सोमवार, 5 मार्च 2012

भगत को फंसवा न दें यूआईटी के अफसर


जैसी कि आशंका थी, वही होता जा रहा है। अजमेर नगर सुधार न्यास के घाघ अफसर सदर नरेन शहाणी भगत की जानकारी में लाए बिना ही महत्वपूर्ण आदेश जारी कर रहे हैं। आखिरकार भगत को उन्हें कहना पड़ा कि मुझे बताया तो करो, क्या कर रहे हो। असल में भगत की जब नियुक्ति हुई थी तो यह धारणा आम थी कि चूंकि वे और राजनीतिकों की तरह तेज-तेर्रार नहीं हैं, इस कारण यूआईटी के अफसर उन्हें गाठेंगे नहीं। एक तो स्वभाव से सरल, ऊपर से यूआईटी के कानून-कायदों से अनभिज्ञ होने के कारण यह आशंका स्वाभाविक ही थी कि भगत को अपना कामकाज समझने में थोड़ा वक्त लगेगा। सब जानते हैं कि यूआईटी एक ऐसा महकमा है, जिसका शहर के शातिर भू माफियाओं से पड़ता है। इस कारण वहां के अफसर भी उतने की घाघ हैं। वरना भू माफिया शहर को बेच खाएं। कई जगह बेच कर खा भी गए हैं। यह बात दीगर है कि ऐसा अफसरों के बेवकूफ होने के कारण नहीं, बल्कि मिलीभगत या लापरवाही के कारण संभव हुआ। ऐसे शातिर दिमाग वालों की मंडी में भगत को दिक्कत आनी ही थी। उससे भी ज्यादा दिक्कत उनके अपने कांग्रेसी भाइयों से होने की आशंका रहती है, जो कि उनके न्यास अध्यक्ष बनने से नाखुश हैं। भगत के सामने सबसे पहली दिक्कत तो तब आई जब अधिकारियों ने जवाहर की नाडी, लोहागल व चंद्रवरायी नगर में तोडफ़ोड़ की। भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने तो हंगामा किया ही, खुद भगत की पार्टी के शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता ने भी जांच कमेटी गठित कर उन्हें परेशानी में डालने की कोशिश की। हालत ये हो गई कि तीन दिन तक तो भगत से कुछ कहते नहीं बना। वो तो अजमेर के सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट ने बुला कर रलावता को फटकार लगाई, तब जा कर कांग्रेसी एकजुट हुए। हाल ही भूखंड खरीद के लिए एनओसी पर रोक लगाने व पुरानी योजनाओं के भूखंडों से जुड़े आवेदन पत्रों पर मूल आवंटियों से शपथ पत्र लेने के मामले में भी यही हुआ कि भगत को कोई जानकारी दिए बिना ही कार्यवाही के आदेश जारी कर दिए गए। कुछ ऐसा ही कृषि भूमि नियमन में आवेदकों से नियमन शुल्क व विकास शुल्क की वसूली के लिए गठित समिति की सिफारिशों के बारे में उन्हें कुछ नहीं बताया गया, जबकि अखबारों में लंबी चौड़ी खबरें छप गईं। कुल मिला कर हालत ये हो गई कि पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार खेमे के पूर्व पार्षद रमेश सेनानी सहित कुछ कॉलोनाइजर्स ने भगत को घेर लिया, तब उनकी हालत देखने लायक थी। उनसे कुछ जवाब देते नहीं बना और बड़ी किरकिरी हुई। तब जा कर उन्हें समझ में आया कि अगर यूं ही अफसर अपने स्तर पर निर्णय करते रहे तो एक दिन वे बुरी तरह से फंस जाएंगे। अफसरों की इन हरकतों से परेशान हो कर उन्होंने उनसे कहा कि आखिर मुझे तो बताया करो कि कर क्या रहे हो। आम जनता को जवाब तो मुझे देना पड़ता है। आखिरकार जनप्रतिनिधि मैं हूं। सरकार को भी मुझ ही जवाब देना होगा, जिसने विश्वास करके मुझे इस पद पर बैठाया है। आशंका है कि भगत के लिए सबसे परेशानी तब आ सकती है, जब कि अफसर उनसे ऐसी फाइल पर दस्तखत करवा लेंगे, जिसको लेकर विवाद हो सकता है। हालांकि सुना है कि भगत फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं, क्योंकि उन्हें न केवल न्यास बनाम काजल की कोठरी में रह कर कालिख से बचना है, अपितु आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर पश्चिम का टिकट हासिल करने के लिए अच्छी परफोरमेंस भी देनी है। यद्यपि भगत सचिव पद पर पुष्पा सत्यानी को ले कर आए हैं, मगर बताते हैं वह भी कोई बहुत भोली-भाली नहीं हैं। देखना है उनकी भगत से पटरी बैठती है या नहीं।
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युवती की हत्या मात्र ट्रेलर, खौफनाक फिल्म का है इंतजार


आईडी प्रूफ के गेस्ट हाउस में ठहर कर एक युवक द्वारा अपने साथ पत्नी बता कर लाई गई युवती की हत्या कर फरार हो जाना साबित करता है न तो गेस्ट हाउस संचालक नियमों की पालना करने के प्रति गंभीर हैं और न ही पुलिस ने इससे पहले हुए एकाधिक मामलों से सबक लेते हुए अपने आप को मुस्तैद किया है। ज्ञातव्य है कि दरगाह इलाके में अंदरकोट पार्किंग के सामने नूरी हशमती मंजिल में गत दिवस एक जायरीन युवती की गला काटकर हत्या कर दी गई। और उसके साथ आया अज्ञात कातिल युवती की हत्या कर शव कमरे में बंद कर के फरार हो गया। कमरे में मिली वस्तुओं से हालांकि अंदाजा यही लगाया गया है कि युवती अहमदाबाद की हो सकती है, इस कारण पुलिस वहां तहकीकात करने गया है, मगर गेस्ट हाउस संचालक के इस युगल से आईडी प्रूफ न लिए जाने के कारण पुलिस की मशक्कत बढ़ गई है। मामले से यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि गेस्ट हाउस संचालक मुबारक ने घोर लापरवाही बरती। पुलिस के बार-बार चेताने पर कि आईडी प्रूफ के बिना किसी को न ठहरने दें, उसने युगल के आईडी प्रूफ बाद में देने की बात कहने पर शक नहीं किया। इससे जाहिर है कि गेस्ट हाउस संचालकों के केवल अपनी कमाई की चिंता है। न तो उन्हें कानून-कायदों की चिंता है और न ही अति संवेदनशील अजमेर शहर की सुरक्षा से कोई मतलब। आपको जानकारी में होगा कि इससे पहले भी बिना आईडी प्रूफ के होटल में ठहर कर एक दूल्हे ने खुदकशी कर ली थी। इस प्रकार के वायये होना साबित करता है कि मुंबई ब्लास्ट के मास्टर माइंड व देश में आतंकी हमले करने का षड्यंत्र रचने के आरोपी डेविड कॉलमेन हेडली से गच्चा खाने के बाद भी पुलिस ने सबक नहीं लिया है। भले ही पुलिस इस मामले के लिए गेस्ट हाउस संचालक मुबारक को ही दोषी ठहराए, मगर ऐसा तभी तो संभव हुआ है न कि पुलिस आईडी प्रूफ की अनिवार्यता का कानून लागू करवाने में विफल हो रही है। पुलिस की लापरवाही का यह आलम तब है, जब कि दरगाह में एक बार बम विस्फोट हो चुका है। बेंगलुरु सीरियल बम ब्लास्ट का मास्टर माइंड व इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी उमर फारुख सहित कई अन्य संदिग्धों के बिना पहचान पत्र के ठहरने के सनसनीखेज खुलासे हो चुके हैं। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि दरगाह और पुष्कर के कारण अजमेर एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल है और मेलों के अतिरिक्त भी यहां सालभर जायरीन व श्रद्धालुओं का आना जारी रहता है। जायरीन इतनी बड़ी तादात में आते हैं उन पर निगरानी रखना बेहद मुश्किल काम है। इसी का फायदा उठा कर आतंकी व संदिग्ध छुपने अथवा षड्यंत्र रचने के लिए यहां का रुख करते हैं। ऐसे अनेक मामले अब तक उजागर हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त मादक पदार्थों की तस्करी का भी अजमेर ट्रांजिट सेंटर बन चुका है। अनेक दरगाह व पुष्कर जैसे अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त धर्मस्थलों के अतिरिक्त पुष्कर स्थित यहूदी धर्मस्थल बेद खबाद को भी सदैव खतरा बना रहता है। यही वजह है कि सरकार ने यहां होटलों में ठहरने वालों पर निगरानी के लिए विशेष निर्देश दे कर आईडी प्रूफ हर हालत में लेने के आदेश दे रखे हैं। हालांकि समय-समय पर पुलिस जांच अभियान चलाती रहती है, मगर अमूमन तब या तो कोई मामला होता है या फिर राष्ट्रीय पर्व व त्यौहारों के दौरान देशभर में हाईअलर्ट जारी किया जाता है। सामान्य दिनों में कैसी जांच होती है, यह हाल ही गेस्ट हाउस में युवमी की हत्या कर दिए जाने से साफ हो गया है। हालांकि यह सही है कि सरकार के निर्देश का पालन करना होटल वालों के लिए बेहद जरूरी है, मगर उससे भी कहीं जिम्मेदारी पुलिस की बनती है, जिसके जिम्मे कानून की पालना करवाना है। ताजा मामले से स्पष्ट है कि होटल वालों में पुलिस के प्रति कोई खौफ नहीं है। ऐसा इसलिए भी संभव है कि पुलिस नियमों को तोडऩे वाले होटल मालिकों के खिलाफ सख्त कार्यवाही को अंजाम नहीं देती। आपको याद होगा कि हेडली भले ही अपनी पुष्कर यात्रा के दौरान और कोई गड़बड़ी नहीं कर पाया था, मगर उसके यहां आ कर चले जाने से खुफिया पुलिस की बड़ी किरकिरी हुई थी। तब खुद तत्कालीन पुलिस कप्तान हरिप्रसाद शर्मा ने कहा कि आईडी प्रूफ की अनिवार्यता के बारे में पहले ही होटल मालिकों को पाबंद कर दिया गया था, लेकिन वे ध्यान ही नहीं देते। तब सवाल उठा था कि यदि पुलिस को यहां के होटल वालों के रवैये का पता था तो उसने सख्ती क्यों नहीं बरती। तब यह तथ्य भी उभरा था कि पुलिस के पूरा स्टाफ नहीं है। इसी कारण विदेशियों पर तो थोड़ी-बहुत निगरानी जरूरी की जाती है, मगर आम लोगों के बारे में पुलिस को सभी होटलों के रजिस्टर जांचने का वक्त ही नहीं मिलता। तब पुलिस अधीक्षक का कहना था कि सरकार को अतिरिक्त पुलिस नफरी के लिए लिखा हुआ है, मगर उस पर क्या कार्यवाही हुई, आज तक पता नहीं लगा। यही आलम रहा तो किसी दिन कोई बड़ा हादसा आ कर यहां कानून-व्यवस्था की चूलें हिला कर चला जाएगा।
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