रविवार, 31 मार्च 2013

मैं ब्राह्मण तू जाट भाया, दोनी करांला ठाठ भाया

जिले के ब्राह्नाण मतदाताओं ने राजनीतीक बिसात बिछाना शुरू की 
ajmer map thumbविभिन्न राजनीतिक पार्टियों में फर्श से लेकर अर्श तक परशुराम वंशजों का महत्वपूर्ण रोल रहता है। राज्य के शेखावाटी और मेवाड़ इलाके में तो राजनीति की बारहखड़ी ही पंडित लोग ही रट पाते हैं और बारहखड़ी को भुनाने में जाट भाइयों का साथ मिल जाता है। तभी तो अपने शेखावटी वाले वरिष्ठ पंडित भाभड़ा जी तो सार्वजनिक रूप से कहते हैं:-
राजनीति में नी काट भाया, लेवो लाटो लाट भाया,
मैं ब्राह्नाण तू जाट भाया, दोनीं कराला ठाठ भाया।
परन्तु अपने अजमेर जिले में पंडितों को राजनीति में सिर्फ श्राद्ध तर्पण या पुष्कर पूजन में ही याद किया जाता है। आठ विधानसभा क्षेत्रों में लगभग दो लाख वोटर ब्राह्नाण हैं, परन्तु इनका नेतृत्व तो केकड़ा प्रवृत्ति के लोगों के हाथों में हैं। ऐसे नेता किसी पार्टी में जवान को जिताने के लिये अपनी जाति के ही जवान को हरवा रहे हैं। और तो देहात के मुरझाये हुए फूल में बैठे एक पंडित जी तो अपने पंडित जी का रास्ता काटने दिखावटी मार्बल की खानों का नाप चौप कर रहे हैं। अब इन पंडितों को कौन समझाये यदि अपन लोग आपस में ही खींचतान करेंगे तो जो एक सीट अभी जिले में सांत्वना के रूप में मिली है, उससे भी हाथ धो बैठेंगे। आखिर जिले में दो लाख होने के बाद भी ब्राह्नाणों को दोनों ही प्रमुख दलों द्वारा उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा है।
इस बार ब्राह्नाण समाज ने भीतर ही भीतर शेखावटी वाले वरिष्ठ पंडित भाभड़ा जी का फार्मूला अपनाने का मन बना लिया है और किसान भाइयों के साथ पुष्कर, केकड़ी, मसूदा, किशनगढ़ में गोपनीय बैठकों का दौर शुरू हो गया है। यदि सब कुछ सही रहा तो सभी अनुमानों को धत्ता बता कर जिले से 2 ब्राह्नाण व 3 जाट विधायक आगामी चुनावों में जीत कर जयपुर पहुंच सकते हैं।
-रवि चोपडा

आम आदमी पार्टी में जारी है तू तू मैं मैं

पिछले दिनों इसी कॉलम में एक न्यूज आइटम प्रकाशित हुआ था कि आप में शुरू हुई तू-तू मैं-मैं। इस पर पार्टी में खलबली मची। वह खलबली आज भी जारी है। हाल की पार्टी के एक नेता राजेन्द्र सिंह हीरा का एक समाचार अजमेरनामा पर प्रकाशित हुआ, इस पर जो उत्तर प्रत्युत्तर हुए हैं, उससे जाहिर है कि पार्टी में खींचतान अब भी जारी है, पेश हैं हूबहू प्रतिक्रियाएं:-
23 मार्च 2013 अरविन्द केजरीवाल के अनिश्चितकालीन असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित होने का सुनहरा अवसर मिला। अजमेर कार्यकारिणी का मैं एकलौता सदस्य था जिससे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। इतना हुजूम देखकर मन अभिभूत हो गया। कोई देशभक्ति के गीत गा रहा था, कोई कविता पाठ कर रहा था, कोई ढोलक बजाकर, नाच गाकर अपने उदगारो को व्यक्त कर रहा था। क्यों न हो, आज दिन था भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहीदी का। दिन था राम मनोहर लोहिया के जन्म दिन का। दिन था आम आदमी पार्टी की एक नयी शुरुआत का। वाहेगुरु से मेरी अरदास है की यह शुरुआत अपने अंजाम तक पहुंचे।
जय हिन्द
-राजेन्द्र सिंह हीरा

पार्टी के किन्हीं मुकेश वर्मा ने लिखा कि श्री राजेंद्र जी आम आदमी पार्टी के सदस्य जरुर है, लेकिन आप पार्टी अजमेर कार्यकारिणी से वित्तीय अनियमित्ताओ के कारण निष्काषित कर दिए गए है.! श्री राजेंद्र सिंह हीरा अकेले ऐसे व्यक्ति है जो इस तरह के आरोप में निष्काषित हुए है ! अतः मैं तेजवानी जी से निवेदन करूँगा के आप पहले तथ्य की सत्यता कर कोई न्यूज़ पोस्ट करे.
धन्यवाद् ! i
इस पर किन्हीं मनिंदर ने लिखा कि ts an old saying, that when you try to somthing good, there will be more people to pull you down then to support you. This is evident the statement that Mr. mukesh verma has made.
Its funny to here such statements from someone who himself is not a part of the party. As per him, Mr. Rajendra singh is not the member of AAP. Mr. Verma, do you have any proof of the same? Was it there in the new paper? Beacuse as per constitution, to appoint and dissmiss someone in the party is in the powers of the state committee and not district.
secondly, please watch your own words before doubting and commenting on the senior editor of ajmer like Mr. Tejawani.
फिर किन्ही विकास चरण ने लिखा कि Mr. Manindra according to you, the statement of Mr. varma is funny, but it is true that Mr. Heera is no more in party karyakarini member and for your kind information in AAP, there is no centralized decision is applicable in district committee, and termination of Mr. heera is district committee decision and it is taken by committee on front Mr. Heera and all member of committee are agree for the same.
if you want to know more visit this link
http://aapajmer.org/committee-list.php
this link can show you the list of district committe.
प्रत्युत्तर में मुकेश वर्मा ने लिखा कि यदि सबूत चाहते है तो पार्टी की वेबसाइट पर जाकर आप देख सकते है कि अजमेर कार्यकारिणी में कौन है ! और यदि हीरा जी के पास इस बात का सबूत है कि वो कार्यकारिणी के मेम्बर है तो पार्टी कार्यालय में आकर बताये !
इस तरह हीरा अपने आप को प्रोजेक्ट करके, किसी ऑनलाइन पोर्टल में खुद कि न्यूज़ निकल कर सस्ती लोकप्रियता हासिल करना चाहते है !
इससे यह तो लगता ही है कि कहीं न कहीं कोई गडबड है। मजे की बात देखिए कि राजेन्द्र सिंह हीरा ने इसके बाद एक पोस्ट फिर भेजी है, जो यह साबित करती है कि वे एक गुट का प्रतिनिधित्व तो कर रही हैं। पोस्ट हस प्रकार है:-
"28 मार्च 2013, अरविन्द जी के अन-शन का छठा दिन। सुबह मैं शीशगंज गुरूद्वारे पहुंचा। मत्था टेका और अरविन्द जी की अच्छी सेहत के लिए दुआ मांगी। गुरूद्वारे से बाहर आया तो तय समय पर सुनील आगीवाल जी अपनी टीम के साथ कैब में गुरूद्वारे के सामने पहुंचे। कैब पर देशभक्ति संगीत बज रहा था। कैब के चारों तरफ आम आदमी पार्टी के बैनर लगे हुए थे। टीम भीलवाड़ा, डॉ. राकेश पारीख, झुंझुनू के कार्यकर्ता व मैं निकल पड़े अपनी मंजिल तकिया काले खां व मीर दर्द की झुग्गी झोपड़ियों की तरफ। बस्ती वालों के बिजली के बिल की राशि सुनकर अचम्भा हुआ। उससे भी ज्यादा दुःख हुआ उनकी हालत देखकर। सच, आजादी के 64 सालों के बाद की दिल्ली -- दिल्ली ऐसी है? शाम तक करीब 500 शपथ पत्र भरवाकर हम अरविन्द जी से मिलने सुंदर नगरी गए। शरीर की कमजोरी थी पर हौसला बुलंद। कार्यकर्ताओं से मिलकर उन्हें उत्साह हो आया। भगवान् अरविन्द जी को हिम्मत, हौसला व सेहत का दान देना।
जय हिन्द "

रेलवे भी भागीदार हो सकता है शहर के विकास में


यह जानकर प्रसन्नता होती है कि अब अजमेर के प्रशासनिक अधिकारी व रेलवे के अफसर मिल कर अजमेर के विकास पर ध्यान दे रहे हैं। इस संबंध में मेरे कुछ निजी सुझाव हैं, जिनसे आपको अवगत करा रही हूं :-
1. क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आनासागर के अतिरिक्त पानी और विश्राम स्थलियों पर भरे पानी से हम अजमेर के अन्य स्थानों पर सूखे पड़े कुओं का पुनरोद्धार कर उनमें यह पानी सुशोधित कर स्थानान्तरित कर दें। योजना बनाकर आम आदमी से भी सहयोग लिया जा सकता है। इस पानी से नगर के विभिन्न पार्कों को सिंचित करने के काम में लिया जा सकता है। इस पानी का उपयोग हाईवे पर लगे वृक्षों को सिंचित करने में भी लिया जा सकता है। इसके लिए हाईवे ऑथोरिटी से सहायता लेकर अजमेर के पास एक बड़ी सी टंकी बना दी जाए, जिसे रोड के साथ-साथ पाइपों द्वारा जगह-जगह पार आउट लेट देकर वहां से इन्हेें सिंचित कर दिया जाए।
2. क्या ऐसा संभव नहीं हो सकता कि रेलवे अपनी खाली पड़ी जमीनों, बड़े-बड़े रेलवे आवासों में अतिरिक्त व्यर्थ पड़ी जमीनों से पर्यावरण संतुलन के लिए सघन वृक्षारोपण की अनुमति प्रदान कर दें ताकि प्रथम तो अतिरिक्त पानी का सदुपयोग हो सके, पशु-पक्षियों को आश्रय स्थल मिल सके और भविष्य में अच्छी वर्षा का आह्वान किया जा सके।
3. क्या ऐसा नहीं हो सकता कि अजमेर मुख्य स्टेशन पर आने वाली सभी गाडिय़ों में उतरने एवं बोर्डिंग हेतु आदर्शनगर, दौराई और मदार पर महत्वपूर्ण गाडिय़ों के ठहराव एवं उचित स्थान एवं सुविधा प्रदान कर दी जाए ताकि इन क्षेत्रों से संबंधित यात्रियों को ट्रांसपोर्ट का व्यय और इसमें लगने वाले समय से कुछ निजात मिल सके और स्टेशन रोड पर स्थित मुख्य सड़क पर यातायात का दबाव कम हो सके।
4. अजमेर में वर्ष भर एक दूसरे कारणों से तीर्थ यात्रियों, जायरीनों की आवक बनी रहती है, इनके लिए कुछ निर्धारित स्थानों पर ऐसे शौचालय तैयार कराए जाएं, जिनका मल-मूत्र एक बड़े कुए में संग्रहित कर एक बायोगैस प्लांट संचालन हेतु कार्य में लिया जाए और इस गैस को किसी सार्थक रूप यथा स्ट्रीट लाइटों या सार्वजनिक सुलभ कॉम्पलेक्सों में गर्म पानी की सुविधा के लिए काम में लिया जा सके और इससे निकले कम्पोस्ट को कृषि कार्यों में उपयोग किया जा सके।
ये कुछ प्राथमिक सुझाव हैं। मैं जानती हूं, मुझसे कहीं अधिक बुद्धिमान एवं योग्य व्यक्ति आपके अखबार को पढ़ते है, वह भी जरूर कुछ न कुछ सोचते होंगे, परन्तु आवश्यकता है इसे अमल में लाने की।
-मधुलिका राठौड़, राजभाषा अधिकारी 
अजमेर मंडल उत्तर पश्चिम रेलवे
मो. 9001196003
अजयमेरु टाइम्स से साभार

कांग्रेस से कहीं ज्यादा खींचतान मची है भाजपा दावेदारों में


अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में विपरीत परिस्थितियों में भी चूंकि लगातार दो बार भाजपा की जीत हुई है और राज्य व देश के ताजा राजनीतिक हालात कांग्रेस के प्रतिकूल नजर आते हैं, इस कारण आगामी विधानसभा चुनाव में भी भाजपा में जीत का विश्वास है। और यही वजह है कि कांग्रेस से कहीं ज्यादा भाजपा में टिकट हासिल करने को लेकर खींचतान मचती दिखाई दे रही है।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसमें मुख्य रूप से प्रबल दावेदार यूआईटी के मौजूदा सदर नरेन शहाणी भगत का दावा मजबूत माना जाता है, लेकिन सिंधी समाज के डॉ. लाल थदानी, युवा नेता नरेश राघानी, पार्षद रश्मि हिंगोरानी, रमेश सेनानी, हरीश मोतियानी सहित कुछ और भी दावा करने के मूड में नजर आते हैं। इसी प्रकार गैर सिंधियों में पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता, शहर कांग्रेस के पूर्व जिला उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग व युवा नेता सुकेश कांकरिया दावेदारों की सूची में माने जाते हैं। हालांकि ये दावेदार अभी थोड़ी-बहुत मशक्कत कर रहे हैं, मगर भाजपा दावेदारों की रफ्तार कुछ तेज है। कदाचित इसकी वजह ये है कि भाजपाइयों को विश्वास है कि इस बार सरकार उनकी ही होगी।
भाजपा दावेदारों में स्वाभाविक रूप से सर्वाधिक प्रबल मौजूदा विधायक वासुदेव देवनानी ही हैं और भाजपा में अंतर्विरोध के बावजूद उनका दावा है कि टिकट तो उनकी ही पक्की है। इसके पीछे उनके तर्क भी हैं। वो ये कि पिछले मंत्रित्व काल की तुलना में इस बार विधायक रहते हुए उन्होंने जमीन पर पकड़ पहले से मजबूत कर ली है। वे लगातार पूरे विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त विधानसभा में भी अधिक मुखर हैं। उनके पक्ष में एक बात ये भी मानी जाती है कि विरोध तो पिछली बार भी भाजपा के कुछ नेता कर रहे थे, तब भी उन्होंने जीत कर दिखा दिया। उनका दावा है कि संघ भी उनके साथ है।
भाजपा दावेदारों में सक्रियता के लिहाज से दूसरे नंबर पर स्वामी समूह के सीएमडी कंवलप्रकाश किशनानी माने जाते हैं। देवनानी विरोधी तो उन्हें साथ दे ही रहे हैं, गैर सिंधियों में भी उन्होंने पकड़ बना रखी है। अगर देवनानी के इतर किसी और सिंधी को टिकट देने की नीति बनती है तो उनका नंबर पक्का माना जाता है। इसकी एक वजह ये भी है कि एक दावेदार पूर्व विधायक हरीश झामनानी इस बार रुचि नहीं ले रहे।
बात अगर गैर सिंधी दावेदारों की करें तो उनमें नगर निगम के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत काफी सक्रिय हैं। पिछली बार उनकी टिकट लगभग पक्की हो गई थी, जिसमें तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर का हाथ था। इस बार माथुर उतनी महत्वपूर्ण भूमिका में नहीं हैं। इस बार भाजपा के पूर्व शहर जिलाध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा कुछ ज्यादा की तैयारी में जुटे हैं। उन्होंने सघन जनसंपर्क करना शुरू कर दिया है। उनके समर्थकों का कहना है कि उनका टिकट लगभग पक्का है। जमीनी स्तर पर उन्हें प्रत्याशी बनाए जाने की कितनी मांग है, इसके लिए वे प्रमुख भाजपा कार्यकर्ताओं व अन्य संस्थाओं से अपने पक्ष में हाईकमान के नाम सिफारिशी पत्र भी लिखवा रहे हैं। उनकी इस प्रकार की सक्रियता की सारे भाजपाइयों में काफी चर्चा भी है। कई लोगों ने उन्हें समर्थन देने और टिकट मिलने पर तन-मन-धन से काम करने का वादा किया है, मगर समर्थन पत्र लिख कर देने में झिझक रहे हैं। वो इस कारण कि अगर अन्य दावेदारों को पता लगेगा तो वे नाराज हो जाएंगे। उनका एक सवाल ये भी है कि यदि टिकट पक्का ही है तो फिर समर्थन पत्र लिखवाने का जरूरत क्या है? इस सिलसिले में उनका तर्क ये है कि जब पार्टी स्तर पर भी पर्यवेक्षकों के सामने अपनी राय रखनी होती है तो अधिसंख्य कार्यकर्ता गोपनीयता चाहते हैं, ताकि किसी को पता न लगे कि किसने किसकी पैरवी की है। संभव है कि हेड़ा को हाईकमान के किसी पुख्ता सूत्र ने टिकट दिलवाने का आश्वासन दिया हो, साथ ही जमीन से समर्थन पत्र भिजवाने को कहा हो, इसी कारण वे समर्थन पत्र लिखवाने पर जोर दे रहे हों, ताकि उनका दावा और मजबूत हो जाए। जो कुछ भी हो, मगर उनकी इस सक्रियता से पार्टी में खलबली मची हुई है।
नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर धर्मेश जैन भी यकायक सक्रिय हो गए हैं। हालांकि उनकी तैयारी लोकसभा चुनाव की है, मगर इससे पहले वे विधानसभा में भी कोशिश कर लेना चाहते हैं। श्रीश्याम सत्संग समिति की ओर से सुभाष उद्यान में आयोजित श्रीरामनाम परिक्रमा कार्यक्रम में जैन जिस तरह से विशेष भूमिका अदा कर रहे हैं, उसे देख कर साफ लगता है कि वे अपने आप को प्रोजेक्ट कर रहे हैं।
उधर महर्षि दयानंद सरस्वती विश्व विद्यालय में कॉमर्स विभाग के हैड व डीन प्रो. बी. पी. सारस्वत हालांकि खुले तौर पर दावा नहीं कर रहे, मगर अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र के भाजपा दावेदारों के लिए फेसबुक पर हुए एक सर्वे में 2 हजार 382 में से 849 वोट हासिल कर अव्वल रहने से उनके हौसले भी बुलंद हैं। इस सर्वे में कंवल प्रकाश किशनानी दूसरे व देवनानी तीसरे स्थान पर रहे हैं। भाजपा के अन्य दावेदारों में डॉ. कमला गोखरू, तुलसी सोनी और पार्षद भारती श्रीवास्तव का भी नाम है।

मंगलवार, 26 मार्च 2013

देवनानी ने की कंवल प्रकाश को टिकट की सिफारिश

अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ने आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट की दौड़ में नंबर वन होने के बावजूद दौड़ से अपने आपको अलग करते हुए शहर जिला भाजपा के प्रचार मंत्री कंवल प्रकाश किशनानी को टिकट देने की सिफारिश कर दी है। कानाफूसी है कि उनका हृदय परिवर्तन इस कारण हुआ है कि अजमेर के औंकारसिंह लखावत निष्ट सारे भाजपा नेता उनके खिलाफ हो गए हैं। अव्वल तो वे टिकट लेने नहीं देंगे। गर संघ के दबाव में टिकट लेकर आ भी गए तो जीतने नहीं देंगे। गर जीत गए तो मंत्री नहीं बनने देंगे, क्योंकि सारे अनिता भदेल को ही जिताने व उन्हें ही मंत्री बनाने की पैरवी करने वाले हैं। ऐसे में अपना बुढ़ापा खराब करने की बजाय बेहतर है कि सम्मानजनक तरीके से दौड़ से अपने आप को अलग कर लिया जाए।
ज्ञातव्य है कि ये वही देवनानी हैं, जिन्होंने कभी लंबे अरसे तक अजमेर भाजपा के भीष्म पितामह औंकार सिंह लखावत का अजमेर नगर की सीमा में प्रवेश प्रतिबंधित करवा रखा था। अब जब कि लखावत चारण शैली अपनाते हुए वसुंधरा शरणम गच्छामि हुए हैं, वे फिर से पावर में आ गए हैं और उनका एक सूत्रीय कार्यक्रम है कि येन केन प्रकारेण देवनानी को निपटाया जाए। देवनानी भी खतरे को भांप गए हैं। यही वजह है कि उनका हृदय परिवर्तन हो गया है। टिकट की दौड़ से अलग होने की एवज में वे भाजपा सरकार बनने पर राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का अध्यक्ष बनाने की मांग करेंगे। बुरा न मानो होली है।

बुरा न मानो होली है


लालफीताशाह
उमराव सालोदिया-गाने की फुर्सत, भई वाह
हबीब खान गौरान-ठठेरा से यारी
पी.एस. जाट-फार्मूला नंबर दस
प्रोफेसर पी.एस. वर्मा-कांटों का ताज
डॉ. सुभाष गर्ग-तंवर का भूत
प्रो. रूप सिंह बारेठ-अल्लाह की गाय
किरण सोनी गुप्ता-संभाग का चित्र जाए भाड़ में
वैभव गालरिया-शक्ल ही तो बाबू सी है
अनिल पालीवाल-मुझे क्या पता
गौरव श्रीवास्तव-पूरी चादर ही फटी है जनाब
राजेश मीणा-ठठेरा का ढक्कन
वीरभान अजवानी-मस्त रहो मस्ती में
लोकेश सोनवाल-तुम डाल-डाल मैं पात-पात
अजय सिंह-जल्दबाजी में मुंह जल गया
डॉ. रामदेव सिंह-ढ़ाई घर की चाल
डॉ. राजीव पचार-खूब बचे
हनुमान सिंह भाटी-अजमेरीलाल
हनीफ  मोहम्मद-वक्त वक्त का फेर
के.के. पाठक-कीचड़ में कमल
हेमंत माथुर-मन के जीते जीत है
आशुतोष गुप्ता-दुखियारा जीव
प्रिया भार्गव-जैसी करनी वैसी भरनी
गजेन्द्र सिंह राठौड़-जी हुकुम
सी. आर. मीणा-सारी छकड़ी भूल गए
किशोर कुमार-रास आ गया अजमेर
जगदीश पुरोहित-हेकड़बाज
भंवरलाल-टोटकेबाज
सुनीता डागा-हम चौड़े, गली संकड़ी
मेघना चौधरी-चलो अब हज चलें
जयसिंह राठौड़-सोलह-आठ का पाना
भगवतसिंह राठौड़-जै माता जी की
भंवर सिंह नाथावत-इन्हीं रास्तों से जो गुजरा हूं
वनिता श्रीवास्तव-मैने तो आदेश कर दिए
निशु अग्निहोत्री-मगरमच्छ से बैर
सुरेश सिंधी-ना काहू से दोस्ती
के.सी. वर्मा-छुपा रुस्तम
एल. डी. यादव-सूफी
मिरजू राम शर्मा-जरा बचके रहियो
सत्येंद्र कुमार नामा-एंटीक पीस
सुधीर बंसल-नामा का बेनामा
मनोज सेठ-मुफ्त की क्रेडिट
सी.पी. कटारिया-जी शाब
आजम खान-इतिहासकार
प्यारे मोहन त्रिपाठी-यहीं डायरेक्टर बनूंगा
राजेन्द्र गुप्ता-मक्खबाज
मुकुल मिश्रा-जय-जय शिव शंकर

सफेदपोश
सचिन पायलट-बगावत चालू आहे
डॉ. प्रभा ठाकुर-विज्ञप्तिबाज सांसद
भूपेन्द्र सिंह यादव-पेराशूट से टपका
नसीम अख्तर-कब तक नसीब के सहारे
डॉ. रघु शर्मा-मुंह की बवासीर
सुशील कंवर पलाड़ा-मने कांई ठा
नरेन शहाणी भगत-सिर कढ़ाई में
कमल बाकोलिया-दिन ढ़ले हम चले
ब्रह्मदेव कुमावत-टाइम पास
औंकारसिंह लखावत-जय-जय वसुंधरा
वासुदेव देवनानी-अभिमन्यु
अनिता भदेल-किस्मत की सिंकदर
महेन्द्र सिंह गुर्जर-पुरखों की कमाई
रामचन्द्र चौधरी-चवन्नी यूं ही चलती रहेगी
रासा सिंह रावत-मुझे तो टिकट चाहिए
प्रो. सांवरलाल जाट-अपना खूंटा पक्का है
सरिता गैना-तैयारी पुष्कर से
जसराज जयपाल-दफ्तरदाखिल
डॉ. श्रीगोपाल बाहेती-इस बार तैयारी पूरी है
भंवर सिंह पलाड़ा-बेताज बादशाह
डॉ. के. सी. चौधरी-मेंढ़क फिर टर्राएगा
सत्यकिशोर सक्सैना-जाने कहां गए वो दिन
महेन्द्र सिंह रलावता-दिग्गी राजा के भरोसे
अजीत सिंह राठौड़-तीन लोक से मथुरा न्यारी
प्रो. बी. पी. सारस्वत-गुलगुले से परहेज
नरेश सत्यावना-जो हम से टकराएगा
इंसाफ अली-इंतजाम अली
धर्मेश जैन-भली करेंगे राम
धर्मेन्द्र गहलोत-इधर कुआं उधर खाई
डॉ. प्रियशील हाड़ा-एक मौका और दो
सोमरत्न आर्य-हरफनमौला
नवलराय बच्चानी-खंडहर
ललित भाटी-पायलट साहब ही जय
बाबूलाल सिंगारिया-छुपा रुस्तम
हाजी कयूम खान-कछुआ चाल
सुरेन्द्र सिंह शेखावत-दोनों कमलों से उम्मीद
डॉ. राजकुमार जयपाल-नारी विशेषज्ञ
श्रीकिशन सोनगरा-लखावत का डंसा..
पुखराज पहाडिय़ा-हाशिये पर
पूर्णाशंकर दशोरा-अपनी तो जैसे तैसे
शिवशंकर हेडा-मेरा टिकट तो पक्का है
राजेश टंडन-नाम के अध्यक्ष
प्रमिला कौशिक-भाटी जी की हेड-टेल
सतीश बंसल-जुगाड़ बैठ ही गया
कैलाश कच्छावा-अपनी तो अनिता जी
हरीश झामनानी-लहर के भरोसे
कंवल प्रकाश किशनानी-देवनानी हाय-हाय
अरविंद शर्मा गिरधर-चिरांध
सरोज जाटव-कभी हम भी थे
सबा खान-केमरे पर नजर
कुलदीप कपूर-राजनीति का ठठेरा
अरविन्द यादव-नए आका की शरण में
डॉ. सुरेश गर्ग-कालीदास
तुलसी सोनी-न इधर के न उधर के
प्रताप यादव-एक बार टिकट दे दे बाबा
प्रकाश गदिया-बाबा का पगल्या
महेश ओझा-खूंटी पर
मोहन लाल शर्मा-धरती पकड़
संपत सांखला-भदेल का पिछलग्गू
भारती श्रीवास्तव-मैं भी दावेदार हूं
वनिता जैमन-अभी तो मैं जवान हूं
जयंती तिवारी-छाप का क्या करूं?
कमला गोखरू-मसूदा के दौरे
नीरज जैन-राजनीतिक आतंकवादी
हरिश मोतियानी-धरने से क्या होगा
दीपक हासानी-माल भी गया माजना भी
देवेन्द्र सिंह शेखावत-बुरा फंसा अध्यक्ष बन कर
विजय नागौरा-भगत का ठगत
कैलाश झालीवाल-अभी तो मैं जवान हूं
नौरत गूजर-पंगेबाज
सुनिल मोतियानी-चिरांध
ललित गूजर-पायलट साहब जिंदाबाद
महेन्द्र तंवर-फोकट पार्षद
शैलेन्द्र अग्रवाल-सेवादारी
बिपिन बेसिल-पिछलग्गू
जयकिशन पारवानी-वासुदेवाय नम:
सोनम किन्नर-न इधर की न उधर की
शरद गोयल-मीडिया के दम पर
अशोक तेजवानी-फाइल बंद
गुलाम मुस्तफा-उछलकूद थोड़े ही छूटेगी
जे पी शर्मा-यादव साहब जिंदाबाद
नरेश राघानी-रायता तो डोल ही दूंगा
इब्राहिम फखर-खिदमत के दम पर
मुंसिफ अली खान-नया नया मुसलमान
जुल्फिकार चिश्ती-तूफान चिश्ती
अशोक मटाई-भगत का सिरदर्द
सुकेश कांकरिया-मैं भी लाइन में हूं
सत्यनारायण गर्ग-चुगलखोर

छपास स्पेशलिस्ट
डी.बी. चौधरी-रस्सी जल गई मगर
रमेश अग्रवाल-दुकान चल पड़ी
दौलत सिंह-न मैं खाऊं, न...
नरेन्द्र सिंह चौहान-वरिष्ठ चिरकुट
सुरेन्द्र चतुर्वेदी-चढ़ी जवानी बूढ़े नूं
राजेन्द्र शर्मा-अल्लाह की गाय
सतीश शर्मा-उड़ान यहां आ कर ठहरी
एस.पी. मित्तल-भाई साहब जिंदाबाद
गिरधर तेजवानी-अकड़ अमचूर
आर. डी. कुवेरा-मेरे प्लॉट का क्या हुआ
संतोष गुप्ता-शिकायत का मारा
ओम माथुर-जो हम से टकराएगा
राजेन्द्र गुंजल-मुझ से अच्छा कौन
राजेन्द्र हाड़ा-भड़ास डॉट कॉम
हरीश वर्यानी-एक पैर यहां, दूसरा वहां
गोपाल सिंह लबाना-सात पीढ़ी का इंतजाम
ऋषिराज शर्मा-जड़ जिंदा रह गई थी
तिलोक जैन-रुतबे का हथियार
अशोक शर्मा-दुनिया जाए भाड़ में
प्रेम आनंदकर-जिस गांव में रहना..
अजय गुप्ता-दरवेश
सुरेश कासलीवाल-हम चौड़े गली संकड़ी
जगदीश बोड़ा-एक और गुंजल
अमित वाजपेयी-हम से बढ़ कर कौन
निर्मल मिश्रा-दिन ढ़ले हम चले
अरविन्द गर्ग-फफूंद
पंकज यादव-कानून का कीड़ा
संजय माथुर-तेरा पीछा ना छोड़ूंगा
सचिन मुद्गल-मिशन जर्नलिज्म
प्रताप सनकत-गाडी मेरे दम पर
राजेन्द्र गुप्ता-ज्योतिषी
सुरेश लालवानी-वाह रे सिंधी वाह
युगलेश शर्मा-चिकित्सा महकमे की दाई
विक्रम चौधरी-छोड़ दी उछलकूद
रजनीश शर्मा-ओम जी की जै
सुमन शर्मा-वो भी क्या दिन थे
नरेन्द्र भारद्वाज-चुर्रघुस्स
राजेन्द्र याज्ञिक-लापता पंडित
पी. के. श्रीवास्तव-बिन पिये ही ये हाल है
दिलीप मोरवाल-जेएलएन के तार मेरे हाथ
मुकेश खंडेलवाल-नौकरी जिंदाबाद
तीरथदास गोरानी-टे्रजडी किंग
देवेन्द्र सिंह-अब मैं खुश हूं
शिव कुमार जांगीड़-कौन किसके काम आता है
भानुप्रताप गुर्जर-कहां गई चमक
मधुलिका सिंह-एक हसीना
बलजीत सिंह-कौन माथा लगाए
संतोष खाचरियावास-उन्हें लिखना नहीं आता
क्षितिज गौड़-क्या तलाश ली सोने की खान
गिरीश दाधीच-नौकरी पक्की
आरिफ कुरैशी-रास आ गई ख्वाजा नगरी
योगेश सारस्वत-हम में भी है दम
रजनीश रोहिल्ला-किनारा मिल ही गया
रहमान खान-छकड़ी भूल गए
मोईन कादरी-डायरेक्टर
रूपेन्द्र शर्मा-हर मर्ज की दवा
मनोज दाधीच-इंचार्ज तो मैं हूं
अभिजीत दवे-फिर चल पड़ी
सुरेन्द्र जोशी-प्रवासी
जाकिर हुसैन-जुगाड़
मनवीर सिंह-मिशन कश्मीर
राजकुमार वर्मा-हमारे भी दिन थे
राकेश भट्ट-तीर्थराज पुष्कर की जै
प्रियांक शर्मा-दो नाव में सवारी
अनिल माहेश्वरी-हस्तीनापुर से बंधा हूं
गजेन्द्र बोहरा-गुरु घंटाल
बद्रीश घिल्डियाल-जी भाईसाहब
समंदर सिंह-सारे आरटीओ जेब में
एन. के. जैन-ऐसे निकलता है अखबार
विकास छाबड़ा-दुकानदार
नवाब हिदायतुल्ला-असली पत्रकार
संजय अग्रवाल-निशुल्क सेवा
अमर सिंह-तोकू कोई और नहीं, मौकू..
बालकिशन-छुट्टन मियां
तिलक माथुर-चवन्नी अठन्नी में
अखिलेश शाह-ठसका कायम है
सुधीर मित्तल-अब पंगा नहीं लेता
विजय शर्मा-क्या क्या न किया
अनुराग जैन-कोई मुझे खांचे से निकालो
माधवी स्टीफन-छम्मक छल्लो
अंतिमा व्यास-भैया की मेहरबानी से
कौशल जैन-जी भाई साहब का जी भाई साहब
आशु-पूरा बोझ मेरे माथे
एम. अली-भाई के भरोसे नहीं
नरेश शर्मा-अकेला मैं ही काफी हूं
आशुतोष-ना काहू से दोस्ती
याद हुसैन कुरैशी-हम चौड़े गली पतली
मधुसूदन चौहान-डीबी का झंडाबरदार
संतोष सोनी-सेटिंग चालू आहे
रईस खान-ख्वाजा का खादिम
इन्द्र नटराज-इमारत कभी बुलंद थी
महेश नटराज-फोटो सप्लायर
मुकेश परिहार-पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
अशोक बुंदवाल-पिछलग्गू
सत्यनारायण झाला-अब मैं संपादक हूं
दीपक शर्मा-सबको पीछे छोड़ दिया
मोहन कुमावत-चमक कहां खो गई
जय माखीजा-बेटा बाप से भी बढ़ कर
मोहम्मद अली-बहुभाषिया
बालकिशन झा-रंगीला रतन
अनिल-चलती का नाम गाड़ी
नवीन सोनवाल-काम चल रहा है
दिनेश गर्ग-पत्रकारिता के दम पर
नानक भाटिया-मैं पत्रकार हूं

इत्यादि-इत्यादि
अरुणा रॉय-सोनिया की कठपुतली
दरगाह दीवान-शिव सेना की गोदी में
कालीचरण खंडेलवाल-हवा निकल चुकी है
सुनिल दत्त जैन-लार तो टपक रही है
सीताराम गोयल-सबसे बड़ा रुपैया
मनोज मित्तल-अब के नहीं छोड़ेंगे
जगदीश वच्छानी-एनआरआई किंग
धनराज चौधरी-असली खिलाड़ी
रणजीत मलिक-उखड़ आया गढ़ा मुर्दा
किशन गुर्जर-हम भी कभी अध्यक्ष थे
जे. पी. दाधीच-हम से है दुनिया
डॉ. लाल थदानी-देखन में छोटे लगें
कमलेन्द्र झा-सारेगामापा
रासबिहारी गौड़-घर की मुर्गी
रणजीत मलिक-कोलावेरी डी
अनन्त भटनागर-न्यूज तो मैं ही पढूंगा
उमरदान लखावत-लो प्रोफाइल
दशरथ सिंह सकराय-करणी सेनापति
गोपाल गर्ग-मैं शायर तो नहीं
सूर्य प्रकाश गांधी-फोकट पत्रकार
कोसिनोक जैन-डीबी की मेहरबानी से
कीर्ति पाठक-केजरीवाल की पूंछ
प्रमिला सिंह-मौके का इंतजार
प्रकाश जैन पाटनी-खिचड़ी धार्मिक
शंकर बन्ना-कमांडर
लाखन सिंह-जुगाड़
गोपाल बंजारा-पकावें हम, खावें पत्रकार
जयबहादुर माथुर-बच्चा मास्टर
उमेश चौरसिया-मैं भी साहित्यकार हूं
सुनिल बुटानी-नो पॉलिटिक्स प्लीज
वासुदेव माधानी-हेकड़बाज
दिलीप पारीक-लापता
बसंत सेठी-ठठेरा कहां लगता है
प्रभु लौंगानी-टांग ऊंची ही रही
दौलत लौंगानी-दरगाह न्यूज एजेंसी
मोहन चेलानी-लाल सलाम
हरीश हिंगोरानी-हम भी लाइन में हैं
महेन्द्र तीर्थानी-शाहणी की चाबी
हरि चंदनानी-चिरांध
महेश तेजवानी-साईं की मेहर है
राजकुमार लुधानी-ठठेरा का बाप
बलराम हरलानी-मुझे भी नेता बना दो
भगवान कलवानी-हर जगह हाजिर
मनोज आहूजा-कुमावत की पूंछ
तेजू लौंगानी-देवनानी की जय
प्रकाश जेठरा-मोहनलाल सिंधी
बुरा न मानो होली है।

वसुंधरा के कहने पर चुनाव नहीं लड़ेंगे लाला बन्ना

यूं तो अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति और भाजपा के युवा नेता सुरेन्द्र सिंह शेखावत ने पक्का ही कर रखा था कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से हर हालत में चुनाव लड़ेंगे। चाहे भाजपा टिकट दे या नहीं। मगर ताजा जानकारी ये है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कहने पर वे चुनाव लडऩे की जिद छोड़ रहे हैं। बताया जाता है कि उन्हें आश्वासन दिया गया है कि भाजपा की सरकार बनने पर युवा बोर्ड गठित कर उसका अध्यक्ष बना दिया जाएगा। इस समझौते में राज्यसभा सदस्य भूपेन्द्र सिंह यादव ने अहम भूमिका अदा की है, जो शेखावत के लंगोटिया यार हैं। पता चला है कि वसुंधरा ने उन्हें यह समझा कर चुनाव न लडऩे के लिए राजी किया कि अव्वल तो उन्हें टिकट दिया जाना संभव नहीं है। इसकी एक वजह ये है कि राजपूत कोटे से एक टिकट पहले से भंवर सिंह पलाड़ा को देनी पड़ेगी। ऐसे में दूसरी टिकट भी राजपूत को देना संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त नगर निगम चुनाव में मेयर पद के भाजपा प्रत्याशी डॉ. प्रियशील हाड़ा ने भी विरोध का झंडा गाड़ रखा है कि उन्होंंने उनका साथ नहीं दिया था, वरना वे जीत जाते। जीसीए छात्रसंघ के चुनाव में बेटे उमरदार लखावत की हार नहीं भूल पाए प्रदेश उपाध्यक्ष औंकार सिंह लखावत भी गुपचुप तरीके से विरोध कर रहे हैं। वसुंधरा राजे ने समझाया कि अगर वे निर्दलीय चुनाव लड़े तो सतीश बंसल, नानकराम जगतराय इत्यादि की तरह दस हजार के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाएंगे। हां, इतना जरूर है कि उनकी वजह से भाजपा प्रत्याशी धराशायी हो जाएगा। बेहतर यही है कि फिलहाल शांत हो जाएं, सरकार बनने पर उचित इनाम दे दिया जाएगा। बुरा न मानो होली है।

नरेन शहाणी भगत के घर डाला एसीबी ने छापा

आय से अधिक संपत्ति के मामले में एंटी करप्शन ब्यूरो ने नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत के घर पर छापा मारा है। अचानक हुई इस कार्यवाही से भगत सकते में आ गए, वहीं यह खबर जंगल में आग की तरह पूरे शहर में फैलने से सनसनी पसर गई। हालांकि ब्यूरो ने इस कार्यवाही को पूरी तरह से गोपनीय रखा है, मगर सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार भगत के घर बड़ी मात्रा में नकदी मिली है, जिसे गिनने के लिए स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर से नोट गिनने की चार मशीनें लगाई गई हैं। यद्यपि यह कहना अभी मुश्किल है कि नकद मिली राशि कितनी है, मगर समझा जाता है कि यह करीब दस करोड़ रुपए से अधिक होनी चाहिए। यह जांच के बाद ही पता लगेगा कि इतनी बड़ी धन राशि उनके पास कहां से आई। समझा जाता है कि भगत ने यह राशि आगामी विधानसभा चुनाव में खर्च के लिए जमा कर रखी थी। ब्यूरो के सूत्रों ने बताया कि भगत के धुर विरोधी एडवोकेट अशोक मटाई की शिकायत पर यह कार्यवाही की गई है। बुरा न मानो होली है।

ज्ञान सारस्वत होंगे वसुंधरा का तुरप का पत्ता

अजमेर नगर निगम के वार्ड दो के निर्दलीय पार्षद ज्ञान सारस्वत अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र में भी निर्दलीय ही चुनाव लड़ेंगे। जैसे वार्ड चुनाव में तुलसी सोनी को पटखनी दे कर देवनानी को झटका दिया था, वैसे ही विधानसभा चुनाव में खुद देवनानी को ही निपटा देंगे।
असल कहानी ये है कि यूं तो ज्ञान की खुद ही ये इच्छा रही कि वे देवनानी को हराने के लिए निर्दलीय खड़े होंगे, मगर कुछ समझदार मित्रों ने समझाया कि इससे देवनानी तो हार जाएंगे, मगर उन्हें क्या मिलेगा। बात उनके समझ में आई। उन्होंने सोचा कि पिछले तीन साल में भाजपा की ओर से वैसे भी कोई मनुहार न की गई है, ऐसे में बेहतर ये है कि कांग्रेस ज्वाइन कर ली जाए। इसी सिलसिले में उन्होंने हाल ही अजमेर के कांग्रेस सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के हाथों अपनी वेबसाइट और निर्माण कार्यों का शुभारंभ करवाया। जैसे ही वसुंधरा को ये पता लगा, उन्होंने तुरंत एक मैसेंजर भिजवा कर ज्ञान को जयपुर बुलवा लिया। उन्होंने समझाया कि अगर वे कांग्रेस में शामिल हो गए तो उनका भाजपा मानसिकता वाला जनाधार समाप्त हो जाएगा। ऐसे में बेहतर ये है कि फिलहाल ऐसा कोई निर्णय न लें। हां, इतना जरूर है कि जैसे ही भाजपा की सरकार बनेगी, उन्हें कोई बड़ा इनाम दे दिया जाएगा। इसके एवज में एक काम उन्हें करना होगा। वो ये कि उन्हें देवनानी के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा, ताकि वे हार जाएं और सरकार बनने पर उन्हें मंत्री बनाए जाने की मजबूरी समाप्त हो जाए। अर्थात वे देवनानी को टिकट देने में आनाकानी भी नहीं करेंगी और उनका कांटा भी निकाल लेंगी। ज्ञान को यह बात ठीक से समझ में आ गई है। इसके लिए वसुंधरा ने उन्हें चुनाव से दो माह पहले बीस लाख रुपए भिजवाने का विश्वास दिलाया है। बुरा न मानो होली है।

रविवार, 24 मार्च 2013

कोठारी की नियुक्ति से बढा अजमेर का मान

राजस्थान के लोकायुक्त पद पर रिटायर जज सज्जन सिंह कोठारी की नियुक्ति से अजमेर का मान बढा है। जस्टिस कोठारी का जन्म 10 अक्टूबर,1950 को अजमेर में हुआ। उन्होंने 1970 में गवर्नमेंट कॉलेज अजमेर से स्नातक और 1973 में वहीं से एल.एल.बी. किया। ज्ञातव्य है कि हाईकोर्ट के रिटायर जज सज्जन सिंह कोठारी का चयन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अमिताव रॉय की सहमति से हुआ। यह पद जस्टिस जीएल गुप्ता के मई 2012 में सेवानिवृत्ति के बाद से खाली था। हाई कोर्ट ने सरकार को 28 मार्च तक लोकायुक्त नियुक्त करने के आदेश दिए थे। कोठारी 2000 से 2008 तक टोंक, कोटा और राजसमंद में जिला व सत्र न्यायाधीश रहे। 12 मई 2008 से 23 मई 2010 विधि विभाग के प्रमुख सचिव रहे। 24 मई 2010 को राजस्थान हाईकोर्ट में अतिरिक्त जज बने, 9 सितंबर 2011 को उन्हें स्थायी जज बनाया गया। जस्टिस कोठारी 9 अक्टूबर, 2012 को हाईकोर्ट जज के पद से सेवानिवृत्त हुए। जानकारी के अनुसार लोकायुक्त पद पर नियुक्ति के लिए एक पैनल बनाया गया था। अनुसार मुख्यमंत्री की ओर से जो नाम भेजे गए, उनमें अशोक परिहार, सुनील कुमार गर्ग, शिवकुमार शर्मा, सज्जन सिंह कोठारी, और भंवरू खान के नाम थे। उनमें से कोठारी का चयन किया गया, जो कि अजमेर के लिए गौरव की बात है। कोठारी की नियुक्ति पर जिला बार एसोसिएशन ने हर्ष जाहिर किया है। बार अध्यक्ष राजेश टंडन ने कहा कि मूलत: अजमेर के निवासी जस्टिस कोठारी का बार एसोसिएशन से गहरा नाता रहा है। उनकी नियुक्ति अजमेर के लिए गौरव की बात है।

इतना डर क्यों है बोर्ड कर्मचारियों में?

Rajasthan Board 2बताया जा रहा है कि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में वित्तीय सलाहकार नरेंद्र तंवर के एसीबी के शिकंजे में फंसने के कारण हर साल बोर्ड में मनाया जाने वाला होली महोत्सव इस बार नहीं मनाया जा रहा है। अकेले एक अधिकारी के भ्रष्टाचार के मामले में उलझने मात्र की वजह से पूरे बोर्ड कर्मचारियों की हंसी-खुशी का कार्यक्रम रद्द किया जाना वाकई आश्चर्यजनक है। वो इस कारण और भी ज्यादा कि तंवर बोर्ड के स्थाई कर्मचारी नहीं, बल्कि राज्य सरकार के अधिकारी हैं और यहां डेपुटेशन पर नियुक्त हैं। अगर बोर्ड के ही किसी साथी के साथ कोई पारिवारिक अनहोनी हुई होती तो कार्यक्रम रोकना समझ में भी आता, मगर एसीबी के शिकंजे मात्र में आने की वजह से खुशी के मौके पर मातम चौंकाने वाला ही है।
असल में तंवर एक ऐसी महत्वपूर्ण पोस्ट पर रहे, जिसके तार बोर्ड की लगभग हर शाखा से जुड़े हुए हैं। घपला भले ही तंवर ने किया हो, मगर उसका संबंध किसी न किसी रूप में अन्य से भी रहा होगा। भुगतान संबंधी फाइलों के संबंध अन्य विभागों की फाइलों से भी निकल कर आ सकते हैं। पता नहीं कौन सी फाइल के तार तंवर की कारगुजारी से जुड़े नजर आएं। मामला अभी गरमागरम है। एसीबी लगातार नई सूचनाएं मांग रही है। जब तक तंवर के खिलाफ पूरा चालान कोर्ट में पेश न हो जाए, कहा नहीं जा सकता कि जांच का दायरा केवल तंवर तक ही सीमित है या उसका दायरा और बढ़ेगा। ऐसे में कहा नहीं जा सकता कि जांच आगे बढऩे पर कौन-कौन और लपेटे में आ जाएगा। ऐसे में बोर्ड कर्मचारियों में घबराहट होना स्वाभाविक है। भला ऐसे में खुशी मनाने की इच्छा कैसे हो सकती है?
बोर्ड के पुराने कर्मचारियों को ख्याल है कि इससे पहले शायद ही ऐसा कोई मौका रहा हो कि होली का रंगीन कार्यक्रम रोकना पड़ा हो।
यहां आपको बता दें कि बोर्ड में हर साल होली के मौके पर हास्य, व्यंग्य और संगीत से भरा मनोरंजक रंगारंग कार्यक्रम होता आया है, जिसकी गिनती शहर के प्रमुख होली महोत्सवों में होती है। इसमें बोर्ड अध्यक्ष से लेकर अधिकारी और छोटे-छोटे से कर्मचारी भी शिरकत करते हैं। इसकी तैयारी भी कुछ दिन पहले से शुय हो जाती है। सभी में बहुत उत्साह होता है। अफसोस कि अकेले तंवर की करतूत के कारण पूरे बोर्ड परिसर में मातम सा पसरा हुआ है।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 23 मार्च 2013

दो राहे पर खड़े हैं नरेन शहाणी भगत

राजस्थान सरकार के वर्ष 2013-14 के बजट में अजमेर नगर सुधार न्यास में पुष्कर और किशनगढ़ औद्योगिक क्षेत्र समाहित कर अजमेर विकास प्राधिकरण का गठन करने की घोषणा पर जैसे ही अमल की कवायद शुरू हुई है, न्यास सदर नरेन शहाणी भगत दो राहे पर आ गए हैं, जहां उन्हें अपनी आगे की राह तय करनी होगी।
बताया जाता है कि अजमेर विकास प्राधिकरण का गठन जोधपुर विकास प्राधिकरण की तर्ज पर किया जाएगा। अर्थात अजमेर में भी उसका अध्यक्ष जनप्रतिनिधि ही होगा। ऐसे में स्वाभाविक रूप से मौजूदा न्यास सदर भगत को ही अपग्रे्रड कर उसका अध्यक्ष बनाया जा सकता है। ऐसे में उनके लिए धर्म संकट ये होगा कि वे अजमेर उत्तर विधानसभा सीट के लिए टिकट मांगें या नहीं। अगर टिकट मांगते हैं तो उन्हें इस बड़े पद से इस्तीफा देना होगा। टिकट मिल गया तो जीत-हार दोनों की संभावना होगी। और अगर इसी पद पर बने रहते हैं तो वर्षों से विधायक बनने की आस अधूरी ही रह जाएगी। हां, अगर सरकार फिर कांग्रेस की बनी तब जरूर वे एक ऐसे ओहदे का सत्ता सुख भोगेंगे, जिसकी शायद उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। उसमें भी एक रिस्क है। वो यह कि अगर इसी पद पर बने रहे और सरकार भाजपा की आ गई तो उनकी तो छुट्टी हो जाएगी, यानि कि ये भी एक जुआ होगा। तभी तो कहते हैं कि राजनीति एक जुआ ही है, जिसमें कुछ भी हो सकता है और उसके लिए तैयार रहना ही होता है। एक बात और भी हो सकती है। वो यह कि प्राधिकरण का अध्यक्ष बना दिए जाने के बाद संभव है कांग्रेस हाईकमान उन्हें टिकट देने से इंकार कर सकती है। यह कह कर कि पार्टी की सेवा के बदले में उन्हें प्राधिकरण का अध्यक्ष बना दिया गया है। इनाम बार-बार थोड़े ही दिया जाएगा। देखते हैं होता है क्या?
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 19 मार्च 2013

यह कैसा सर्वधर्म समभाव बो गए तोगडिय़ा?


तीर्थराज पुष्कर, दरगाह ख्वाजा साहब, ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र नारेली, अनेक गिरिजाघर, गुरुद्वारों और सिंधी दरबारों को अपने आंचल में समेटे सांप्रदायिक सौहार्द्र की नगरी अजमेर में 35 अरब श्रीराम नाम महामंत्र परिक्रमा के नौ दिवसीय आयोजन को जो अपार सफलता मिली, उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। आयोजकों की सोच सलाम के काबिल है कि उन्होंने इस आध्यात्मिक नगरी में आत्मिक सुकून का ऐसा ऐतिहासिक व भव्य काम किया। समाज के हर धर्मावलंबी ने, हर तबके ने, हर वर्ग ने, सभी राजनीतिक दलों के हर प्रमुख नेता ने इसमें शिरकत की। यहां तक कि दरगाह ख्वाजा साहब के खादिमों तक ने परिक्रमा कर अपनी विशाल हृदयता का परिचय दिया। यही वास्तविक सर्वधर्म समभाव है। इस लिहाज से देखा जाए तो आयोजन समिति के अग्रणी सदस्य पूर्व न्यास सदर धर्मेश जैन के इस बयान में वाकई दम है कि अजमेर वासियों के सुख, शांति और समृद्धि तथा सर्वधर्म समभाव के लिए आयोजित कार्यक्रम का भविष्य में निश्चित ही लाभ मिलेगा। साथ ही भविष्य में निश्चित ही विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।
मगर...... मगर आयोजन के आखिरी दिन विहिप के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण भाई तोगडिय़ा ने अपने स्वभाव के मुताबिक जो जहर उगला, उसने सर्वधर्म समभाव में यकीन रखने वालों के जुबान का स्वाद कसैला कर दिया। ये वही तोगडिय़ा हैं, जो तकरीबन दस साल पहले 13 अप्रैल 2003 को इसी सुभाष उद्यान में आयोजित धर्मसभा में त्रिशूल दीक्षा के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देश पर गेगल थाना क्षेत्र में गिरफ्तार कर लिए गए थे। जिसका परिणाम ये निकला कि पूरे राजस्थान में सांप्रदायिकता की आग भड़काने की मंशा की भ्रूण हत्या हो गई थी। हालांकि इस बार उनका एजेंडा वैसा नहीं था, मगर उनका पूरा भाषण खुद उनकी मंशा का इजहार कर रहा था। यह गनीमत ही है कि अजमेर वाकई सांप्रदायिक सौहाद्र्र की नगरी है, वरना उन्होंने तो पूर्ण रूप से आध्यात्कि व धार्मिक आयोजन में अपनी ओर से अपना रंग भरने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या यह आयोजन समिति की सोची समझी रणनीति थी, या फिर तोगडिय़ा को बुलाने से पहले इस पर विचार ही नहीं किया गया कि वे आयोजन से उत्पन्न आध्यात्कि शांति व सौहाद्र्र पर पानी फेरने की कोशिश कर जाएंगे? अगर तोगडिय़ा जैसे कट्टरपंथी नेता को बुलाना एक रणनीति का हिस्सा था तो जाहिर है इसका ताना-बाना बुनने वाले तो बेहद प्रसन्न होंगे, मगर जो धर्मप्रेमी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम व पवन पुत्र हनुमान का आशीर्वाद लेने मात्र के मकसद से शामिल हुए होंगे, उन्हें तो अटपटा लगा ही होगा। धर्म विशेष की भावना से ऊपर उठ कर सोचने वालों को नहीं सुहाया होगा। विशेष रूप से अंजुमन के जो पदाधिकारी इसमें खुले हृदय से शामिल हुए, उनको अपनी जमात में जवाब देना भारी पड़ रहा होगा। अगर आयोजन पर चार चांद लगाने ही थे, कार्यक्रम को चरमोत्कर्ष पर ले जाना ही था, तो किसी बड़े आध्यात्कि संत को बुलवाते, जिनका आशीर्वाद लेकर यहां की जनता कृत्कृत्य होती। चुनावी साल में एक एजेंडे विशेष के लिए काम करने वाले घोर धार्मिक नेता को बुलवाने पर एक विशेष किस्म की गंध आ रही है। कोई इसे माने या नहीं, मगर सच यही है।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 17 मार्च 2013

ज्ञान सारस्वत : ऊंट किस करवट बैठेगा?


ज्ञान सारस्वत
ज्ञान सारस्वत
संघ व भाजपा पृष्ठभूमि के निर्दलीय पार्षद ज्ञान सारस्वत ने वार्ड दो के विकास कार्यों का शुभारंभ व वेब साइट का उद्घाटन अजमेर के कांग्रेसी सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के हाथों से करवा कर राजनीतिक पंडितों को इसका फलित निकालने में उलझा दिया है। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि उनका अगला कदम क्या होगा? अर्थात ऊंट किस करवट बैठेगा? उनके इस चौंकाने वाले कृत्य से आखिरकार मुख्य धारा में आ कर भाजपा में शामिल होने की उम्मीद पाले भाजपा नेताओं को जहां झटका लगा है, वहीं कांग्रेसी अपने लिए शुभ संकेत मान रहे हैं। रहा सवाल ज्ञान सारस्वत का तो वे इस सारी माथापच्ची के बीच निरपेक्ष रह कर अपने वार्ड के विकास में ही जुटे हुए हैं।
हालांकि ज्ञान चूंकि अभी निर्दलीय हैं और भाजपा का उन पर कोई जोर नहीं है, इस कारण स्वतंत्र हैं, मगर लोग यह समझ ही नहीं पा रहे कि मूलत: भाजपाई होने के बाद भी ज्ञान सारस्वत ने आखिर क्या सोच कर शिक्षा राज्यमंत्री नसीम अख्तर इंसाफ, मेयर कमल बाकोलिया, यूआईटी अध्यक्ष नरेन शाहनी भगत, शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेंद्र सिंह रलावता आदि की मौजूदगी में पायलट के हाथों शुभारंभ करवाया? जिस भाजपाई जनाधार पर वे खड़े हैं, उस पर इसका क्या असर होगा? सिक्के का दूसरा पहलु ये भी है कि इस कार्यक्रम में जिस प्रकार जनसमूह उमड़ा, वह इस बात का संकेत है कि वहां की जनता को केवल ज्ञान सारस्वत से मतलब है, जो कि दिन-रात विकास कार्यों में जुटे हैं, इससे नहीं कि वे कैसा राजनीतिक कदम उठा रहे हैं। उन्हें यकीन है कि ज्ञान जो कुछ कर रहे हैं, उनके भले के लिए ही कर रहे होंगे।
एक बात और। ताली दोनों हाथों से बजी। पायलट ने भी ज्ञान सारस्वत की जम कर तारीफ की। एक केन्द्रीय मंत्री का भाजपा के बागी निर्दलीय पार्षद के बुलावे को स्वीकार करना और साथ ही पीठ थपथपाना सामान्य बाद नहीं है। शायद इस उम्मीद में कि कभी उन्हें कांग्रेस में लाया जा सकेगा। कुल मिला कर ज्ञान सारस्वत ने एक ऐसी गुत्थी को जन्म दिया है, जो कि आगामी विधानसभा चुनाव में जा कर ही खुलेगी, जब वार्ड के लोग ज्ञान सारस्वत का मुंह ताकेंगे कि वे क्या फरमान जारी करते हैं? किसको वोट देने की अपील करते हैं? और वहीं से शुरू होगी ज्ञान सारस्वत के नए केरियर की शुरुआत।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 16 मार्च 2013

धर्मेश जैन का छिपा एजेंडा क्या है?


Dharmesh Jain
श्रीश्याम सत्संग समिति की ओर से सुभाष उद्यान में आयोजित श्रीरामनाम परिक्रमा कार्यक्रम में नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर धर्मेश जैन जिस तरह से विशेष भूमिका अदा की, उसे देख कर राजनीति के जानकार उनके छिपे एजेंडे को सूंघने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा इसलिए कि वे हैं तो जैन समाज के, जो कि सनातन अथवा हिंदू धर्म से अलग धर्म का पालन करने वाला है, मगर सनातन धर्म से जुड़े समूह के इतने विशाल आयोजन में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। शहर को शायद ही कोई ऐसा नेता हो, जिसे उन्होंने इस आयोजन में बुलवा कर आरती करने का मौका न दिया हो। ख्वाजा साहब की दरगाह के प्रमुख खादिमों ने भी सांप्रदायिक सौहार्द्र का परिचय देते हुए इसमें शिरकत की। इतना ही नहीं कार्यक्रम की विशालता का अंदाजा इस बात से भी लगता है कि ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के दीवान सैयद जेनुअल आबेदीन का अभिनंदन करने अजमेर आए शिवसेना के सांसद अनंत गीते, संजय राउत तथा अनिल देसाई ने भी इस कार्यक्रम में शिरकत करना मुनासिब समझा। उनका स्वागत करने वालों में जैन की ही पुत्र विवेक जैन आगे थे। इसी प्रकार विहिप नेता प्रवीण भाई तोगडिय़ा का आगमन भी विशेष अर्थ रखता है।
हालांकि यह सही है कि भले ही जैन धर्म हिंदू धर्म से अलग है, मगर वैश्य समुदाय का हिस्सा होने और जैनियों के सामान्यत: भाजपा मानसिकता के होने के कारण जैनियों की नजदीकी सनातन धर्मियों से रहती ही है। जहां तक जैन का सवाल है वे भाजपा संगठन में अहम भूमिका में रहे हैं और पिछले भाजपा कार्यकाल में न्यास सदर भी रह चुके हैं, इस कारण उनकी हिंदूवादी संगठनों से स्वाभाविक करीबी है। इस नाते हिंदू धर्म के आयोजनों में भी उनकी विशेष मौजूदगी रहती है। हालांकि जैन स्वभाव से धार्मिक हैं और समाज के धार्मिक कार्यों में भी अग्रणी भूमिका में रहते हैं, इस कारण चौंकने जैसा कुछ नहीं है, मगर सनातन धर्मावलंबियों के इतने विशाल आयोजन में उनकी अहम भूमिका में होना तनिक चौंकाने वाला प्रतीत होता है। जैन धर्म से होने के कारण यूं भले ही वे हिंदुओं की तरह हनुमान जी को न मानते हों, मगर उन्होंने अपने संस्थान की ओर से हनुमान चालीसा बड़े छपवा कर उनका वितरण भी किया है।
भले ही जैन का इस आयोजन में अग्रणी भूमिका में रहने के पीछे कोई खास मकसद न हो और वे विशुद्ध धार्मिक व सामाजिक भाव से जुड़े हों, मगर चुनावी मौसम में इस प्रकार की गतिविधियों को स्वाभाविक रूप से उसी की रोशनी में देखा जाता है। भले ही जैन आयोजन की सफलता को राजनीति में भुनाने की अपनी ओर से कोई कोशिश न करें, मगर यह स्वयंसिद्ध तथ्य है कि इस आयोजन से उनके कद में इजाफा हुआ है और उन्हें इसका राजनीति पृष्ठभूमि में लाभ जरूर मिलेगा। कहने की आवश्यकता नहीं है कि उनकी नजर आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की सीट सहित अजमेर लोकसभा सीट पर है।
-तेजवानी गिरधर

शक की सुई पूर्व बोर्ड अध्यक्ष डॉ. गर्ग पर भी?

subhash gargराजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के वित्तीय सलाहकार नरेंद्र कुमार तंवर के एसीबी के शिकंजे में फंसने के साथ ही बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सुभाष गर्ग पर भी शक की सुई घूमती नजर आ रही है। कयास ये लगाया जा रहा है कि तंवर के पास मिली करोड़ों की संपत्ति का कहीं न कहीं डॉ. गर्ग से भी कनैक्शन है। इस प्रकरण को शिक्षा मंत्री बृजकिशोर शर्मा के उस बयान की रोशनी में भी देखा जा रहा है कि जब डॉ. गर्ग का कार्यकाल समाप्त हो रहा था तो उन्होंने बाकायदा सार्वजनिक रूप से कहा था कि वे तो ये चाहते हैं कि डॉ. गर्ग को ही अध्यक्ष बनाया जाए, यह दीगर बात है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनकी सिफारिश को नजरअंदाज कर दिया।
हालांकि यह जांच में ही सामने आ पाएगा कि तंवर के पासा मिली संपत्ति का डॉ. गर्ग से कोई संबंध है या नहीं, मगर राजस्थान शिक्षक संघ (राधाकृष्णन) के प्रदेश अध्यक्ष विजय सोनी ने तो बाकायदा बयान जारी कर डॉ. गर्ग के कार्यकाल की जांच कराने की मांग कर डाली है। सोनी का आरोप है कि वित्तीय सलाहकार नरेंद्र तंवर ने डॉ. गर्ग की मिलीभगत से ही भ्रष्टाचार किया है। उन्होंने कहा कि एक ओर प्रायोगिक परीक्षाओं की राशि, उडनदस्तों की राशि व अन्य भुगतान अटके हैं, दूसरी ओर वित्तीय सलाहकार के कृपा पात्रों को करोड़ों रुपए के भुगतान इनके कार्यकाल में किए गए। ज्ञातव्य है कि सोनी उस वक्त भी आरोप लगाते रहते थे, जब कि डॉ. गर्ग पद पर थे, मगर उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह दब जाती थी।
ज्ञातव्य है कि भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी भी पूर्व में बोर्ड अध्यक्ष डॉ. गर्ग पर आरोप लगाते रहे हैं। उन्होंने निर्माण कार्यों व ठेकों में गड़बड़ी सहित आरटेट परीक्षा 2011 के दौरान बोर्ड को मिली बेरोजगार युवकों की फीस का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था और राज्य सरकार से डॉ. गर्ग के कार्यकाल की निष्पक्ष आयोग से जांच करवाने सहित उन्हें बर्खास्त करने की मांग की थी।
इस प्रकरण में अहम सवाल ये उठ रहा है कि डॉ. गर्ग के कार्यकाल में ही एफए नरेंद्र तंवर का तबादला अन्यत्र हो गया था, लेकिन इस तबादले को रद्द करवा कर उन्हें यहीं पदस्थापित किया गया। जानकारी ये भी मिली है कि एसीबी को तंवर के कक्ष में तलाशी के दैरान बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष का एक सिफारिशी पत्र भी मिला है, जिसमें तंवर को काम का आदमी बताते हुए तबादला निरस्त करने की बात लिखी है। इसी सिलसिले में अहम बात ये भी है कि बोर्ड के इतिहास में पहली बार एक ही अध्यक्ष और एफए के कार्यकाल में रिकार्ड निर्माण कार्य हुए। बोर्ड में बीते तीन साल में 40 करोड़ रुपए से अधिक के निर्माण कार्य हुए हैं। सवाल ये भी कि जिस आरएसआरडीसी के काम को पूर्व वित्तीय सलाहकार ने घटिया करार दे दिया था, उसी से बोर्ड ने सभी निर्माण कार्य कराए। बताया जाता है कि डॉ. सुभाष गर्ग की गुड बुक में शामिल तंवर की देखरेख में ही में निर्माण कार्य से लेकर रद्दी के ठेके, परीक्षा सामग्री के परिवहन संबंधी ठेके, पुस्तक प्रकाशन के लिए विभिन्न फर्मों से संबंधित टेंडर और इन छपी पुस्तकों के प्रदेश भर में पहुंचाने के टेंडर आदि हुए। बोर्ड ने 1970 से 2000 तक के विद्यार्थिर्यों के परीक्षा दस्तावेज के डिजिटलाइजेशन के लिए भी बड़ा ठेका किया। बोर्ड प्रबंधन ने गोपनीयता के नाम पर आज तक इस ठेके की राशि सार्वजनिक नहीं की है। बोर्ड ने दो बार आरटेट का आयोजन किया है। इसका अधिकतर कार्य भी एफए के हाथ में रहा है।
ज्ञातव्य है कि तंवर के अजमेर के पंचशील स्थित बंगले से बोर्ड की 54 करोड़ 70 लाख रुपए की एफडीआर मिली है। बोर्ड के निकट स्थित आईसीआईसीआई बैंक के लॉकर से करीब 3.50 लाख रुपए के सोने के सिक्के और नकदी बरामद हुई। जांच में आरोपी की संपति का आंकड़ा करीब 11 करोड़ पहुंच चुका है।
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 14 मार्च 2013

इब्राहिम फखर ने खुद ही किया अपने आपको दावेदारी से अलग

सैयद इब्राहिम फखर

पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम जमात से भाजपा के प्रबल दावेदार सैयद इब्राहिम फखर ने खुद अपने आपको दोवदारी से अलग कर लिया है। तीर्थराज पुष्कर में भाजपा के तीन मुस्लिम दावेदार शीर्षक से इसी कॉलम में प्रकाशित आइटम पर प्रतिक्रिया करते हुए जनाब फखर ने कहा है कि न वे पहले कभी दावेदार थे और न ही आज हैं। साथ यकीन दिलाया है कि वे कभी खुद टिकट मांगने नहीं जाएंगे। इतना ही नहीं उन्होंने दरियादिली दिखाते हुए यह तक लिखा है कि दूसरे जो लोग कोशिश कर रहे हैं तो उन्हें भी उनकी वजह से हतोत्साहित नहीं होना चाहिए। वे पार्टी के साथ बंधे हैं और पार्टी जो निर्णय करेगी, उसका पालन करेंगे।
जनाब फखर साहब इतनी साफगोई के लिए धन्यवाद के पात्र हैं। राजनीति में कभी कोई इस तरह से अपने आपको दावेदारी से अलग नहीं करता, जिसे कि अन्य लोग ही दावेदार मान रहे हों। वैसे अपना मानना है कि जहां कई लोग इस कोशिश में रहते हैं कि उनको मीडिया में दावेदार माना जाए तो कई ऐसे भी होते हैं जो दावेदार तो होते हैं, मगर उसे जताना नहीं चाहते क्योंकि पहले से दावेदारी उजागर हो जाने पर कारसेवा का खतरा रहता है। जहां तक फखर साहब का सवाल है, हालांकि वे खुद की ओर से दावेदारी नहीं करने की बात कह जरूर रहे हैं, जो कि सही ही मानी जानी चाहिए, मगर अपनी जानकारी यही है कि वे पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में दावेदारी के लिए ही सक्रिय रहे हैं और डिजर्स भी करते हैं। खैर, जहां तक फखर साहब ने टिकट की कोशिश करने वाले अन्य को हतोत्साहित न होने का संदेश दिया है, अपना मानना है कि यह आईएनजी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में ग्रुप सेल्स मैनेजर के रूप में काम कर रहे मुंसिफ अली के लिए सुखद हो सकता है, जो कि जमीन पर पूरी तैयारी कर रहे हैं।
जनाब इब्राहिम फखर ने अपनी प्रतिक्रिया कितनी संजीदगी और कूल मांइड से दी है, जरा आप भी पढ़ लीजिए:-
tejwani ji,
shukriya app ka ki app bande ko is layak mante ho lekin bhai sahib na me pehle ticket ka davedar tha aur na hi ajj hu ,mujhe party ne jimmedari di jise me imandari se pura karna chahta hu vishwas rakhiye me kabhi swaym ticket mangne nahi jaunga aur meri vajag se dusre log jo koshish kar rahe ho unhe bhi hatossahit nahi hona chahiye me puri tarah se bjp ke sath hu aur voh jo bhi nirnay karegi akhshartaya uski palna karunga phir party chahe jo nirnay kare ,ek bar phir app ka dhanyewad tejwani ji lekin mujhe is race se door hi rakhe to meharbani hogi .
अब आप समझ सकते हैं कि उन्होंने न्यूज आइटम को कितने सकारात्मक रूप से लिया है, जो कि एक सुलझे हुए राजनीतिज्ञ की निशानी है।
-तेजवानी गिरधर

बार-बार निशाने पर आ जाते हैं बार अध्यक्ष टंडन


अजमेर बार के अध्यक्ष राजेश टंडन का पिछला अध्यक्षीय काल भले ही अपेक्षाकृत चमकदार रहा हो, मगर इस बार तो वे बार-बार अपने ही वकील साथियों के निशाने पर आ रहे हैं। और दिलचस्प बात ये है कि जिस बार अध्यक्ष पद की बदौलत उन्होंने कांग्रेस में अहमियत पाई थी, उसी पार्टी का नेता होने के कारण ही उन्हें बार की नेतागिरी में दिक्कत आ जाती है।
हाल ही जब उन्होंने सरकार को सद्बुद्धि देने के लिए ख्वाजा साहब की दरगाह की जियारत करने का निर्णय किया तो कुछ वकीलों ने विरोध कर दिया। वकील संजीव टंडन, राजेश ईनाणी, प्रदीप कुमार, जितेंद्र खेतावत व विनोद शर्मा समेत अन्य वकीलों ने इस संबंध में टंडन को पत्र लिख कर जियारत को स्वार्थ से प्रेरित बताया और यात्रा के मुद्दे पर साधारण सभा बुलाने की मांग की। कुछ ऐसा ही विरोध पाक प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ की यात्रा का विरोध करने के दौरान भी हुआ, जब कुछ कांग्रेसी विचारधारा के वकीलों ने इस पर ऐतराज जताया। असल में दिक्कत ये है कि बार अध्यक्ष होने के साथ-साथ वे राजनीतिक दल के नेता भी हैं। अगर कभी बार अध्यक्ष होने के नाते निष्पक्ष हो कर वकीलों की पैरवी करते हैं तो कांग्रेस से बुरे बन जाते हैं और अपनी कांग्रेसी छवि बचाने की कोशिश करते हैं तो अन्य विचारधारा के वकीलों के निशाने पर आ जाते हैं।
आपको याद होगा कि एक बार जब शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता ने वकीलों के बारे में कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी की तो टंडन को बार अध्यक्ष होने के नाते उनसे भिडऩा पड़ा, जिसका नतीजा ये हुआ कि उनकी फोकट में ही रलावता से टशल हो गई। रलावता के शागिर्दों ने टंडन को कड़ा जवाब देने की कोशिश की। इसी प्रकार बार अध्यक्ष के नाते शहर के हित में उर्स की बदइंतजामियों पर उग्र रुख अपनाया तो कांग्रेसियों ने उनके कपड़े फाडऩा शुरू कर दिया। उन्होंने एक दिन का उपवास किया तो उस पर प्रदेश कांग्रेस के महासचिव सुशील शर्मा ने यह कह विवाद किया कि टंडन को व्यक्तिगत रूप से आंदोलन करने का अधिकार है, लेकिन पार्टी के पूर्व सचिव की हैसियत से इस तरह के आंदोलन का अधिकार नहीं है। शर्मा ने टंडन के इस उपवास को सस्ती लोकप्रियता करार दिया। कुल मिला कर टंडन पर कांग्रेसी होने के बावजूद कांग्रेस सरकार को घेरने का आरोप झेलना पड़ा।
वैसे भी उनका मौजूदा कार्यकाल कुछ कमजोर साबित होता जा रहा है। अध्यक्ष भले ही वे हैं, मगर एंटी लॉबी के सचिव उनसे कहीं अधिक पावरफुल प्रतीत होते हैं। पावरफुल न भी हों, तो भी वे उन्हें चैक तो करते ही हैं। इसी के चलते एक बार प्रशासन से समझौता वार्ता करने के बाद विरोध का सामना करना पड़ा। अब वे समझौतावादी रुख रख कर ही अध्यक्ष पद को निभा रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 13 मार्च 2013

तीर्थराज पुष्कर में भाजपा के तीन मुस्लिम दावेदार


salavat khan 2-27.6.12अजमेर। इस बार विधानसभा चुनाव में अजमेर जिले की पुष्कर सीट का टिकट हासिल करने के लिए भाजपा के तीन मुस्लिम दावेदारों में खींचतान मची हुई है। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि पुष्कर विधानसभा क्षेत्र में पिछली बार भाजपा के बैनर तले लड़ रहे युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा की दावेदारी अब भी मजबूत है। विधानसभा क्षेत्र में रावतों की बहुलता के कारण शहर भाजपा अध्यक्ष व पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत भी संभावित दावेदारों की गिनती में आते हैं। इसी प्रकार नगर निगम के उप महापौर सोमरत्न आर्य भी यहां अपनी जमीन तलाश रहे हैं।
चलिए, बात मुस्लिम दावेदारों की करें। यूं तो भाजपा नेता सलावत खां की पिछले चुनाव में भी पुष्कर पर नजर थी, मगर इस बार मुस्लिमों को संघ से जोडऩे के लिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के बैनर तले तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने से यह पक्का हो गया था कि वे दमदार तरीके से टिकट की दावेदारी करने जा रहे हैं। ज्ञातव्य है कि तीर्थराज पुष्कर के होटल न्यू पार्क में आयोजित शिविर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के भूतपूर्व सरसंघ चालक स्वर्गीय कु. सी. सुदर्शन व मंच के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी और देशभर से करीब डेढ़ सौ प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
ibrahim faker 2 29.6.12सलावत खान के अतिरिक्त भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष इब्राहिम फखर भी पुष्कर में काफी सक्रिय हैं। ज्ञातव्य है कि पुष्कर मेले को लेकर प्रशासन की सुस्ती व लापरवाही को मुद्दा बना कर अजमेर जिला भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा व भाजपा पुष्कर मंडल के संयुक्त तत्वावधान में कलेक्ट्रेट पर धरना दिया गया था, जिसके कर्ताधर्ता इब्राहिम फखर थे। इसी प्रकार उन्होंने पुष्कर मेले के लिए पर्याप्त राशि जारी करने संबंधी बयान जारी किया था। जहां तक उनकी दावेदारी में दम का सवाल है, चूंकि वे खादिम हैं और उनकी जमात के वोट वहां नहीं हैं, इस कारण संभव है दावा कमजोर हो जाए। वैसे यह सूचना पुख्ता है कि औंकार सिंह लखावत ने उनकी कोहनी पर गुड़ चिपकाया है और उनके कहने पर ही वे भागदौड़ कर रहे हैं।
मुंसिफ अली
मुंसिफ अली
तीसरे दावेदार हैं, आईएनजी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में ग्रुप सेल्स मैनेजर मुंसिफ अली, जो टिकट की खातिर गांवों में आम लोगों की समस्याओं पर ध्यान दे रहे हैं और जरूरतमंदों की मदद भी कर रहे हैं। यदि ये कहा जाए कि धरातल पर सर्वाधिक सक्रिय वे हैं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। समझा जाता है कि उन्हें भाजपा नेता व पूर्व मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट व यूनुस खान का वरदहस्त हासिल है। उनकी जाति देशवाली के काफी वोट इस क्षेत्र में हैं। इसी कारण उनका दावा कुछ दमदार है, मगर वे अभी जूनियर हैं और ठीक से प्रोजेक्टशन न हो पाने के कारण चर्चा में नहीं हैं।
जहां तक हिंदुओं के तीर्थस्थल पुष्कर से किसी मुस्लिम की दावेदारी का सवाल है, उसकी वजह इस विधानसभा क्षेत्र में मुसलमानों मतदाताओं की पर्याप्त संख्या है। वर्तमान में वहां से कांग्रेस की श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ विधायक हैं और राज्य की शिक्षा राज्य मंत्री हैं। इस सीट से पूर्व में भी पूर्व मंत्री स्वर्गीय रमजान खान विधायक रह चुके हैं। रमजान खान यहां से 1985, 1990 व 1998 में चुनाव जीते थे। 1993 में उन्हें विष्णु मोदी ने और उसके बाद 2003 में डा. श्रीगोपाल बाहेती ने परास्त किया। मोदी से हारने की वजह ये रही कि उनका चुनाव मैनेजमेंट बहुत तगड़ा था। हार जीत का अंतर कुछ अधिक नहीं रहा। मोदी (34,747) ने रमजान खां (31,734) को मात्र 3 हजार 13 मतों से पराजित किया था। डा. बाहेती से रमजान इस कारण हारे कि भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा ने निर्दलीय रूप से मैदान में रह कर तकरीबन तीस हजार वोटों की सेंध मार दी थी। बाहेती (40,833) ने रमजान खां (33,735) को 7 हजार 98 मतों से पराजित किया था, जबकि पलाड़ा ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 29 हजार 630 वोट लिए थे। स्पष्ट है कि रमजान केवल पलाड़ा के मैदान में रहने के कारण हारे थे। यदि पलाड़ा नहीं होते तो रमजान को हराना कत्तई नामुमकिन था। कुल मिला कर यह सीट भाजपा मुस्लिम प्रत्याशी के लिए काफी मुफीद रह सकती है। एक तो उसे मुस्लिमों के पूरे वोट मिलने की उम्मीद होती है, दूसरा भाजपा व हिंदू मानसिकता के वोट भी स्वाभाविक रूप से मिल जाते हैं। इसी गणित के तहत रमजान तीन बार विधायक रहे और दो बार निकटतम प्रतिद्वंद्वी। हालांकि एक फैक्टर ये भी है कि रमजान पुष्कर के लोकप्रिय नेता थे। गांव-गांव ढ़ाणी-ढ़ाणी उनकी जबदस्त पकड़ थी। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसके मुस्लिम प्रत्याशी के लिए यह सीट उपयुक्त नहीं है, फिर भी पिछली बार श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ (42 हजार 881) ने भाजपा प्रत्याशी पलाड़ा (36 हजार 347) को 6 हजार 534 मतों से हरा दिया। वजह ये रही कि भाजपा के बागी श्रवणसिंह रावत 27 हजार 612 वोट खा गए। ज्ञातव्य है कि रावत मतदाताओं की पर्याप्त संख्या होने के आधार पर ही शहर जिला भाजपा अध्यक्ष रासासिंह रावत की रुचि पुष्कर से चुनाव लडऩे में है, मगर दिक्कत ये है कि ब्यावर की सीट रावतों के लिए काफी बेहतर है, तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि जिले में एक साथ दो रावतों को भाजपा टिकट देने का निर्णय करेगी?
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 12 मार्च 2013

बाकोलिया फोड़ रहे हैं देवनानी पर ठीकरा

k bakoliya 9-13.7.12देहली गेट पर व्यावसायिक भवन सीज करने की कार्यवाही हालांकि नगर निगम ही कर रहा है और बाकायदा आदेश भी जारी हो चुके हैं, मगर जैसे ही व्यापारियों ने विरोध जताते हुए कार्यवाही रोकने का दबाव बनाया तो निगम मेयर कमल बाकोलिया ने पल्ला झाड़ते हुए कह दिया कि निगम अपने स्तर पर कोई कार्यवाही नहीं कर रहा। विधानसभा में अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी द्वारा की गई मांग की वजह से ही नोटिस दिए जा रहे हैं। बाकोलिया की मंशा साफ है। एक ओर तो कार्यवाही कर रहे हैं व स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि नियमानुसार कार्यवाही होगी ही और दूसरी ओर इसके लिए जिम्मेदार देवनानी को ठहराना चाहते हैं, ताकि व्यापारियों को गुस्सा निगम की बजाय देवनानी पर फूटे। राजनीतिक लिहाज से भी बाकोलिया की यह सफाई चुतराई भरी है। विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। अगर व्यापारियों की दुकानें सीज होती हैं और इसके लिए मूल रूप से देवनानी को जिम्मेदार ठहराने में कामयाब हो जाते हैं तो स्वाभाविक रूप से व्यापरियों का गुस्सा भाजपा पर निकलेगा।
वैसे एक बात है। बाकोलिया अच्छी तरह से जानते हैं कि दुकानों को सीज करने की कार्यवाही पूरी तरह से नियमानुसार है और उसके लिए दुकानदारों को बाकायदा दो-तीन नोटिस दिए जा चुके हैं, इस कारण कार्यवाही निरस्त तो हो नहीं सकती। निगम सीईओ वनिता श्रीवास्तव ने आदेश ही जारी कर दिए हैं। ऐसे में बाकोलिया केवल व्यापारियों को अपना पक्ष रखने देने के बहाने कार्यवाही को कुछ दिन के लिए टलवा सकते हैं।
सवाल ये उठता है कि बाकोलिया अगर कार्यवाही का ठीकरा देवनानी पर फोडऩा चाहते हैं, तो इसका मतलब ये है कि निगम की बला से तो भले ही अवैध दुकानें बनें, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वो तो देवनानी ने विधानसभा में सवाल उठाया, इस कारण कार्यवाही हो रही है, वरना निगम तो मूक दर्शक बन कर ही देखता रहा। ऐसे में बाकोलिया का पार्षदों को यह सीख देना कितना बेमानी है कि आप ट्रस्टी हैं, मानसून में भवन गिरने की घटना होती रहती है, जिससे कभी दुखद हादसा घटित हो सकता है। व्यापारी छह इंच दीवार पर ही तीन-चार मंजिला भवन बना लेते हैं। शहर के सभी अवैध भवनों को वैध कर देंगे तो काम कैसे चलेगा?
जहां तक देवनानी का सवाल है, उन्होंने जब सवाल लगाया था, तब यह ख्याल नहीं रहा होगा कि दुकानदारों पर कार्यवाही हुई तो ठीकरा उनके ऊपर फूटेगा। राजनीति में ऐसा ही होता है। जनहित का काम करते समय जिनके हितों पर कुठाराघात होता है, वे तो खिलाफ हो ही जाते हों, भले ही वे गलत हों। और जिस जनता के हित की खातिर आवाज उठाई, वह भी अहसान चुकाते हुए साथ खड़ी रहे, कुछ पक्का नहीं। यानि कि नेता दोनों ओर से मारा गया।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 11 मार्च 2013

आश्चर्यजनक रूप से उभरा प्रो. बी पी सारस्वत का नाम


बेशक भाजपा हाईकमान ही तय करेगा कि वह अजमेर उत्तर सीट का टिकट किसे देगी, मगर अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र के भाजपा दावेदारों के लिए फेसबुक के अजमेरनामा पेज पर गत 3 से 9 मार्च तक किए गए सर्वे में यह बात उभर कर आई है कि भाजपा कार्यकर्ता, भाजपा मानसिकता के लोग और आमजन आश्चर्यजनक रूप से महर्षि दयानंद सरस्वती विश्व विद्यालय में कॉमर्स विभाग के हैड व डीन प्रो. बी. पी. सारस्वत को टिकट का प्रबलतम दावेदार मानते हैं। हालांकि उन्होंने अपनी ओर से अभी तक कहीं विधिवत दावेदारी नहीं की है, मगर हमने पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच हो रही चर्चा के आधार पर उन्हें दावेदार माना है। ज्ञातव्य है कि उन्होंने 2 हजार 382 में से सर्वाधिक 849 हासिल कर प्रथम स्थान पाया है। दूसरे स्थान पर रहे शहर जिला भाजपा प्रचार मंत्री कंवल प्रकाश किशनानी ने भी 601 वोट हासिल कर सबको चौंकाया है। तीसरे स्थान पर रहे मौजूदा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी तो स्वाभाविक दावेदार हैं ही, मगर वे 557 वोट हासिल कर पाए। इस प्रकार मुख्य मुकाबला तीन में ही रहा। यूं शहर जिला भाजपा के पूर्व अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा व पूर्व न्यास अध्यक्ष धर्मेश जैन भी प्रतिस्पद्र्धा में अंकित हुए हैं और उन्होंने क्रमश: चौथा व पांचवां स्थान पाया है। अन्य दावेदारों के समर्थकों ने कदाचित इस सर्वे में रुचि ली ही नहीं। विशेष बात ये है कि इस पोल को बीस हजार से भी ज्यादा लोगों ने देखा।
परिणाम एक नजर में
प्रो. बी.पी. सारस्वत-849
धर्मेन्द्र गहलोत-22
धर्मेश जैन-117
हरीश झामनानी-7
डॉ. कमला गोखरू-6
कंवल प्रकाश किशनानी-601
शिवशंकर हेड़ा-173
सुरेन्द्रसिंह शेखावत-45
तुलसी सोनी-5
प्रो. वासुदेव देवनानी-557
बेशक यह भी सही है कि इस प्रकार का सर्वे पढ़े-लिखे और कंप्यूटर फ्रेंडली तबके विशेष की राय जाहिर करता है, मगर उसे ऐसा कह कर नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता कि यह हवाई है। आखिरकार इस सच को कैसे नकारा जा सकता है कि पढ़ा-लिखा तबका ही आमतौर पर समाज की राय का प्रतिनिधित्व करता है और समाज की राय भी बनाता है। वस्तुत: यह एक सेंपल सर्वे है जो शत-प्रतिशत सही न भी हो, मगर लोगों की धारणा और रुझान का कुछ तो इशारा करता ही है।
जहां तक आंकड़ों का सवाल है, उसमें प्रो. सारस्वत सबसे अव्वल रहे हैं, लेकिन फेसबुक पर हुए कमेंट पर नजर डालें तो प्रो. सारस्वत व प्रो. वासुदेव देवनानी के समर्थकों में कांटे की टक्कर रही। अलबत्ता प्रो. सारस्वत के बारे में उम्दा किस्म के कमेंट ज्यादा देखने को मिले, जिनमें यह बताने की कोशिश की गई कि उन्हें क्यों टिकट दिया जाना चाहिए। उनके समर्थकों ने तो अजमेरनामा की पोस्ट पर भी काफी कमेंट किए।
आइये, जरा देखें कि प्रो. सारस्वत के बारे में किसने क्या कहा:-
प्रो. बी.पी. सारस्वत
प्रो. बी.पी. सारस्वत
Sanjana Bhatnagar- kisi bhi kaam ko safal banane k liye mehnat k sath jaruri hai achchi bhawna hona aur khud ek achcha insaan hona isliye Ajmer k ujjawal bhavishay k liye Prof. B.P. Saraswat se behtar shaks koi nahi ho sakta.jo bhi log apne shahar ki bulandiyon ki kamna kabhi ki hai to Prof. Saraswat ji ko apna vote jarur de. aur dekhiye ajmer ki ek nayi tasvee.
Shiv Prasad- Prof Saraswat has the leadership quality with a vision in life to work. He is no doubt has soft corner and helping hand to deprived, poor and backward communities. He always has positive attitude to share his view and work for others. In this perspective, I would definitely vote for Prof Saraswat who has zeal to work for the society.
Manmohan Singh Rathore- change is required, someone with high intellect and good leadership qualities is required, my vote goes to Bhagwati Prasad Saraswat
Veena Hirodai- Prof. Saraswat is having strong leadership ability and team spirit for work. I strongly believe that professor Saraswat is the only choice for ticket from north Ajmer. As he has urge to work for poor and downtrodden people enthusiastically. In the present situation, such type of leader is needed to uplift the society. I once again vote for Prof. Saraswat.
Nandita Verma- Prof. Saraswat is the only choice for Ajmer North.He is dynamic,hardworking and a committed worker of the party and can play a significant role in bringing a positive change in the party’s favour.His leadership and organizational skills are phenomenal.
Aishwarya Anand- Having a good academic background and constantly interacting with the youth makes Prof. B P Saraswat an excellent candidate.
DrHanuman Prasad- Knowledgeable, dedicated and hardworking personality Prof. Saraswat is the right choice specifically for well planned development of the area
Rahul Pareek- I always like KINGMAKERS rather then kings.. & Prof. B.P. Saraswat is real king maker.. Or jab king k bas ka kuch nhi rhta h tb Kingmakers ko aage aana hota h.. So dis tym only .. B.P. Saraswat ji..
Nimit Chowdhary- Bhagwati Prasad Saraswat appears to have a pan India acceptance and popularity. I can see a few votes from outside India as well. It is high time Ajmer returns leaders of national stature and not those limited to city or even the state. Leaders today need to have a bigger vision and wider acceptability.
Sanjay Choudhary- The six competencies that are required for a LEADER are:
Communication Skills
Leadership
Strategic Thinking and Judgment
Representing People
Resilience
Values in Action
Prof. Bhagwati Prasad Saraswat has all of them, right choice for this constituency.
जहां तक दूसरे स्थान पर रहे शहर जिला भाजपा प्रचार मंत्री कंवल प्रकाश किशनानी का सवाल है तो उनके बारे में उल्लेखनीय कमेंट था कि
kanwalAjmer needs a change with a broader vision it needs to progress like big metropolis and when change is needed the faces have to change. Ajmernama on facebook is running a poll for a good potential candidate from Ajmer North. And if u want to see ur city progress go on to vote for Mr Kanwal Prakash Kishnani. Put your vision to reality Wake up and Live.
वैसे उनके समर्थकों ने अधिक ध्यान वोट करने पर दिया और इसी वजह से वे 601 वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे। ऐसा प्रतीत होता है कि उनको भी परिवर्तन की चाह और युवा को मौका दिए जाने की उम्मीद में वोट दिए गए। सिंधी दावेदारों में उनका पहले नंबर पर आना रेखांकित करने वाली बात है।
devnaniइसी प्रकार आंकड़ों की दृष्टि से 557 वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर रहे प्रो. देवनानी के बारे में आए कमेंट इस प्रकार हैं, जिसमें बाकायदा शिद्दत नजर आती है और मौजूदा विधायक होने के नाते आनी भी चाहिए:-
Mahesh Vasudev Devnani- Vikas ki Nishani, Kamal aur Devnani.
Ravi Vensani- pakka devnani ji ko hi milega..baki bi apne vote ko sahi jagah use karo..baad me devnani ji ke jeetne baad (jo ki confirm hai )bol to payenge sir ji hamne bi aapko vote diya tha....
Ankur Soni- dosto vote kr lo lekin ticket to devnani ko ko hi milega kjoki us sath jis ka hatha hai na na bahut majboot hai koi takat nahi hila sakti aur bp saraswat to jeet hi nahi sakte unki csat ke ke vote hi nahi hai eis vidhansabha khetra mai peechle 25 saal se sirf sindhi hi vidhyak chuna jata hai eis seat se.....aur ye koi university election nahi hai janha 300 400 vote se jeet ho jati hai bhai sangh jiske satha hai usiko ticket milega aur vo jeetega ye abvp ke election nah hai humari to poori tyyari hai devnani ko jeetane ki koi kitne bhi kosish kar le.......jeetega to sirj devnani devnani.....
Ankur Soni Rahul- Pareekbhai ye mla ke election hai aur peechle 2 election se devnaniji hi ticket lete aur jeet te aaye hai ....aur aaaabhi jeetne bhi vote bp saraswat ko mil rahe hai na sare outsiders hai .....humne poori tyyari kar rakhi hai .......aajyga to sirf devnanai eissehtra ke log jante hi nahi bp saraswat ko to ....
पिछले चुनाव में सिंधी-गैर सिंधीवाद का शिकार रही इस सीट के सर्वे में यूं तो उसकी छाया कम ही नजर आई, मगर कुछ ऐसे कमेंट भी थे, जो इसका इशारा भी कर रहे थे। जैसे:-
Aseen Sindhi Sadahin Gaddh- Ajmer je sindhyunKhe jhulann hi tarindo ..... khud khe nominate karan je lahe jin jo wajood konhe unankhe race mein dekhare gair sindhyun khe eka jo raasto pya dekharin ..... kuch ta pahinjee zameer ji laaj rakho .... Devnani ji kabiliyat je agyaan sab fail aahin.
Rashtriya Sindhi Congress- mungerilal ke hain sapne ... Ajmernama kisse promote kar raha hai ..... Anti sindhi lobby taiyaar karke kya siddh karna chahte hain.... Professor Devnani k aage gaddhe murdon ko race mein dikhakar jag hasaeen
hogi.
f 1कुल 173 वोट लेकर चौथे स्थान पर रहे पूर्व शहर जिला भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा व 117 वोट हासिल कर पांचवें स्थान पर रहे पूर्व न्यास अध्यक्ष धर्मेश जैन के वोट हालांकि कम हैं और उसकी वजह ये रही कि उनके समर्थक बाद में चेते, लेकिन वे भी दावेदारी में आ कर तो खड़े हो ही गए हैं।
हेड़ा के बारे में लिखा ये कमेंट लिखा है-
Siddharth Heda- Sound The Alarm! It’s Time For Change!
Vote for Shiv Shankar Heda because he has good experience and always believe in supporting moral values.
इसी प्रकार जैन के बारे में लिखा है-
Rahul Singh Chanodia- If you truly ask any body from Ajmer .. about the development done in the past years .. u will be hearing only one name & that is Shri Dharmesh ji Jain.
अर्थात न्यास अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने जो विकास कार्य किए, उसकी बिना पर टिकट देने की पैरवी की गई है।
बात अगर पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत की करें तो अनुमान यही था कि वे सबसे आगे निकल सकते हैं क्योंकि उनके समर्थकों का एक बड़ा वर्ग रोजाना फेसबुक पर आता है और उनकी फोटो मात्र को देख कर ही उनके पक्ष में टिप्पणियां करने के लिए मचलता है, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि या तो उनके समर्थकों का इस पर ध्यान नहीं गया या फिर वे जानबूझ कर इस प्रतिस्पद्र्धा में नहीं पड़े। अर्थात मुट्ठी को बंद ही रखना चाहा। उसके बाद भी उनको 45 वोट मिल गए। उनको चाहने वालों में कितनी शिद्दत है, इसका अनुमान इन कमेंट्स से हो जाता है-
Aitazad Ahmed Khan- Lala bana majboot umeedvaar hain par jaatigat samikaran ke karan mushkil hai, popularity me NO 1 hai.
Save Ajmer Cricket- cricketers ke bhavisya ke liye bjp he aani chaiye yeh sarkar hamara paisa khaa rahi hai aur sabse majbut surendra singh shekawat kyunki koi bhi leadear ajmer ke sports ke baare mein nahi sochta sirf surendra ji sochte hai aur koi leader bataye jo sochta ho
Deepak Dobhal- Ajmer ko eak dabang yuva neta ki darkar hai jiski jati ka base kam ho taki vo sabhi jatiyoko sath le kar chal sake.isliye tickat ke pramukh davedar hai mr surandr singh shekawat
लाला बन्ना का एक कांग्रेसी ने भी समर्थन किया और लिखा कि-
Anupam Sharma- I AM CONGRACE BUT I AM LIKE LALA BANA . ( SURANDRA SINGH SHAKHAVAT )
Anupam Sharma- agar kisi sindhi ko mila to phir cong. ko koi nahi rok sakta.....
बात अगर अन्य दावेदारों की करें तो धर्मेन्द्र गहलोत 22, हरीश झामनानी 7, डॉ. कमला गोखरू 6 और तुलसी सोनी 5 वोट ही हासिल कर पाए। अर्थात हमने भले ही उन्हें संभावित दावेदार मान कर उनका नाम भी शामिल किया, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने और उनके समर्थकों ने इसमें रुचि ली ही नहीं।
हालांकि हमारी जानकारी में था कि भाजपा से बगावत कर निर्दलीय रूप से पार्षद के चुनाव में जीते ज्ञान सारस्वत भी किसी विशेष परिस्थिति में दावेदार हो सकते हैं, मगर चूंकि वे अभी भाजपा में नहीं हैं, इस कारण उनका नाम दावेदारों में शामिल नहीं किया गया। बावजूद इसके उनके बारे में एक टिप्पणी आई है-
Pramod Jain- Aaj ki present situation me agar parshad gyan saraswat ko bjp mla ka tkt deti hai to unki record vote se victory hogi. Agar wo independent election ladte hai to bjp/ congress ki record vote se har hogi. Meri is baat ko sabhi bhai logo yaad rekhna. Jo humne bhavishya wani kk
अब बात कर लें कुछ दिलचस्प टिप्पणियों की।
भाजपा मानसिकता के लोगों में से कुछ को इस प्रकार का सर्वे कराना अच्छा नहीं लगा। जरा उनके विचार भी जान लीजिए:-
Ankur Soni- are kyo bjp mai bawal macha rahe ho ein sb k ek kr do vrna congress seat le jayegi....
Ankit Joshi- This kind of survey is just to divide the voterss..vote for BJP if you want Good Goverment....support Vasundhra raje by Supporting BJP... don’t divide voterss by dividing them on the basis of candidate or any particular cast.... this is for all the above mentioned people who give there comments that if they are so much dedicated towards BJp that they are suggesting a candidate for BJP.. than stop doing this and just suport BJP.. thankk you.....
Bhagwati Singh Bareth- Hamari pasand Ka to pata nhi par inhone apas me milke ek ko nhi chuna to agle chunav Ka Bjp ko phir se intjar karna pad jayega.
सर्वे का सबसे ज्यादा मजा शहर भाजपा बजरंग मंडल के अध्यक्ष आनंद सिंह राजावत ने लिया। हालांकि उन्होंने वोट तो नहीं डाला, मगर बार-बार आ कर दिलचस्प टिप्पणियां कीं, जिनका अर्थ आप ही निकालिए-
Anand Singh Rajawat- ye sab time-pass k liya achha h ,hume sirf BJP ko jeet dilwanee h ,bakee vyaktee koi maayne nahi rakhata,BJP ek karykerta base party h ,yanha vichardhara pramukh h vayaktee nahi
Anand Singh Rajawat- P.Dindayal jee ne jeevan me ek hi chunav lada or haar gai, lakin 5-7 bar jeetne wale ko bi log yaad nahi kerte , aaj bhi pandit dindayal ji humarey aadrsh & rarna purush h
Anand Singh Rajawat- me apna vote apne pass hi rakh raha hu,
Anand Singh Rajawat- if anybody wants my vote please contact me with some giffts
Anand Singh Rajawat- I can give my bank a/c no. if any body wants,” western union money transfer” can help you
Anand Singh Rajawat- suna h kuch polling-booth captuerd ho gai h ,” Iam unbaleble to cast my vote
केकड़ी के वरिष्ठ पत्रकार तिलक माथुर ने तो साफ ही लिख दिया कि टिकट तो सिंधी को ही मिलेगा-
Tilak Mathur- Kisi sindhi Ko hi Milega...
चलते रस्ते एक और दिलचस्प टिप्पणी भी देख लीजिए-
Ajmeryouth Club- time par hi pata chalega lakin davedar abhi sai hath pair marne lage hai ticket kai liye vase education ledar vinod kakani aur govind sajnani bhi jaipur aur delhi kai kafi chakkar kat rahe hai unpar bhi najar rakhna
अजमेर उत्तर में कांग्रेस टिकट के दावेदार डॉ. लाल थदानी ने भी रुचि ली और टिप्पणी की, मगर उसका अर्थ क्या है, ये तो वे ही जानें। असल में उन्होंने कोड वर्ड लिखे हैं, जिनका अर्थ निकालने की आप कोशिश कर सकते हैं-
DrLal Thadani- J N F
कुल मिला कर इस सर्वे ने सभी को चौंका दिया है, बाकी टिकट का फैसला तो भाजपा हाईकमान अपने जातीय समीकरण और पैरोकारों की तत्कालीन खींचतान के बाद ही तय करेगा।
-तेजवानी गिरधर