रविवार, 2 अगस्त 2015

वार्ड आठ में भाजपा की नजर राजू साहू पर

ताजा जानकारी के अनुसार आसन्न अजमेर नगर निगम चुनाव में वार्ड आठ में भाजपा की नजर आखिरी दौर में राजू साहू पर पड़ गई है। हालांकि पूर्व में ऐसा माना जा रहा था कि रमेश सोनी के अतिरिक्त विमल पारलेखा, कमल बाफणा, अनिल नरवाल, गगन साहू, विजय साहू व लाल जी दावेदार हैं, मगर अचानक राजू साहू का नाम भी उभर आया है। यहां भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता गगन साहू स्वयं चुनाव लडऩे के प्रति असमंजस के चलते विजय साहू का समर्थन करते नजर आ रहे थे, मगर अब पता लगा है कि वे पार्टी नेताओं की सलाह पर राजू साहू का साथ देने को तैयार हो गए हैं। यानि कि अब विजय साहू भी उनका ही साथ देंगे।
यहां ज्ञातव्य है कि अनिल नरवाल पहले अपनी पत्नी श्रीमती वंदना नरवाल को महिला के लिए आरक्षित वार्ड सात से चुनाव लड़ाने को इच्छुक नहीं थे और खुद के लिए वार्ड आठ से टिकट मांग रहे थे, मगर उनकी पत्नी का नाम वार्ड सात से लगभग फाइनल होने के बाद उनका यहां दावा समाप्त हो गया है। विमल पारलेचा को टिकट इस कारण नहीं मिलने की संभावना है, क्योंकि उनका शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी से छत्तीस का आंकड़ा है। अब देखने वाली बात ये होगी कि वे टिकट नहीं मिलने पर क्या करते हैं। यूं रमेश सोनी व कमल बाफना की दावेदारी भी बरकरार है।
आपको बता दें कि इस वार्ड में मुसलमानों के तकरीबन 1800 वोट हैं, जो कि कांग्रेस प्रत्याशी के लिए मुफीद हैं। कांग्रेस की ओर से इमरान सिद्दीकी का नाम प्रमुखता से उभर कर आया है। यूं यहां से संजय टाक, दिलीप व पप्पू भाई भी दावेदारी कर रहे हैं। बताया जाता है कि पप्पू भाई को अगर टिकट नहीं मिला तो वे निर्दलीय खड़े हो सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी को दिक्कत हो सकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

अनिल नरवाल की पत्नी ही लड़ेंगी वार्ड सात से

ऐसा प्रतीत होता है कि आगामी अजमेर नगर निगम चुनाव में वार्ड सात के बारे में मेरा आकलन सही हो रहा है। रविवार की रात जिस प्रकार अनिल नरवाल के नाम से बना एक पोस्टर वाट्स ऐप पर चला, उससे प्रतीत होता है कि उनकी पत्नी का भाजपा से टिकट पक्का हो गया है। हालांकि भाजपा ने अभी तक एक भी सीट के प्रत्याशी की आधिकारिक घोषणा नहीं की है, मगर पोस्टर में साफ दर्शाया गया है कि अनिल नरवाल की पत्नी श्रीमती वंदना नरवाल वार्ड सात की भाजपा प्रत्याशी हैं।
ज्ञातव्य है कि मैने इसी कॉलम में लिखा था कि यहां भाजपा की आस अनिल नरवाल पर टिकी है। साफ संकेत दिए थे कि यहां भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार अनिल नरवाल को उनकी पत्नी को चुनाव लड़ाने का ऑफर है। दूसरी ओर पता चला था कि वे अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतारने की बजाय खुद वार्ड आठ से टिकट लेना चाहते हैं। मगर ऐसा प्रतीत होता है कि वे भाजपा नेताओं की राय मानने को तैयार हो गए हैं।
मैने लिखा था कि असल में यह वार्ड भाजपा के लिए आसान वार्ड नहीं है। इस वार्ड में तकरीबन 2800 मुस्लिम वोट हैं। यहां पार्टी तभी कामयाब हो सकती है, जबकि कांग्रेस मानसिकता वाले हरिजन वोटों में सेंध मारे। इसके लिए मात्र अनिल नरवाल ही सक्षम हैं। इसी कारण पार्टी चाहती है कि नरवाल की पत्नी के यहां से लड़ें, जिससे चुनाव जीतना आसान हो जाए, कई भाजपाई वार्ड वासी भी यही चाहते हैं, चूंकि वे ही नैया पार लगा सकते हैं। अगर नरवाल की पत्नी ही चुनाव लड़ती हैं तो कांग्रेस को नई रणनीति बनानी होगी। ज्ञातव्य है कि कांग्रेस में यहां आरिफ हुसैन, पप्पू कुरैशी व मुनीर तंबोली के परिवारों में किसी महिला के चुनाव लडऩे की संभावना बताई जा रही है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शाहनी की राजनीति पर लगा बैरियर समाप्त

एसीबी की अजमेर यूनिट की ओर से जमीन के बदले जमीन मामले में तत्कालीन नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर नरेन शाहनी भगत को क्लीन चिट दिए जाने की जानकारी के साथ ही उनके राजनीतिक जीवन पर लगा बेरियर हट गया है। हालांकि जिस तरह से वे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट पर आरोप लगा कर पार्टी से बाहर गए थे, उससे उनके यकायक वापस लौटने की राह आसान नहीं है, मगर संभव है अपने आका पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मदद से फिर प्रवेश पा सकते हैं।
असल में पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान उन पर राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा का दबाव था कि वे मामले से बचने के लिए कांग्रेस का साथ छोड़ दें। उन्होंने साथ तो छोड़ा, मगर ऐन चुनाव के वक्त सचिन पर आरोप लगाने की वजह से वे उनसे सदा के लिए दूर हो गए। असल में भाजपा यही चाहती थी कि तत्कालीन कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट के लिए मुश्किल पैदा हो।  रहा सवाल उनके भाजपा में शामिल होने का तो या तो वे खुद ही भाजपा में नहीं जाना चाहते थे या फिर भाजपा आरोपी नेता को पार्टी में लेना नहीं चाहती थी। बहरहाल, मामला लंबित होने के कारण उन्होंने भी राजनीति से पूरी तरह किनारा कर लियाद्ध अब जबकि वे आरोप से मुक्त होने की स्थिति में हैं तो उनके राजनीतिक कैरियर पर लगा बेरियर हट गया है। अब वे स्वतंत्र हैं कि भाजपा में जाएं या कांग्रेस में लौट आएं। संभव है भाजपा उन पर पार्टी में शामिल होने पर दबाव भी बनाए। हालांकि इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, मगर ऐन नगर निगम चुनाव से पहले उनको क्लीन चिट मिलना यह संदेह तो पैदा करता ही है कि कहीं भाजपा उनका लाभ लेने के मूड में तो नहीं है। यूं उनको पार्टी में लाने से भाजपा को बहुत बड़ा फायदा नहीं है, क्योंकि भाजपा में पहले से कई सिंधी नेता मौजूद हैं। रहा सवाल उनको लाभ का तो आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा में तो उन्हें टिकट मिलना मुश्किल ही है, क्योंकि यहां की सीट का फैसला संघ करता है। एक तो वैसे ही लगातार तीन बार जीत कर प्रो. वासुदेव देवनानी ने धरती पकड़ रखी है, दूसरा यह सीट संघ के खाते में है, इस कारण यहां गैर संघी को टिकट मिलना मुश्किल ही होता है। हां, अगर कांग्रेस में जरूर सिंधी के नाते उन्हें फिर लाभ मिल सकता है, क्योंकि कांग्रेस में सिंधी कम हैं। ठीक वैसे ही जैसे किसी मुसलमान की जितनी तवज्जो कांग्रेस में नहीं होती, उतनी भाजपा में होती है।
खैर, वैसे अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि आगामी माह में होने जा रही उनके बेटे की शादी होने तक वे राजनीति से दूर ही रहेंगे। उसी के बाद तय करेंगे कि करना क्या है। चूंकि वे अच्छे समाजसेवी और मिलनसार  हैं, इस कारण खोयी प्रतिष्ठा हासिल करने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। बस अफसोस इस बात है कि जिस आरोप में उन्हें क्लीन चिट मिली है, उसने उनके जीवन में एक ऐसा मोड़ ला दिया था, जहां से उनका राजनीतिक कैरियर चौपट होने जा रहा था।
-तेजवानी गिरधर