गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

क्या आंदोलन के बिना नहीं होगा सावित्री कॉलेज का उद्धार?

एक ओर केन्द्र व राज्य सरकार महिला सशक्तिकरण और नारी शिक्षा पर विशेष जोर देते हुए करोड़ों रुपए का प्रावधान कर रही है, तो दूसरी ओर पूरे उत्तर भारत में सर्वप्रथम घोषित संपूर्ण साक्षर अजमेर में वर्षों से नारी शिक्षा की अलख जगा रहा सावित्री कॉलेज बंद होने के कगार पर है। अफसोसनाक बात ये है कि सरकार और जनप्रतिनिधियों को कॉलेज की खराब माली हालत के बारे में पूरी जानकारी है, इसको अधिग्रहित करने का प्रस्ताव भी भेजा जा चुका है, बावजूद इसके जानबूझ कर आंखें फेरी जा रही हैं और कॉलेज की शिक्षिकाएं व छात्राएं आंदोलन करने को मजबूर हैं।
प्रदेश में शैक्षिक राजधानी के रूप में विख्यात अजमेर में नारी शिक्षा की लौ आजादी से बहुत पहले ब्रिटिश शासनकाल में ही प्रज्ज्वलित हो गई थी। इस कॉलेज की शुरुआत 1914 में प्राथमिक कन्या विद्यालय के रूप में हुई थी। क्रमश: 1933, 1943, 1951 और 1968 में हाई स्कूल, इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर कॉलेज के रूप में क्रमोन्नत इस कॉलेज ने अनगिनत युवतियों को शिक्षित किया, जो आज देश-विदेश में अनेक क्षेत्रों में उच्चस्थ पदों पर स्थापित हैं। संगीत व ड्राइंग की शिक्षा के क्षेत्र में तो इसकी विशेष पहचान है और यहां से शिक्षित युवतियों ने चित्रकला व संगीत के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किए हैं। बदलते युग के साथ यहां एम. कॉम. बिजनिस एडमिनिस्ट्रेशन व बीसीए की शिक्षा भी दी जा रही है। नारी शिक्षा के क्षेत्र में हालांकि सोफिया स्कूल व कॉलेज की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, मगर वहां मात्र उच्च आय वर्ग की युवतियों ने ही शिक्षा पाई है, जबकि सावित्री कॉलेज ने शहर के बहुसंख्यक मध्यम व निम्न मध्यम वर्ग की युवतियों को शिक्षित करने का दायित्व निभाया है। मौजूदा परिदृश्य पर नजर डालें तो इस कॉलेज में वे सब सुविधाएं हैं, जो कि सरकार द्वारा स्थापित राजकीय कन्या महाविद्यालय के पास नहीं हैं। सरकारी कॉलेज के पास न तो अपना भवन है और न ही पर्याप्त प्रवक्ता। यहां तक कि राजस्थान में इकलौते सावित्री कॉलेज को नेवल विंग से युक्त होने का गौरव हासिल है। यूजीसी की भी सभी सुविधाएं मिल रही हैं।
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि जिस समाज की महिलाएं शिक्षित होती हैं, उसकी नई पीढ़ी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी होती है। ऐसे में यदि यह कहा जाए कि तीन पीढिय़ों की महिलाओं को शिक्षित करने वाले इस संस्थान की बदौलत ही आज अजमेर संपूर्ण साक्षर बन सका है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। कितने दु:खद आश्चर्य की बात है कि जिस जमाने में नारी शिक्षा के प्रति कोई खास जागृति नहीं थी, तक इस संस्थान ने अग्रणी भूमिका निभाई और आज जब नारी शिक्षा पर सर्वाधिक जोर दिया जा रहा है, उसके लिए पर्याप्त फंड भी जारी किया जाता है, तब अजमेर में शिक्षा का आधार स्तम्भ रहा यह संस्थान आज अंतिम सांसें गिन रहा है।
यह तो गनीमत है कि तीर्थराज पुष्कर व दरगाह ख्वाजा साहब की बदौलत अजमेर विश्व मानचित्र पर अंकित है, वरना राजनीतिक जागरुकता के अभाव में हमारा शैक्षिक राजधानी का ओहदा लगभग छिन सा गया है। आजादी के बाद अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के समय जरूर इस महत्व को बरकरार रखा गया। तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार वल्लभाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत यहां राजस्थान लोक सेवा आयोग व माध्यमिक शिक्षा बोर्ड खोला गया, मगर उसके बाद पर्याप्त ध्यान नहीं दिए जाने के कारण उच्च शिक्षा के क्षेत्र में जयपुर सहित कोटा व जोधपुर आगे निकल गए। इतिहास के झरोखे में जरा और पीछे झांके तो साफ नजर आता है कि सन् 1936 में स्थापित राजकीय महाविद्यालय और सन् 1875 में स्थापित मेयो कॉलेज हमारे गौरव स्तम्भ रहे हैं। इतना ही नहीं बिसलदेव विग्रहराज के काल में स्थापित संस्कृत महाविद्यालय के अवशेष आज भी ढ़ाई दिन के झौंपड़े में देखे जा सकते हैं। सन् 1925 में पुष्कर में स्थापित संस्कृत महाविद्यालय भी हमारी गौरव यात्रा बखान करता है। ऐसे ऐतिहासिक शहर में महिला शिक्षा अलग जगाने में अहम भूमिका निभाने वाला सावित्री कॉलेज यदि बंद होता है तो यह यहां के राजनेताओं, बुद्धिजीवियों और व्यवसाइयों के लिए बेहद शर्मनाक होगा।