रविवार, 9 जनवरी 2011

बो गए राजेश यादव, काटें मंजू राजपाल


भीलवाड़ा से अजमेर स्थानांतरित हो कर आईं जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को आते ही अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जाहिर तौर पर ये सभी निवर्तमान कलेक्टर राजेश यादव के कार्यकाल में हुए कार्यकलापों से उत्पन्न हुई हैं। कानून व्यवस्था की समस्याओं को केवल नए एसपी बिपिन कुमार पांडे पर ही छोड़ दिया जाए तो भी अकेले नगर सुधार न्यास को लेकर इतने बवाल हैं, जिनसे निपटना बेहद कठिन काम है। यदि जल्द ही न्यास अध्यक्ष पद पर किसी की राजनीतिक नियुक्ति नहीं होती तो उनसे पदेन अध्यक्ष मंजू राजपाल को ही जूझना होगा।
न्यास को लेकर सबसे बड़ा विवाद तो ये है कि खुद सत्तारूढ़ दल कांग्रेस ने ही वहां बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होने को लेकर सर्दी के इस मौसम में गरमाहट पैदा कर रखी है। पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल के नेतृत्व में बोले गए हमले के बाद अभी सरकार ने एक मामले की जांच कराने के आदेश जारी किए ही हैं कि उन्होंने अब दीप दर्शन सोसायटी का मामला उठा दिया है। उनके इस ताबड़तोड़ हमलों से तो यही लगता है कि वे जल्द शांत होने वाले नहीं हैं। यूं हमला तो बाद में भाजपा ने भी किया, मगर वह औपचारिकता भर रहा। भाजपा ने जब देखा कि उसकी भूमिका का निर्वाह तो कांग्रेस करके वाहवाही लूट रही है तो उसने भी औपचारिक विरोध प्रदर्शन किया। हालांकि उसने भी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया, मगर उसका ज्यादा जोर भाजपा शासनकाल में शुरू किए गए विकास कार्यों के ठप्प देने पर एतराज जताने पर था, जो वाकई सही नजर आता है। कुल मिला कर मंजू राजपाल को न्यास में व्याप्त भ्रष्टाचार से तो निपटना है ही, ठप हो चुके विकास कार्यों को फिर शुरू करवाने का दबाव भी रहेगा। इनमें पृथ्वीराज नगर योजना, दीपक नगर योजना, दीनदयाल उपाध्याय पुरम, गौरव पथ, माकड़वाली रोड, पुष्कर रोड से माकड़वाली पुष्कर बाई पास की दौ सौ फीट रोड़, महाराणा प्रताप स्मारक, सांझा छत, विवेकानन्द स्मारक, जयपुर रोड से नाका मदार को जोडऩे वाली सडक़ तथा नाका मदार से आदर्श नगर को जोडऩे वाली सडक़ आदि की उपेक्षा पर सवाल उठाये जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं जैसे सडक़, नालियां, पेवर ब्लॉक, पार्कों एवं श्मशानों के विकास कार्यों के लिए जारी कि गई निविदाओं के कार्य या तो अधूरे पड़े है अथवा प्रारम्भ ही नहीं हुए हैं, जबकि लागत लगातार बढ़ती जा रही है। न्यास द्वारा बजरंगगढ़ सर्किल चौराहा तथा जिनदतसुरी सर्किल, मेयो कॉलेज के विकास जस के तस अधूरे पड़े हैं। यूनिर्वसिटी तिराहे से जयपुर रोड़ बाईपास को जोडऩे वाली सडक़ तथा नौ नम्बर पेट्रोल पम्प से परबतपुरा तक की सडक़ का काम अधूरा ही पड़ा है। फॉयसागर से चामुण्डा माता मन्दिर तक की सडक़ का काम प्रारम्भ ही नहीं हुआ है तथा चामुण्डा माता मन्दिर वाली सडक़ में खर्च की जाने वाली राशि में कटौती कर दी है। इसी प्रकार वाल्मिकी अम्बेडकर मलीन बस्ती योजना के 109 क्वाटरों का निर्माण कार्य प्रारम्भ ही नहीं हो सका है। जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय सौन्दर्यीकरण का कार्य भी जहां था, वहीं रुका हुआ है। जवाहर लाल नेहरू अरबन नवीनीकरण मिशन योजना के अन्तर्गत किये जाने वाले सभी कार्य, जैसे पार्किंग स्थलों का विकास, आनासागर झील संरक्षण, दरगाह शरीफ विकास योजना, जयपुर रोड पर वीडियोकोच बस स्टैंड विकास की विभिन्न योजनाएं भी ठप्प पड़ी हैं।
इसी प्रकार सीवरेज लाइन के प्रथम चरण के कार्य अधूरे पड़े हैं, जबकि न्यास योजनाओं में प्रारम्भ किये जाने वाले द्वितीय चरण के सिवरेज के कार्य अभी तक प्रारम्भ ही नहीं हो पाये हैं। इसी प्रकार नये सामुदायिक भवन के कार्य प्रारम्भ नहीं हुए हैं। कच्ची बस्तियों के विकास कार्य हाथ में नहीं लिये गये हैं। सम्राट अशोक उद्यान, राजीव गांधी उद्यान एवं विभिन्न योजनाओं में लगभग चालीस पार्कों का विकास कार्य प्रारम्भ हुआ था, वे कार्य सब ठप्प पड़े हैं।
इसी प्रकार करोड़ों रुपए की लागत के चंद वरदायी स्टेडियम को नगर सुधार न्यास द्वारा राजस्थान क्रिकेट संघ को सौंपे जाने को लेकर भी विवाद हो गया है। खिलाड़ी और खेल संघों के पदाधिकारी इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं। इस मुद्दे पर कांग्रेस व भाजपा नेता भी एक सुर में बोल रहे हैं। असल में यह मुद्दा राजेश यादव के जाते-जाते उठा और मंजू राजपाल के आते ही मीडिया ने इसे मुद्दा बना दिया है।
दरगाह बाजार में एलिवेटेड ब्रिज को लेकर भी विरोध मुखर हो गया है। हालांकि राजेश यादव के समय में भी व्यापारियों ने काफी विरोध किया, लेकिन उन्होंने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया, इस कारण उसके निर्माण पर प्रशासनिक स्तर पर सैद्धांतिक स्वीकृति हो चुकी है। अब व्यापारी मंजू राजपाल से उम्मीद कर रहे हैं कि इस पर पुनर्विचार किया जाए।
इसी प्रकार पत्रकारों के प्लाट आवंटन को लेकर भी विरोध की सुगबुगाहट है। राजेश यादव पूरे दो साल तक तो इस मामले में चुप रहे और और अपने कार्यकाल के आखिरी दिन आनन-फानन में पत्रकारों के आवेदनों की छंटनी करवा कर उस पर मुहर लगा गए। अब केवल लॉटरी निकालना ही बाकी रहा है। जिन पत्रकारों के आवेदन पत्र निरस्त हुए हैं, वे कुनमुना रहे हैं और चाहते हैं कि फार्मों की जांच नए सिरे से हो। ज्ञातव्य है कि निरस्त किए गए आवेदनों में अधिसंख्य वे हैं, जिनमें पांच हजार रुपए प्रति माह से कम की आय अंकित की गई है। पत्रकारों का कहना है कि यदि इसी आधार पर ही आवेदन पत्र निरस्त करने थे तो पूरे चार साल तक उनको क्यों लटकाए रखा गया। आवेदन करते ही उसे निरस्त कर देते, कम से कम उनके दस-दस हजार रुपए तो ब्लॉक नहीं होते।
हालांकि यह सही है कि मंजू राजपाल ने अपना आईएएस का प्रोबेशनरी कार्यकाल यहीं पर सहायक कलेक्टर के रूप में बिताया है, इस कारण उन्हें अजमेर के मिजाज का अच्छी तरह से पता है, लेकिन अधिकतर समस्याएं नई हैं, जिन्हें समझने में उन्हें समय लगेगा। देखते हैं वे इनसे कैसे निपटती हैं और राजनीतिक दलों की दखलंदाजी के बीच वे कितनी कामयाब हो पाती हैं।
राजनीतिक खींचतान का परिणाम है डॉ. गार्गिया का तबादला
आखिरकार हॉट सीट बनी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी यानि सीएमएचओ की कुर्सी से डॉ. जवाहर गार्गिया को मुक्ति मिल ही गई। वे जब से इस कुर्सी पर बैठे थे, उनका ब्लड पे्रशर बढ़ गया था। इस कारण उन्होंने पिछले दिनों चिकित्सा मंत्री दुर्रू मियां से मुक्ति की गुहार लगाई थी।
असल में यह एक राजनीतिक घटनाक्रम का पटाक्षेप है। पूर्व मंत्री लक्ष्मण सिंह रावत के करीबी डॉ. गार्गिया के लिए परेशानी तब से ही बढ़ी, जब से स्वास्थ्य महकमा जिला परिषद के अधीन किया गया। सरकार ने जिला परिषदों को ज्यादा अधिकार देते हुए महकमे को उसके अंतर्गत तो कर दिया, लेकिन उससे उत्पन्न समस्याओं से निपटने का कोई रास्ता नहीं तलाशा। यही वजह रही कि जब शेरगढ़ सब सेंटर पर नर्सिंग स्टाफ की कमी पर केकड़ी विधायक डॉ. रघु शर्मा ने डॉ. गार्गिया से जवाब-तलब किया तो उन्हें मजबूरी में कहना पड़ा कि नर्सिंग स्टाफ जिला परिषद के सीईओ के क्षेत्राधिकार में है। यह जवाब शर्मा को नागवार गुजरा। उन्होंने न तो इस बारे में सीईओ से कहा और न ही सरकार से असमंजस दूर करने का आग्रह किया, उलटे डॉ. गार्गिया की ही शिकायत कर दी। बस तभी से डॉ. गार्गिया ने यह तय कर लिया कि ऐसी फफूंद वाली कुर्सी को छोड़ देंगे। भला कोई चिकित्सा अधिकारी सरकार द्वारा उत्पन्न की गई पेंडुलम वाली स्थिति को कब तक बर्दाश्त करेगा। इसका साफ मतलब है कि एक ओर तो सरकार योग्य चिकित्सकों की कमी से परेशान है और दूसरी ओर उनकी समस्याओं को दूर करने पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। तभी तो लंबे समय से पटरी से उतरे हुए महकमे को पटरी पर लाने वाले डॉ. गार्गिया को ही पटरी से उतरना पड़ा। यह सरकार और जनप्रतिनिधियों की मनमानी और लापरवाही का ही परिणाम है कि दो साल में चार सीएमएचओ बदले जा चुके हैं। सबसे ज्यादा पीडि़त हुए डॉ. बी.एल. फानन। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने उन्हें लापरवाही के आरोप में एपीओ हटाया। दुबारा लगाया तो कांग्रेसियों ने जीना मुहाल कर दिया। वे आए दिन उनके चैंबर में हंगामा करते थे।
बहरहाल, अब सबकी नजर इस पर है कि इस हॉट सीट पर कौन बैठता है। यूं दोवदार तो आरसीएएचओ डॉ. मधु विजयवर्गीय, नागौर सीएमएचओ डॉ. अखिलेश कुमार माथुर व डिप्टी सीएमएचओ डॉ. लाल थदानी को माना जा रहा है, लेकिन सबसे तगड़ी दावेदारी डॉ. लाल थदानी की मानी जा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि वे राजनीति में सिद्धहस्त हैं और वे ही चिकित्सा महकमे व जिला परिषद के बीच झूल रही इस सीट को संभाल सकते हैं। देखते हैं अब कौन इस सीट का स्वाद चखता है।