गुरुवार, 25 जुलाई 2013

मास्साब चौधरी जी को निपटाना आसान नहीं होगा

अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट से खुला पंगा लेने वाले अजमेर देहात जिला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी को भले ही पायलट के इशारे पर उनके गुट के नेताओं ने चारों से ओर से घेर लिया है, मगर उन्हें निपटाना इतना आसान भी नहीं होगा। हांलाकि कांग्रेस एक समुद्र है और इसमें न जाने कितने रामचंद्र चौधरी आए और गए, साथ ही सचिन के सीधे राहुल गांधी से ताल्लुक भी हैं, मगर जहां तक स्थानीय राजनीति का सवाल है, चौधरी को नजरअंदाज करना हंसी खेल नहीं है। एक तो मदेरणा-मिर्धा लॉबी के आशीर्वाद के कारण उनको बेदखल करने से पहले पार्टी दस बार सोचेगी। दूसरा जाट खेमा पहले से ही पार्टी से नाराज चल रहा है और जिले में तकरीबन ढ़ाई लाख जाट वोट हैं, उनको चलते रस्ते नाराज करना मंहगा पड़ सकता है। मगर यदि भारी दबाव के चलते उन्हें पार्टी से बाहर करने की नौबत आ भी गई तो वे विधानसभा चुनाव और बाद में लोकसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
आपको पता होगा कि चौधरी हसबैंड मेमोरियल स्कूल में फिजिक्स के टीचर रहे हैं और अजमेर डेयरी पर वर्षों से उनका एकछत्र राज है। पुराने लोगों में मास्साब के नाम से जाने जाने वाले चौधरी की को-ऑपरेटिव मूवमेंट पर कितनी पकड़ है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देहात जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद भी और जिले के दिग्गज जाट नेता पूर्व मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट व पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के एडी चोटी का जोर लगाने के बाद भी उन्हें डेयरी से बेदखल नहीं किया जा सका। हालांकि ऊपर मदेरणा-मिर्धा लॉबी का वरदहस्त है, मगर स्थानीय स्तर पर अकेले अपने दम पर राजनीति करते हैं। बस दिक्कत ये है कि जब उनको रीस यानि गुस्सा आता है तो किसी के बस में नहीं आते। और उनकी यही फितरत उनके लिए कई बार भारी परेशानी का सबब बन जाती है। रीस आने के बाद आगा-पीछा नहीं देखते। एक बार तो दैनिक नवज्योति से सीधा पंगा मोल ले लिया। तब नवज्योति को यहां बोलबाला था। वे सार्वजनिक रूप से नवज्योति को गाली देते थे। इसके चलते कांग्रेस के एक बड़े जलसे का जिला पत्रकार संघ ने बायकाट कर दिया, मगर चौधरी ने कोई परवाह नहीं की। आखिर तक वे झुके नहीं। सचिन के मामले में भी वे रीस पर काबू नहीं रख पाए और आज सचिन समर्थकों से चारों ओर से घिर गए हैं।
सब जानते हैं कि विवादों से उनका चोली-दामन का साथ रहा है और उनकी अब तक की जिंदगी संघर्षों में ही बीती है। ज्ञातव्य है कि मसूदा में निर्दलीय ब्रह्मदेव कुमावत ने चौधरी को हरा दिया था, लेकिन पार्टी को सरकार बनाने के लिए कुमावत की जरूरत थी, इस कारण उन्हें संसदीय सचिव बनाया गया। यह बात चौधरी को इतनी बुरी लगी कि उनके समर्थकों ने बिजयनगर में आयोजित किसान सम्मेलन में ब्रह्मदेव कुमावत के साथ हाथापाई कर दी। यह विवाद काफी दिन तक चलता रहा। मगर इस बार का संघर्ष देख कर यही लगता है कि कहीं उन्होंने रोंग नंबर तो डायल नहीं कर दिया। उन्होंने चैलेंज भी तो ऐसी शख्सियत को दे दिया है, जो इन दिनों चमकता सितारा हैं। सचिन युवा हैं तो उतना जोश भी है। यूं पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल भी उनकी छतरी के नीचे नहीं आए, मगर कम से कम उन्होंने इस तरह खुली बगावत तो नहीं की। उन्होंने चौधरी की तरह कभी सार्वजनिक रूप से पायलट से मुंहजोरी नहीं की है। उनके विरोध की रस्साकस्सी ने कभी सार्वजनिक रूप से नौटंकी का रूप नहीं लिया है। कम से कम अनुशासनहीनता तो नहीं की। मगर चौधरी ने तो खुले आम चुनौती दे कर आलाकमान तक को सकते में डाल दिया है। चौधरी के इस रवैये के कारण पार्टी की काफी थू-थू तो हो रही है, पायलट की भी बड़ी भारी किरकिरी हुई है।
हालांकि पायलट चाहें तो पार्टी हाईकमान में अपनी जबदस्त पेठ के चलते खुद ही चौधरी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखवा सकते हैं, मगर उनके इशारे पर चौधरी को झटका देने के लिए निचले स्तर पर ही कांग्रेसी नेता लामबंद हो गए हैं। कांग्रेस विधायकों समेत जिले के कई कांग्रेसी नेताओं ने चौधरी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सभी ने कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष डॉ. चंद्रभान को पत्र भेजकर चौधरी को कांग्रेस से निष्कासित करने की मांग की है। बेशक चौधरी जमीनी नेता हैं, उनकी अजमेर डेयरी अध्यक्ष के नाते जिले पर निजी पकड़ है और उनकी जाति के तकरीबन ढ़ाई लाख वोट जिले में हैं, मगर उन्होंने विरोध का जो तरीका अपनाया है, उसे हाईकमान गंभीर मान सकता है। हाईकमान को डर है कि अगर इस तरह का विरोध छूत की तरह फैला तो यह पार्टी के लिए बहुत घातक होगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000