मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

रावत पर नई बोतल में पुरानी पेप्सी डालने का दबाव

शहर के दोनों भाजपा विधायकों प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल के एक-दूसरे की लॉबी का अध्यक्ष बर्दाश्त न करने के चक्कर में सर्वसम्मति के रूप में प्रो. रासासिंह रावत शहर भाजपा अध्यक्ष पर काबिज होने से जहां पार्टी में उत्साह का संचार हुआ है, वहीं प्रो. रावत की फ्री हैंड नहीं मिलने की आशंका बरकरार है। एक तो दोनों विधायक अपने-अपने शागिर्दों को एडचस्ट करने का दबाव बना रहे हैं, वहीं वर्षों से संगठन पर काबिज नेता भी कुर्सी नहीं छोडऩे की जिद किए हुए हैं। ऐसे में प्रो. रावत के सामने नई बोतल में पुरानी पेप्सी डालने की नौबत आती दिखाई दे रही है। और अगर ऐसा हुआ तो शिव शंकर हेड़ा वाली शहर भाजपा और प्रो. रावत की भाजपा में कोई फर्क नहीं होगा। उस पर लेबल तो प्रो. रावत के नाम से नया होगा, मगर माल पुराना ही होगा। और सब जानते हैं कि पुराने माल की सारी गैस निकली हुई होती है। बोतल का ढक्कन खुलने पर उसमें से झाग नहीं निकलेंगे। और अगर विपक्ष की भूमिका निभाने वाली भाजपा में झाग नहीं आए शहर भाजपा के लिए की गई लंबी कवायद बेकार चली जाएगी।
सब जानते हैं कि हेड़ा वाली भाजपा की हालत क्या थी। दोनों विधायकों ने ही इतनी दादागिरी कर रखी थी कि वे खुद ही लुंज-पुंज हो गए थे। इस लाचारी का इजहार उन्होंने पिछले नगर निगम चुनाव में किया था, जब प्रत्याशियों का चयन तो उनकी अध्यक्षता में हुआ, मगर खुद उनकी नहीं चली। इतना ही नहीं उनकी कार्यकारिणी में ऐसे कई पदाधिकारी थे, जो कि केवल विज्ञप्तियों के जरिए अखबारों में दिखाई देते थे, मगर उनका जनाधार कुछ नहीं था। इसी वजह से भाजपा के अनेक विरोध प्रदर्शन फीके ही रहते आए। जानकारी के अनुसार पुराने पदाधिकारी नई कार्यकारिणी में भी शामिल होने के लिए एडी चोटी का जोर लगा रहे हैं। इसके लिए वे प्रदेश भाजपा नेताओं का दबाव बना रहे हैं। इस तरह से प्रो. रावत पर तिहरा दबाव बना हुआ है। हालांकि वे दावा तो पार्टी में नई जान फूंकने का करते हैं, मगर देखना ये है कि वे इस दबाव के बीच अपनी कितनी पसंद मनवा पाते हैं। अगर वे नए और जनाधार वाले नेताओं को नहीं उभार पाए तो सांसद के साथ-साथ संगठन अध्यक्ष के रूप में भी नाकामयाब नेता माना जाएगा।
कांग्रेसियों से ही मिल रही है कलेक्टर को चुनौती
गणतंत्र दिवस समारोह के फीके होने पर पर्यटन मंत्री श्रीमती बीना काक की नाराजगी का शिकार हो चुकी जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल एक बार फिर कांग्रेसी नेता व सरपंच संघ के नेता भूपेन्द्र सिंह राठौड़ के निशाने पर हैं। राठौड़ ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और बाकायदा अजमेर के सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट को लिखित में शिकायत कर दी है। हालांकि उन्हें अन्य सरपंचों के दबाव में ऐसा करना पड़ रहा है, मगर माना तो यही जा रहा है कि कांग्रेसी ही अपने राज की खिलाफत कर रहे हैं। चौंकाने वाली बात ये है कि जिला कलेक्टर के राज्य सरकार के अधीन होने के बावजूद उन्होंने जिले की जनता से सीधे जुड़े कांग्रेसी विधायकों का सहयोग लेने की बजाय केन्द्रीय मंत्री से दखल देने की गुहार लगाई है। ऐसा नहीं है कि राठौड़ सरकार के खिलाफ पहली बार मुखर हुए हैं। वे पूर्व में सरपंचों के प्रांतव्यापी आंदोलन में भी खुल कर भाग ले चुके हैं। तब एक बार तो उत्तेजना में सरकार के खिलाफ क्रीज से काफी बाहर आ कर खेले थे, मगर अपने कृत्य पर कांग्रेस विरोधी होने की छाप लगने के डर से दूसरे ही दिन पैर पीछे खींच लिए।
हालांकि यह सही है कि सरपंच का चुनाव पार्टी के आधार पर नहीं होता, इस कारण किसी सरपंच को सीधे तौर पर कांग्रेसी या भाजपाई नहीं कहा जा सकता, मगर राठौड़ कांग्रेसी हैं, यह किसी ने छिपा हुआ नहीं है। वे केकड़ी विधायक डॉ. रघु शर्मा के शागिर्द हैं। इतना ही नहीं सूचना तो यहां तक है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट हासिल करने की जाजम तक बिछा रहे हैं।