मंगलवार, 6 जून 2017

पुष्कर घाटी में सुरंग के पीछे क्यों पड़ा है एडीए?

जानकारी के अनुसार पुष्कर घाटी में सुरंग बनाने की योजना के सिलसिले में कंसल्टेंट सेवाओं के लिए अजमेर विकास प्राधिकरण ने एक बार फिर मशक्कत शुरू कर दी है। सुरंग के सर्वे के लिए कंसल्टेंट तय करने के लिए निविदा जारी की गई है। इसके लिए प्री बिड मीटिंग 13 जून को रखी गई है। ऑनलाइन बिड सबमिट करने की तारीख 21 जून तय की गई है और 23 जून को टेक्निकल बिड खोली जाएगी।
यह एक अच्छी बात है कि यात्रियों की सुविधा के लिए प्राधिकरण सजग है, मगर सवाल ये उठता है कि जब बहुत पहले ही यह तथ्य सामने आ चुका है कि इस घाटी में सुरंग बनाना खतरे से खाली नहीं है तो आखिर क्यों इसको बनाने की कवायद की जा रही है?
आपको बता दें कि इस सुरंग की बात पहले भी कोई चौदह साल पहले आई थी। सन् 1990 में तत्कालीन पुष्कर विधायक व भेड़ ऊन राज्यमंत्री रमजान खान ने सुरंग की मांग उठाई थी। इसके बाद 1998 से 2003 तक भी यहां के विधायक रहते उन्होंने फिर दबाव बनाया। भाजपा के वरिष्ठ नेता औंकार सिंह लखावत ने भी भरपूर कोशिश की। इस पर वन विभाग, सार्वजनिक निर्माण विभाग और राजस्व विभाग ने सर्वे किया। सर्वे में नौसर स्थित माता मंदिर से पुष्कर रोड स्थित चमत्कारी बालाजी मंदिर तक के मार्ग का सुरंग बनाने के लिए चयन किया गया। इसमें नौसर से बालाजी के मंदिर तक पहाड़ी को काटते हुए सुरंग बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया। इस मार्ग की कुल लंबाई महज आधा किलोमीटर आई, जबकि घाटी से चलने पर यह रास्ता करीब ढाई किलोमीटर का होता है। सर्वे में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई थी कि अजमेर व पुष्कर को अलग करने वाली पहाड़ी इतनी मजबूत व सख्त नहीं है कि वहां सुरंग खोदी जा सके। अगर सुरंग खोदी गई तो वह कभी भी ढ़ह सकती है। सुरंग के व्यावहारिक धरातल पर संभव न होने की वजह से ही अजमेर को पुष्कर से जोडने के लिए रेल लाइन के प्रस्ताव पर काम किया गया, जिसमें औंकार सिंह लखावत ने अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में जाहिर तौर पर सुरंग का प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया।
एडीए में शिवशंकर हेड़ा की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के बाद सुरंग बनाने की योजना पर फिर कार्रवाई शुरू हुई। इस बाबत एडीए की 1 दिसंबर 2016 को हुई बोर्ड बैठक में प्रस्ताव भी पारित हो गया और सर्वे के लिए निविदा आमंत्रित की गई। पहले तो सर्वे के लिए कंसलटेंट फर्म ही नहीं मिली। दूसरी बार एडीए ने दस लाख रुपए की निविदा निकाली तो एक कंपनी ने केवल फिजिबिलिटी और सर्वे पर ही साढ़े चार करोड़ रुपए खर्च बता दिया। इसे निरस्त करने के बाद एडीए प्रशासन फिर से सुरंग के लिए सर्वे रिपोर्ट तैयार करने में जुट गया है।
सवाल ये उठता है कि जब पुष्कर घाटी में सुरंग बनाना उचित नहीं है तो प्राधिकरण क्यों इसके पीछे पड़ा है? पूर्व में इस कवायद पर 15 लाख रुपए पूरे हो चुके हैं, क्या प्राधिकरण कुछ और राशि बर्बाद करके ही मानेगा?
एक सवाल ये भी है कि सुरंग की बात तब आई थी, जब कि वैकल्पिक मार्ग नहीं था, अब तो रेलवे मार्ग के अतिरिक्त बाईपास भी है, फिर क्यों घाटी के सौंदर्य के साथ छेड़छाड़ की जा रही है?
-तेजवानी गिरधर
7742067000

अपनी सरकार के निर्णय के विरुद्ध ही आना पड़ा देवनानी व जैन को

केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को ज्ञापन देते सुनील दत्त जैन
प्रदेश के शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व अजमेर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख सुनील दत्त जैन को अपनी ही पार्टी की केन्द्र सरकार के निर्णय के खिलाफ आगे आना पड़ गया। मुद्दा ये है कि सरकार ने हाल ही जीएसटी लागू करने का जो निर्णय किया है, उसकी वजह से नमकीन के सभी प्रकार के उत्पाद पर 5 प्रतिशत वेट की बजाय 12 प्रतिशत टैक्स लगा दिया गया है। यह निर्णय आगामी 1 जुलाई से लागू होगा।
असल में इस सिलसिले में राजस्थान के प्रमुख नमकीन कारोबारियों की एक बैठक हुई। इसमें राजस्थान नमकीन महासंघ बनाया गया, जिसमें हालांकि जैन ने कोई बड़ा जिम्मेदार पद नहीं लिया, मगर समझा जा सकता है कि उनका जो कद है, उसके मद्देनजर महासंघ में उनकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होगी। यह कम बात नहीं कि नमकीन कारोबारियों की बैठक में राज्य सरकार के राज्य मंत्री प्रो. देवनानी भी मौजूद रहे। समझा जा सकता है कि वे किसके कहने पर बैठक में पहुंचे। यह सर्वविदित ही है कि जैन भी अजमेर के एक प्रमुख नमकीन कारोबारी हैं। इस कारण जीएसटी की वजह से इस कारोबार पर पडऩे वाले असर पर उनकी बारीक पकड़ होगी ही।
जैन सहित सभी नमकीन कारोबारियों का तर्क है कि राजस्थान शुष्क प्रदेश है, इस कारण यहां नमकीन का उपयोग सब्जी के बतौर भी किया जाता है। अर्थात यह आम उपयोग की वस्तु है। अकेले राजस्थान में टैक्स बढ़ाने से 10 लाख लोग प्रभावित होंगे। राज्य में नमकीन का कारोबार कुटीर उद्योग की तरह हैं। हजारों परिवारों की आजीविका इस उद्योग पर निर्भर है। यदि 12 प्रतिशत टैक्स वसूला गया तो टैक्स चोरी की संभावना भी बढ़ जाएगी। उनकी बात में दम है। इस प्रकार का असर अन्य उद्योगों पर भी पड़ रहा होगा, मगर चूंकि खुद जैन नमकीन कारोबारी हैं, इस कारण उन्हें अपनी जमात की खातिर सरकार के निर्णय के विरुद्ध आगे आना पड़ा।
बहरहाल, असल मुद्दा ये भी है कि क्या केन्द्र सरकार ने राजस्थान के हालात का सर्वे किए बिना ही नमकीन पर टैक्स बढ़ाने का निर्णय कर लिया। स्पष्ट है कि इस प्रकार का निर्णय सरकारी कारिंदों ने एसी चैंबर में बैठ कर किया है, जिस पर सरकार ने बिना सोचे मुहर लगा दी। कदाचित इसके पीछे एक सोच ये भी रहती होगी कि एक बार तो निर्णय सुना दो, फिर जिसको जो तकलीफ होगी, वह सामने आएगा, और तब उस पर विचार किया जाएगा। मगर ऐसा भी तो हो सकता था कि निर्णय लागू करने से पहले संबंधितों से भी चर्चा की जाती, ताकि टैक्स घोषित करने और उसके बाद विशेष परिस्थिति के मद्देनजर वापस या कम करने की कवायद नहीं करनी पड़ती।
अव्वल तो अभी ये देखने वाली बात है कि क्या सरकार राजस्थान नमकीन महासंघ के तर्क से सहमत होती भी है या नहीं? अगर इसी प्रकार अन्य उद्योगों के व्यवसायी अथवा अन्य राज्यों के लोग भी किसी अन्य उत्पाद को लेकर टैक्स कम करने की मांग करने लगेंगे तो बात कहां तक जाएगी। खैर, महासंघ ने मांग रखी है। देवनानी मुख्यमंत्री और जीएसटी काउंसिल की सदस्य श्रीमती वसुंधरा राजे से बात करेंगे। अगर वे सहमत हो भी गईं तो उन्हें जीएसटी काउंसिल पर दबाव बनाना होगा। इसमें कितना समय लगेगा, तब तक तो टैक्स लागू करने की तारीख 1 जुलाई आ ही जाएगी। कुल मिला कर यह अच्छी बात है कि नमकीन कारोबारियों ने भले ही अपने हित की खातिर मुद्दा उठाया है, उसका लाभ अंतत: आम आदमी को ही मिलेगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000