गुरुवार, 25 मई 2017

विजय जैन के लिए कठिन है बूथ लेवल तक संगठन को मजबूत करना

आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस कमर कसने जा रही है। इसके लिए संगठन को बूथ लेवल तक मजबूत किया जाएगा, मगर अजमेर शहर कांग्रेस अध्यक्ष विजय जैन के लिए यह टास्क कठिन है। उनके पास अपनी कार्यकारिणी नहीं है, जिसके माध्यम से कार्यकर्ताओं को मोबलाइज कर सकें। पूर्व अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता के समय की कार्यकारिणी से काम लेना उनकी मजबूरी है। इस कारण अपेक्षित परिणाम आने की उम्मीद कम ही है।
असल में जब रलावता को हटा कर जैन को अध्यक्ष बनाया गया तो यकायक कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार हुआ। चाहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के डर से या नई कार्यकारिणी में स्थान पाने की लालच में कार्यकर्ता सक्रिय हो गए। जैन के नेतृत्व में आयोजित कार्यक्रमों में रलावता की तुलना में अधिक उत्साह नजर आने लगा। ऐसा लगा कि कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अंगड़ाई लेेने जा रही है। मगर यह उत्साह शनै: शनै: धीमा पड़ता जा रहा है। जैन को अध्यक्ष बने एक साल से ज्यादा हो गया है, मगर उनकी कार्यकारिणी अब तक नहीं बन पाई है। उधर चुनाव सिर पर हैं और संगठन को मजबूत करने की महती जिम्मेदारी उन पर है, मगर अपनी टीम के अभाव में उन्हें काम करने में दिक्कत आ रही है।
इस परेशानी का इजहार उन्होंने विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस की जिलेवार फीडबैक बैठक में भी किया। उन्होंने ब्लॉक अध्यक्षों के रिक्त पदों पर नामों की घोषणा भी जल्दी करने की बात कही। उनका दर्द था कि अग्रिम संगठनों पदाधिकारी पुराने ही हैं, वे भी पार्टी बैठकों में भाग नहीं लेते।
इस सिलसिले में उनके चंद विरोधियों का कहना है कि असल में वे नाकामयाब अध्यक्ष हैं और अपनी कमी छिपाने के लिए कार्यकारिणी न होने का बहान बना रहे हैं। उनका तर्क है कि नई कार्यकारिणी नहीं है तो क्या हुआ, पुरानी के सभी लोग सक्रिय हैं। अगर कोई सहयोग नहीं कर रहा तो उसके बारे में उन्हें जानकारी देनी चाहिए। उन पर आरोप ये भी है कि वे सभी को तालमेल के साथ लेकर नहीं चल रहे। दूसरी ओर धरातल का सच ये है कि खुद की कार्यकारिणी न होने के कारण पुराने पदाधिकारियों को हैंडल करना उनके लिए वाकई कठिन काम है। कुछ तो जैन से भी सीनियर हैं। उनसे भला वे कैसे काम ले सकते हैं। सच तो ये है कि जैन के कार्यकाल की समीक्षा इसलिए नहीं हो सकती क्योंकि उन्हें फ्रीहैंड मिला ही नहीं। बावजूद इसके उनके नेतृत्व में अच्छे कार्यक्रम हुए, उसका श्रेय भले ही अकेले उनके खाते में नहीं जाता।
जो कुछ भी हो, अगर कार्यकारिणी एक साल पहले बन जाती तो आज संगठन का ढ़ांचा कुछ और ही होता। हो सकता है कि उसमें विवाद होते या कुछ कमियां रहतीं, मगर चुनाव से पहले उन्हें दुरुस्त किया जा सकता था। कम से कम कमियां सामने तो आतीं।
खैर, अब जबकि 30 जून तक बूथ लेवल तक की इकाइयों का गठन कर लेने के निर्देश दिए गए हैं, तो उम्मीद की जा रही है कि शहर की कार्यकारिणी व रिक्त ब्लॉक अध्यक्षों की घोषणा भी जल्दी हो जाएगी।
-तेजवानी गिरधर
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