रविवार, 30 जनवरी 2011

रासासिंह ही होंगे शहर भाजपा अध्यक्ष !


सुविज्ञ सूत्रों से पता लगा है कि काफी विचार-विमर्श और दावों-प्रतिदावों के बाद आखिरकार पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत को ही शहर भाजपा अध्यक्ष पद के काबिल माना गया है और उनकी नियुक्ति की घोषणा होना मात्र शेष रह गया है।
यहां उल्लेखनीय है कि आखिरी दौर में हालांकि प्रो. बी. पी. सारस्वत कुर्सी के काफी करीब पहुंच गए थे, संघ का भी पूरा सहयोग मिल रहा था, लेकिन विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी सहित अन्य महत्वपूर्ण नेताओं की ओर से प्रो. सारस्वत के नाम पर सहमति नहीं देने पर पार्टी ने अब लगभग तय सा कर दिया है कि प्रो. रावत को अध्यक्ष बना दिया जाए। प्रो. सारस्वत को तो फिर भी कभी और मौका दिया जा सकता है, लेकिन पांच बार सांसद रहे प्रो. रावत को पार्टी आइसोलेटेड नहीं होने देना चाहती। यदि अभी उन्हें कोई ढंग का पद नहीं दिया गया तो इतने अनुभवी नेता की राजनीतिक हत्या हो जाएगी। इससे भी अहम बात ये है कि उनके नाम पर भले ही कार्यकर्ताओं में कोई उत्साह न हो, मगर एक भी नेता उनके खिलाफ नहीं है। एक महत्वपूर्ण पहलु ये माना भी जा रहा है कि प्रो. रावत को अध्यक्ष बनाने से संगठन के मौजूदा ढ़ांचे में कोई बहुत ज्यादा उठापटक नहीं होगी, जब कि प्रो. सारस्वत के आने से पार्टी में भले नई जान आ जाए, लेकिन कई नेता उनको हजम नहीं कर पाएंगे, जिससे परेशानियां ही बढ़ेंगी।

बजाड़ का भिड़ते ही हो गया कबाड़

अजमेर जिला परिषद सदस्य के लिए हुए चुनाव में, जैसी कि आशंका थी, कांग्रेस के प्रत्याशी सौरभ बजाड़ को अपनी ही पार्टी के लोगों का सहयोग नहीं मिला और राजनीति की पहली सीढ़ी पर ही उनका कबाड़ कर दिया गया है। असल में कांग्रेस प्रत्याशी होने के कारण शुरू में तो मौटे तौर पर यही माना जा रहा था कि उनको केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट का आशीर्वाद हासिल है और इसी कारण इस चुनाव को पायलट व युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा था, मगर कांग्रेस के अंदरखाने में चर्चा यही चर्चा बनी रही कि उन्होंने सचिन से आशीर्वाद हासिल नहीं किया है। पायलट की छोड़ो, बजाड़ के हारने के बाद तो अब यह भी कहा जाने लगा है कि उन्हें नसीराबाद विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर व वरिष्ठ एडवोकेट हरिसिंह गुर्जर का भी पूरा सहयोग नहीं मिला है। इसके पीछे तर्क ये दिया जा रहा है कि वे यह नहीं चाहते थे कि बजाड़ जीतने के बाद उनके लिए सिरदर्द बनें। वैसे भी बजाड़ जिस तरीके से शॉर्टकट से राजनीति में आए, वह अन्य गुर्जर नेताओं को रास नहीं आ रहा था। सच्ची बात तो ये है कि सचिन पायलट के अजमेर पदार्पण से पहले बजाड़ के नाम का कहीं अता-पता नहीं था। जैसे ही सचिन के नजदीक आए तो पहचान बनी और उनकी राजनीतिक गाडी भी चलने लगी। बाद में जब सचिन को पता लगा कि उनके नाम से अनेक स्थानीय नेता उनकी फ्रेंचाइजी चला रहे हैं तो उन्होंने सावधानी बरतना शुरू कर दिया। बहरहाल, इस चुनाव परिणाम से यह लगभग साबित हो गया है कि बजाड़ को आशीर्वाद हासिल ही नहीं था। वे तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सी. पी. जोशी की सिफारिश पर टिकट ले कर आए थे।
जहां तक भाजपा के ओमप्रकाश भडाणा का सवाल है, उनके जीतने से युवा भाजपा नेता भंवरसिंह पलाड़ा का पलड़ा और भारी हो गया है। हालांकि इससे जिला प्रमुख पद पर काबिज उनकी पत्नी श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के संख्यात्मक समीकरण पर कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है, मगर इससे यह तो साबित हो ही गया है कि पलाड़ा की स्थानीय राजनीति पर पकड़ और मजबूत होती जा रही है। वैसे भडाणा को गुर्जर आरक्षण आंदोलन में अग्रणी भूमिका अदा करने का भी लाभ मिला है। ऐसा प्रतीत होता है कि आठ हजार गुर्जर मतदाताओं में अधिसंख्य गुर्जरों के वोट हासिल करने में वे कामयाब हो गए हैं, वरना हार-जीत का अंतर ज्यादा नहीं होता। इसके अतिरिक्त भडाणा जहां जमीन से जुड़े हुए हैं, वहीं बजाड़ थोड़ा हाई प्रोफाइल ही चल रहे थे।

पत्रकार तेजवानी जिला स्तर पर सम्मानित


अजमेर। वरिष्ठ पत्रकार गिरधर तेजवानी को बुधवार, 26 जनवरी को पटेल मैदान में आयोजित जिला स्तरीय गणतंत्र दिवस समारोह में राज्य की पर्यटन मंत्री श्रीमती बीना काक ने सम्मानित किया। उन्हें यह सम्मान अजमेर के इतिहास, वर्तमान व भविष्य पर लिखित शोध परक पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस को उनकी उपलब्धि और अजमेर के लिए किए गए उल्लेखनीय योगदान के रूप में मानते हुए दिया गया है।
तेजवानी लम्बे अरसे से पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं और उन्होंने दैनिक भास्कर सहित अनेक समाचार पत्रों में संपादन का काम किया है और अब भी संपादन व लेखन का कार्य जारी रखे हुए हैं। हाल ही उन्होंने अजमेर एट ए ग्लांस नामक पुस्तक का लेखन किया है, जिसे अगर अजमेर के इतिहास में मील का पत्थर कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वस्तुत: प्रख्यात इतिहासकार कर्नल टॉड व हरविलास शारदा की अजमेर के इतिहास पर लिखित पुस्तकों के बाद अजमेर एट ए ग्लांस एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें न केवल अजमेर का इतिहास, अपितु वर्तमान संदर्भों का विस्तृत वर्णन है।
असल में अजमेर में अरसे से एक ऐसी पुस्तक की जरूरत महसूस की जा रही थी, जिसमें न केवल जिले की समग्र महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारियां हों, अपितु नवीनतन सूचनाओं के साथ पूरे राजनीतिक, प्रशासनिक व सामाजिक ढ़ांचे के तथ्य संग्रहित हों। पुस्तक के अंतर्गत जिले की ऐतिहासिक व पुरातात्विक पृष्ठभूमि, उठापटक भरे इतिहास की गवाह तिथियां, वैभवशाली संस्कृति, समस्त पर्यटन स्थल, आजादी के आंदोलन में अजमेर की भूमिका, सांस्कृतिक, सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के महत्वपूर्ण तथ्यों के अतिरिक्त महत्वपूर्ण सरकारी विभागों, गैर सरकारी संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं और राजनीतिक, धार्मिक व सामाजिक शख्सियतों के बारे में जानकारी दी गई है। इतना ही नहीं अजमेर के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि एक पुस्तक का विमोचन समारोह अजमेर की बहबूदी पर चिंतन का यज्ञ बन गया, जिसमें अपनी आहूति देने को भिन्न राजनीतिक विचारधारों के दिग्गज प्रतिनिधि एक मंच पर आ गए। यह न केवल राजनीतिकों, बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों व गणमान्य नागरिकों एक संगम बना, अपितु अजमेर के विकास के लिए समवेत स्वरों में प्रतिबद्धता भी जाहिर की गई। पहली बार एक ही मंच पर अजमेर में कांग्रेस के दिग्गज केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट व दिग्गज भाजपा नेता पूर्व सांसद औंकारसिंह लखावत, प्रो. रासासिंह रावत, पूर्व उप मंत्री ललित भाटी और नगर निगम महापौर कमल बाकोलिया एकत्रित हुए और इस पुस्तक को अत्यंत उपयोगी व स्वर्णाक्षरों में लिखा जाने वाला प्रयास बताया। वस्तुत: यह पुस्तक इतिहास के शोधार्थियों, स्कूल के विद्यार्थियों, आम नागरिकों और पर्यटकों के लिए बेहद उपयोगी है।