बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

क्या ब्रह्मा मंदिर की प्रतिष्ठा से खिलवाड़ कर रहे हैं जिला कलेक्टर?

तेजवानी गिरधर
तीर्थराज पुष्कर में स्थित विश्वविख्यात ब्रह्मा मंदिर इसके महंत सोमपुरी का एक सड़क दुर्घटना में निधन होने के बाद नए महंत की नियुक्ति को लेकर हो रही जद्दोजहद के कारण चर्चा में है। जाहिर तौर पर रोजाना फॉलोअप के रूप में खबरें मीडिया में छायी हुई हैं। उनमें कुछ नकारात्मक भी हैं। मीडिया की भूमिका महज इतनी सी है कि वह जो कुछ सच है, उसे सामने ला रहा है। मगर कुछ लोगों का मानना है कि नकारात्मक खबरों के कारण मंदिर की प्रतिष्ठा को आंच आ रही है, अत: मीडिया को संयम बरतना चाहिए। कुछ लोग इसके लिए जिला कलेक्टर गौरव गोयल को भी जिम्मेदार मान रहे हैं, जो कि किसी भी प्रेशर ग्रुप के दबाव में नहीं आ रहे। न तो वे किसी धार्मिक या सामाजिक शख्स के प्रभाव में आ रहे और न ही जनप्रतिनिधि को दखल देने दे रहे। नतीजतन नित नई परतें खुलतीं हैं। उससे ब्रह्मा मंदिर के प्रति आस्था रखने वाले आहत होते हैं। कुछ को तो इस बात की शिकायत है कि प्रशासन ऐसा प्रदर्शित करने में लगा हुआ है, मानो ब्रह्मा मंदिर में दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला हो गया हो, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। करोड़ों हिंदुओं की आस्था के इस केन्द्र के समस्त कमरों को खंगालने के उपरांत 10 -12 लाख रुपए ही मिले हैं। एक दबी दबी सी शिकायत ये भी है कि हिंदुओं का प्रमुख आस्था केन्द्र प्रशासन व पुलिस के कब्जे में क्यों है?  मगर आस्था अपनी जगह है और कानून अपनी जगह।
संभव है कि मंदिर की प्रतिष्ठा को लेकर चिंतित कुछ लोग मात्र आस्था की वजह से मुखरित हों, मगर ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लोग इस कारण चिंतित हैं, क्योंकि जिला कलेक्टर के विनम्र मगर सख्त तरीके से कानून सम्मत काम करने के कारण मंदिर के मामले में रुचि ले रहे चंद लोगों पर सवाल उठने लगे हैं। मीडिया की तटस्थता से भी कुछ लोगों को तकलीफ है, जबकि यह अत्यंत ही गौरव की बात है कि अधिसंख्य पत्रकार तीर्थराज पुष्कर से धार्मिक या सामाजिक तौर पर जुड़े होने के बाद भी खबरों में पूरी निष्पक्षता बरत रहे हैं।
सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि महंत के निधन के बाद से लेकर अब तक जिला कलेक्टर जिस प्रकार मामले को हैंडल किया है, उसकी प्रशासनिक दृष्टिकोण से सराहना की जा रही है। सच तो ये है कि यही कार्य कुशलता राजनीति के उच्च स्तर पर बारीकी से आंकी जा रही है। अब तक एक भी ऐसा प्रकरण सामने नहीं आया है, जिससे लगता हो कि उन्होंने आस्था व प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ किया हो। किसी भी प्रमुख धार्मिक व्यक्ति अथवा राजनेता ने उनकी कार्यप्रणाली पर सार्वजनिक रूप से सवाल नहीं उठाया है। मगर चंद निहितार्थी इससे असहज हो रहे हैं। हां, इतना जरूर है कि जो प्रमुख व्यक्ति इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ कर देख रहे हैं और मानसिकता विशेष से जुड़े जो लोग मंदिर पर काबिज होने में असफल हो रहे हैं, वे अंदरखाने शिकायत दर्ज करवा रहे हैं। दूसरी ओर जिला कलेक्टर इतने चतुर है कि मामले के हर बिंदु से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को अवगत कराते हुए अपना विश्वास बनाए हुए हैं। कदाचित प्रेशर ग्रुप कामयाब हो भी गया तो वे जयपुर, यहां तक कि दिल्ली में किसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के लिए बुला लिए जाएंगे। वैसे भी किसी आईएएस अधिकारी के लिए स्थान विशेष में रुचि नहीं होती, उसकी रुचि तो इसमें होती है कि किस प्रकार सत्ता के साथ तालमेल बैठा कर बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी पर काम करने का मौका हासिल करे।
खैर, बात मंदिर की प्रतिष्ठा की करें तो ये बात बेमानी लगती है कि मंहत विवाद के बाद वहां प्रतिदिन जो प्रशासनिक कवायद हो रही है और उसकी खबरें प्रकाशित होती हैं, उससे मंदिर बदनाम होता है।
आपको याद होगा कि कुछ इसी प्रकार की चिंता ब्लैकमेल कांड उजागर होने के बाद लगातार आ रही खबरों में उसमें संलिप्त कुछ खादिमों  का जिक्र आने पर दरगाह से जुड़े लोगों को ऐसा लगता था कि इससे दरगाह बदनाम हो रही है, मगर सच्चाई ये है कि ख्वाजा साहब के प्रति आस्था रखने वालों पर उसका कोई असर नहीं पड़ा, उलटे उसके बाद दरगाह आने वाले जायरीन की संख्या बढ़ी ही है। ठीक उसी प्रकार सृष्टि के रचियता व उनके एक मात्र मंदिर के प्रति आस्था रखने वालों पर कोई असर नहीं पडऩे वाला।  ऐसा लगता है कि जिन लोगों को ब्रह्मा मंदिर के बदनाम होने का खतरा है,  या तो उनकी आस्था कुछ कमजोर है या फिर वे नहीं चाहते कि दूध का दूध पानी का पानी हो।
आखिर में बड़ा सवाल। क्या ब्रह्मा मंदिर की प्रतिष्ठा का ख्याल रखते हुए वहां अब तक हुई आर्थिक गड़बड़ी को दफ्न कर दिया जाना चाहिए?
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000

एसपी को हटाने की मांग सार्वजनिक रूप से क्यों करनी पड़ी सांखला को?

अजमेर नगर निगम के उपमहापौर सम्पत सांखला ने मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे को पत्र लिखकर मांग की है कि चूंकि अजमेर शहर में कानून व्यवस्था कायम करने में वर्तमान पुलिस अधीक्षक पूरी तरह से फेल हैं, अत: किसी योग्य एवं ईमानदार पुलिस अधीक्षक को लगाया जाए। जाहिर तौर पर सत्तारूढ़ दल के जिम्मेदार पदाधिकारी का इस प्रकार बाकायदा बयान जारी कर मांग करना चौंकाने वाला है। जहां सांखला को उनकी इस हिम्मत के लिए कुछ लोग दाद दे रहे हैं, वहीं सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसी नौबत क्यों आई कि उन्हें पार्टी मंच के जरिए अथवा सीधे सरकार से संपर्क करने की बजाय सार्वजनिक रूप से मांग करनी पड़ी?
यह सही है कि विकास कुमार के यहां एसपी होने के दौरान कानून व्यवस्था में सुधार आया था और अपराधियों में खौफ कायम हुआ था, जबकि मौजूदा एसपी नितिनदीप के कार्यकाल में चेन स्नेचिंग, चोरी, नकबजनी की वारदातें तो बढ़ी ही हैं, खुलेआम गोलियां भी चल रही हैं, ऐसे में कानून व्यवस्था पर सवाल उठना ही चाहिए था। संपत सांखला ने वाकई जनभावना का ख्याल रखते हुए वाजिब मांग उठाई है। इसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं। उनकी मंशा पर तो कोई सवाल ही नहीं, मगर सवाल ये उठता है कि अजमेर शहर से ही दो राज्य मंत्रियों व जिले से दो संसदीय सचिवों के अतिरिक्त एक प्राधिकरण अध्यक्ष व एक आयोग अध्यक्ष की सरकार में भागीदारी होते हुए यह मसला उन्हें अकेले सार्वजनिक रूप से क्यों उठाना पड़ा? क्या इसका ये अर्थ निकाला जाना चाहिए कि उनसे कई गुना अधिक जिम्मेदार राजनेताओं को मौजूदा एसपी से कोई शिकायत नहीं, जो वे चुप हैं और एसपी को नहीं हटवा रहे? ऐसे में चौंकाता ये नहीं कि सांखला ने सत्तारूढ़ दल का नेता होते हुए सार्वजनिक रूप से मांग कैसे कर दी, बल्कि चौंकाता ये है कि उनके बड़े नेता क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं? कहने की जरूरत नहीं कि शहर की बहबूदी की जिम्मेदारी बड़े नेताओं की ज्यादा है।
बहरहाल, अगर सांखला की इस मांग पर कार्यवाही होती है तो स्वाभाविक रूप से वे वाहवाही के पात्र होंगे। ये बात दीगर है कि एसपी की पदोन्नति डीआईजी के पद पर हो चुकने के बाद उनका तबादला जल्द होना तय है।