शनिवार, 14 मार्च 2020

ठीकरी के रूप में उपयोग किया जा रहा है लखावत का

मारवाड़ में एक कहावत है, जिसका अर्थ है कि कभी-कभी ठीकरी भी मटका फोड़ देती है। कमोबेश वरिष्ठ भाजपा नेता औंकार सिंह लखावत का उपयोग भी ठीकरी के रूप में किया जा रहा है। हालांकि वोटों का जो गणित है, उसमें उनके जीतने की संभावना कम है, मगर फिर भी भाजपा ने राज्य में राजनीतिक हालात के मद्देनजर उनको राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करवा कर कांग्रेस में सेंध मारने का दाव खेला है। क्या पता ये दाव कामयाब हो जाए और ठीकरी के मटका फोडऩे वाली कहावत चरितार्थ हो जाए।
शुक्रवार को जैसे ही भाजपा ने जैसे ही राजेन्द्र गहलोत के अतिरिक्त औंकार सिंह लखावत का भी नामांकन दाखिल करवाया तो राजनीतिक आकाश में हलचल हो गई। हालांकि व्हिप के कारण क्रॉस वोटिंग की संभावना कम ही होती है, मगर राजनीति में कई संभावनाएं मौजूद रहती हैं, इसी के मद्देनजर भाजपा ये कदम यह सोच कर उठाया है कि वह कांग्रेस में तनिक असंतोष का फायदा उठा सकती है। वरिष्ठ पत्रकार ओम माथुर ने ताजा स्थिति पर सोशल मीडिया में यह पोस्ट डाल कर कि राजस्थान में राज्यसभा के लिए भाजपा के दो उम्मीदवारों का नामांकन और जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला की रिहाई की घोषणा एक ही दिन होना भाजपा का प्रयोग है या संयोग? सचिन पायलट को चुग्गा तो नहीं डाला गया है, एक कयास को जन्म दिया है।
वरिष्ठ पत्रकार एस पी मित्तल भी अपने ब्लॉग के जरिए कुछ ऐसी ही संभावना तलाश रहे हैं। वे लिखते हैं कि चूंकि केन्द्र सरकार का फारुख अब्दुल्ला परिवार के साथ तालमेल हो रहा है, इसलिए सचिन पायलट की भूमिका के बारे में फिलहाल कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। ज्ञातव्य है कि अब्दुल्ला सचिन के ससुर हैं।
खैर, यदि 18 मार्च को नामांकन वापसी के आखिरी दिन लखावत का नाम वापस नहीं लिया जाता तो वोटिंग होगी और क्रॉस वोटिंग से बचने के लिए दोनों ही दलों को बाड़ा बंदी करनी ही होगी। लखावत एक प्रयोग के तहत मैदान में उतारे गए हैं, इसकी पुष्टि खुद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया के इस बयान से होती है कि हमने अपना यह उम्मीदवार इस उम्मीद के साथ उतारा है, क्योंकि कांग्रेस के अलावा दूसरे दल भी हैं जो इस सरकार के कामकाज से नाराज हैं। हम सरकार के खिलाफ असंतोष को आधार बनाकर आगे बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षाओं की रेस जो विधानसभा चुनाव से पहले भी थी और आज भी बरकरार है। इसी के चलते जिस तरीके की फूट सरकार में है, वह सदन में और बाहर दिखाई देती है। सरकार कमजोर है, इसलिए बहुत लंबे समय तक चल नहीं सकती। सारी संभावनाएं जिंदा हैं।
राजस्थान में 200 विधायक हैं, ऐसे में जीत के लिए प्रथम वरीयता के 51 वोट चाहिए। कांग्रेस के पास खुद के 106 वोट हैं और 13 निर्दलियों एवं 2 बीटीपी व 2 सीपीएम के विधायकों के साथ है। भाजपा के पास खुद के 72 तथा आरएलपी के 3 विधायक हैं। यदि केवल तीन ही प्रत्याशी मैदान में होते तो चुनाव की जरूरत ही नहीं होती, मगर लखावत की मौजूदगी के बाद वोटिंग अनिवार्य हो जाएगी।
-तेजवानी गिरधर
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