मंगलवार, 10 मई 2011

राजस्थान में राजनीतिक नियुक्ति मृग मरीचिका-सिंह

महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर के राजनीतिक विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एस. एन. सिंह ने कहा है कि राजस्थान में राजनीतिक नियुक्ति एक मृग मरीचिका सी हो गई है, इस कारण कांग्रेस कार्यकर्ताओं में असंतोष व्याप्त है। साथ ही अफसरशाही के हावी होने के कारण जनहित के काम प्रभावित हो रहे हैं।
एक बयान जारी कर उन्होंने कहा कि दिसम्बर 2008 में हुए चुनाव और मई 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान में अच्छी सफलता मिली और प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत ने दुबारा कार्यभार संभाला एवं लोकसभा में कांग्रेस को 25 में से 20 सीटों पर सफलता हासिल हुए। बाद में पंचायत, जिला परिषद, पालिका और छात्रसंघ चुनाव में भी कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा सफलता मिली। कांग्रेस को लगातार चुनावी जीत दिलवाने में मेहनत करने वाले कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता व नेता राजनीतिक नियुक्तियों के माध्यम से आयोग, बोर्ड, समिति व संस्थानों में अध्यक्ष, सदस्य व पदाधिकारी बनने की उम्मीद करने लगे। नियुक्तियों के इच्छुक दावेदारों ने लगातार प्रदेश व केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष अपने बायोडाटा प्रस्तुत किए, मगर ढ़ाई साल गुजर जाने के बाद भी मानवाधिकार, अल्पसंख्यक, अभाव-अभियोग और अन्य संस्थानों में राजनीतिक नियुक्तियां नहीं की गईं। यहां तक कार्यवाहक कुलपति और नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष पद पर भी नौकरशाहों को लगाया गया। हालांकि सरकार की ओर से समय-समय पर राजनीतिक नियुक्ति करने का आश्वासन दिया जाता रहा, लेकिन हर बार नतीजा शून्य ही निकला। इसी प्रकार नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति में भी अनावश्यक विलम्ब से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ा है। सरकार व पार्टी में समन्वय नहीं और जनहित के कार्य नहीं हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में नौकरशाह ही जनप्रतिनिधियों, विशेषज्ञों व शिक्षाविदों के काम कर रहे हैं। लोकतंत्र अब अधिकारी तंत्र जैसा दिख रहा है। नौकरशाह भी काम के बोझ के तले दब गए हैं और राजनेताओं के सामने जन आकाक्षाओं को नहीं रख पाते। इससे जनता व सरकार के बीच दूरी बढ़ी है। यदि समय रहते कांग्रेस नेतृत्व ने विधायक, कम मतों से हारे उम्मीदवारों व कर्मठ कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदारी नहीं तो ऐसा संभव है कि कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता के कारण पुन: पराजय का मुंह देखना पड़ सकता है।
उन्होंने बताया कि कांग्रेस पार्टी को 1998 के विधानसभा चुनाव में 153 सीट व 44.95 प्रतिशत मत मिले थे। अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री के रूप में काम किया, लेकिन दिसम्बर 2003 के चुनाव में प्रदेश की 200 सीटों में से कांग्रेस को केवल 56 सीटें ही मिल पाईं। मतों का प्रतिशत दस प्रतिशत गिर कर 35.63 रह गया। असल में 1998-2003 के दौरान कर्मठ कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई थी। केवल भ्रष्ट, चापलूस और अवसरवादी ही लाभान्वित हुए। यही वजह रही कि लोकसभा चुनाव में जहां पूरे देश में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को सफलता मिली, वहीं राजस्थान में कांग्रेस को पराजय हासिल हुई। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जब भी कार्यकर्ता की उपेक्षा हुई है, कांग्रेस को नुकसान हुआ है। हालात को समझते हुए कांग्रेस नेतृत्व को अविलम्ब राजनीतिक नियुक्तियां करके कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना चाहिए। जनप्रतिनिधियों और शिक्षाविदों का काम नौकरशाहों से नहीं करवाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी में कार्यकर्ता नेहरूजी के समय से ही पार्टी की धुरी रहे हैं। तत्पश्चात इंदिरा गांधी व राजीव गांधी ने भी पार्टी संगठन को महत्व दिया। इसके बाद जिस प्रकार श्री राहुल गांधी ने युवक कांग्रेस व एनएसयूआई को लोकतांत्रिक तरीके से संगठित किया, उसी तरह से राजस्थान में पार्टी संगठन का लोकतांत्रीकरण होना चाहिए। राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष व जिला अध्यक्ष के पदों पर नई नियुक्तियां होना शेष है। पार्टी के योग्य कार्यकर्ताओं के साथ छलावा न किया जाए और उनको विभिन्न पदों की मृग मरीचिता नहीं दिखाई जाए। पार्टी हित में ऐसे कार्य किए जाएं, जो आम मतदाताओं को दिखाई दें। इसके लिए जिला स्तर पर नगर सुधार न्यास, बीस सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति व जिला कांग्रेस कमेटी में अध्यक्ष की नियुक्ति की जानी चाहिए। राज्य स्तर पर हाउसिंग बोर्ड, उद्योग विकास निगम, खादी ग्रामोद्योग बोर्ड, पर्यटन विकास निगम, गौ सेवा संघ, निशक्तजन विकास संस्थान, बीस सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति, जन अभाव अभियोग समिति, हज कमेटी, अल्पसंख्यक आयोग, मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग जैसी संस्थाओं में राजनीतिक नियुक्तियां की जाएं। इसी तरह शैक्षणिक और अकादमिक संस्थाओं में ललित कला अकादमी, साहित्य अकादमी, पंजाबी भाषा अकादमी, सिंधी भाषा अकादमी, बृज भाषा अकादमी आदि में भी नियुक्तियां होना बाकी हैं। विश्वविद्यालयों में जहां कांग्रेस पार्टी और राजीव गांधी स्टडी सर्किल के समर्पित सुयोग्य प्रोफेसर कार्यरत हैं, उनके स्थान पर नियम विरुद्ध तरीके से और उच्च न्यायालय के पूर्व के निर्देश के बावजूद डिवीजनलन कमिश्नर को कुलपति का कार्यभार सौंपा गया है। इससे शिक्षकों व शिक्षक संगठनों में घोर असंतोष है। ऐसे में राजस्थान सरकार से शीघ्र ही राजनीतिक नियुक्तियां करके कार्यकर्ताओं का उत्साहवद्र्धन करना अपेक्षित है।

अजमेर की बहबूदी के लिए अजमेर फोरम का गठन

हाल ही अजमेर कुछ बुद्धिजीवियों के एक समूह ने ऐतिहासिक अजमेर को उसका पुराना गौरव पुन: दिलाने और अनेकानेक समस्याओं से जूझते नागरिकों को निजात दिलाने के लिए आवाज बुलंद करने व संघर्ष करने के मकसद से पूर्णत: गैर राजनीतिक अजमेर फोरम नामक मंच का गठन किया।
इस मंच की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि न तो इसका कोई एक नेता होगा और न ही पदाधिकारी। मंच की गतिविधियों को सुव्यवस्थित रखने के लिए एक कोर कमेटी जरूर गठित की जाएगी, मगर किसी का एकल नेतृत्व नहीं होगा। मंच सामूहिक नेतृत्व के रूप में काम करेगा। सभी निर्णय आपसी सहमति से किए जाएंगे। उसके सदस्य कोई भी कार्य करने पर उसके समाचार के साथ अपना नाम अखबारों में प्रकाशित करवाने से परहेज रखेंगे। अव्वल तो फोरम के रूटीन के कामकाज की खबरें प्रकाशित नहीं करवाई जाएंगी। अगर आम जनता की भागीदारी की अत्यंत आवश्यकता हुई, तभी समाचार माध्यमों का सहयोग लिया जाएगा। फोरम की इस विशेषता को अगर चंद लफ्जों में समेटने की कोशिश की जाए तो केवल इतना कहा जा सकता है कि यह अजमेर से प्यार करने वाले और उसकी बहबूदी चाहने वाले बुद्धिजीवियों का ऐसा समूह है, जिसका मकसद काम करना होगा, प्रचार या प्रसिद्धि नहीं।
मंच की दूसरी विशेषता यह है कि यह बैठकों, पत्र-व्यवहार अथवा आंदोलन में किसी भी व्यक्ति विशेष से आर्थिक सहयोग नहीं लेगा, अर्थात मंच के संचालन के चंदा एकत्रित नहीं किया जाएगा। यदि जरूरत हुई भी तो मंच के ही सदस्य आपस में मिल कर जरूरी धनराशि जुटा कर उसका उपयोग करेंगे। मंच किसी भी समस्या के समाधान के लिए प्रयास करने के लिए समस्या विशेष से जुड़े विषय विशेषज्ञों से भी संपर्क साधेगा, ताकि समस्या के कारणों और उसके समाधान के सभी विकल्पों का ठीक से आकलन किया जा सके। मंच राजनीतिक नेताओं का सहयोग तो लेगा, किंतु अपना स्वरूप किसी भी स्थिति में राजनीतिक नहीं होने देगा। अगर आंदोलन की जरूरत पड़ी तब भी जनचेतना जागृत कर अहिंसक और शांति पूर्ण आंदोलन किया जाएगा। मंच किसी संस्था के समानान्तर काम नहीं करेगा, अपितु अजमेर के हित से संबंधी किसी भी संस्था की गतिविधि में सहयोग भी करेगा। जब स्वयं पहल करेगा, तब भी उद्देश्य विशेष के लिए काम करने वाली संस्था का सहयोग भी बिना किसी भेदभाव के करेगा।
फोरम की पहली बैठक गत दिवस इंडोर स्टेडियम के हॉल में हुई, जिसमें शहर के अनेक संभ्रांत नागरिक मौजूद थे, जिनमें विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी मौजूद थे। बैठक में अधिसंख्य वक्ताओं ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि जनता में जागृति के अभाव और सशक्त नेतृत्व की कमी के कारण अजमेर अन्य संभागीय मुख्यालयों और शहरों की तुलना में विकास नहीं कर पाया है। बैठक में शहर की समस्याओं पर गहन चिंतन किया गया और उनके निराकरण पर चर्चा की गई। यह तय किया गया कि पहले चरण में समस्याओं और संभावित विकास के बिंदुओं को सूचीबद्ध किया जाए और उसके बाद एक-एक करके उन पर काम किया जाए। मंच केवल जनता का ही प्रतिधित्व नहीं करेगा, अपितु यदि सरकार और प्रशासन कोई अच्छा काम कर रहे हैं तो उसमें सहयोग भी करेगा। अर्थात जनता को केवल उसके अधिकारों के प्रति ही जागरूक नहीं करेगा, अपितु नागरिकों के कर्तव्यों के प्रति भी सचेत करेगा।
उल्लेखनीय है कि यूं तो अजमेर में अनेक सामाजिक व स्वयंसेवी संगठन कार्यरत हैं और वे विभिन्न मुद्दों के लिए काम कर रहे हैं, मगर पहली बार एक ऐसा मंच गठित किया गया है, जिसके किसी भी सदस्य का उद्देश्य मंच के माध्यम से सामाजिक जीवन में लोकप्रियता हासिल करना नहीं होगा। मंच अपनी लोकप्रियता की ओर भी ध्यान नहीं देगा, सिर्फ और सिर्फ काम पर ध्यान देगा। उम्मीद है यह मंच अजमेर के विकास में अपनी भागीदारी निभा कर इस ऐतिहासिक शहर को उसका पुराना गौरव फिर से दिलाने में कामयाब होगा। बैठक में दैनिक नवज्योति के प्रधान सम्पादक श्री दीनबंधु चौधरी, दैनिक भास्कर के स्थानीय सम्पादक श्री रमेश अग्रवाल, स्वामी न्यूज चैनल के एमडी कंवल प्रकाश किशनानी, पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, पूर्व डिप्टी मेयर सोमरत्न आर्य, पीयूसीएल के डी. एल. त्रिपाठी, श्रमजीवी महाविद्यालय के प्राचार्य अनंत भटनागर, समाजसेवी महेन्द्र विक्रम सिंह, शहर कांग्रेस उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग, उद्योगपति हेमन्त भाटी, पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, शिक्षाविद् दिनेश शर्मा, कांग्रेस नेता महेन्द्र सिंह रलावता, पूर्व पार्षद सतीश बंसल, रणजीत मलिक, डॉ. सुरेश अग्रवाल, एलआईसी के पीआरओ हरि भारद्वाज, पत्रकार एस. पी. मित्तल, गिरधर तेजवानी, संतोष गुप्ता, प्रताप सनकत, अरविंद गर्ग, संतोष खाचरियावास, बलजीत सिंह, आर. डी. कुवेरा, एन. के. जैन सीए, दिनेश गर्ग आदि मौजूद थे।