शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

सचिन पायलट का विकल्प अब है भी तो नहीं

sachin paylet 02अजमेर की शहर जिला व देहात जिला कांग्रेस इकाइयों ने एक सुर से मौजूदा सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात मंत्री सचिन पायलट को ही अजमेर से दुबारा टिकट देने की पैरवी है। कांग्रेस हाईकमान की ओर से भेजे कए पर्यवेक्षक को फीडबैक देते हुए सचिन की तारीफ में ये कहा गया है कि उनके लिए सभी कांग्रेसजन एकजुट हैं और विकास पर ध्यान देने के कारण जनता उनको चाहती है। सचिन के इस गुणगान पर किसी को कोई आश्चर्य नहीं है। वजह ये है कि सचिन के मुकाबले का दूसरा विकल्प है भी तो नहीं। यदि कोई लुके-छिपे दावेदार होंगे भी तो कम से कम सचिन के सामने तो खड़े होने की स्थिति में नहीं हैं।
यहां रेखांकित करने वाली बात ये है कि अजमेर में दमदार दावेदार न होने के कारण ही तो पिछली बार बाहरी होते हुए भी उन्हें टिकट दिया गया था। अब तो केन्द्र में मंत्री भी हैं, सो उनके सामने खड़ा हो कर दावेदारी करने की हिम्मत शायद ही कोई करे। हर लुका-छिपा दावेदार जानता है कि उसकी दावेदारी को सुनने वाला कौन है। यदि हाईकमान सचिन को ही टिकट देने की ठान लेगा तो उनके दावे के तो कोई मायने ही नहीं रह जाएंगे। पिछली बार देहात जिला कांग्रेस अध्यक्ष नाथूराम सिनोदिया ने पूर्व विधायक डॉ.श्रीगोपाल बाहेती की पैरवी की थी, मगर अब वे पूरी तरह से सचिन के साथ हैं। पहले एडवोकेट जसराज जयपाल की अध्यक्षता वाली शहर इकाई जरूर उनके खिलाफ थी, मगर सचिन ने उसका कब्जा अपनी लॉबी के महेन्द्र सिंह रलावता को दिला रखा है। वे सचिन के गुण नहीं गाएंगे, तो किसके गायेंगे?
आइये, जरा पिछली बार की स्थिति पर नजर डाल लें। तब सबसे तगड़े दावेदार पूर्व सांसद विष्णु मोदी थे, क्योंकि वे इसी शर्त के साथ भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में लौटे थे। मगर इसी बीच सचिन का नाम आ गया। सचिन व मोदी के नाम की सुगबुगाहट के बावजूद स्थानीय दावेदारों ने खम ठोका था। तब शहर कांग्रेस ने पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को प्रत्याशी बनाने के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया था। शहर कांग्रेस अध्यक्ष जसराज जयपाल की अध्यक्षता में हुई बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया था कि डॉ. बोहती अजमेर के जनप्रिय नेता हैं, कांग्रेस कार्यकर्ताओं का भी उनसे लगाव है। स्थानीय कांग्रेसी होने के नाते उन्हें लोकसभा का टिकट मिलना चाहिए। जिले के दो विधायकों, पुष्कर की नसीम अख्तर इंसाफ व किशनगढ़ के नाथूराम सिनोदिया भी डॉ. बाहेती की पैरवी कर दी थी। यहां उल्लेखनीय है कि किशनगढ़ विधायक सिनोदिया देहात जिला कांग्रेस अध्यक्ष भी थे। केकड़ी के रघु शर्मा व नसीराबाद के महेन्द्र सिंह गुर्जर जरूर पूर्व सांसद विष्णु मोदी के साथ थे। डॉ. बाहेती के प्रति सर्वसम्मति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्थानीय प्रमुख कांग्रेसी नेताओं का दल उनकी पैरवी करने को दिल्ली कूच कर चुका था, मगर बताते हैं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कहने पर वे अजमेर लौट आए। गहलोत को पता लग चुका था कि टिकट तो सचिन को ही दिया जाएगा, सो काहे को विवाद खड़ा किया जाए। वे जानते थे कि बाहेती की दावेदारी के पीछे उन्हीं का हाथ माना जाएगा। कुल मिला कर शहर व देहात जिला कांग्रेस का समर्थन बाहेती को मिल जाने के बाद भी कांग्रेस हाईकमान ने सचिन को मैदान में उतार दिया।
प्रसंगवश बता दें कि तब विधानसभा चुनाव में हार से बौखलाए अजमेर डेयरी सदर रामचंद्र चौधरी ने भी दमदार तरीके से अपनी दावेदारी पेश की थी। इसी प्रकार पूर्व जिला प्रमुख रामस्वरूप चौधरी ने भी किशनगढ़ के कुछ नेताओं व जाटों के साथ दावेदारी की। महज दावेदारी करने के लिए तब पूर्व विधायक हाजी कयूम खान, नरेन शहाणी भगत, महेन्द्र सिंह रलावता जयशंकर चौधरी, सौरभ बजाड़, सुआलाल चाड व मोक्षराज आर्य ने भी अपनी अर्जियां पेश की थीं।
इसी सिलसिले में यह बताना प्रासंगिक रहेगा कि अजमेर में सचिन से पहले प्रभा ठाकुर को छोड़ कर कांग्रेस के सारे प्रत्याशी भाजपा के रासासिंह रावत के सामने धराशायी हो गए थे। उनमें बाबा गोविंद सिंह गुर्जर, किशन मोटवानी, जगदीप धनखड़, हाजी हबीबुर्रहमान शामिल हैं। प्रभा ठाकुर एक बार जीतीं और एक बार हारीं। पिछली बार कांग्रेस के बाहरी प्रत्याशी सचिन के सामने भाजपा ने भी बाहरी किरण माहेश्वरी को उतारा, मगर भाजपा का वह प्रयोग विफल हो गया।
बहरहाल, अब माहौल बदल चुका है। सचिन सिटिंग एमपी तो हैं ही केन्द्र में राज्यमंत्री भी हैं। उनकी परफोरमेंस भी ठीक मानी जा रही है। ऐसे में शायद ही कोई प्रबल दावेदार उभर कर आए। हां, अगर सचिन ही सीट बदलने की सोचें तो बात अलग हो सकती है।
वैसे एक बात है। माना कि शहर व देहात की दोनों इकाइयां भले ही सचिन के साथ हों, मगर इसका ये अर्थ निकालना ठीक नहीं होगा कि अजमेर जिले की पूरी कांग्रेस सचिन से राजी है। आज भी कई दिग्गज सचिन को पसंद नहीं करते। इनमें जसराज जयपाल, डॉ. बाहेती आदि को शामिल किया जा सकता है। यानि कि सचिन के केन्द्र में मंत्री होने के साथ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से करीबी होने के बावजूद उन्होंने अपना स्टैंड कायम रखा है और यही उनकी क्रेडिट है।
-तेजवानी गिरधर