गुरुवार, 30 अगस्त 2012

आरपीएससी को एक धक्का और दे कर चले प्रो. शर्मा


शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो रहे राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष प्रो. बी. एम. शर्मा भले ही अपने 1 जुलाई 2011 से आरंभ हुए अपने कार्यकाल को बहुत सफल मानें, मगर सच ये है कि उनके इस छोटे से कार्यकाल में आयोग की प्रतिष्ठा और गिरी ही है। हालांकि उनके खाते में 20 हजार रिकार्ड भर्तियां करवाने, उत्तर कुंजी जारी करने की व्यवस्था, आयोग अध्यक्षों का सम्मेलन की उपलब्धि दर्ज है, मगर संभवत: वे पहले अध्यक्ष हैं, जिनके कार्यकाल में  प्रश्नपत्रों पर सर्वाधिक आपत्तियां सामने आईं और महत्वपूर्ण परीक्षाओं के मामले कोर्ट गए।
ज्ञातव्य है कि प्रो. शर्मा के कार्यकाल में आरजेएस व एपीपी जेसी महत्वपूर्ण परीक्षा के मामले कोर्ट में गए, जो कि एक बहुत ही गंभीर बात है। जाहिर तौर पर इसमें आयोग की कहीं न कहीं लापरवाही रही होगी। इसके अतिरिक्त आरएएस, लेखाकार-कनिष्ठ लेखाकार, पीआरओ, एपीआरओ आदि की परीक्षाओं में प्रश्नपत्रों में अनेक आपत्तियां आईं। आरएएस प्री का भौतिकी विषय को प्रश्न पत्र तो आयोग को दोबारा ही करना पड़ गया। आरजेएस की 21 दिसम्बर 2011 को हुई परीक्षा में 26 प्रश्नपत्रों पर आपत्तियां थीं, जिनमें से 14 को तो आयोग ने भी माना।
अब जब कि वे सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं तो यह दुहाई दे रहे हैं कि भर्ती परीक्षाओं के प्रश्न पत्र तैयार करने के लिए आयोग की अपनी फैकल्टी नहीं है। इस दिशा में कुछ करने की बजाय यह कह कर वे अपना पिंड छुड़वा रहे हैं कि विभिन्न विश्वविद्यालय और महाविद्यालय समय-समय पर प्रश्न निर्माण संबंधित कार्यशालाएं आयोजित करें। इन कार्यशालाओं में अच्छे प्रश्न पत्र बनाने पर चर्चा हो, जिससे आयोग की भर्ती परीक्षाओं के बाद अभ्यर्थियों की ओर से आने वाली आपत्तियां कम होंगी। कैसी बेहूदा बात है। जब उनका अध्यक्ष रहते अपने आयोग पर ही नियंत्रण नहीं है, भला उनके इस सुझाव को कौन मानने वाला है। उससे भी बड़ी बात ये कि गलती भले ही केवल परीक्षक के स्तर पर ही हो रही है, मगर इससे प्रतिष्ठा तो आयोग की दाव पर लग रही है। अभ्यर्थी को भला किसी परीक्षक विशेष से क्या लेना-देना, वह तो आयोग को जानता है और आयोग ही जवाबदेह है। आयोग की बेशर्मी का आलम ये है कि आयोग ने जिस दिन अपने स्थापना दिवस का जश्न मनाया, उसी दिन अखबारों में आयोग ने एक प्रश्नपत्र के बारे में यह सफाई दी थी कि हम क्या करें परीक्षकों ने ही उत्तर कुंजी गलत दी थी।
बेरोजगारी मिटाने के लिए प्रो. शर्मा का एक बेतुका तर्क देखिए। वे कह रहे हैं कि अगर राज्य सरकार विभिन्न विभागों में वर्तमान में रिक्त पदों की समीक्षा करे और यथासमय आयोग को वेकेंसी उपलब्ध कराए तो राज्य की बेरोजगारी की समस्या को सुनिश्चित तरीके से सुलझाया जा सकेगा। सवाल ये उठता है कि आपकी जिम्मेदारी तो केवल सुझाई गई वेकेंसी के लिए योग्य अभ्यर्थी का चयन करने की है, कितनों को नौकरी दी जानी है अथवा सरकार के पास कितना संसाधन है, यह तो सरकार को सोचना है। आपका क्या, आप तो चयन करके अभ्यर्थी भेजते जाएंगे, मगर उनको जब तनख्वाह तो सरकार को ही देनी है।
प्रो. शर्मा ने अभ्यर्थियों के लिए एक संदेश भी दिया है कि वे सिस्टम पर विश्वास रखें, बाहर कई प्रकार की अफवाहें चलती हैं। सवाल ये है कि इस प्रकार की अफवाहें चलती क्यों हैं? जरूर आग सुलगती होगी, तभी धुआं उठता है। आयोग के अब तक के इतिहास में दलाली के कई मामले उजागर हो चुके हैं। हो सकता है हमारा आयोग और आयोगों की तुलना में कहीं बेहतर हो, मगर उसकी प्रतिष्ठा आज तक अजमेर में ही स्थित राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड जैसी नहीं बन पाई है।
कुल मिला कर विभिन्न आयोग अध्यक्षों व सदस्यों की लापरवाहियों की वजह से आयोग की प्रतिष्ठा ये हो चुकी है कि कई लोग यह सोचने लगे हैं कि आपने परीक्षा दी, पास हो गए, साक्षात्कार हुआ, पास हो गए हो और मेडिकल के बाद नौकरी भी लग गयी और फिर एक दिन अदालत का आदेश आये की परीक्षा गलत थी, नौकरी से निकालो, नयी मेरिट लिस्ट बनाओ।
-तेजवानी गिरधर

भाजपा शहर इकाई चेती, मगर जरा देर से

प्रो. रासासिंह रावत

पिछले पांच दिन से शहर की यातायात पुलिस कुछ ज्यादा ही मुस्तैद है। मुस्तैदी भी ऐसी कि वाहन चालकों के साथ बदतमीजी पर उतर आई है। सारे वाहन चालक त्रस्त हैं। बेशक कांग्रेसी इस कारण चुप हैं कि सरकार उनकी है, मगर भाजपा से पूरी उम्मीद थी कि वह कुछ बोलेगी। अब जा कर बोली है। यूं उम्मीद कांग्रेस के नेता व बार अध्यक्ष राजेश टंडन से भी थी क्योंकि वे कांग्रेसी होते हुए भी गलत बात पर प्रशासन से भिड़ जाते हैं। मगर वे चुप हैं। और वह भी तब जब कि पांच दिन पहले जब पुलिस ने नाकाबंदी के नाम पर दादागिरी की और उनके वकील समुदाय के ही अशोक तेजवानी स्थानीय टीवी चैनलों पर पुलिस के खिलाफ दहाड़ रहे थे। चेहरे पर कपड़ा बांधने वाली लड़कियों के साथ जम कर बदसलूकी की गई, मगर कोई महिला संगठन नहीं बोला। यदि कानून के मुताबिक लड़कियों का कपड़ा बांधना गलत है तो आम दिनों में पुलिस क्यों चुप खड़ी रहती है। क्या इसके लिए पुलिस ने कभी समझाइश अभियान चलाया है?
खैर, हो सकता है कि यातायात पुलिस के पास अपने तर्क हों। वे दमदार भी हो सकते हैं। जैसे नाकाबंदी भले ही किसी और मकसद से की थी, मगर यदि जांच के दौरान वाहन चालक अप टू डेट नहीं होंगे तो चालान किए ही जाएंगे। बात ठीक भी है। मगर इसी यातायात पुलिस को जगह-जगह रुकने वाले सिटी बसें वाले नजर क्यों नहीं आतीं? सिटी बसों में भेड़ बकरियों की तरह ठूंसे हुए यात्री नजर क्यों नहीं आते? ओवर लोडेड वाहन नजर क्यों नहीं आते? नो एंट्री एरिया में घुसने वाले चौपहिया वाहन नजर क्यों नहीं आते? और अफसोस कि यह सब जयसिंह जैसे संजीदा और बुद्धिजीवी अधिकारी के होते हुए हो रहा है। संभव है पुलिस ये तर्क दे कि यातायात व्यवस्थित करना उसके जिम्मे है, वह बेहतर समझती है कि क्या करना है और क्या नहीं, इसमें किसी राजनीतिक दल अथवा बुद्धिजीवी को दखल नहीं देना चाहिए, मगर सामाजिक सरोकार भी तो कोई महत्व रखता है। आप कानून का पालन करवाइये। अजमेर की जनता वैसे भी कोई अडिय़ल नहीं है। मगर यदि पुलिस के प्रति असंतोष उभर रहा है तो पुलिस के आला अफसरों को इस पर विचार तो करना ही होगा कि निचले स्तर पर सिपाही या दीवान स्तर के कर्मचारी व्यवहार कैसा कर रहे हैं।
भाजपा की यह बात बिलकुल सही है कि कि शहर के प्रमुख चौराहों पर पैदल चलने वाले यात्रियों के लिये बनाई गयी जेबरा लाइनें सड़क के दोनों ओर बड़े जंगले व दीवारें होने के कारण तकनीकी रूप से उपयोग में आने योग्य नहीं हैं व गलत बनी हुई हैं, फिर भी यातायातकर्मी इसी ताक में रहते हैं कि कोई वाहन चालक इन गलत बनी जेबरा लाइनों पर आये तो उसका तत्काल चालान बना दिया जाये। भाजपा का यह आरोप भी बिलकुल सही है कि शहर के सभी प्रमुख चौराहों पर लाखों रुपये खर्च कर यातायात की व्यवस्था व यातायात कर्मियों पर निगरानी के लिये शार्ट सर्किट कैमरे लगाये गये थे, लेकिन ये काम हीं नहीं करते। कहीं यह मिलीभगत का परिणाम तो नहीं है। कुल मिला कर पुलिस की कार्यवाही से बदमाशों में खौफ हो न हो, आम जनता में जरूर खौफ व्याप्त हो गया है। अगर यदि यह बात गलत है तो भाजपा क्यों कर इस मुद्दे पर पुलिस के आला अधिकारियों का ध्यान आकर्षित किया है। इस पर गौर किया ही जाना चाहिए।
भाजपा ने चेतावनी दी है कि यदि बेकसूरों के प्रति इस प्रकार की पुलिसिया कार्यवाही को रोका नहीं गया तो जनहित में आन्दोलन किया जाएगा, मगर देखने वाली बात ये होगी कि इससे आम जन को राहत मिल पाती है या नहीं।
-तेजवानी गिरधर