सोमवार, 27 दिसंबर 2021

कासलीवाल की खबर ने बनाया इतिहास

सरकारी च्यवनप्राश को डकारने से वंचित हो गए सफेदपोश


खबर यदि दमदार हो तो वह अपना असर छोड़ती ही है। सरकार को भी उसके आगे नतमस्तक होना पड़ता है। इसका एक दिलचस्प वाकया आपकी नजर पेश है। मामला हालांकि थोड़ा पुराना है, मगर चूंकि वह इतिहास में अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज करवा गया, लिहाजा आपकी जानकारी में भी होना ही चाहिए। वाकया इस प्रकार है। प्रदेश के गरीबों को च्यवनप्राश व अन्य औषधियां वितरित करने के लिए अजमेर में स्थित आयुर्वेद निदेशालय के अधीन रसायनशाला में इनका निर्माण किया जाता था। यहां से प्रदेश के तीन हजार से अधिक औषधालयों को सप्लाई की व्यवस्था की गई थी। विधानसभा व सचिवालय स्थित औषधालयों को भी इसकी सप्लाई की जाने लगी। हर साल शीतकालीन बजट सत्र से पहले ही इन औषधालयों के मार्फत विधायकों व नौकरशाहों को भी च्यवनप्राश वितरित किया जाने लगा। असल में सभी औषधालयों के लिए तब करीब साढे तीन, चार हजार किलो च्यवनप्राश बनाया जाता था लेकिन इसमें से ढाई हजार किलो तो अकेले विधानसभा व सचिवालय के दो औषधालयों में ही सप्लाई होने लगा। बंदरबांट करके एक एक किलो के  सफेदपोशों व आला अफसरों को दिया जाने लगा। यह जानकारी जैसे ही दैनिक भास्कर के खोजी पत्रकार श्री सुरेश कासलीवाल को मिली तो उन्होंने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित कर दिया। इस खबर को तत्कालीन आयुर्वेद मंत्री इंदिरा मायाराम ने संज्ञान में लिया और मामले की गहराई से जांच करवाई। इसमें च्यवनप्राश का अधिकतर हिस्सा सफेदपोशों में बंट जाने व जरूरतमंदों के वंचित रहने की पुष्टि हो गई। इस पर उनके निर्देश पर विभाग के शासन सचिव ने आयुर्वेद निदेशक को जनवरी 2002 में पत्र लिख दिया। इसमें लिखा था कि चूंकि पिछले तीन साल के रिकार्ड से यह ज्ञात हुआ है कि रसायनशाला में जो च्यवनप्राश बन रहा है वह समस्त औषधालयों के जरूरतमन्द रोगियों को नहीं मिल पा है। अतः इसका निर्माण जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। अतः च्यवनप्राश का निर्माण तुरंत प्रभाव से बंद कर दिया जाए। अर्थात न रहेगा बांस न रहेगी बांसुरी। इस प्रकार सरकारी च्यवनप्राश को डकारने से वंचित हो गए सफेदपोश। जहां तक मुझे याद है, खबर का हेडिंग था, गरीबों का च्यवनप्राश खा जाते है सफेदपोश। दरअसल सरकारी औषधालयों में बहुत सी ओषधियाँ खाने में बहुत कड़वी होती थी, सरकार ने यह सोचकर च्यवनप्राश शुरू करवाया था कि गरीब लोग च्यवनप्राश के साथ उस ओषधि को मिलाकर ले सके। इसके अलावा जो शरीर से बहुत कमजोर हो उसे दिया जा सके। लेकिन गरीबों की जगह तीन चौथाई हिस्सा सफेदपोश व अफसरों की ताकत और उन्हें हष्ट पुष्ट बनाने के काम में आने लग गया था।

एक दिलचस्प बात ये हुई कि जैसे ही भास्कर में च्यवनप्राश के निर्माण पर रोक की खबर लगी तो एक अन्य समाचार ने यह प्रकाशित कर दिया कि आयुर्वेद रसायनशाला में च्यवनप्राश के निर्माण पर कोई रोक नहीं लगी है। बल्कि इसका निर्माण बदस्तूर जारी है। इस पर सुबह ही तत्कालीन संपादक श्री अनिल लोढा ने श्री कासलीवाल को फोन कर बताया कि आज तो अन्य समाचार पत्र ने आपकी खबर की धुलाई कर दी है। तब उन्होंने संपादक जी से बस इतना कहा कि सर भास्कर कल भी तो छपेगा। चूंकि कासलीवाल ने अपने भरोसेमंद सूत्रों के आधार पर ठोक बजा कर ही खबर बनाई थी इस कारण वे निष्चिंत थे। लेकिन मन में धुकधकि मच गई, उन्हें अपने सोर्स से वो पत्र जो लेना था। उनसे बातचीत हुई और सुबह रसायनशाला खुलते ही वहां पहुँच गए। जहां सोर्स ने उन पर जताए भरोसे को कायम रखते हुए चाय की थड़ी पर ही आदेश की कॉपी थमा दी। तब श्री कासलीवाल भास्कर आफिस में रोजाना सुबह होने वाली मीटिंग में पहुँचे ओर संपादक श्री अनिल लोढ़ा जी को उस आदेश की कॉपी सौपी। अगले दिन ही भास्कर के अंतिम पेज पर आयुर्वेद विभाग के उप शासन सचिव का वह पत्र ही, यह है सच्चाई, शीर्षक से प्रकाशित कर दिया जिसमें आयुर्वेद निदेशक को च्यवनप्राश के निर्माण पर रोक का आदेश दिया गया था। है न खबर के असर का दिलचस्प वाकया।  यह भी रोचक बात तब से लेकर आज तक राजकीय आयुर्वेद रसायनशाला में च्यवनप्राश का निर्माण वापस शुरू ही नहीं हो पाया। 

श्री कासलीवाल वर्तमान में दैनिक भास्कर अजमेर में ही अजमेर जिले के सेटेलाइट इंचार्ज हैं। उन्होंने इस प्रकार की अनेक स्टोरीज कवर की हैं, जिनके दूरगामी प्रभाव हुए हैं। खबरों के जरिए अनेक ऐसी जानकारियों से उन्होंने जनता को रूबरू करवाया है, जिसके बारे में किसी को पता नहीं लग पाया था। उनमें से एक खबर ये भी थी कि बाल विवाह पर रोक कानून बनाने वाले हरविलास शारदा खुद ही शिकार थे बाल विवाह के।

इसके अतिरिक्त एक बहुत ब्रेकिंग स्टोरी की, जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम लोकार्पण समारोह तक में नहीं गए। हुआ यह था जब श्री सुरेश कासलीवाल दैनिक भास्कर के ब्यावर ब्यूरो चीफ थे। तब टाटगढ़ में राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी का वहां पहाड़ी पर स्थित प्रज्ञा शिखर के लोकार्पण समारोह में आने का कार्यक्रम तय हुआ। उनके आने की तैयारियां भी शुरू हो गयी। इस बीच ही श्री सुरेश कासलीवाल ने यह खबर ब्रेक की कि राष्ट्रपति जहां लोकार्पण करने वाले हैं वहा जमीन ही विवादित है और कोर्ट में केस विचाराधीन है, ऐसे में राष्ट्रपति के हाथों लोकार्पण पर ही सवाल खड़े हुए। खबर की गूंज इतनी बड़ी थी कि सुरक्षा एजेंसियों के जरिये राष्ट्रपति भवन तक जा पहुचीं। विवाद से जुड़े कागजात भी तलब कर लिए गए। प्रशासन के भी हाथ पैर फूल गए। खबर का इतना जबरदस्त असर हुआ कि राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम तय दिन टाटगढ़ तो आये लेकिन पहाड़ी पर स्थित प्रज्ञा शिखर के लोकार्पण कार्यक्रम में नहीं गए बल्कि नीचे ही छोटे छोटे बच्चों से मिल कर ही वापस चले गए।

वस्तुतः कासलीवाल जी की दैनिक न्याय अखबार के समय से ही मुझसे काफी नजदीकी रही है। इसी कारण उनकी पत्रकारिता की यात्रा के बारे में मेरी गहन जानकारी है। इस कारण मैं पूरी जिम्मदारी व यकीन के साथ कह सकता हूं कि 

श्री कासलीवाल अजमेर के उन चंद पत्रकारों में शामिल हैं, जिन्होंने पत्रकारिता महज नौकरी के लिए नहीं की, बल्कि पूरे जुनून के साथ गहरे में डूब कर की। ऐसे ही जुनूनियों के लिए कहा गया है कि जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ।


स्वामी अनादि सरस्वती चिति संधान योग केन्द्र की प्रमुख


स्वामी अनादि सरस्वती को चिति संधान योग केंद्र के संस्थापक रहे स्वामी धर्म प्रेमानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के पश्चात उत्तराधिकारी घोषित किया गया है। स्वामी अनादि अब चिति संधान योग केंद्र का प्रमुख हो गई हैं। अजमेर के लोहागल रोड स्थित अनादि आश्रम में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में स्वामी अनादि को पगड़ी पहनाने की रस्म हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद महाराज ने अदा की। उन्होंने चादर ओढ़ाई और ब्रह्मा मंदिर के महंत प्रघानपुरी जी ने पगड़ी पहनाई। इस अवसर पर स्वामी चिन्मयानंद ने कहा कि अजमेर में ब्रह्माजी की नगरी पुष्कर होने के कारण ही स्वामी धर्म प्रेमानंद ने चिति संधान योग संस्थान की स्थापना अजमेर में की थी। इस मौके पर संन्यास आश्रम के स्वामी शिव ज्योतिषानंद, श्याम सुंदर शरण देवाचार्य आदि संत मौजूद थे।

स्वामी अनादि सरस्वतीे भावपूर्ण संबोधन में ब्रह्मलीन स्वामी धर्मप्रेमानंद जी के पावन श्रीचरणों में अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये संपूर्ण उत्तरदायित्व का वरण करने का प्रण लिया और चिति संधान योग की परंपरा और ध्येय को सतत आगे बढ़ाने के प्रयत्न में प्रण-प्राण से जुटे रहने का संकल्प लिया।

उनके एक प्रषंसक वीरेन्द्र मिश्र ने फेसबुक पर उनके व्यक्तित्व पर अनूठा षब्द चित्र खींचा है, वह इस प्रकार हैः-स्वामी श्री अनादि सरस्वती ने स्नातकोत्तर तक षिक्षा अर्जित की है। विगत पच्चीस वर्ष से भी अधिक समय में देश-विदेश में अनेक यात्रायें कर जनसभाएं की हैं और भारतीय मूल्यों और भारतीयता की सनातन परम्पराओं की अलख जगाई है।

पौराणिक प्रसंगों, उद्धरणों और कथा वस्तुओं को आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने की उनकी विशिष्ट और अनुपम शैली है, जो आधुनिक शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों विशेषकर युवाओं और तरुण वर्ग के मन-मस्तिष्क पर एक विशेष प्रभाव उत्पन्न करती है। स्वामी अनादि सरस्वती प्रकृति संवर्धन से जुड़े अनेकं प्रकल्पों पर कार्य करती हैं जिनमें वर्षा-जल-संरक्षण प्रमुख है। गौरक्षा प्रकल्प, बालकों-तरुणों के उत्तम पोषण और स्वास्थ्य से जुड़े प्रकल्प, युवाओं में व्याप्त नैराश्य और अवसाद की स्थिति को औषधियों और परामर्श द्वारा संपूर्ण रूप से दूर कर उन्हें कर्म और कर्तव्य का मार्ग दर्शाने की महती प्रयोजनाओं पर उनके कार्य उल्लेखनीय हैं। 

अनेकं आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय गतिविधियों से जुड़े कार्यक्रमों को अबाध गति प्रदान करने के अपने व्यस्ततम जीवन में स्वामी अनादि सरस्वती जी की दो पुस्तकें दैवी संपदा और अमृत संदेश प्रकाशनाधीन हैं।

यहां यह बताना प्रासंगिक ही होगा कि कि एक प्रखर साध्वी के रूप में कम उम्र में ही खासी लोकप्रिय हो जाने के कारण ही भाजपा उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर सीट से चुनाव लडाने पर विचार कर रही थी। कदाचित उन्होंने ही पर्याप्त रुचि नहीं ली।


दरगाह नाजिम अष्फाक हुसैन बहुत कुछ करना चाहते थे


अमूमन भले आदमी के साथ कुछ ज्यादा ही नाइंसाफी होती है। कायनात का यह कैसा निजाम है, आज तक समझ में नहीं आया। देवता भी आमतौर पर राक्षसों से परेषान होता है, जबकि देवता राक्षस को कोई तकलीफ नहीं देता। इस अनुभव के साथ मैं आपसे साझा करने जा रहा हूं हाल ही हुए एक वाकये का।

सब जानते हैं कि अजमेर में दरगाह ख्वाजा साहब का प्रबंध संभालने वाली दरगाह कमेटी में नाजिम के तौर पर काम कर रहे जनाब अष्फाक हुसैन ने एक कथित विवाद के चलते इस्तीफा दे दिया। 

हालांकि वे इस विवाद से पहले भी बेहतर तरीके से काम न कर पाने के कारण इस्तीफा दे चुके थे, 

जो कि नामंजूर कर दिया गया। मगर वह विवादित खबर के हो हल्ले के बीच दफ्न हो गया।

खैर, जो कुछ हुआ वह सब को पता है, मगर मैं वह पहलु आपको दिखाना चाहता हूं, जो ठीक से उजागर नहीं हो पाया।

आपको बता दूं कि जब वे आईएएस के रूप में सरकारी नौकरी से निवृत्त होने के बाद एक बार फिर दरगाह नाजिम नियुक्त हुए तो मेरी एक खास मुलाकात हुई। मैंने उनसे पूछा था कि पिछला कार्यकाल तो सबको पता है, इस बार क्या कुछ नया करना चाहेंगे।

उन्होंने बताया कि पिछली बार सरकारी नौकरी में रहते हुए पद संभाला था। इस बार केवल एक ही ख्वाहिष है कि दरगाह षरीफ में कुछ खास किया जाए। यहां के इंतजामात को और बेहतर किया जाए। जायरीन को बेहतरीन सुविधाएं दी जाएं। इसके अतिरिक्त दरगााह षरीफ, ख्वाजा साहब और सूफीज्म पर एक ऐसी वेब साइट बनाई जाए, जिसके जरिए पूरी दुनिया के लोगों को न केवल यहां के बारे में सब कुछ जानने का मौका मिले, अपितु हर आम ओ खास तक सूफीज्म का संदेष दिया जा सके। इतना ही नहीं, इस्लाम पर भी एक पुस्तक बनाने की इच्छा है, ताकि अनेक प्रकार की भ्रांतियां दूर की जा सकें। वेब साइट व लेखन के इस पाकीजा काम में सहयोग करने में मैने उनको वचन दिया। मगर अधिकतर समय कोराना में जाया हो जाने के कारण वह पूरा नहीं कर पाया, जिसका मुझे बेहद अफसोस है।

ऐसा नहीं है कि जनाब अष्फाक हुसैन को पहली बार विपरीत हालात से मुकाबिल होना पडा। इससे पहले भी जब वे अजमेर नगर सुधार न्यास के सचिव थे, तब भी एक वाकया हुआ था, जिस पर मैने तब ऊंट पर बैठे अश्फाक को काट खाया कुत्ता हैडिंग से एक ब्लॉग लिखा था।


आइये, देखते हैं उसमें क्या लिखा था

कहते है जब बुरा वक्त आता है तो ऊंट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट खाता है। आप कहेंगे कि ऊंट पर बैठे आदमी को कुत्ता कैसे काट सकता है? असल में जब कुछ बुरा वक्त आता है तो ऊंट जमीन पर बैठ जाता है और उसी वक्त मौका देख कर कुत्ता काट खाता है। ऐसा ही कुछ हो रहा है इन दिनों नगर सुधार न्यास के सचिव अश्फाक हुसैन के साथ।

कभी तेज-तर्रार अफसर के रूप में ख्यात रहे अश्फाक हुसैन दोधारी तलवार की धार पर से गुजरने वाले दरगाह नाजिम पद पर बिंदास काम कर चुके हैं। दरगाह दीवान और खादिमों के साथ तालेमल बैठाने के अलावा दुनियाभर से आने वाली तरह-तरह की खोपडिय़ों से मुकाबला करना कोई कठिन काम नहीं है। पिछले कुछ नाजिम तो बाकायदा कुट भी चुके हैं, मगर अश्फाक ने बड़ी चतुराई से इस पद को बखूबी संभाला। किसी के कब्जे में न आने वाले कई तीस मार खाओं को तो उन्होंने ऐसा सीधा किया कि वे आज भी उनके मुरीद हैं।

इन दिनों अश्फाक ज्यादा उखाड़-पछाड़ नहीं करते, शांति से अफसरी कर रहे हैं, मगर वक्त उन्हें चैन से नहीं रहने दिया जा रहा। सबसे ज्यादा परेशानी संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा से ट्यूनिंग नहीं हो पाने की वजह से है। और तो और, कांग्रेसी भी उनके पीछे पड़ गए हैं। न्यास की पृथ्वीराज नगर योजना में पात्र आवेदकों को भूखंड नहीं देने 

और भूमि के बदले भूमि का आवंटन न करने को लेकर पहले तो एक अखबार में लंबी-चौड़ी खबर छपवाई और फिर दूसरे ही दिन उनके चैंबर में जा धमके। पहले तो वे कांग्रेसियों के गुस्से को पीते रहे, मगर जैसे ही उनके मुंह से निकला कि वे तो प्रस्ताव बना कर कई बार जयपुर के चक्कर लगा चुके हैं, सरकार आपकी है, वहीं मामले अटके हुए हैं तो कांग्रेसी भिनक गए। उन्होंने इसे अपनी तौहीन माना। सरकार से तो लड़ नहीं सकते, अश्फाक पर ही पिल पड़े। हालात इतने बिगड़ गए कि कांग्रेसियों ने उन्हें इस कुर्सी पर नहीं बैठने देने की चेतावनी तक दे डाली। कांग्रेसियों व उनके बीच टकराव की असल वजह क्या है, अपुन को नहीं पता, मगर लगता है मामला प्रॉपर्टी डीलरों से टकराव का है।

खैर, कांग्रेसियों के हमले पर अपुन को याद आया कि ये वही अश्फाक हुसैन हैं, जिनकी गोपनीय रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अपेक्षित एक सौ एक नानकरामों में से एक नानकराम को कांग्रेस का टिकट मिला था। गहलोत उनसे इतने खुश हुए कि अपने गृह जिले जोधपुर ले गए। 

बहरहाल ताजा मामला भी पिछले वाकये जैसा है। वे दरगाह षरीफ में कुछ अच्छा करना चाहते थे, मगर कुछ ताकतों को यह नागवार गुजरा। दरगाह कमेटी के सदर से नाइत्तफाकी भी इसकी एक वजह रही। उन्हें ऐसे विवाद में उलझाने की कोषिष की गई, जिस पर किसी को यकीन नहीं हो रहा। 

आखिर में एक तथ्य का जिक्र किए देते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उनके कांग्रेस के टिकट पर पुश्कर विधानसभा सीट से चुनाव लडने की चर्चा थी। अब देखते हैं कि आगे क्या वे राजनीति की ओर रुख करेंगे या कुछ और।



शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

दोनों विधायकों के आगे फिर उपेक्षित हुए अध्यक्ष


लगातार चार बार जीत कर और अधिक मजबूत हो चुके अजमेर उत्तर के विधायक वासुदेव देवनानी व अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल के सामने एक बार फिर षहर भाजपा संगठन उपेक्षा का षिकार हो गया है। यह साजिषन हुआ या इत्तेफाक से, कुछ पता नहीं, लेकिन अजमेर नगर निगम की मेयर ब्रजलता तो यही आरोप लगा रही हैं कि उनके साथ ऐसा जान बूझकर किया गया।

ज्ञातव्य है कि राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ भाजपा की ओर से हल्ला बोल के लिए कलेक्ट्रेट पर प्रदर्षन किया गया। इस दौरान हुई वारदात ने एक बार फिर जता दिया है कि देवनानी व भदेल ने जाने-अनजाने षहर जिला भाजपा अध्यक्ष पद पर बैठे डॉ प्रियषील हाडा की उपेक्षा कर दी, जिसका षिकार उनकी धर्मपत्नी श्रीमती ब्रजलता हाडा भी हुईं।

सवाल ये उठता है कि जब यह पहले से तय था कि प्रदर्शन के बाद कलेक्टर को ज्ञापन देने के लिए सभी विधायक, शहर व देहात के जिलाध्यक्ष सहित महापौर को जाना था तो फिर देवनानी व भदेल षहर जिला अध्यक्ष व महापौर को साथ लिए बिना ही कलेक्टर के चैंबर में कैसे चले गए। उन्हें यह तो ख्याल रखना ही चाहिए था कि हाडा दंपति को भी साथ रखते। यूं नेताओं का आगे पीछे हो जाना कोई खास बात नहीं, मगर असल में विवाद इस कारण उत्पन्न हो गया कि विधायक तो अंदर पहुंच गए, जबकि हाडा दंपती को पुलिस वालों ने रोक दिया। स्वाभाविक रूप से उन्हें अपमान महसूस हुआ होगा। सच में देखा जाए तो यह चूक पुलिस के स्तर पर हुई। प्रष्न उठता है कि क्या वहां तैनात पुलिस कर्मी हाडा दंपति को नहीं जानते थे।   

इस घटना का गंभीर पहलु ये है कि महापौर साफ तौर पर आरोप लगा रही हैं कि पुलिसकर्मियों ने उन्हें कहा कि दोनों विधायक मना करके गए हैं कि किसी को अंदर नहीं आने दें। दूसरी ओर देवनानी ने सफाई दी कि अगर हमने यदि मना किया होता तो वह कैसे आते। हाड़ा दंपती पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। अगर वाकई यह बयान सही है तो यह और भी गंभीर बात उजागर हो गई कि हाडा दंपति व विधायकों के बीच पूर्वाग्रह हैं। 

महापौर हाडा की आपत्ति बिलकुल जायज है कि वे अजमेर षहर की प्रथम नागरिक हैं और उनके पतिदेव षहर जिलाध्यक्ष, जिनके नेतृत्व में ज्ञापन दिया जाना था, तो विधायक पहले कैसे चले गए।

घटना का रोचक पहलु ये रहा कि विधायक व अन्य पदाधिकारी जिला कलेक्टर के पास पहुंच गए, जबकि ज्ञापन हाडा के पास था और वे बिना ज्ञापन के वहां बैठे रहे। तकरीबन 15 मिनट बाद जब हाडा दंपति आए तभी जा कर औपचारिक तौर पर ज्ञापन दिया गया। चलो, विधायक पहले अंदर चले गए लेकिन महापौर को कम से कम इस पर संतुस्ट हो जाना चाहिए था कि उनके पतिदेव के आने पर ही ज्ञापन देने की रस्म अदा हुईं मगर वे गुस्से में एक कदम और आगे निकल गईं, जिससे इस वीडियो के आरंभ में गई पंक्तियों पर ठप्पा लग गया कि विधायकों के आगे संगठन कमतर रहा है। 

ब््रजलता हाडा ने कहा कि सारी व्यवस्था उन्होंने की है। बीते एक सप्ताह से लगातार तैयारियों में जुटे हुए हैं। तय था कि जिलाध्यक्ष के नेतृत्व में सभी विधायक ज्ञापन देंगे, लेकिन यहां क्रेडिट दोनों विधायक ले रहे हैं। यह परिपाटी गलत है। वाकई यही परिपाठी है। इन दोनों विधायकों के आगे संगठन अध्यक्ष सदैव बौना ही रहा है। अध्यक्ष कोई भी रहा हो, मगर कार्यकारिणी में अधिकतर पदाधिकारी इन दोनों विधायकों की पसंद के रहे हैं। रिकार्ड उठा के देख लीजिए कि नगर निगम के चुनावों में सदैव अधिकतर टिकट दोनों विधायक तय करते रहे हैं। असल में उसकी वजह ये कि ग्राउंड पर असल पकड विधायकों की है। वे ही कार्यकर्ताओं के काम करवाते हैं। इस कारण संगठन के अधिकतर पदाधिकारी व कार्यकर्ता विधायकों के व्यक्तिगत फॉलोअर हैं। यह असलियत भाजपा हाईकमान अच्छी तरह से जानता हैं मगर चूंकि वह जानता है कि पकड तो विधायकों की ही है इस कारण वह स्थिति को नजरअंदाज कर जाता है।

हाड़ा ने इस मामले को लेकर प्रदेश नेतृत्व को शिकायत भेजे जाने की बात कही है। हालांकि होना जाना कुछ नहीं है, मगर इस वारदात से यह साफ हो चुका है कि अध्यक्ष संगठन के मुखिया भले ही हों मगर चलती विधायकों की ही है।


मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

ओवैसी की नजर अजमेर पर भी


राजनीतिक गलियारे से यह खबर छन कर आ रही है कि जिस प्रकार ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवेसी उत्तर प्रदेष विधानसभा चुनाव में दखल देने के बाद दो साल बाद राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव का रुख करेंगे। बताया जाता है कि उन्होंने अपने संपर्कों के माध्यम से राज्य की मुस्लिम बहुल सीटों पर नजर रखना आरंभ कर दिया है। अजमेर जिले की बात करें तो पुस्कर के अतिरिक्त मसूदा और अजमेर उत्तर में उनकी पार्टी के उम्मीदवार मैदान में उतर सकते हैं। ज्ञातव्य है कि दरगाह ख्वाजा साहब व तीर्थराज पुष्कर की वजह से अजमेर दुनियाभर में अपनी पहचान रखता है। पुष्कर के अतिरिक्त अजमेर उत्तर व मसूदा में मुस्लिम मतदाता अच्छी तादाद में हैं। वैसे यह प्रत्याषियों की व्यक्तिगत छवि और दमखम पर निर्भर करेगा कि उनकी परफोरमेंस कैसी रहेगी क्योंकि फिलवक्त ओवेसी का यहां कोई प्रभाव नहीं है, लेकिन समझा जाता है कि मुस्लिम समुदाय का युवा वर्ग उनकी ओर आकर्षित हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो इन सीटों पर चुनाव लडने वाले कांग्रेस उम्मीदवारों को सावचेत रहना होगा। उन्हें जीतने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी होगी व नए जातीय समीकरण तलाषने होंगे। अगर ओवेसी सच में गंभीरता दिखाते हैं तो कांग्रेस पार्टी को भी प्रत्याषियों के चयन में अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। बेषक चुनाव दो साल बाद हैं, मगर ये दो साल देखते देखते कब गुजर जाएंगे, पता नहीं नहीं चलेगा।


गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

न चाहते हुए भी देवनानी ने रलावता को दी भरपूर तवज्जो

 कांग्रेस के वरिश्ठ नेता महेन्द्र सिंह रलावता व अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी के बीच जुबानी जंग जारी है। आए दिन एक दूसरे पर टीका टिप्पणी करते रहते हैं। गुरुवार को भी देवनानी ने पलटवार करते हुए बयान जारी किया है। हालांकि देवनानी का कहना है कि जब रलावता को कांग्रेस व जनता ही गंभीरता से नहीं लेती, तो मैं भी नहीं लेता, लेकिन बयान जितना लंबा और प्रहारक है, वह साबित करता है कि देवनानी ने रलावता को काफी गंभीरता से लिया है और उन्हें भरपूर तवज्जो दे रहे हैं।

बयान हालांकि उनके कार्यालय प्रभारी ने जारी किया है लेकिन चूंकि वह देवनानी की अधिकत ईमेल आईडी के जरिए आया है, इसलिए यही माना जाएगा कि कार्यालय प्रभारी ने देवनानी को बयान का मजमून दिखा कर ही मेल किया होगा। ऐसा भी संभव है कि देवनानी ने कार्यालय प्रभारी को प्रतिक्रिया देने को कहा हो और उन जनाब ने अति उत्साह में लंबा चौडा बयान टाइप कर दिया हो।

बयान में रलावता को हवाई बातें करने वाले व बडबोले नेता की संज्ञा दी गई है। उन्होंने रलावता के बयान के प्रत्युत्तर में कहा है कि जहां तक मेरी याददाश्त कमजोर होने और च्यवनप्राश खाने की बात है, वह तो पिछले चार चुनाव में जनता देख चुकी है और अब भी देख रही है। दरअसल, याददाश्त रलावता की कमजोर है और उन्हें च्यवनप्राश खाना चाहिए। जनता उन्हें विधानसभा चुनाव में नकार चुकी है। देवनानी ने कहा कि रलावता द्वारा उनके लिए च्यवनप्राश भेजने संबंधी दिया गया बयान रलावता की घटिया सोच और ओछी मानसिकता का द्योतक है। चलो इस आरोप प्रत्यारोप से यह तो पता लगा कि याददाष्त बढाने के लिए च्यवनप्राथ खाना चाहिए। वैसे एक बात है, देवनानी अमूमन निम्न स्तरीय बयान देने के आदी नहीं हैं, लेकिन ऐसा प्रतीता होता है कि उन्होंने रलावता के बयान को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया है।

देवनानी ने एक बात तो पते की की है। वो यह कि सारे विधायक सरकार की ओर से दिए जाने वाले धन से ही

विकास कार्य करवाते हैं न कि अपनी जेब से। कांग्रेसी विधायक भी। उनकी बात में दम है, मगर जब कुछ विधायक विकास कार्यों का षुभारंभ इस तरह से करते और उसका प्रचार करते हैं मानो अपनी जेब से करवा रहे हों तो जनता में यह जुमला सुना जा सकता है कि कौन सा अपनी जेब से करवा रहे हैं। सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि यदि षुभारंभ की खबरें जारी नहीं करेंगे तो जनता को पता कैसे लगेगा कि उनके विधायक ने कितने काम करवाए हैं, भले ही वे विधायक फंड से अर्थात सरकारी खजाने से हो रहे हैं।

बात ही बात में देवनानी केन्द्र सरकार के योगदान को बयां करने से नहीं चूके कि जल वितरण व्यवस्था सुधारने और मेडिकल कॉलेज सहित शहरभर में सैकड़ों विकास कार्य स्मार्टसिटी योजना के तहत कराए जा रहे हैं, जिसके लिए अरबों रूपए केंद्र सरकार दे रही है। 

उन्होंने कहा कि दरअसल रलावता आए दिन इस तरह के बयान चर्चाओं में बने रहने के लिए देते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि नेता लोग चर्चा में रहने के लिए ही बयान दिया करते हैं। मगर इस सच से भी इंकार नहीं किया जाना चाहिए कि बयान पर पलट बयान से रलावता और ज्यादा चर्चा में आ जाएंगे।

अपन इस बयानी कुष्ती को इस रूप में लेते हैं। देवनानी का बयान जारी करना इसलिए जायज बनता है कि वे अगले चुनाव में भी मैदान में उतरेंगे, क्योंकि लगातार चार बार जीतने के बाद पांचवीं बार उनका टिकट कटने का कोई कारण नजर नहीं आता। रहा सवाल रलावता का तो उनकी गतिविधियों से यह साफ झलकता है कि वे दुबारा चुनाव लडने की तैयारी कर रहे हैं।  

दोनों महानुभावों के बीच में अपना टांग फंसाना इसलिए गैर वाजिब नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि ये तो अपनी ड्यूटी है कि जनता को बयान वार की निश्पत्ति से तो वाकिफ करवाया जाए। वैसे यह अच्छी बात है, वही लोकतंत्र खूब फलता फूलता है, जिसमें चैक एंड बैलेंस होता हो। इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। ऐसी खींचतान से ही तो विकास का मार्ग प्रषस्त होता है।