शुक्रवार, 18 मई 2012

सावित्री स्कूल संकट में, बचाने की जिम्मेदारी नसीम पर

सावित्री कन्या सीनियर सेकंडरी स्कूल

नसीम अख्तर 
एक ओर तो सरकार बालिका शिक्षा के लिए उल्लेखनीय कार्य करने के दावे करती है, दूसरी ओर कानून की पेचीदगी का हवाला दे कर अजमेर के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित सावित्री कन्या सीनियर सेकंडरी स्कूल बंद होने के कगार पर छोड़ रही है। शिक्षकों व कर्मचारियों को अन्य सरकारी स्कूलों में भेजे जाने के आदेश से स्कूल के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया है। इसके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए यूं तो शहर के राजनेता, शिक्षक संघ और अन्य संगठन आगे आए हैं, मगर अहम जिम्मेदारी शिक्षा राज्यमंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ पर है।
अव्वल तो अफसोस इस बात का है कि शिक्षा राज्य मंत्री होते हुए भी उनको जानकारी ही नहीं थी और विद्यालय से शिक्षकों को रिलीव किए जाने संबंधी आदेश कब आ गए? हालांकि वे कह रही हैं कि इस मामले पर खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बात करेंगी और किसी भी सूरत में स्कूल को बंद नहीं होने देंगी, जो कि संतोषजनक है, मगर उनकी अनभिज्ञता पर अफसोस होना लाजिमी है। इसके सीधे से मायने हैं कि समय रहते उन्होंने ख्याल नहीं रखा। यह तो सब को पता था कि सावित्री स्कूल बंद होने की ओर सरक रहा है। ऐसे में खुद उन्हें ही फालोअप करना चाहिए था। यदि अफसरों ने उन्हें जानबूझ कर अंधेरे में रखा तो यह और भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे राज्य में लालफीताशाही के संकेत मिलते हैं। इसका प्रमाण ये है कि स्कूल के कर्मचारी जब प्रमुख शासन सचिव शिक्षा से मिलने गए तो उन्होंने उन्हें यह कह कर बेरंग लौटा दिया कि सरकार के आदेश हैं, वे कुछ नहीं कर सकते। सवाल उठता है कि क्या वे सरकार से अलग हैं अथवा उनकी जानकारी व सहमति के बिना ही आदेश जारी हो गए? कैसी विडंबना है? जाहिर सी बात है कि जो अधिकारी फैसले में शामिल हो, वो भला आश्वासन दे भी क्या सकता है? इस बारे में शिक्षा मंत्री बृजकिशोर शर्मा का कहना है कि उन्होंने अधिग्रहण के लिए विधि विभाग व महाधिवक्ता से राय ली थी, लेकिन उनका कहना है अधिग्रहण नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री चाहें तो नियमों में शिथिलता दे सकते हैं। जब वे जानते हैं कि मुख्यमंत्री शिथिलता दे सकते हैं तो प्रदेश के शिक्षा महकमे के सर्वेसर्वा होने के नाते प्रदेश के पुराने व प्रतिष्ठित स्कूल को बचाने की खातिर उन्होंने मुख्यमंत्री से बात क्यों नहीं की? जाहिर है अजमेर उनका कार्यक्षेत्र नहीं है, इस कारण उन्होंने कोई रुचि नहीं ली। ऐसे में शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर सहित स्थनीय जनप्रतिनिधियों को ही दबाव बनाना होगा।
इस सिलसिले में राजस्थान शिक्षक संघ राधाकृष्णन के प्रदेशाध्यक्ष विजय सोनी का तर्क दमदार है। जब पूरा सैटअप मुफ्त में मिल रहा है तो अफसर व शिक्षा मंत्री अधिग्रहण करने में हिचक क्यों रहे हैं? यह तथ्य भी गौर करने लायक है कि सरकार ने पिछले वर्ष शिक्षकों का स्थानांतरण इस आधार पर ही रोका था कि स्कूल के अधिग्रहण का प्रस्ताव विचाराधीन है। सोनी का कहना है कि राउमावि क्रिश्चियनगंज के भवन में ही राबाउमावि क्रिश्चियनगंज, राउप्रावि आतेड़ व राबाउप्रावि राजीव कालोनी स्कूल संचालित है। इसी प्रकार राबाउमावि होलीदड़ा मात्र तीन-चार कमरों में ही चल रही है। ऐसे में सावित्री कन्या महाविद्यालय को राजकीय कन्या महाविद्यालय में शिफ्ट किया गया था। उसी प्रकार इनमें से स्कूलों को यहां पर शिफ्ट कर दिया जाए तो हींग लगे ना फिटकरी और रंग आए चोखा वाली कहावत चरितार्थ हो सकती है। इन सरकारी स्कूलों में भवन की समस्या समाप्त हो जाएगी और सरकारी स्टाफ भी मिल जाएगा।
यहां उल्लेखनीय है कि स्कूल के प्रशासक ने भी पूर्व में सरकार को इस आशय की रिपोर्ट भिजवाई थी कि सावित्री विद्यालय को अधिगृहीत करने में राज्य सरकार को एक रुपया भी खर्च नहीं करना पड़ेगा। वर्तमान में इसका कोई प्रबंध मंडल नहीं है और न ही कोई विवाद है। ऐसे में सरकार इसे अधिग्रहित कर इसका संचालन अपने हाथ में लेकर छात्राओं की शिक्षा सुचारू रख सकती है। अजमेर शहर जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष महेंद्र सिंह रलावता ने भी इस मसले पर चिंता जताई है कि सावित्री स्कूल के अधिग्रहण की कार्यवाही विचाराधीन है और वर्तमान में स्कूल में 2015 बालिकाएं अध्यनरत हैं, ऐसे में शिक्षा उपनिदेशक के निर्णय से अनिश्चय का माहौल बन गया है। उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि इसका शीघ्र समाधान कर अभिभावकों व शिक्षिकाओं को राहत प्रदान कराएं। रलावता का कहना है कि सावित्री कॉलेज की ही तरह सावित्री स्कूल का भी हनुमानगढ़ पैटर्न पर मय स्टाफ के अधिग्रहण किया जाए। पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने भी शिक्षा मंत्री को पत्र लिख कर कालेज की तरह स्कूल को भी अधिग्रहित करने का आग्रह किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि शिक्षा मंत्री सहित कांग्रेसी नेताओं के दबाव से स्कूल का अस्तित्व बचाया जा सकेगा। 

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

कामनकाज सोसायटी की पहल वाकई सराहनीय

अजमेर शहर के विकास के लिए सतत प्रयत्नशील कामनकाज सोसायटी ने वर्षों से अपेक्षित सीवरेज सिस्टम का चालू करवाने के लिए वाकई सराहनीय कदम उठाया है। शहर में पिछले कई साल से चल रहे सीवरेज कार्य को जल्द अंजाम तक पहुंचाने व नागरिकों को सहूलियत देने को लेकर कामनकाज सोसायटी की ओर से दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव समेत संबंधित विभागों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
ज्ञातव्य है कि अजमेर में वर्ष 2002 में राजस्थान शहरी ढांचागत विकास परियोजना आरयूआईडीपी द्वारा सीवरेज निर्माण का कार्य शुरू किया था, जो 2008 में समाप्त हो गया है। इसके तहत 207.23 किलोमीटर सीवरेज लाइन बिछाने एवं 20 एमएलडी क्षमता के ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण खानपुरा में किया जा चुका है। 61.62 करोड़ रुपए खर्च किए जाने के बावजूद अब तक न तो नगर निगम सीवरेज संचालन का दायित्व ग्रहण किया है और न ही सीवेज लाइनों का कनेक्शन घरों में किया गया है। सरकारी कामकाज की कछुआ चाल के लिए जहां प्रशासन दोषी है, वहीं हमारे जनप्रतिनिधि भी उतने ही जिम्मेदार हैं, जो अपेक्षित दबाव बना कर काम समय पर पूरा नहीं करवा पा रहे। ऐसे में सोसायटी के सचिव मनोज मित्तल ने अपने वकील पीयूष नाग के जरिए हाईकोर्ट के समक्ष राज्य सरकार समेत, नगरीय विकास विभाग, स्वायत्त शासन विभाग, संभागीय आयुक्त, कलेक्टर, नगर निगम और नगर सुधार न्यास के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि सीवरेज योजना में जनता का धन लगा है। इसके निर्माण के दौरान नागरिकों को यातायात संबंधी भीषण परेशानियों, जगह जगह खुदी सड़कों की वजह से कई हादसे भी हुए और लोगों को जान तक गंवानी पड़ी। जिस परियोजना पर 170 करोड़ रुपए खर्च होने जा रहे हैं, उसका लाभ अजमेर की जनता को मिलना चाहिए। मित्तल ने अपनी याचिका में कहा कि घरों में सीवर लाइन के कनेक्शन का कार्य तुरंत प्रारंभ कर सीवर सिस्टम को प्रभावी तरीके चालू किया जाए। अजमेर निगम को सीवरेज व ट्रीटमेंट प्लांट के संचालन का दायित्व व कार्य सौंपने के निर्देश दिए जाएं, निगम असमर्थ हो तो अन्य एजेंसी को जिम्मेदारी दी जाए। जेएनएनयूआरएम के तहत 108 करोड़ की लागत से खानपुरा में 40 एमएलडी, आनासागर जोन में 13 एमएलडी और पुष्कर में 3.5 एमएलडी क्षमता के ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण और शेष बची सीवर लाइनों का कार्य समय पर पूरा हो। सीवर लाइन डालने 15 दिन के अंदर खोदी गई सड़कों को अनुबंध की शर्तों के अनुसार ठीक किया जाए। सीवरेज लाइन के संचालन एवं देखरेख के लिए पृथक से सीवरेज सेल गठित करे ताकि कार्य कुशलतापूर्वक संचालित हो सके। नगर सुधार न्यास, जेएनएनयूआरएम के तहत करवाए जा रहे सीवरेज निर्माण कार्य में नगर निगम अथवा अन्य एजेंसी की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने इससे काम में कोई कमी नहीं रहे। जो क्षेत्र अब तक परियोजना में शामिल नहीं किए गए हैं, उन्हें भी शामिल किया जाए। आनासागर ट्रीटमेंट प्लांट के चालू होने तक यहां उत्पन्न दुर्गंध की समस्या का अविलंब समाधान किया जाए। जब तक अजमेर में सीवरेज सिस्टम पूरी तरह कार्यशील नहीं हो तक तक सीवरेज सिस्टम से संबंधित सभी गतिविधियों के लिए हाईकोर्ट की देखरेख में एक मॉनिटरिंग कमेटी का गठन किया जाए। इसमें न्यास, निगम, अन्य सरकारी एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों एवं नगर के प्रमुख नागरिकों को शामिल किया जाए तथा समय समय पर रिपोर्ट कोर्ट में पेश हो। इस याचिका पर की खंडपीठ ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव समेत संबंधित विभागों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। उम्मीद है कि सोसायटी की इस पहल का जनता को जल्द लाभ मिलेगा।
ज्ञातव्य है कि इससे पहले अजमेर व पुष्कर की छह झीलों के भराव क्षेत्र में हो रहे अतिक्रमण और निर्माण कार्यों पर रोक के लिए भी सोसायटी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिस पर कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी किया था। हालांकि हमारी निष्पक्ष व कड़ी न्यायिक व्यवस्था के चलते सोसायटी को यह जनहितकारी सफलता मिली, लेकिन कितना अफसोसनाक पहलु है कि सरकार और प्रशासन अपने स्तर पर जनहित में कुछ नहीं करना चाहते। उन पर अंकुश लगाने के लिए कोर्ट की मदद लेनी पड़ती है। यदि सोसायटी जैसी संस्थाएं न हों तो प्रशासन, नगर परिषद व नगर सुधार न्यास में बैठे स्वार्थी तत्व पूरे आनासागर को ही बेच खाएं। सोसायटी वाकई साधुवाद की पात्र है। 

-तेजवानी गिरधर
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टंडन के उपवास पर तकलीफ तो व्यवस्थाएं क्यों नहीं सुधारीं?

ख्वाजा साहब के 800वें सालाना उर्स की अव्यवस्थाओं को लेकर बार अध्यक्ष व प्रदेश कांग्रेस के पूर्व सचिव राजेश टंडन का एक दिन का उपवास विवाद में आ गया। विवाद इतना भर है कि प्रदेश कांग्रेस के महासचिव सुशील शर्मा ने जबरन टांग अड़ा कर यह कह दिया है कि टंडन को व्यक्तिगत रूप से आंदोलन करने का अधिकार है, लेकिन पार्टी के पूर्व सचिव की हैसियत से इस तरह के आंदोलन का अधिकार नहीं है। शर्मा की यह बात है ही बेहूदा कि टंडन को पूर्व सचिव के नाते उपवास करने का अधिकार नहीं है। कौन बेवकूफ होगा जो अपने पूर्व पद के नाते आंदोलन करेगा। पूर्व पद के नाते आंदोलन होते भी हैं क्या? रहा सवाल टंडन के पूर्व सचिव होने का तो वह ऐसा पद है, जो उनसे अब कोई नहीं छीन सकता। ऐसे में यह शर्मा की अड़ंगी ही मानी जानी चाहिये क्योंकि टंडन कांग्रेस के बैनर तले अथवा यह बता कर कि वे प्रदेश कांग्रेस के पूर्व सचिव हैं और उस हैसियत से तो उपवास कर नहीं रहे, वे तो वैसे भी निजी तौर पर कर रहे हैं।
अगर इसे शर्मा के महासचिव होने के नाते प्रदेश कांग्रेस का फरमान माना जाए तो असल बात ये है कि टंडन के उपवास करने से कांग्रेसी सरकार की ही हल्की होती है। आखिर वे हैं तो वरिष्ठ कांग्रेसी ही न, भले ही अभी किसी पद न हों। शर्मा को लगा होगा कि कहीं टंडन के साथ अन्य कांगे्रसी भी न खड़े हो जाएं। मगर असल बात ये है टंडन कांग्रेस सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि जिला प्रशासन की लापरवाही के खिलाफ उपवास पर बैठे हैं। उन्होंने इस सिलसिले में कभी कांग्रेस सरकार की आलोचना नहीं की। वे तो यही कहते रहे कि जिला प्रशासन लापरवाही बरत रहा है। इसकी शिकायत वे हाल ही उर्स मेले की तैयारियों के सिलसिले में अजमेर आए राज्य सरकार के मुख्य सचिव सी के मैथ्यू से भी कर चुके थे। उनके सामने ही अपने उपवास करने का ऐलान भी कर चुके थे। शर्मा की इस बात को ध्यान में रखा जाए कि टंडन को व्यवस्था में कमियां नजर आती हैं तो पार्टी या प्रशासन के सामने रख कर दूर कराने का प्रयास करें, तब भी टंडन कहीं गलत नजर नहीं आते। वे राजस्थान प्रशासन के सबसे बड़े अफसर को शिकायत कर चुके। जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को नकारा बताते हुए उन्हें हटाने का आग्रह सरकारी मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा से भी कर चुके। उसके बाद भी यदि जिला प्रशासन व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं करता तो प्रशासन ही दोषी हुआ न, टंडन कैसे दोषी हो गए? प्रशासन ही क्यों कांग्रेस संगठन व सरकार भी उतने ही जिम्मेदार हैं। उन्हें टंडन की शिकायत पर गौर करना चाहिए था। तब शर्मा कहां थे। तब उन्हें यह ख्याल नहीं आया कि टंडन के उपवास से कांग्रेस सरकार की बदनामी होगी।
रहा सवाल शर्मा के यह कहने का कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद उर्स की व्यवस्थाओं पर नजर रखे हुए हैं और सरकार ने उर्स को लेकर अतिरिक्त राशि उपलब्ध कराई है तो यह सही है, मगर स्वीकृत तीन करोड़ रुपए से क्या हो सकता था? यह भी तब मंजूर की जब तीन सौ करोड़ की योजना पर खुद ही ध्यान नहीं दिया और वह अधर में लटकी गई। इज्जत बचाने की खातिर तीन करोड़ दिए। बहरहाल, जो तीन करोड़ आए, उनसे हुए कामों का परिणाम ये है कि पूरे मेला क्षेत्र में आज भी भारी अव्यवस्थाएं पसरी पड़ी हैं।
शर्मा ने टंडन के इस उपवास को सस्ती लोकप्रियता करार दिया है। इसे सही माना जाए तो कांग्रेस ने उन्हें पिछले तीन साल में दिया भी क्या है? इतने वरिष्ठ कांग्रेसी को बर्फ में लगा रखा है। वो तो वे अपने दम पर दुबारा बार अध्यक्ष बन गए, वरना कांग्रेस तो उन्हें भुला ही चुकी थी। ऐसे में अब पूर्व सचिव होने के नाते उपवास पर ऐतराज करने के क्या मायने रह जाते हैं?
असल में दरगाह की व्यवस्थाओं को लेकर कांग्रेस में ही दो धड़े से बन गए हैं। एक ओर शिक्षा मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर हैं तो दूसरी ओर अन्य। इससे पहले जब पूर्व विधायक डा. श्रीगोपाल बाहेती बोले थे तो नसीम अख्तर खेमे के चंद कांग्रेसियों ने उस पर कड़ा ऐतराज किया था। उन्होंने इसे डा. बाहेती राजनीतिक स्वार्थ करार दिया था और आरोप लगाया था कि डा. बाहेती ने सार्वजनिक बैठक लेकर लोगों को प्रशासन के खिलाफ उकसाने, भड़काने एवं गुमराह करने का काम किया है, जबकि सरकार ने पहली बार नसीम अखतर को उर्स की जिम्मेदारी सौंपी है। जाहिर सी बात है कि उन्हें तकलीफ ये रही कि जब मंत्री महोदया को जिम्मेदारी दे दी गई है तो बाहेती बीच में कैसे बोल रहे हैं। बाहेती तो चूंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी हैं, इस कारण विवाद से बचते हुए चुप हो गए, मगर टंडन ने झंडा हाथ में थामे रखा।
उधर भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष इब्राहित फखर ने टंडन के आंदोलन को समर्थन दे कर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। टंडन की हालत अन्ना हजारे जैसी हो गई है। बेचारे अन्ना बार बार इंकार करते रहे कि संघ से उनका कोई लेना देना नहीं है, मगर संघ वाले अपनी मर्जी से ही समर्थन करने लगे तो अन्ना भी इंकार नहीं कर पाए। कुल मिला कर टंडन के लिए मामला पेचीदा हो गया है। कहीं अजमेर के अन्ना के रूप में उनका नया अवतार तो नहीं होने वाला है?

-तेजवानी गिरधर
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