मंगलवार, 11 अगस्त 2015

भाजपा की नैया दोनों मंत्रियों के हाथ, कांग्रेस में कई क्षत्रप

अजमेर नगर निगम के अगस्त माह में होने वाले चुनाव में एक ओर जहां भाजपा की नैया पार लगाने की जिम्मेदारी दोनों स्थानीय राज्य मंत्रियों प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल पर है तो कांग्रेस में यह जिम्मा क्षत्रपों में बंटा हुआ है। हालांकि सांगठनिक तौर पर पार्टियों की कमान अरविंद यादव व महेन्द्र सिंह रलावता के हाथ में है, मगर सीधे तौर पर वार्डवार जिम्मेदारी उन पर नहीं है। अलबत्ता रलावता पर दायित्व ज्यादा है क्योंकि टिकट वितरण उनकी ही देखरेख में तय हुए हैं।
असल में भाजपा के लगभग सारे टिकट दोनों मंत्रियों की रजामंदी से ही तय हुए हैं, इस कारण अब प्रतिष्ठा भी उनकी ही परखी जानी है। यही वजह है कि वे एक-दूसरे के इलाके वार्ड में झांकने की बजाय अपने-अपने इलाके के प्रत्याशियों के लिए ही काम कर रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि पार्टी दोनों मंत्रियों में बंटी हुई सी है, इस कारण कहीं-कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि वे या उनके समर्थक एक-दूसरे को नुकसान पहुंचा सकते हैं, मगर मोटे तौर पर दोनों में होड़ इस बात की है कि कौन कितने ज्यादा पार्षद बनवा पाता है। असल में ये होड़ अपना-अपना दबदबा दिखाने से कहीं ज्यादा इस वजह से है कि दोनों की कोशिश ये रहेगी कि अपना विश्वासपात्र ही मेयर बने। और वह जाहिर तौर पर पार्षदों की तादाद से तय होगा। यद्यपि भाजपा में यह तय सा माना जा रहा है कि अगर उसका बोर्ड बना तो मेयर पद सामान्य होने के बावजूद अन्य पिछड़ा वर्ग के पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत को ही जिम्मेदारी मिलेगी। इसकी अनेक वजुआत हैं। एक तो समझा जाता है कि भाजपा के अधिक पार्षद अजमेर उत्तर से बनेंगे, ऐसे में मेयर देवनानी की पसंद का ही होगा। दूसरा ये कि संघ और देवनानी की पहली पसंद भी वे ही हैं। सब जानते हैं कि संघ निवेदन नहीं करता, आदेश जारी करता है और किसी में हिम्मत नहीं कि उसकी अवहेलना कर सके। एक और विशेष बात ये है कि अगर कहीं कुछ दिक्कत हुई तो गहलोत कांग्रेसी पार्षदों को भी मैनेज कर सकते हैं। यूं गहलोत के अतिरिक्त मौजूदा पार्षद नीरज जैन, जे. के. शर्मा, पूर्व नगर परिषद सभापति सोमरत्न आर्य और पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत आदि के नाम प्रमुख हैं। ज्ञातव्य है कि सुरेन्द्र सिंह शेखावत पर महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल का हाथ है। इसी प्रकार जे. के. शर्मा राज्य सभा सदस्य भूपेन्द्र यादव के आशीर्वाद से आगे बढ़ सकते हैं। ऐसा लगता है कि अगर गहलोत के ओबीसी होने का विवाद बढ़ा तो देवनानी अपने ही गुट के शर्मा अथवा जैन पर हाथ रख सकते हैं। रही आर्य की बात तो वे बिल्ली के भाग्य छींका टूटने की तर्ज पर चल रहे हैं। जानकारी के अनुसार भाजपा खेमा इस बात से आश्वस्त सा है कि बोर्ड उनका ही बनेगा, मेयर का फैसला भले जो कुछ हो।
दूसरी ओर कांग्रेस में इस बार सिर फुटव्वल ज्यादा नहीं है। रलावता के अतिरिक्त अन्य क्षत्रपों पूर्व उप मंत्री ललित भाटी, हेमंत भाटी, पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल, डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को संतुष्ट करने की कोशिश की गई है, इस कारण वे अपनी-अपनी पसंद के प्रत्याशियों को जिताने पर ही ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। केवल संगठन की बात करें तो उस पर सीधे तौर पर कोई विशेष जिम्मेदारी नहीं है। संगठन के कार्यकर्ता वार्ड वार और पसंद के प्रत्याशी के अनुसार बंट गए हैं। हालांकि कांग्रेस अपना बोर्ड बनने के प्रति बहुत अधिक आश्वस्त तो नहीं है, मगर उसे उम्मीद है कि केन्द्र व राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा का प्रदर्शन उल्लेखनीय न होने और जनता की नजर में खरा न उतरने का उसे फायदा मिलेगा। बात अगर मेयर की करें तो वहां अभी किसी की भी दावेदारी सामने आती नजर नहीं आ रही।
हालांकि भाजपा नेता भी यह जानते हैं अब मोदी या वसुंधरा लहर जैसी कोई स्थिति नहीं, मगर उनका विश्वास है कि केन्द्र व राज्य में सत्ता होने का उसे लाभ मिलेगा ही। जहां तक माहौल का सवाल है, वह भाजपा अपने पक्ष में बनाने में कामयाब होती दिख रही है। इसकी झलक चौराहों पर होती चर्चाओं और मीडिया रिपोर्टों में नजर आती है।
सट्टा बाजार की बात करें तो फिलवक्त भाजपा की स्थिति मजबूत है। सटोरिये भाजपा के खाते में 30-35 व कांग्रेस के खाते में 20-25 सीटें मान रहे हैं।
इस चुनाव की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इस पर भाजपा हाईकमान ने पूरी निगरानी रख रखी है। उसका सोचना है कि अगर यहां कांग्रेस हारी तो इससे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट का आत्मबल कमजोर होगा, क्योंकि वे यहां के पूर्व सांसद हैं। जहां तक पायलट का सवाल है, उन्होंने अजमेर पर विशेष ध्यान तो दिया है, मगर उनकी ज्यादा कोशिश अपनी पसंद के प्रत्याशी खड़े करने की बजाय स्थानीय क्षत्रपों को संतुष्ठ करने की रही है। कदाचित उनका यह प्रयोग सफल भी हो सकता है।
-तेजवानी गिरधर
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