आता है तो एक्शन लिया जाता है .....
    किसी को निलंबित करने से कोई काम नहीं होता ...
    अब समाज को जागृत होना होगा ....
    सब काम आम जनता को ही करना होगा भाई ......
    जनप्रतिनिधि तो सब हम को आश्वासन देने और हम पर हुकूमत करने को आये हैं ....
    वे खाएं मलाई और जनता देवे दुहाई .....
    और आखिर में जनता फिर जा बैठे उन की गोद में भाई ......
    दुहाई है दुहाई !
  • Anand Singh Rajawat sachin ne ajmer me 4 hr bitai "breaking news"
  • Bipin Basil We also know its a sad issue of Delhi,but whr Sachin ji is concerned,first of all tell u the participation and concern of his for Ajmer,is par Excellence, PLUS a Central Minister has 2 cater's the need whole India,Instead we shud b proud of Him.
  • Kirti Sharma Pathak Bipin ji pls just answer our question pls ...is he our MP?does he owe some time to us?has he ever had a true interaction with the public in Ajmer ? is he available to the aam janata of Ajmer ? to his voters ?he is a jan pratinidhi ...is he easily available to us ? can we meet him in the hour of need ? ok so he is a minister n stays in Delhi ...do we ,the aam janata have any place or office in ajmer where we get to meet him personally sometimes or has he given us a no. of his where we can interact with him personally ?does he ,whn he comes to inaugurate,for a few hours ....does he really interact with ppl ...we do not have any personal grudge against him ,but he being our representative does he ever ask what we want and what pur our views on some matters related to us ? The main question is DOES HE EVER REALLY INTERACT WITH THE AAM JANATA on his few visits to his CHUNAAV KSHETRA?

  • Bipin Basil Kirti Mam humble submissions- He is our MP and we are proud of it & we all should be proud of it , but we should not forget that he is a central minister - and a Central Minister if he stay in his local constituency then too he has to be out for 25days atleast in a month cause they see whole country's need and the profile of centeral minister need so mch time tell u very frankly---to be a so is no jokes-India is a big counrty u must be aware of it. .Sachin ji daily starts he day at 3am travels to diffrent states for we public-India.only the agony is we dont understand ones labour, second humble submission almost every 20day and he is here and listen to the public utmost,moreover there is hiearchy in our constitution which we peole need to understand, for local issues there are local representatives, where aam janta is concern-simply test/try write a letter/phone to him as a lay person and how quick the redressel he does or whenever he is here he is meeting people on regular fashion -and the herculean works he is done so far is Par excellence for the local aam public. Humble submission again he does visit his constituency from time to time and very participative in that regard to tell the work he is done will take a day to write-Airport-Centeral Varsity is just few to name.and the concerns the leader is shown for delhi incidences is with true feelings and sympathy only we should CHANGE THE ANGLE TO VIEW THE THINGS TO BE VIVID.

  • Lakhan Salvi medam kirti ji ....... apradhiyo ko girftaar kar liya hai or kya kare sachin pilot ko girftaaar kare kya
  • Ankur Tyagi Bipin ji' i entirely agree with u.
  • Bipin Basil Ankur ji thanks
  • Kirti Sharma Pathak Bipin ji there are always two or more side of the story/angle ....we appreciate your angle but we also know the surface truth that no aam janata gets to meet him ...he is not easily available ....you say that he has to be out of the constituency as he is a minister ....what about the days left ??he does not have any office or house here....so even a layman knows there are no roots ....plus you did not pay heed to our humble request ....is he available himself on fone for some fixed time two /three days a week for his amm janata ?/ No we must agree to the fact that our local MP is not easily reachable to his own ppl....
  • Kirti Sharma Pathak Lakhan Salvi ji apradhi to bahut pakde jaate hain aur fir mukadme bhi chalte hain ...fir kya?? Aap Sachin ji ko kyu giraftaar karwana chahte hain ??
  • Lakhan Salvi aap saaara dosh jo janpratinidhiyo ko de rahi hai esliye pooch raha hoo aap mr. sachin ko girftaar karwana chahti hai kya . . . es desh me kanoon hai or samvidhan bhi ........ hum sabko uski palna karni chahiye
  • Lakhan Salvi janta ne maang ki nyay ki . . . or us par work ho raha hai....... dono apradhiyo ko girftaar kiya ja chuka hai......
  • Kirti Sharma Pathak Lakhan Salvi ji I ask you as you n me are janata ....Are you satisfied ?? Is being arrested and given a long trial enough ??The Damini rapists are arrested and the case is on ...are you n me satisfied?/ At least I am not as a human being and moreover as a woman I can understand the pain one goes through ....We are no politicians and as janata we have awakened to our rights and duties and demand a fair and quick trial ...and then a strict law so that the rapist is either hanged or castrated.....we do not believe in slow procedures now and when ever a politician gives a round about answer we will not take it ....if you are satisfied it is your will ...everyone is free to his/her own judgement....
  • Kirti Sharma Pathak Aur ek baat Lakhan Salvi ji janata ne nyay maanga nahi hai ...JANATA AB NYAY LE KAR RAHEGI ....
  • Lakhan Salvi pate ki baat ab ki hai aapne mem, darasal hamen saaf-saaaf kahna chahiye or jo mangna hai wo bhi saaf-saaf sabdo me mangna chahiye.......aapne visual ke saath jo line likhi thi usme to ye baaten nahi aayi thi jo ab aapne batai hai.......... mai aapki second last baat se sahmat hoo
  • Lakhan Salvi we want quick trial or \\\\\\
  • Bipin Basil Kirti Mam,humble submission,Yesterday Sachinji was here in Ajmer,tell u nobody who keep concern's For GURIA TURNED TO APPRISE.the issue to him.really Sad,
    'Hum Guftgu mein Mashgul hein aur karnwa aage nikal gaya.
  • Kirti Sharma Pathak To apprise Bipin ji ?? We thought that as he is in the Govt. he must be knowing the details but yes when we watched the video it was very evident that he did not know the finer details ...the reply seemed very round about and general ...I know we the concerned janata should have come and apprised him of the happenings of Delhi too ...and we were thinking that he is not concerned about Ajmer !!!! Sorry once again ...we misjudged him on one more count ....
  • Lakhan Salvi Kash every person Bipin ji jaisa ho jaaye . .
जाहिर सी बात है कि तर्क के लिहाज से दोनों की पक्ष ठीक प्रतीत होते हैं, मगर अहम सवाल ये भी है क्या हमें आम तौर पर अजमेर में मौजूद व सहज सुलभ जनप्रतिनिधि की जरूरत है, जो कि अजमेर के हित के लिए कुछ कर नहीं पाए या फिर ऐसे जनप्रतिनिधि की, जो अजमेर वासियों को भले ही सहज सुलभ न हो, मगर अजमेर के विकास पर ध्यान दे। फैसला आज कीजिए।
-तेजवानी गिरधर