बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

मामूली लापरवाही बनी लाठी-भाटा जंग का सबब


अजमेर शहर से सटा और पुष्कर घाटी की तलहटी में बसा छोटा सा गांव नौसर विद्युत प्रशासन की मामूली सी लापरवाही की वजह से लाठी-भाटा जंग का मैदान बन गया।
मामला बहुत गंभीर नहीं था, जितना कि लाठी-भाटा जंग से प्रतीत होता है। असल में नौसर गांव से बिजली की हाइटेंशन लाइन डालने का विरोध कर रहे लोगों ने गत नौ दिसंबर को राजस्थान विद्युत प्रसारण निगम के कर्मचारियों से हाथापाई की और काम रोक दिया था। पुलिस दल की मौजूदगी के कारण दोनों पक्षों में टकराव तो टल गया, लेकिन गुस्साए लोगों ने पथराव कर एक कर्मचारी को जख्मी कर दिया और वाहन के कांच तोड़ दिए। इस पर पुलिसकर्मियों ने लोगों को खदेडऩे के लिए हल्का बल प्रयोग किया था। इस मामले में क्रिश्चियन गंज थाना पुलिस ने विद्युत प्रसारण निगम के अधिकारी की रिपोर्ट पर गांव के लोगों के खिलाफ राजकार्य में बाधा डालने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया था। पुलिस कर्मी नौसर गांव पहुंचे और आरोपी रफीक और मोइन को हिरासत में लेकर जीप में बैठाकर थाने लाने लगे तो बवाल हो गया। नतीजतन सीआई राजेन्द्र सिंह सिसोदिया सहित कई पुलिस कर्मी व ग्रामीण घायल हो गए।

गांव वालों के विरोध की वजह ये थी कि वे नहीं चाहते थे कि गांव के कुछ मकानों के ऊपर से हाई टेंशन लाइन गुजारी जाए। वे इस बारे में विद्युत महकमे के अधिकारियों को बता भी चुके थे, मगर उन्होंने मामले की गंभीरता का अंदाजा नहीं लगाते हुए सुनवाई ही नहीं की। उधर महकमे का कहना है कि रिंग सिस्टम के लिए लाइन डालना जरूरी है। दो साल पहले जब सर्वे किया गया तो उस वक्त वहां मकान नहीं थे। अब कुछ मकान बन गए हैं, मगर लाइन काफी ऊपर से गुजारी जानी है। सवाल उठता है कि जब महकमे को जानकारी में आ चुका था कि अब पूर्व निर्धारित स्थान से ही लाइन डाली जाएगी तो मकान बीच में आएंगे तो उसने दुबारा सर्वे करने अथवा समझाइश करने का रास्ता क्यों नहीं निकाला। महकमे के इंजीनियरों के बयानों से ऐसा लगता है मानो समझाइश अथवा कोई और रास्ता निकालने का समय ही नहीं बचा था और उन्हें तुरंत लाइन डालनी थी, वरना अनर्थ हो जाता। ऐसा प्रतीत होता है कि या तो मौके पर गई टीम के मुखिया ने उच्चाधिकारियों को मामले की ठीक से जानकारी दी ही नहीं और अगर दी तो उच्चाधिकारियों ने इसकी गंभीरता को नहीं समझा और एसी चैंबर में बैठे-बैठे ही आदेश जारी कर दिए। जब मामला आम जनता से जुड़ा हुआ था तो उसे गंभीरता से हैंडल किया जाना चाहिए था, मगर नौसर गांव वासियों के मिजाज को नहीं समझते हुए जबरन लाइन डालने की कार्यवाही की गई। इधर गांव वाले तो जिद पर अड़े ही थे, उधर पुलिस को भी बाय हुक एंड कुक लाइन डलवानी थी। और वही हुआ, जो कि आम तौर पर भीड़ में होता है। सब कुछ अनियोजित। उग्र भीड़ ने पुलिस की मौजूदगी में पथराव कर एक कर्मचारी को घायल कर दिया। जाहिर तौर पर मुकदमा दर्ज हुआ और जैसे ही पुलिस गांव से दो जनों को गिरफ्तार करके ले जाने लगी तो पूरा गांव एकजुट हो गया। फिर जो हुआ वह सब को पता ही है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले में सीआईडी भी विफल रही कि उसे पता ही नहीं लगा कि अगर आरोपियों को इस प्रकार खुले आम गिरफ्तार करके ले जाया जाएगा तो बवाल होगा। क्रिश्चियनगंज थाने का रोल तो कहीं गलत नहीं लगता, मगर वह भी अनुमान नहीं लगा पाया। कुल मिला कर छोटी छोटी सी लापरवाहियों के कारण मामला इतना संगीन हो गया। और जब हुआ तो उस पर राजनीति होना लाजिमी ही है। गांव वालों के वोट लेने वाले पार्षद कमल बैरवा को भी गांव वालों के साथ खड़ा होना पड़ा। कुछ कांग्रेसी भी मौके पर आ गए। अब उन पर भी जिम्मेदारी आ गई है कि मामले को शांत करवाने के जतन करें।