मंगलवार, 6 नवंबर 2012

पुष्कर से दावेदारी के चक्कर में हैं इब्राहिम फखर?


इन दिनों भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष इब्राहिम फखर जिस तरह से पुष्कर के मामलों में रुचि ले रहे हैं, उससे यह कयासबाजी शुरू हो गई है कि कहीं वे पुष्कर से विधानसभा चुनाव की टिकट की दावेदारी के चक्कर में तो नहीं हैं? ज्ञातव्य है कि पुष्कर मेले को लेकर प्रशासन की सुस्ती व लापरवाही को मुद्दा बना कर अजमेर जिला भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा व भाजपा पुष्कर मंडल के संयुक्त तत्त्वावधान में कलेक्ट्रेट पर धरना दिया गया, जिसके कर्ताधर्ता इब्राहिम फखर थे। कुछ दिन पहले भी उन्होंने पुष्कर मेले के लिए पर्याप्त राशि जारी करने संबंधी बयान जारी किया था। इससे भी लगा था कि उनकी पुष्कर में रुचि है।
यदि पुष्कर भाजपा मंडल की ओर से ही धरना दिया जाता तो कोई खास बात नहीं होती, मगर अल्पसंख्यक मोर्चा और वह भी इब्राहिम फखर भी इसमें रुचि लेते हैं तो लोगों का चौंकना स्वाभाविक है। मुख्य रूप से अल्पसंख्यक मोर्चे की जिम्मेदारी अल्पसंख्यक मामलात में दखल देना व भाजपा में अल्पसंख्यकों की तादात बढ़ाना है। पुष्कर व पुष्कर मेले से उसका कोई लेना-देना नहीं है। न ही मेले में अल्पसंख्यक आते हैं, जिनकी खातिर वे इस मुद्दे पर जोर दे। यही वजह है कि इब्राहिम फखर के वहां से दावेदारी करने की चर्चा हो रही है।
यहां बताना प्रासंगिक ही होगा कि अब तक भाजपा नेता सलावत खां टिकट की खातिर से वहां काफी दिन से रुचि लेते रहे थे। उनके प्रयासों से मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के बैनर तले तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया, जिसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के भूतपूर्व सरसंघ चालक स्वर्गीय कु. सी. सुदर्शन व मंच के मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी। हालांकि इस आयोजन को संघ की ओर से मुसलमानों को अपने साथ जोडऩे की कवायद माना गया, लेकिन आयोजन के लिए पुष्कर का चयन करने को सलावत खान की पुष्कर सीट से चुनाव लडऩे की तैयारी के रूप में देखा गया।
जहां तक हिंदुओं के तीर्थस्थल पुष्कर से किसी मुस्लिम की दावेदारी का सवाल है, उसकी वजह इस विधानसभा क्षेत्र में मुसलमानों मतदाताओं की पर्याप्त संख्या है। वर्तमान में वहां से कांग्रेस की श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ विधायक हैं और राज्य की शिक्षा राज्य मंत्री हैं। इस सीट से पूर्व में भी पूर्व मंत्री स्वर्गीय रमजान खान विधायक रह चुके हैं।  रमजान खान यहां से 1985, 1990 व 1998 में चुनाव जीते थे। 1993 में उन्हें विष्णु मोदी ने और उसके बाद 2003 में डा. श्रीगोपाल बाहेती ने परास्त किया। मोदी से हारने की वजह ये रही कि उनका चुनाव मैनेजमेंट बहुत तगड़ा था। हार जीत का अंतर कुछ अधिक नहीं रहा। मोदी (34,747) ने रमजान खां (31,734) को मात्र 3 हजार 13 मतों से पराजित किया था। डा. बाहेती से रमजान इस कारण हारे कि भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा ने निर्दलीय रूप से मैदान में रह कर तकरीबन तीस हजार वोटों की सेंध मार दी थी। बाहेती (40,833) ने रमजान खां (33,735) को 7 हजार 98 मतों से पराजित किया था, जबकि पलाड़ा ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 29 हजार 630 वोट लिए थे। स्पष्ट है कि रमजान केवल पलाड़ा के मैदान में रहने के कारण हारे थे। यदि पलाड़ा नहीं होते तो रमजान को हराना कत्तई नामुमकिन था।
कुल मिला कर यह सीट भाजपा मुस्लिम प्रत्याशी के लिए काफी मुफीद रह सकती है। एक तो उसे मुस्लिमों के पूरे वोट मिलने की उम्मीद होती है, दूसरा भाजपा व हिंदू मानसिकता के वोट भी स्वाभाविक रूप से मिल जाते हैं। इसी गणित के तहत रमजान तीन बार विधायक रहे और दो बार निकटतम प्रतिद्वंद्वी। हालांकि एक फैक्टर ये भी है कि रमजान पुष्कर के लोकप्रिय नेता थे। गांव-गांव ढ़ाणी-ढ़ाणी उनकी जबदस्त पकड़ थी। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसके मुस्लिम प्रत्याशी के लिए यह सीट उपयुक्त नहीं है, फिर भी पिछली बार श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ (42 हजार 881) ने भाजपा प्रत्याशी पलाड़ा (36 हजार 347) को 6 हजार 534 मतों से हरा दिया। वजह ये रही कि भाजपा के बागी श्रवणसिंह रावत 27 हजार 612 वोट खा गए। ज्ञातव्य है कि रावत मतदाताओं की पर्याप्त संख्या होने के आधार पर ही शहर जिला भाजपा अध्यक्ष रासासिंह रावत की रुचि पुष्कर से चुनाव लडऩे में है, मगर दिक्कत ये है कि ब्यावर की सीट रावतों के लिए काफी बेहतर है, तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि जिले में एक साथ दो रावतों को भाजपा टिकट देने का निर्णय करेगी?
बहरहाल, कदाचित कुछ गुंजाइश देख कर ही इब्राहिम फखर पुष्कर क्षेत्र में दखल देने की सोच रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर