सोमवार, 9 अप्रैल 2012

प्रशासन का आसानी से पीछा नहीं छोड़ेंगे दरगाह दीवान

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर यात्रा के दौरान दरगाह के दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान को पूरे परिसर को अधिकृत पास नहीं देने से वे काफी खफा हैं। जैसा कि उनका मिजाज है और जैसा उनके सचिव सैयद अलाऊद्दीन आरिफ ने संकेत भी दिया है कि इस घटना के बाद दरगाह दीवान साहब ने अपने कानूनी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट जाने का मानस बना लिया है, साफ लगता है कि वे अब प्रशासन का आसानी से पीछा नहीं छोडऩे वाले हैं।
असल में ऐसा प्रतीत होता है कि दरगाह दीवान, खुद्दामे ख्वाजा व दरगाह कमेटी के बीच चलती वर्षों पुरानी खींचतान के चलते ही प्रशासन ने विवाद से बचने के लिए दीवान को पास नहीं दिया होगा, मगर उसे यह ख्याल नहीं है कि उसने एक नई बला को न्यौता दे दिया है। संभव है कि जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को मसला ठीक से पता न हो, मगर प्रशासन के अन्य पुराने आला अफसर तो जानते ही हैं। उन्हीं में से किन्हीं पर दीवान ने इशारा किया है कि प्रशासन में कुछ ऐसे तत्व हैं, जो दोनों देशों के बीच दोस्ती का माहौल नही चाहते हैं और उन्होंने बेवजह का विवाद पैदा कर दीवान साहब और खादिमों के कथित विवाद की आड़ लेकर सैकड़ों वर्षों की परंपराओं को तोड़ा है। अब तो कलेक्टर को देखना होगा कि किस सलाहकार के कहने पर उन्होंने यह चूक की। हालांकि ख्वाजा साहब के वंशज के मामले में वर्षों से विवाद होता रहता है, मगर इतना तो तय है कि परंपरा के मुताबिक दरगाह दीवान किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के निजाम गेट पर अगवानी करने के बाद मजार तक साथ जाते हैं और परंपरा के ही मुताबिक मजार शरीफ पर जियारत खादिम द्वारा कराई जाती है। इस मरतबा अतिविशिष्ट व्यक्ति की यात्रा के दौरान दीवान साहब को निजाम गेट तक का ही पास दिया गया था। इस कारण उन्होंने बहिष्कार कर दिया। वे खुद बता रहे हैं कि बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की जियारत के दौरान भी इस तरह का विवाद उत्पन्न हुआ था, लेकिन प्रशासन ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए ऐन वक्त पर समस्त दरगाह परिसर का पास जारी किया।
सब जानते हैं कि दरगाह दीवान अपने हकों के लिए वर्षों से लड़ रहे हैं और इसके लिए वे किसी भी सीमा तक चले जाते हैं। दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट से संबंधित किताबें तो उन्हें कंठस्थ याद हैं। कानून के भी पक्के जानकारी हैं। और कोई छोटा मसला होता तो कदाचित गम भी खा जाते, मगर पाक राष्ट्रपति का मसला तो काफी बड़ा है। प्रशासन के पास भले ही नगर निगम मेयर कमल बाकोलिया, विधायक वासुदेव देवनानी, सरबजीत की बहिन व पुत्री आदि को पास जारी न करने का कोई संतोषजनक जवाब हो, मगर दरगाह शरीफ की धार्मिक परंपरा से जुड़े मसले पर उठे विवाद से निपटने में प्रशासन को जोर आएगा।
-तेजवानी गिरधर
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