गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

दरगाह ब्लास्ट मामला : सोची-समझी रणनीति है सरकार की?


ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार दरगाह बम ब्लास्ट मामले में एटीएस सोची-रणनीति के तहत काम कर रही है। हालांकि जब तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेता इस प्रकार के आरोप लगा रहे थे तो उनमें राजनीतिक मकसद साफ नजर आता था, मगर अब जब कि केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री गुरुदास कामथ का यह बयान सामने आया है कि दरगाह बम ब्लास्ट सहित देश के अन्य स्थानों पर हुए धमाकों के आरोपी असीमानंद ने कुछ संगठनों के इशारे पर अपना बयान बदला है, यह संकेत मिल रहे हैं कि सरकार की इसमें गहरी रुचि है कि इस प्रकरण के जरिए संघ और भाजपा को घेरा जाए। हालांकि कामथ ने उन संगठनों का नाम नहीं लिया, लेकिन यह कह कर कि वे संगठनों के नाम नहीं लेंगे, क्योंकि सब जानते हैं कि वे संगठन कौन से हैं, स्पष्ट है कि उनका इशारा साफ तौर पर संघ और भाजपा की ओर ही है। और कामथ गृह राज्य मंत्री के नाते तटस्थ रहने की बजाय उनके खिलाफ प्रवक्ता का काम कर रहे हैं। वजह साफ है कि असीमानंद की पलटी से मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित अन्य कांग्रेसी दिग्गजों की क्रीज से आगे बढ़ कर की जा रही बयानबाजी पर असर पड़ रहा है।
कामथ ने तर्क दिया है कि असीमानंद पेशी के दौरान दर्जनों बार मीडिया के सामने आया और वह चाहता तो सुरक्षा एजेंसियों पर जबरिया बयान लिए जाने की बात उठा सकता था, मगर वह अब भारी दबाव में और सोच-समझ कर मजिस्ट्रेट के समक्ष इकबालिया बयान को बदल रहा है। इससे उसकी पैंतरेबाजी को समझना चाहिए। कामथ के इस तर्क में कुछ दम मान भी लिया जाए, मगर सवाल ये उठता है कि सरकार की इसमें क्या रुचि है कि आरोपी क्या बयान दे रहा है और बयान क्यों बदल रहा है? सरकार को तो सिर्फ इस बात से मतलब होना चाहिए कि जिसने अपराध किया है, उसको सजा मिले। फिर वह चाहे किसी भी संगठन से जुड़ा हुआ क्यों न हो। उसकी इसमें दिलचस्पी क्यों है कि वह किन्हीं संगठनों के कहने पर बयान बदल रहा है? आरोपी तो आरोपी है, वही झूठ नहीं बोलेगा तो कौन बोलेगा? चोर कब कहेगा कि हां उसने चोरी की है? यह तो सुरक्षा एजेंसियों की जिम्मेदारी है, जिन्होंने चोर को पकड़ कर कोर्ट के समझ हाजिर किया है, कि यह साबित करें कि आरोपी ने चोरी की है। कामथ के इस बयान से ऐसा प्रतीत होता है कि जब तक असीमानंद के बयान संघ और भाजपा के प्रतिकूल थे, तब कांग्रेसनीत सरकार प्रसन्न थी क्योंकि उनसे उसका राजनीतिक मकसद पूरा हो रहा है, लेकिन जैसे ही उसने बयान बदला, सरकार की पेशानी पर लकीरें उभर आई हैं। सरकार यह सोच रही है कि असीमानंद की स्वीकारोक्ति को आधार बना कर वह संघ और भाजपा पर हमले कर रही थी, लेकिन अब असीमानंद बयान बदल रहा है तो वह क्या रुख अख्तियार करे।
वैसे सच ये भी है कि असीमानंद के इकबालिया बयान से सभी चौंके थे। बुद्धिजीवी इस बात पर माथापच्ची कर रहे थे कि वह समर्पण की स्थिति में क्यों कर है। कोई कह रहा था कि संघ के इशारे पर ही उसने सोची-समझी रणनीति के तहत बयान दिया था, ताकि संघ के बड़े नेताओं तक सुरक्षा एजेंसियों के हाथ न जाएं और सारी जिम्मेदारी उसी पर आयद कर दी जाए। कोई कह रहा था कि वह शुरुआत में तो सुरक्षा एजेंसियों को सहयोग करेगा और बाद में रुख बदलेगा। कुल मिला कर उसके बयान और उसकी बॉडी लैंग्वेज पर सब की गहरी नजर थी। केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री के ताजा बयान से असीमानंद की हरकतें और अधिक आकर्षित हो जाने वाली हैं।
बहरहाल, इस बात की आशंकाएं भी उठने लगी हैं कि सरकार जानबूझकर इस मामले को लंबा खींचना चाहती है ताकि आगामी चुनाव के आने तक इस मामले में कुछ और दिग्गजों पर भी शिकंजा कसा जा सके। बताते तो यहां तक हैं कि सरकार के हाथ धीरे-धीरे संघ प्रमुख भागवत की ओर खिसक रहे हैं और उनके पांच दिन के अजमेर के प्रवास को इस मामले से जोड़ कर देखा जा रहा है। देखते हैं क्या होता है?