अजमेर। चिकित्सा विभाग द्वारा कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए बीते मंगलवार को निकाली गई स्कूली बच्चों की रैली को लेकर एक विरोधाभास उत्पन्न हो गया है। एक ओर सूचना और जनसंपर्क महकमे की ओर से जारी प्रेस नोट में बताया गया है कि चिकित्सा विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. वी. के. माथुर ने राजकीय महात्मा गांधी स्कूल से लगभग 200 छात्र-छात्राओं की बेटी बचाओ अभियान रैली को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया। दूसरी ओर विभाग की ओर से जारी विज्ञप्ति में लिखा है कि रैली को शहर महिला कांग्रेस अध्यक्ष शबा खान ने हरी झंडी दिखाई। दो अलग-अलग माध्यमों से जारी समाचारों के कारण अखबारों में भी अलग-अलग खबरें लगी हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि वास्तव में हरी झंडी दिखाई किसने?दिलचस्प बात एक ओर है। वो ये कि सूचना व जनसंपर्क विभाग की ओर से जारी समाचार में शबा खान की मौजूदगी एक महिला समाज सेविका के रूप में दर्शाई गई है, जबकि चिकित्सा महकमे की ओर से जारी फोटो में शबा खान ही झंडी दिखा रही हैं। अर्थात महकमे ने अपनी ओर से तो अलग खबर जारी की और सूचना व जनसंपर्क विभाग को गलत सूचना दी। अव्वल तो यदि चिकित्सा महकमे को अपनी ओर से खबर जारी करनी थी तो उसे सूचना व जनसंपर्क विभाग को अलग खबर जारी करने को नहीं कहना था अथवा अपनी खबर भेज कर उसे सभी समाचार पत्रों को भेजने का आग्रह करना था। असल में व्यवस्था भी यही है। चिकित्सा महकमे के पास अपना अलग पीआरओ नहीं है और उसे जनसंपर्क विभाग के जरिए की अपनी सूचनाएं जारी करवानी चाहिए। मगर असावधानी बरते जाने के कारण सरकारी माध्यमों से जारी खबरों में विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो गई।उससे अहम सवाल ये है कि जब यह रैली आयोजित ही चिकित्सा महकमे ने की गई थी तो उसमें एक राजनीतिक दल के पदाधिकारी से हरी झंडी क्यों दिखवाई गई? वे कोई जनप्रतिनिधि भी नहीं हैं। यानि कि महकमा शबा शान के प्रभाव में है अथवा मकहमे के अधिकारी कांग्रेस राज के कारण कांग्रेसियों की मिजाजपुर्सी करने में लगे हुए हैं। इस महकमे पर पूर्व में भी राजनीतिक प्रभाव में रहने के आरोप लग चुके हैं। अफसोस कि शबा शान को खुश करने के लिए डॉ. माथुर ने अपने पद की गरिमा का भी ख्याल नहीं रखा। इस मामले में सूचना व जनसंपर्क विभाग पूरी सावधानी बरतता है। अगर किसी सरकारी कार्यक्रम में राजनीतिक पदाधिकारी मौजूद होते हैं तो अव्वल तो उनका नाम देने से परहेज रखता है। अगर पदाधिकारी महत्वपूर्ण हो तो वह उनके राजनीतिक पद की बजाय केवल नाम का ही उल्लेख करता है ताकि सरकारी विभाग पर राजनीतिकरण करने का आरोप न लगे। खैर, ताजा विरोधाभास के बाद उम्मीद की जानी चाहिए चिकित्सा महकमा इस प्रकार राजनीति में सम्मिलित होने से बचेगा।-तेजवानी गिरधर7742067000tejwanig@gmail.com

आखिरकार जिला कलैक्टर श्रीमती मंजू राजपाल ने अजमेर का स्थापना दिवस घोषित कर दिया। जिला पर्यटन विकास समिति की बैठक में उन्होंने अजमेर का स्थापना दिवस समारोह नव संवत्सर की प्रतिपदा यानि 23 मार्च को सादगी पूर्वक मनाने के निर्देश दिये हैं।जिला कलेक्टर की इस घोषणा से शहर के बुद्धिजीवियों में चर्चा है कि आखिर उन्होंने किस आधार पर यह मान लिया कि अजमेर की स्थापना नव संवत्सर की प्रतिपदा को हुई थी। असल बात तो ये है कि उन्होंने स्थापना दिवस की घोषणा नहीं ही है, अपितु यह मानते हुए कि स्थापना दिवस के बारे में आम जनता को पहले से जानकारी है और उन्होंने तो महज उसे मनाने के बारे में निर्देश दिए हैं। सवाल ये उठता है कि उन्होंने बिना पूरी तहकीकात किए यह घोषणा कर कैसे दी, जबकि अब तक एक भी स्थापित इतिहासकार ने इस बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा है। यहां तक कि अजमेर के इतिहास के बारे में कर्नल टाड की सर्वाधिक मान्य और हरविलास शारदा की सर्वाधिक विश्वसनीय पुस्तक में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। मौजूदा इतिहासकार शिव शर्मा का भी यही मानना रहा है कि स्थापना दिवस के बारे में कहीं कुछ भी अंकित नहीं है। उन्होंने अपनी पुस्तक में अजमेर की ऐतिहासिक तिथियां दी हैं, जिसमें लिखा है कि 640 ई. में अजयराज चौहान (प्रथम) ने अजयमेरू पर सैनिक चौकी स्थापित की एवं दुर्ग का निर्माण शुरू कराया, मगर स्थापना दिवस के बारे में कुछ नहीं कहा है। इसी प्रकार अजमेर के भूत, वर्तमान व भविष्य पर लिखित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस में भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है। यहां तक कि सांस्कृतिक गतिविधियों में सर्वाधिक सक्रिय भाजपा नेता सोमरत्न आर्य, बुद्धिजीवी राजनीतिकों में अग्रणी पूर्व मंत्री ललित भाटी भी अरसे से स्थापना दिवस के बारे में जानकारी तलाश रहे थे। आर्य जब नगर निगम के उप महापौर थे, तब भी इसी कोशिश में थे कि स्थापना दिवस का पता लग जाए तो इसे मनाने की शुरुआत की जा सके। भाटी की भी यही मंशा रही। राजनीतिक क्षेत्र में स्थापित सरस्वती पुत्र पूर्व राज्यसभा सदस्य औंकार सिंह लखावत ने तो बेशक नगर सुधार न्यास के अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में सम्राट पृथ्वीराज चौहान स्मारक बनवाते समय स्थापना दिवस खोजने की कोशिश की होगी। लखावत जी को पता लग जाता तो वे चूकने वाले भी नहीं थे। इनमें से कोई भी आधिकारिक रूप से यह कहने की स्थिति नहीं रहा कि यह स्थापना दिवस है।ऐसा प्रतीत होता है कि जिला कलेक्टर ने मात्र पर्यटन विकास समिति के मनोनीत सदस्य महेन्द्र विक्रम सिंह के आग्रह पर इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इंटेक) के अजमेर चैप्टर के स्थापना दिवस मनाने के उस आग्रह को मान लिया है, जिसने कहा था कि अजमेर का स्थापना दिवस चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन 1112 को अजयराज चौहान ने की थी। संस्था ने बताया कि स्थापना दिवस इस साल आगामी 23 मार्च को है और प्रशासन से आग्रह किया कि इस अवसर को उत्सव के रूप में मनाया जाए। अर्थात अकेले महेन्द्र सिंह विक्रम सिंह ने ही अजमेर की स्थापना का दिवस तय कर दिया है और उस पर जिला कलैक्टर ने ठप्पा लगा दिया।सवाल ये उठता है कि क्या जिला कलैक्टर ने संस्था और सिंह के प्रस्ताव पर इतिहासकारों की राय ली है? यदि नहीं तो उन्होंने अकेले यह तय कैसे कर दिया? क्या ऐतिहासिक तिथी के बारे में महज एक संस्था के प्रस्ताव को इस प्रकार मान लेना जायज है? संस्था के प्रस्ताव आने के बाद संबंधित पक्षों के विचार आमंत्रित क्यों नहीं किए गए, ताकि सर्वसम्मति से फैसला किया जाता? बहरहाल, अब जबकि सरकारी तौर पर अजमेर का स्थापना दिवस घोषित कर दिया गया है, यह इतिहासकारों की जिम्मेदारी है कि वे इस बारे में अपनी राय जाहिर करें।-तेजवानी गिरधर7742067000-tejwanig@gmail.com
अजमेर के जिला रसद अधिकारी हरिशंकर गोयल की कार्यप्रणाली से भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल तो नाराज हैं ही, अब कांग्रेसी भी उनसे नाराज हो गए हैं। जाहिर सी बात है कि श्रीमती भदेल विपक्षी दल की हैं, इस कारण उन्होंने मौका लगते ही थोड़ा सा भी लिहाज नहीं रखा होगा, इस कारण उसे कदाचित राजनीतिक विरोध करार दिया जा सकता है, मगर अब यदि कांग्रेसी भी नाराज हैं, तो इसका यही मतलब है कि मामला गंभीर ही है। निश्चित रूप से कांग्रेसियों ने पहले तो खुद की सरकार होने के नाते गम खाया होगा, मगर जब पानी सिर से ऊपर से गुजरने लगा होगा तभी शिकायत की होगी।यहां उल्लेखनीय है कि गोयल की कार्यप्रणाली को लेकर श्रीमती भदेल ने हाल ही विधानसभा में यहां तक कह दिया था कि अजमेर में खाद्य मंत्री की नहीं बल्कि गोयल की चलती है। स्पष्ट रूप से उनका कहना था कि कि वे मनमानी पर उतारू हैं। ये मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ है कि रसद विभाग की जिला स्तरीय सलाहकार समिति के सदस्य प्रमुख कांग्रेसी नेता महेश ओझा व शैलेन्द्र अग्रवाल ने आरोप लगाया है कि गोयल समिति की उपेक्षा कर रहे हैं। जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को लिखे पत्र में उन्होंने आरोप लगाया कि गोयल उनके पत्रों का जवाब नहीं देकर उनकी उपेक्षा कर रहे हैं। नियमानुसार समिति की बैठक प्रति माह होनी चाहिए, लेकिन 5-6 माह बाद 1 फरवरी 2012 को बैठक आयोजित की गई, लेकिन अभी तक बैठक के कार्यवाही विवरण नहीं दिए गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि डीएसओ सरकार की योजना को विफल करने में लगे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री को शिकायत भेज कर उनके खिलाफ कार्यवाही करने व स्थानांतरण करने की मांग की है। सब जानते हैं कि ओझा व अग्रवाल चलते रस्ते पंगा मोल लेने वाले नेता नहीं हैं। मामला गंभीर होने पर ही उन्होंने अपनी सरकार की छत्रछाया में काम कर रहे डीएसओ की शिकायत की है। संभव है गोयल ने उनका कोई निजी काम नहीं किया हो, मगर असल सवाल ये है कि अगर वे सलाहकार समिति की उपेक्षा कर रहे हैं तो सरकार की ओर से गठित ऐसी समिति के मायने ही नहीं रह जाते। गोयल की शिकायत राज्यसभा सदस्य प्रभा ठाकुर ने भी मुख्यमंत्री से कर रखी है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि राशन की दुकानों के आवंटन की प्रणाली में धांधली बाबत अनेक शिकायतें सामने आई हैं। राशन वितरण संबंधी अनियमितताओं के कारण अजमेर की जनता परेशान है। जिले में गैस एजेंसियों की मनमानी व रसाई गैस की सरेआम कालाबाजारी के कारण उपभोक्ताओं को समय पर रसोई गैस नहीं मिलने की शिकायतें लगातार आ रही हैं। अनुरोध है कि जिला रसद अधिकारी का तत्काल स्थानांतरण किया जाए और उन्हें जनहित संबंधी जिम्मेदारी नहीं दी जाए।वैसे एक बात है। गोयल लगातार अवैध कार्यों के खिलाफ अभियान चलाए हुए हैं। विशेष रूप से शुद्ध के लिए युद्ध अभियान में तो उन्होंने जम कर धूम मचा रखी है। भ्रष्ट व्यापारियों में उनका जबरदस्त खौफ है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि गोयल बेहद ईमानदार और कड़क अफसर हैं। संभव है उसी के दौरान कोई ऐसा विवाद हुआ हो, जिसको लेकर कांग्रेसी नाराज हो गए हों। इसके विपरीत चर्चा ये भी है कि गोयल जितनी सख्ती दिखा रहे हैं, उसमें पर्दे के पीछे की बात और है। यानि की हाथी के दांत दिखाने के और व खाने के और हैं। पिछली दीपावली पर मिलावटी मावे को लेकर जब दबा कर छापे पड़े और मिठाई वाले बिक्री घटने से परेशान हो गए तो काफी जद्दोजहद के बाद समझौता हो गया था। यह एक कड़वा सच भी है कि व्यापारी ले दे कर मामला सुलटाने में विश्वास रखते हैं। पंगा नहीं लेते। चोरी या मिलावट भले ही करते हों मगर आमतौर पर व्यापारी हैं निरीह प्राणी, इस कारण गोयल के खिलाफ बोल नहीं पाते। पानी में रह कर भला मगरमच्छ से बैर कैसे लिया जा सकता है। मगर अब जब कि कांग्रेसियों ने भी गोयल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है तो उम्मीद की जा सकती है कि बात दूर तक जाएगी। वैसे जानकारी ये है कि गोयल के तार ऊपर तक जुड़े हुए हैं। खासकर के खाद्य मंत्री बाबूलाल नागर की उन पर विशेष कृपा रही। इस कारण वे कुछ ज्यादा की शेर हो गए। तभी तो कांग्रेसियों को नहीं गांठ रहे। कांग्रेस सांसद प्रभा ठाकुर तक की शिकायत का कोई असर नहीं हुआ।-तेजवानी गिरधर7742067000-tejwanig@gmail.com