गुरुवार, 13 सितंबर 2012

मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने बना दिया हमें अजमेर शरीफ का वाशिंदा


अजमेर रेलवे स्टेशन का नाम अजमेर शरीफ करने का प्रस्ताव भले ही अजयमेरू संघर्ष मंच के बैनर तले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भाजपा सहित हिंदूवादी संगठनों और अन्य संस्थाओं ने कड़ा विरोध कर ठंडे बस्ते में डलवा दिया हो, मगर मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व में काबिज भाजपा सरकार तो अजमेर शहर को ही अजमेर शरीफ के नाम से संबोधित कर रही है। गुरुवार, 13 दिसंबर को भोपाल के हबीब गंज रेलवे स्टेशन से आरंभ हुई मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना के विज्ञापन में तीर्थ नगरी अजमेर को अजमेर शरीफ के नाम से संबोधित किया है। इतना ही नहीं उसमें सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और आस्ताने का बड़ा फोटो भी दिया गया है। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार की ओर से किए गए इस कृत्य की योजना की दृष्टि से भले ही जम कर तारीफ की जाए, मगर इससे दो अहम सवाल खड़े होते हैं। एक तो ये कि अजमेर शरीफ के दर्शन की इस यात्रा के विज्ञापन में तीर्थराज पुष्कर को क्यों नहीं दर्शाया गया है, दूसरा ये कि एक ओर भाजपा व स्थानीय हिंदूवादी लोगों को तो महज रेलवे स्टेशन का नाम ही अजमेर शरीफ करने पर ऐतराज है, जबकि मध्यप्रदेश के संघवादी मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की सरकार तो अजमेर शहर को ही अजमेर शरीफ के नाम से संबोधित कर रही है। मतलब साफ है। मुसलमानों के वोट हासिल करने की खातिर यह योजना अंजाम दी गई है।
यहां आपको बता दें कि गत छह फरवरी को रातों रात गठित अजयमेरु संघर्ष मंच के नेतृत्व में अनेक संगठनों ने जिला कलैक्टर तथा मंडल रेल प्रबंधक अजमेर को ज्ञापन देकर अजमेर के रेलवे स्टेशन का नाम परिवर्तन कर अजमेर शरीफ करने के प्रस्ताव को तत्काल निरस्त कराने की मांग करते हुए उन्हें मुख्यमंत्री राजस्थान सरकार तथा रेल मंत्री भारत सरकार के नाम ज्ञापन पत्र सौंपे। सभी संगठनों के प्रतिनिधिगण व कार्यकर्ताओं ने स्थानीय डाक बंगले से मंच के संयोजक सुनील दत्त जैन, जो कि संघ के महानगर संचालक भी हैं, के नेतृत्व में विशाल जुलूस जिला कलैक्टर कार्यालय व डीआरएम कार्यालय तक निकाला।

ज्ञापन में बताया गया था कि अजमेर का अपना एतिहासिक गौरव रहा है। इसका इतिहास करीब 2000 वर्ष पुराना है तथा इसकी पहचान पिछली कई पीढिय़ों से यहां के इतिहास व गौरव के अनुरूप अजयमेरू के नाम से होती चली आई है। इसी आधार पर यात्री परिवहन के दूसरे बड़े केन्द्र रोडवेज ने भी अजमेर आगार को अजयमेरू आगार पिछले कई वर्षों से घोषित किया हुआ है। इस स्थिति में रेलवे स्टेशन का नाम यहां के साम्प्रदायिक सौहार्द के विपरीत परिवर्तन करने का काई औचित्य नहीं है। उक्त नाम परिवर्तन क्षुद्र राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति करने के लिये तथा वोटों की राजनीति के लिए केन्द्र सरकार के इशारे पर कराने के प्रयास किये जा रहे हैं। ज्ञापन में यह भी कहा गया कि कभी भी अजमेर की जनता व जनप्रतिनिधियों के द्वारा इस प्रकार की कोई मांग नहीं की गई, फिर भी इस प्रकार के षड्यंत्र करके लोगों की भावनाओं को आहत किया जा रहा है। ज्ञापन में नाम परिवर्तन की उक्त  प्रक्रिया को तत्काल समाप्त कराने की मांग करते हुए यह भी मांग की कि अजमेर रेलवे स्टेशन का नाम चूंकि अजमेर की पहचान अजयपाल जी, अगणराज जी व  यशस्वी सम्राट पृथ्वीराज चौहान से होती है, अत: यहां की गौरवशाली व ऐतहासिक परम्परा के अनुरूप अजयमेरू रखा जाए।
ज्ञातव्य है कि भारी विरोध के मद्देनजर मंडल रेल प्रबंधक मनोज सेठ ने आश्वस्त किया था कि रेलवे द्वारा रेलवे स्टेशन के नाम परिवर्तन के संदर्भ में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी तथा नाम परिवर्तन के इस प्रकरण का पटाक्षेप कर दिया।
मंच के संयोजक सुनील जैन
सवाल ये उठता है कि यदि केन्द्र की कांग्रेसनीत सरकार ने मुसलमानों को रिझाने के रेलवे स्टेशन का नाम अजमेर शरीफ करने की कोशिश की तो क्या शिवराज सिंह चौहान ने भी वहीं कोशिश नहीं की है। यदि कांग्रेस सरकार की हरकत से अजमेर का सांप्रदायिक माहौल बिगडऩे का अंदेशा था तो चौहान के विज्ञापन से ऐसा क्यों नहीं?




-तेजवानी गिरधर